डेढ़ दशक से अटकी परमाणु परियोजना की उम्मीद बढ़ी

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फ्रांसीसी कंपनी के गंठजोड़ में प्रस्तावित विश्व की बृहत्तम जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना की स्थापना में बाधा को दूर करने की जमीन तैयार की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस साल जुलाई में होने वाली फ्रांस यात्रा में इस पर गतिरोध समाप्त होने की उम्मीद की जा रही है, सूत्रों के अनुसार इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच परमाणु संबंधी सहयोग समझौता होने की प्रबल संभावना है।

स्थापना संबंधी तमाम आवश्यक अनुमतियां प्राप्त करने के बावजूद 9900 मेगावाट क्षमता की जैतापुर परियोजना चौदह साल से अटकी है। प्रस्तावित संयंत्र में आगे कभी परमाणु दुर्घटना होने की स्थिति में मुआवजा राशि को लेकर पेंच फंसा हुआ है।असलसहयोगी फ्रांसीसी कंपनी भारत की मुआवजा संबंधित शर्त मानने को तैयार नहीं है। जैतापुर में 1650 मेगावाट क्षमता वाले 6 यूरोपीय प्रेसराइज़्ड रिएक्टरों का निर्माण प्रस्तावित है। ‌‌

वर्ष 2008 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिला के अरबसागर के तटीय क्षेत्र जैतापुर में परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने का निर्णय किया गया था। फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी की दिसंबर 2010 में भारत यात्रा के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की मौजूदगी में फ्रांसीसी कंपनी और न्यूक्लियर पाॅवर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के बीच एक समझौता पर हस्ताक्षर किए गए थे।इस परियोजना को पर्यावरणीय अनुमति, सीआरज़ेड अनुमति भी मिल चुकी है। फ़्रांस की ख्याति लब्ध कंपनी इलेक्ट्रिसाइट डि फ्रांस (ईडीएफ) के तकनीकी सहयोग में इसकी स्थापना की जानी है। इसके लिए ईडीएफ और परमाणु ऊर्जा नियामक परिषद (एईआरबी) के बीच परियोजना के साइट इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और टेक्नोकामर्शियल मुद्दों पर सहमति भी हो चुकी है। परियोजना के लिए फ्रांसीसी वित्तीय संस्थानों से मदद मिलनी थी।

अनेक बाधाओं को पार करती 968 एकड़ जमीन पर इस परियोजना का निर्माण कार्य अंततः 2018 में शुरू होना था और तब इसकी लागत 1400 करोड़ अमेरिकी डॉलर (अब 1 लाख 12 हजार करोड़ रुपए से अधिक) कूती गई थी। इस साल 13 जनवरी को फ्रांस की न्यूक्लियर सेफ्टी अथाॅरिटी के शीर्ष अधिकारी जीन एल. लशौमे और एईआरबी के अधिशासी निदेशक एस बी चाफले और एनपीसीआईएल के शीर्ष अधिकारियों के बीच विस्तृत वार्ता हुई थी पर दुर्घटना मुआवजा प्रतिबद्धता पर सहमति नहीं बनी। इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन को इस साल मार्च में भारत यात्रा पर आना था लेकिन किन्हीं कारणों से मैक्रोन की यात्रा टल गई। अब मैक्रोन का अक्टूबर में भारत आना तय हुआ है।

परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं विभिन्न कारणों से अटकी हुई हैं जिससे देश‌ में ऊर्जा के समग्र उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की भागीदारी में जबरदस्त गिरावट आई है। एक तरफ देश स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में पिछड़ रहा है तो दूसरी ओर दिनों दिन पर्यावरणीय समस्याएं विकराल होती जा रही हैं। बीते दिन परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोडकर ने देश को स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए परमाणु ऊर्जा क्षमता का त्वरित विस्तार करने जरूरत पर जोर दिया। पद्मविभूषण 79 वर्षीय काकोडकर के नेतृत्व में जुलाई 1998 में अतिगोपनीय परमाणु विस्फोट ‘पोखरन-2’ ‘आपरेशन शक्ति’ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था।

देश में परमाणु परियोजनाओं का क्रियान्वयन बहुत सुस्त है जिसकी वजह से भारत के ऊर्जा के समग्र उत्पादन में न केवल परमाणु ऊर्जा की भागीदारी वर्ष 2020_21 में 3.11 प्रतिशत से घटकर 2023 मार्च में 1.6 प्रतिशत रह गई। देश में कुल 22 रिएक्टर हैं जिनकी कुल स्थापित क्षमता 6 हजार 780 मेगावाट है। परमाणु ऊर्जा विभाग ने वर्ष 2031तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता को 22 हजार 480 मेगावाट करने का अतिमहत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, इसे हासिल किया जा सकता है लेकिन जैतापुर परियोजना की ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ स्टाइल पर तो कतई नामुमकिन है।

जानकारी के अनुसार राजस्धान में माही बांसवाड़ा (700 मेगावाट) और चित्तौड़गढ़, रावतभाटा (700 मेगावाट), हरियाणा में फतेहाबाद (700मेगावाट), गुजरात में काकरपाड तापी 700 मेगावाट), कर्नाटक में कैगा करवाड (700 मेगावाट ), तमिलनाडु में कांचीपुरम- कलपक्कम और कुडानकुलम में क्रमशः 500 मेगावाट व 1000 मेगावाट क्षमता की परियोजना सहित कुल दस रिएक्टरों की स्थापना करने की अनुमति दी जा चुकी है। जानकारों का कहना है कि क्षमता सृजन में तेजी लाने के लिए सरकार को दो कदम तत्काल उठाने की जरूरत है। पहला यह कि परमाणु ऊर्जा उत्पादन में विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति देनी चाहिए। दूसरे बड़ी परियोजनाओं क़े बजाय छोटी -छोटी क्षमता के रेडीमेड रिएक्टरों की स्थापना करनी चाहिए।

प्रणतेश बाजपेयी