तारों के बनने की दर में गिरावट का रहस्य !

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वैज्ञानिकों में लंबे समय से तारों की संरचना की बनावट की दर में आ रही कमी के कारणों को लेकर जिज्ञासा बनी हुई थी। आकाशगंगाओं में लगभग 8-10 अरब साल पहले निर्माण के एक चरम के बाद सितारों की बनावट की दर में गिरावट देखी गई। वैज्ञानिकों ने अब आकाशगंगाओं के परमाणु हाइड्रोजन को मापकर तारों के निर्माण की गतिविधि में इस गिरावट के पीछे के रहस्य को उजागर किया है।

आकाशगंगाएं अधिकतर गैस और तारों से मिलकर बनी होती हैं। गैस समय के साथ तारों में तब्दील हो जाती है। इस रूपांतरण को समझने के लिए परमाणु हाइड्रोजन गैस को मापने की आवश्यकता होती है, जो शुरुआती समय में आकाशगंगाओं में तारों को बनाने के लिए प्राथमिक ईंधन है। खगोलविदों ने लंबे समय के प्रयास से यह जाना है कि आकाशगंगाओं ने एक उच्च दर पर सितारों का गठन और निर्माण किया, जब ब्रह्मांड आज की तुलना में बिल्कुल नया था। लेकिन अहम बात यह है कि तारों के निर्माण में आई इस गिरावट का कारण पता नहीं चल पाया है क्योंकि उस समय उपलब्ध हाइड्रोजन गैस की मात्रा के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स (एनसीआरए-टीआईएफआर), पुणे और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई), बैंगलुरु के खगोल विज्ञानियों की एक टीम ने एनसीआरए-टीआईएफआर द्वारा संचालित एक बड़े मीटर वेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी) का 8 अरब साल पहले देखी गई आकाशगंगाओं की परमाणु हाइड्रोजन सामग्री को मापने के लिए उपयोग किया। यह अनुसंधान एनसीआरए-टीआईएफआर के आदित्य चौधरी, निसिम कानेकर और जयराम चेंगालुर और आरआरआई के शिव सेठी, के.एस. द्वारकानाथ ने किया जो जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। प्रकाशित अनुसंधान में ब्रह्मांड में सबसे शुरुआती काल के बारे में बताया गया है। इसके लिए आकाशगंगाओं की परमाणु गैस सामग्री को मापा गया है।

परमाणु ऊर्जा विभाग और डीएसटी ने अनुंसधान के लिए फंड मुहैया कराया: इस अनुसंधान के प्रमुख लेखक और एनसीआरए-टीआईएफआर के पीएचडी छात्र आदित्य चौधरी ने बताया, आरंभिक आकाशगंगाओं में एक या दो अरब साल पहले तारों के तेजी से निर्माण के दौरान परमाणु गैस की अधिक खपत हुई होगी, और यदि आकाशगंगाओं को पर्याप्त गैस नहीं मिल सकी तो तारों के निर्माण की दर में गिरावट आई होगी और अंततः निर्माण की प्रक्रिया ही खत्म हो गई होगी। उन्होंने बताया, तारों के निर्माण में गिरावट की दर को हाइड्रोजन गैस की कमी के लिहाज से समझा जा सकता है।

दूर की आकाशगंगाओं के परमाणु हाइड्रोजन द्रव्यमान का मापन परमाणु हाइड्रोजन में वर्णक्रमीय रेखा की खोज के लिए अपग्रेडेड जीएमआरटी का उपयोग करके किया गया था। आरआरआई से जुड़े और इस अनुसंधान पत्र के सह लेखक के.एस. द्वारका ने बताया, ”हमने इसी तरह के अध्ययन के लिए जीएमआरटी का उपयोग 2016 में किया था, तब यह अग्रेडेड नहीं था। जीएमआरटी के अपग्रेड नहीं होने की वजह से हम अपने विश्लेषण में केवल 850 आकाशगंगाओं को ही कवर कर सके थे, जो कि एक तरह से अपर्याप्त था।

जब 1980 और 1990 के दशक में गोविंद स्वरूप के नेतृत्व में एक टीम द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया जीएमआरटी का ब्रह्मांड में सबसे दूर आकाशगंगाओं से 21 सेमी संकेत का पता लगाना ही मुख्य वैज्ञानिक लक्ष्य था। इस अनुसंधान पत्र के सह-लेखक, डीएसटी के स्वर्ण जयंती फेलो और एनसीआरए-टीआईएफआर से जुड़े निसिम कानेकर ने बताया, “गोविंद स्वरूप की इस काम में बहुत दिलचस्पी थी और बहुत उत्सुकता के साथ उन्होंने अपना काम किया। दुखद बात यह है कि इस अनुसंधान के प्रकाशित होने से कुछ समय पहले ही उनका निधन हो गया। यह अनुसंधान उनकी अद्भुत टीम और उनके बिना मुमकिन नहीं था जिन्होंने जीएमआरटी तैयार किया और बाद में उसे अपग्रेड भी किया।

जीएमआरटी के उन्नयन की तकनीकी व्याख्या: तारों के विपरीत, प्रकाशीय तरंग दैर्ध्य में दृढ़ता से प्रकाश को उत्सर्जित करते हैं। परमाणु 21 सेमी की तरंग दैर्ध्य पर हाइड्रोजन सिगनल रेडियो तरंग दैर्ध्य में होता है, और केवल रेडियो दूरबीनों से इसका पता लगाया जा सकता है। दुर्भाग्य से, यह 21 सेमी सिगनल अपग्रेडेड जीएमआरटी जैसी शक्तिशाली दूरबीनों के साथ आकाशगंगाओं का पता लगाने के लिहाज से इसकी क्षमता पर्याप्त नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए टीम ने लगभग 8,000 आकाशगंगाओं के 21 सेमी सिगनल को संयोजित करने के लिए “स्टैकिंग” नाम एक तकनीक का उपयोग किया था। यह पहले ऑप्टिकल टेलीस्कोप की तरह था। इस विधि के जरिये इन आकाशगंगाओं की औसत गैस सामग्री को मापती है।