ठाकरे भाइयों के एक होने से बदलेंगे सियासी समीकरण

ठाकरे भाइयों के एक होने से बदलेंगे सियासी समीकरण मराठी अस्मिता के नाम पर ठाकरे भाइयों की सियासी अस्तित्व की जंग दोनों ठाकरे भाइयों को समझ में आ गया है कि अलग रहकर अस्तित्व नहीं बचा सकते वैसे भी उद्धव ठाकरे पर इंडी गठबंधन में रहकर हिंदू विरोधी होने का लग गया था ठप्पा राज्य में तीन अक्टूबर को मनाया जाएगा मराठी दिवस, 13 तक होंगे कार्यक्रम

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नयी दिल्ली। इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। वर्चस्व के नाम पर शिवसेना छोड़ने वाले राज ठाकरे अब मराठी भाषा के नाम पर उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने पर मजबूर हो गए हैं। इस तरह बीस साल से अलग रहकर राजनीति कर रहे ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर एक हो गए। न सिर्फ एक हो गए बल्कि मंच साझा किया और मंच पर ही गले भी मिले। पर ये मिलन शायद कांग्रेस को पसंद नहीं आया इसीलिए उसने इससे किनारा कर लिया। हालांकि एनसीपी की सुप्रिया सुले और जितेंद्र आह्वाण जरूर दिखे। सुप्रिया ने तो साथ में फोटो सेशन भी कराया। पर उद्धव और राज ठाकरे का मैसेज साफ था कि हम दो, और हमारे दो। इसलिए मंच पर सिर्फ दो कुर्सियां ही लगी थीं, एक उद्धव और दूसरी राज ठाकरे की। सुप्रिया सुले भी दर्शक दीर्घा में थीं। उद्धव ठाकरे ने ये भी साफ कर दिया कि बृहन्मुंबई महानगर पालिका यानी बीएमसी का चुनाव वे और राज ठाकरे मिल कर लड़ेंगे। उनका किसी और पार्टी से कोई गठबंधन नहीं होगा, यानी यहां इंडी गठबंधन नहीं होगा। वैसे तो सुप्रिया सुले दर्शक दीर्घा में थीं, पर वे बाद में मंच पर आकर ठाकरे परिवार में मेल मिलाप की कोशिशों में जुटी रहीं। ऐसे में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हिंदी सम्बंधित आदेश ने ठाकरे बंधुओं को एक साथ आने का अवसर दे दिया है। पर जिस आदेश के खिलाफ ठाकरे बंधु हड़ताल करने वाले थे, वह तो रहा ही नहीं। उस आदेश को तो राज्य सरकार ने पहले ही वापस ले लिया। ऐसे में उसके विरोध में निर्धारित आंदोलन हुआ ही नहीं तो विजय दिवस किस बात का। यह सवाल अभी भी राजनीतिक गलियारों में तैर रहा है। यानी ठाकरे भाइयों की तय रणनीति के तहत ही उक्त आदेश वापस होने के बावजूद विजय संकल्प रैली का आयोजन और शक्ति प्रदर्शन हुआ। उधर देवेंद्र फडणवीस सरकार ने डैमेज कंट्रोल करते हुए तीन अक्टूबर को राज्य में मराठी दिवस मनाने की घोषणा की है। इसके अलावा 3 से 13 अक्टूबर तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा। यानी मराठी पर जंग जीतने की कोशिश दोनों तरफ से जारी है। उधर सूत्रों का कहना है कि दोनों भाई इस मिलन की ताकत को टेस्ट करने के बाद ही आगे कोई अंतिम सियासी गठजोड़ या मिलन पर कोई फैसला करेंगे। पर इतना जरूर है कि रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघलने लगी है।

उधर कुछ लोग इसे भाजपा और ठाकरे बंधुओं का पूर्व निर्धारित ड्रामा बता रहे हैं। वैसे ठाकरे बंधुओं ने भी कोशिश यही की कि किसी को ये न लगे कि इस पटकथा के लेखक मंडल में भाजपा भी शामिल है। शायद इसी कारण ज्यादा हमले भाजपा और संघ परिवार पर ही किए गए। राज ठाकरे ने कहा कि जो काम बालासाहेब ठाकरे नहीं कर पाए वो फडणवीस ने कर दिया, और उन्होंने हम दो भाइयों को मिला दिया। राज ठाकरे ने कहा कि वैसे हिंदी अच्छी भाषा है, लेकिन उसे हम यहां बोल नहीं सकते। साथ ही राज ठाकरे ने सियासी दांव चलते हुए और बीएमसी चुनाव की ओर इशारा करते हुए यह भी आरोप लगाया कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश चल रही है, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। उद्धव ठाकरे ने कहा कि मराठी मानुस के लिए न्याय मांगना अगर गुंडागर्दी है तो, हां मैं गुंडा हूं। उद्धव ठाकरे ने कहा कि पुष्पा फिल्म की तरह मैं भी कहता हूं कि मैं झुकेगा नहीं। उद्धव ठाकरे ने कहा कि हमें हिंदू और हिंदुस्तान मान्य है, पर हिंदी नहीं। ठाकरे भाइयों के बयान पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि चलो, इसी बहाने राज ठाकरे ने मुझे मिलाने का श्रेय तो दिया। और इसी बहाने मुझे बालासाहेब का आशीर्वाद मिल गया है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि दोनों भाइयों को मैने तो अलग किया नहीं था, ये तो आपस में लड़कर ही अलग हुए थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि वैसे घोषणा तो विजय दिवस मनाने की थी, लेकिन उसमें सिर्फ रुदाली भाषण हुआ। फडणवीस ने मुंबई के विकास पर ठाकरे बंधुओं को घेरते हुए कहा कि 25 साल तक मुंबई महानगरपालिका उनके पास रही, लेकिन उनके पास दिखाने लायक कोई काम नहीं। आज जब पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमने मुंबई का चेहरा बदला है, तो उनको जलन हो रही है।

उधर इस मिलन के बारे में उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि पहले दोनों का अलग-अलग मोर्चा निकलना था लेकिन राज ठाकरे की सलाह पर मैंने ही उद्धव ठाकरे से बात की तो उद्धव ठाकरे ने भी सहमति जता दी। जब संजय राऊत से पूछा गया कि जिस मुद्दे पर मोर्चा निकलना था वह तो देवेंद्र फडणवीस ने पहले ही मान लिया था, फिर विजय रैली किस बात की, तो संजय राउत ने कहा कि इसके जरिए संदेश भी देना था कि हम लोग अब एक साथ आए हैं। राउत ने कहा कि वैसे तो हम अभी भी इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन नगर निकाय स्तर पर हमारा कोई गठबंधन नहीं है, इसलिए ये चुनाव अलग-अलग लड़े जाएंगे। उधर पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी ठाकरे परिवार को करीब लाने के लिए भाजपा का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि 20 साल बाद दोनों भाई साथ आए हैं। और जनता भी चाहती थी।

उद्धव ठाकरे ने कहा, आगे देखिए क्या होता है : शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने ‌मनसे नेता राज ठाकरे के साथ अपने गठबंधन के बारे कहा कि हमारा साथ आना तो बस एक ट्रेलर है, एक शुरुआत है। आगे देखिए क्या होता है। उद्धव ठाकरे ने भाजपा से पूछा है कि हम हनुमान चालीसा, जय श्रीराम के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन आपको मराठी से दिक्कत क्यों है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि हिंदू और हिंदुस्तान हमें स्वीकार्य है, लेकिन हिंदी थोपना बर्दाश्त नहीं। और आपकी सात पीढ़ियां खत्म हो जाएंगी, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। उद्धव ने भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा है कि हिंदुत्व पर किसी का एकाधिकार नहीं है। हम सबसे गहरी जड़ों वाले हिंदू हैं। हमें हिंदू धर्म सिखाने की जरूरत नहीं है। 1992 में मुंबई दंगों में मराठी लोगों ने ही हिंदुओं को बचाया था। राज ठाकरे ने भी भाजपा से पूछा कि अगर हम हिंदीभाषी राज्यों से आगे हैं, तो फिर हम पर हिंदी क्यों थोपी जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य के मंत्री दादा भुसे मेरे पास आए और मुझसे बात सुनने का अनुरोध किया। पर मैंने कहा कि मैं आपकी बात सुनूंगा, लेकिन मैं राजी नहीं होऊंगा। मैंने उनसे पूछा कि उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान के लिए तीसरी भाषा क्या होगी।

उद्धव-राज ठाकरे का मिलन बीएमसी पाने की कोशिश : महाराष्ट्र की राजनीति पर पकड़ रखने वाले लोगों का मानना है कि दरअसल ये सारी लड़ाई मुंबई पर राज करने की है। चूंकि मुंबई महानगरपालिका के चुनाव आने वाले हैं, इसलिए यह गठजोड़ जरूरी हो गया था। सूत्रों का कहना है कि उद्धव हरहाल में इस संस्था पर कब्जा रखना चाहते हैं, क्योंकि इसका भारी भरकम बजट शिवसेना यूबीटी का आर्थिक आधार है। पिछली बार भाजपा के साथ मिलकर बीएमसी की सत्ता पर काबिज़ हुई उद्धव की पार्टी को अब फिर किसी मजबूत सहारे की तलाश थी। और कांग्रेस इस जरूरत को पूरा कर पाने असमर्थ थी। ऐसे में दोनों भाई अपना-अपना इगो किनारे रख गले मिल गये। जानकार भी मानते हैं कि उद्धव ठाकरे का बालासाहेब ठाकरे का बेटा होना और राज ठाकरे का मसल पावर मिल कर एक अच्छा विनिंग समीकरण बना सकते हैं। पर इसमें एक खतरा भी है। वह ये कि राज ठाकरे की उत्तर भारतीय लोगों से दुश्मनी किसी से छिपी नहीं है। शायद इसीलिए कांग्रेस ने इस रैली से किनारा किया। जानकार बताते हैं कि बीएमसी क्षेत्र में उत्तर भारतीय अच्छी खासी संख्या में रहते हैं, इतना की जीत-हार को प्रभावित कर सकते हैं।

खैर, बताते हैं कि राज ठाकरे की पहल पर ही शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने उद्धव से बात की और बात बन गई। और बीस साल बाद उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर आ गए। इस बाबत जानकारों का कहना है कि जब आंदोलन की वजह ही नहीं रही, आंदोलन हुआ ही नहीं, तो विजय रैली किस बात की। यानी मिलन पहले से तय था, बस बहाना मराठी भाषा और उसकी अस्मिता को बनाया गया। इस मौके पर एनसीपी शरद गुट से सुप्रिया सुले और जितेंद्र आह्वाण भी आए थे, पर कांग्रेस की ओर से कोई नेता नहीं पहुंचा। सूत्र बताते हैं कि उद्धव और राज ठाकरे के मिलन से कांग्रेस सहमत नहीं थी। कांग्रेस के लोगों को लगता है कि राज ठाकरे की वजह से उसके हिंदी भाषी और पूर्वांचली वोट पर असर पड़ सकता है। बहरहाल अब तय लग रहा है कि बीएमसी का चुनाव ठाकरे भाई मिल कर ही लड़ेंगे और उसमें कोई दूसरा दल शामिल नहीं होगा। शरद पवार की पार्टी इस गठबंधन में शामिल होगी या नहीं, ये देखने वाली बात होगी। पर अभी ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। साथ ही इस नए गठजोड़ से राज्य के अन्य सियासी समीकरण भी प्रभावित होंगे, यह तय है। खास बात यह भी थी कि मराठी भाषा के नाम पर आयोजित इस कार्यक्रम में शिवसेना उद्धव की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी हिंदी ही बोलती दिखाई दीं। शायद उन पर पार्टी का कानून लागू नहीं होता। या फिर उनके मथुरा से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चाओं में दम है। इस विषय पर कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी का कहना है कि महाराष्ट्र का भाषा विवाद भाजपा और उनकी दोनों सहयोगी पार्टियों का षड्यंत्र है। उनका आरोप है कि ऐसे आंदोलनों की आड़ में अपनी असफलताओं को छुपाया जा रहा है।

राज ठाकरे ने किया मराठी कलाकारों का धन्यवाद : विजय संकल्प रैली में राज ठाकरे ने कहा कि मराठी मानुष ने हिंदी थोपने के मामले में देवेंद्र फडणवीस सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने इस लड़ाई में साथ खड़े होने के लिए मराठी मीडिया उद्योग और कलाकारों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा है कि हिंदी थोपने के मुद्दे पर ये मराठी लोग ही थे, जिन्होंने सरकार को पीछे हटने पर मजबूर किया। ये एकता मजबूत बनी रहे। इसके अलावा महाराष्ट्र राज्य विधानसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाले नारे के जवाब में उद्धव ठाकरे ने कहा कि गुजरात में पटेलों का ध्रुवीकरण किया गया और बाकी लोगों को एक समेकित वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। हरियाणा में भी जाटों को भड़काया गया और बाकी लोगों को भी वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। इसलिए अब हम भी ‘बटेंगे तो कटेंगे’ समझने लगे हैं। इसके अलावा उद्धव ठाकरे ने आरोप लगाया कि अडानी ने मुंबई की ज़्यादातर ज़मीनें हड़प ली हैं। और हमें शर्म आनी चाहिए कि हमारे शहीदों ने मुंबई के लिए अपना खून बहाया और हम अपनी ज़मीन भी नहीं बचा पाए।

बाल ठाकरे की शिवसेना ने विभाजन का इतिहास : कभी महाराष्ट्र विशेषकर मुंबई की राजनीति में धाक जमा चुकी बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना इतनी कमजोर नहीं थी। मुंबई पर मातोश्री का राज चलता था। पर ठाकरे परिवार में वर्चस्व की जंग और उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा ने शिवसेना में बार बार विभाजन कराया। पर ठाकरे बंधु को मराठी से कथित प्यार ने एक बार फिर एक स्टेज पर आने का मौका दे दिया है। असल में हाल ही में राज्य की फडणवीस सरकार ने तीन भाषा नीति को लेकर एक शासनादेश जारी किया था। इसी को लेकर महाराष्ट्र में विवाद छिड़ गया, और ठाकरे बंधु इसके खिलाफ खड़े हो गए। इसके बाद सरकार ने इस शासनादेश पर यू-टर्न भी लिया और हिंदी पढ़ाने को लेकर दिए गए आदेश को रद्द कर दिया। अब सरकार के इस फैसले को ठाकरे बंधु अपनी जीत के रूप में पेश कर रहे हैं। और इसी विवाद ने बीस साल बाद दोनों ठाकरे भाइयों को एक साथ आने का मौका दे दिया। ये दोनों भाई वर्चस्व को लेकर ही अलग हुए थे, जब बालासाहेब ने उद्धव को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था। इससे पहले आखिरी बार दोनों भाई 2005 में एक साथ एक मंच पर दिखाई थे, मौका था चुनाव का। उस समय मालवन विधानसभा सीट के उपचुनाव के प्रचार के लिए दोनों एक ही मंच पर थे। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने कुछ विवादों के चलते अविभाजित शिवसेना छोड़ दी थी। उसके बाद जब बालासाहेब ठाकरे ने उद्धव को अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया तो विरोध में राज ठाकरे ने भी उसी साल शिव सेना छोड़ दी। राज ठाकरे ने 27 नवंबर 2005 में ही पार्टी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। इसी के बाद राज ठाकरे ने साल 2006 में एमएनएस का गठन किया। तब से दोनों भाई करीब बीस साल तक एक मंच पर नहीं दिखे। इसके अलावा जब भाजपा के साथ चुनाव लड़कर भाजपा के ही खिलाफ कांग्रेस से गठजोड़ कर उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाई तो पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उठे। लगभग दो साल बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना फिर टूटी और उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। उस गठबंधन ने साथ चुनाव लड़ा। और इस बार उनके साथ अजित पवार की एनसीपी ने चुनाव के पहले ही गठबंधन किया। अब तीनों पार्टियों की सरकार भाजपा के नेतृत्व में चल रही है। इस चुनाव में जहां उद्धव की पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा वहीं राज ठाकरे की पार्टी का एक भी विधायक नहीं जीत पाया। ऐसे में दोनों को ज़रूरत थी, मराठी का बहाना था और बीएमसी चुनाव पर नजर थी तो दोनों भाई एक मंच पर आ गए।

महाराष्ट्र में 3 अक्टूबर को मनेगा मराठी दिवस : देवेंद्र फडणवीस सरकार ने त्रिभाषा फार्मूले पर जारी शासनादेश वापस तो ले लिया है किंतु एक मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। राज्य सरकार ने अब महाराष्ट्र में तीन अक्टूबर को मराठी दिवस घोषित किया है। इसके तहत राज्य में तीन से लेकर 13 अक्टूबर तक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान शास्त्रीय मराठी सप्ताह भी मनाया जाएगा। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता के अनुसार मराठी भाषा के संरक्षण और जागरूकता के लिए ये कार्यक्रम आयोजित होंगे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि भाषा के नाम पर अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे, और इसके नाम पर मारपीट करने वालों को जेल में डालेंगे। उन्होंने कहा कि लोग अंग्रेजी को तो गले लगाते हैं पर हिंदी पर कोहराम मचाते हैं, ये कैसी मानसिकता है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक