वक्फ संशोधन बिल पर हंगामे की जमीन तैयार

वक्फ संशोधन बिल पर हंगामे की जमीन तैयार वक्फ संशोधन बिल पर बनी जेपीसी ने फाइनल कर दिया मसौदा 14 संशोधन हुए पास, इसमें विपक्ष का हर प्रस्ताव हुआ नामंजूर जेपीसी अध्यक्ष ने संशोधित मसौदा सौंपा लोकसभा अध्यक्ष को देश में वक्फ की 994 संपत्तियों पर विवाद, तमिलनाडु में सर्वाधिक उत्तर प्रदेश में संभल, बदायूं और जौनपुर में भी विवाद बरकरार

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नयी दिल्ली/लखनऊ। वक्फ संशोधन बिल को लेकर बनी संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी ने 29 जनवरी तक अपनी सारी बैठकें पूरी कर ली हैं और अपनी रिपोर्ट फाइनल कर ली है। फाइनल मसौदा रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंप भी दिया गया है। इस बिल के इसी संसद सत्र में पेश होने का रास्ता भी साफ हो गया है। समिति ने सत्ता पक्ष द्वारा दिए गए 14 संशोधन प्रस्तावों को मंजूर कर लिया है। जबकि विपक्ष के सभी 44 संशोधनों को नामंजूर कर दिया गया है। विपक्षी सांसद इसे लोकतंत्र का अपमान और बहुमत की दादागिरी बता रहे हैं।

देश की अधिकतर मस्जिदें, मदरसे और मजारें वक्फ की प्रापर्टी हैं। जिन पर मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं का नियंत्रण है। कहीं यह नियंत्रण छिन न जाए इसीलिए हंगामा मचा हुआ है। उधर आए दिन किसी न किसी सरकारी या गैर सरकारी प्रॉपर्टी पर वक्फ बोर्ड नया दावा ठोंकता जा रहा है। और ये सब वक्फ बोर्ड को मिले असीमित अधिकारों का नतीजा है। दावा करने वालों ने तो प्रयागराज में महाकुंभ नगर की 55 एकड़ जमीन को भी वक्फ का बता दिया था। किंतु बाद में दावा करने वाला ही अपने बयान से पलट गया और मामला किसी तरह निपट गया। वैसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कड़े रुख ने भी इस मामले को जल्द निपटाने में बड़ी मदद की। ऐसे में जब यह वक्फ संशोधन बिल संसद में पेश होगा तब इस पर खूब हंगामा होने के आसार हैं। सत्ता पक्ष जहां इसे हर हाल में पास कराने पर आमादा है, वहीं विपक्ष अपनी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के चलते इसे रोकने की कोशिश में है।

वक्फ संशोधन बिल के मामले में सत्ता पक्ष को पहली सफलता मिल भी गई है। जेपीसी की बैठकों में उसके गठबंधन साथियों टीडीपी, जेडीयू और लोजपा ने उनका साथ दिया है। इनके बारे में कहा जा रहा था कि इस मामले में वे शायद सरकार का साथ न दें।‌ एक जानकारी के अनुसार देश में वक्फ की 994 सम्पत्तियों पर विवाद चल रहे हैं। इसमें सर्वाधिक मामले तमिलनाडु के हैं। चूंकि वहां पर डीएमके की कथित सनातन विरोधी सरकार है इसलिए वहां के मामले ज्यादा चर्चा में नहीं हैं। वहीं यूपी में योगी सरकार के चलते हिंदू पक्ष अपने मंदिर खोजने और उसे प्राप्त करने की दिशा में ज्यादा सक्रिय है। इतना कि संभल के मामले ने तो काफी बड़ा रूप ले लिया है। संभल के अलावा बदायूं की शम्सी मस्जिद, जौनपुर की अटाला मस्जिद का मामला भी अब काफी गर्म हो गया है। ये अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते फिलहाल संघर्ष विराम की स्थिति है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तक सारे मामलों में कार्रवाई रुकी हुई है। शीर्ष कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर उसका हलफनामा मांगा है।

सूत्रों का कहना है कि 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ये सभी मामले जल्द खत्म होने के आसार भी कम ही दिखाई दे रहे हैं। उधर लोकसभा के पिछले सत्र में पेश वक्फ संशोधन बिल को लेकर विपक्ष की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गईं थीं। उनका इस बिल को चर्चा में न लाए जाने के सारे प्रयास बेकार साबित हुए। और सत्ता पक्ष ने इसे वोटिंग के आधार पर जेपीसी को सौंपने का प्रस्ताव पास कर दिया। एआइएमआइएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसकी स्वीकार्यता पर ही शुरुआती मतदान की मांग उठाई थी ताकि यह बिल जेपीसी में भी न जाने पाए। लेकिन सत्ता पक्ष ने बड़ी सफाई से उनके इन प्रस्ताव को टाल दिया और इस बिल पर जेपीसी को भेजने के लिए मतदान करा कर जेपीसी का गठन कर दिया है। इस जेपीसी के अध्यक्ष भाजपा के वरिष्ठ सांसद जगदंबिका पाल हैं। उनके साथ जिन प्रमुख सांसदों को इस समिति का सदस्य बनाया गया है उनमें प्रियंका गांधी, सुप्रिया सुले, कल्याण बनर्जी समेत कई प्रमुख नाम हैं। किंतु इस समिति में सत्ता पक्ष के सांसदों की संख्या अधिक होने के कारण विपक्षी सांसदों की नहीं चली। जेपीसी की आखिरी बैठक में कुल 14 संशोधनों को मंजूरी दे दी गई है। बहुमत के निर्णय ने विपक्ष द्वारा सुझाए सभी 44 संशोधन प्रस्तावों को चर्चा और मतदान के बाद नामंजूर कर दिया। उम्मीद है कि उस संसद सत्र में जब यह बिल फिर चर्चा के लिए रखा जाएगा तब जमकर हंगामा होगा।

इस पर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि जेपीसी की मीटिंग में संख्या बल के चलते हमारी आवाज दबा दी गई। और हमें बोलने नहीं दिया गया। इसमें जो संशोधन पास किए गए हैं वे मुस्लिम समाज और वक्फ के हित में नहीं हैं। ये वक्फ को कमजोर करने और वक्फ की प्रापर्टी हड़पने की साज़िश है। उन्होंने सवाल किया है कि किसी मुस्लिम धर्मार्थ कमेटी में गैर मुस्लिम का क्या काम। हम इसे मंजूर नहीं करेंगे और संसद में बहस के दौरान इसका पुरजोर विरोध करेंगे। और थदि समाज के लोग चाहेंगे तो इसके खिलाफ आंदोलन भी किया जाएगा। वहीं टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया है कि जगदम्बिका पाल सबसे भ्रष्टतम जेपीसी चेयरमैन के रूप में याद किए जाएंगे। उन्होंने विपक्ष की आवाज ही दबा दी। यह सीधे तौर पर संख्या बल की गुंडागर्दी है। संसद में इसका विरोध किया जाएगा।

जेपीसी का संशोधित ड्राफ्ट लोस अध्यक्ष को सौंपा गया : वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को जेपीसी की हरी झंडी मिल गई है। 30 जनवरी को स्पीकर को ड्राफ्ट रिपोर्ट और संशोधित विधेयक सौंप दिया गया है। अब इसके आगामी सत्र में पेश होने का रास्ता साफ हो गया है। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर जेपीसी की आखिरी बैठक में 29 जनवरी को ड्राफ्ट रिपोर्ट और संशोधित बिल को स्वीकार कर लिया गया। इस पर जेपीसी सदस्यों के बीच वोटिंग हुई और इसे बहुमत से स्वीकार कर लिया गया। संशोधित बिल और ड्राफ्ट रिपोर्ट के पक्ष में 16 और विपक्ष में 11 वोट पड़े। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर लंबे समय से मंथन चल रहा है। इस प्रकार जेपीसी की बैठक अब खत्म हो गई है। इस समिति ने मसौदा रिपोर्ट और संशोधित विधेयक को बहुमत से स्वीकार कर लिया है। सूत्रों के अनुसार जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल गुरुवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिले और उन्हें ड्राफ्ट रिपोर्ट और संशोधित विधेयक सौंप दिया।

जेपीसी में विपक्ष के सभी 44 संशोधन नामंजूर हुए : केंद्रीय वक्फ संशोधन बिल पर गठित जेपीसी की आखिरी बैठक भी 27 जनवरी को सम्पन्न हो गई है। इसमें विपक्ष के सभी 44 संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया है। जेपीसी की बैठक में सोमवार 27 जनवरी को भी टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने हंगामा किया था। उनकी भाजपा सांसद निशिकांत दुबे से झड़प की भी खबरें आयीं। जेपीसी की बैठक के बाद समिति अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा कि बैठक में विपक्ष के कुल 44 संशोधनों पर चर्चा हुई। श्री पाल ने बताया कि छह महीने के दौरान विस्तृत चर्चा के बाद, हमने सभी सदस्यों से संशोधन मांगे थे। जिन पर चर्चा और मतदान कराया गया। यह हमारी अंतिम बैठक थी। समिति द्वारा बहुमत के आधार पर 14 संशोधनों को स्वीकार किया गया है। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने भी कुछ संशोधन सुझाए थे।‌ हमने उनमें से प्रत्येक संशोधन को आगे बढ़ाया और उन पर वोटिंग हुई। मगर उनके के समर्थन में 10 वोट पड़े और इसके विरोध में 16 वोट पड़े। इसके बाद उन संशोधनों को अस्वीकार कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि जेपीसी की बैठक में लगातार हंगामे होते रहे। विपक्ष और सत्ता पक्ष में नोक झोंक भी होती रही। 27 जनवरी के पहले की बैठक में तो इतना हंगामा हुआ कि समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने विपक्ष के 10 सदस्यों को एक दिन के लिए समिति से निलंबित भी कर दिया था। हंगामा इतना बढ़ गया था कि मार्शल भी बुलाने पड़े थे।

प्रयागराज महाकुंभ की भूमि पर ठोंका था दावा : मुस्लिम नेता मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कुछ दिन पहले प्रयागराज में महाकुंभ की 55 एकड़ जमीन पर भी वक्फ की प्रॉपर्टी होने का दावा करके सनसनी फैला दी थी। उन्होंने कहा था कि महाकुंभ मेले की 55 एकड़ जमीन वक्फ की प्रापर्टी है। जब इस पर हो हल्ला हुआ तो उन्होंने सफाई दी कि यह उनकी जानकारी की बात नहीं है, उनको किसी ने बताया है, तो उन्होंने यह दावा कर दिया है। उन्होंने कहा कि उनके पास इसका कोई सबूत भी नहीं है। इस मामले पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि यदि उनके पास कोई सबूत हो तो उसे पेश करें, अन्यथा इस तरह बयान देकर विवाद न पैदा करें। मौलाना बरेलवी की ओर से कोई सबूत तो नहीं आया, हां मौलाना इस मुद्दे पर अपनी बात से पलट जरूर गये। इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तब कहा कि महाकुंभ की जमीन पर वक्फ का दावा करने वाले पहले अपना दामन बचा लें। हम पुराने कागज निकाल कर वक्फ की एक-एक इंच जमीन का हिसाब लेंगे। और जो भी जमीन गलत तरीके से वक्फ में शामिल की गई होगी, उसको वापस लेंगे। खैर मौलाना द्वारा अपना बयान वापस लेने के पर फिलहाल इस मामले का पटाक्षेप हो गया है। बताते हैं कि इसके बाद यूपी की प्रशासनिक मशीनरी सक्रिय भी हुई थी और उसके आंकलन के मुताबिक अधिकतर वक्फ संपत्तियों के दावे गलत तथ्य देकर किए गए हैं। सूत्रों का कहना है कि इस पर महाकुंभ के पूर्ण होने के कार्रवाई हो सकती है। यानी पिक्चर अभी बाकी है।

संभल में शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद : यूपी के संभल में शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर का भी मानला कोर्ट में है। खास बात यह है कि यह इमारत एएसआई के संरक्षण में है किंतु एएसआई को भी उसमें घुसने के लिए मस्जिद कमेटी की इजाजत लेनी पड़ती है। इसीलिए सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर के जाने पर उत्तेजित भीड़ ने वहां दंगा कर दिया। बाद में मस्जिद कमेटी की याचिका पर आगे की कार्रवाई पर रोक लग गई है। हालांकि उसके बाद से हरिहर मंदिर के लिए आगे सर्वे नहीं हुआ है और न ही कोई फाइनल आदेश आया है। किंतु संभल में अन्य जगहों पर मंदिरों के मिलने का सिलसिला जारी है। वहां एक पुरानी बावड़ी मिली है, उसकी भी खुदाई जारी है। इस समय संभल में जहां भी खोदो, पुराने कुएं मिल रहे हैं, मंदिर मिल रहे हैं और बावड़ियां मिल रही हैं। प्रशासन यहां पूरी तरह मुस्तैद है। और जहां भी मंदिर मिल रहे हैं, उसकी सफाई कराकर वहां पूजा अर्चना शुरू कर दी जा रही है। जिला प्रशासन ने कथित जामा मस्जिद के ठीक सामने पुलिस चौकी का भी निर्माण करना शुरू कर दिया है। जो जल्द ही आकार लेने की ओर है। ऐसे में संभल 2027 के विधानसभा चुनाव में हार जीत का कारण भी बन सकता है।

बदायूं में भी शम्सी मस्जिद व नीलकंठ मंदिर विवाद : संभल के अलावा बदायूं में भी वहां की जामा मस्जिद को नीलकंठ महादेव मंदिर बताकर लोअर कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। यह मुकदमा 2022 में दर्ज कराया गया था। मामला 2022 में तब शुरू हुआ था जब अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने दावा किया था कि जामा मस्जिद की जगह पर पहले नीलकंठ महादेव मंदिर था। उन्होंने पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी। सरकारी पक्ष और पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमे में सरकार की ओर से बहस पूरी हो चुकी है। पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट भी अदालत में पेश की जा चुकी है। इस मामले में शम्सी शाही मस्जिद कमेटी के अधिवक्ता असरार अहमद ने दावा किया कि मस्जिद करीब 850 साल पुरानी है। और वहां मंदिर का कोई अस्तित्व नहीं है। उनका मानना है कि हिंदू महासभा को इस मामले में याचिका दायर करने का अधिकार ही नहीं है। उधर मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विवेक रेंडर ने बताया कि उन्होंने पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए ठोस साक्ष्य के साथ याचिका प्रस्तुत की है। इस मामले में अभी यह तय होना है कि यह याचिका आगे सुनवाई योग्य है या नहीं। शम्सी शाही मस्जिद को बदायूं शहर की सबसे ऊंची इमारत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह देश की तीसरी सबसे पुरानी और सातवीं सबसे बड़ी मस्जिद है। इसमें 23,500 लोगों के एक साथ नमाज अदा करने की क्षमता है। इस मस्जिद की कमेटी और वक्फ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अनवर आलम और असरार अहमद हैं।

जौनपुर में अटाला मस्जिद व अटाला मंदिर का विवाद : जौनपुर जिले में स्थित अटाला मस्जिद को लेकर भी विवाद चल रहा है। दावा किया गया है कि यह अटाला देवी मंदिर है। इसका निर्माण राजा विजय चंद्र ने कराया था। मान्यता है कि अटाला देवी उनकी कुल देवी थीं। आरोप है कि फिरोज शाह तुगलक ने इसे तोड़ कर मस्जिद का रूप दे दिया था। सिविल कोर्ट जौनपुर में यह मामला लंबित है। उधर अटाला मस्जिद के सर्वे से सम्बंधित आवेदन पर कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है। अगली सुनवाई अब दो मार्च को होगी। ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते हुआ है। शीर्ष कोर्ट ने इस तरह के सभी मामलों की सुनवाई और प्रभावी आदेश पर रोक लगा रखी है।

देश में और भी हैं वक्फ संपत्तियों के विवाद : अभी कुछ दिनों पहले ही कर्नाटका के विजयपुरा में किसानों की 1200 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा किया है। वक्फ बोर्ड ने किसानों को नोटिस भी जारी कर दिया है। इस नोटिस के बाद सियासत भी तेज हो गई। दरअसल, विजयपुरा जिले के होनवाड़ा गांव की 1200 एकड़ जमीन पर शाह अमीनुद्दीन दरगाह ने अपना हक जता दिया है। स्थानीय तहसीलदार ने जमीन मालिक किसानों को नोटिस भेजकर इसका जवाब मांगा है। इस मामले का भी अभी कोई हल नहीं निकला है। इसके अलावा यूपी में ही काशी और मथुरा के मामले पहले से ही चल रहे हैं। तमिलनाडु में तो 1500 साल से भी पहले बने मंदिर वाले पूरे गांव को ही वक्फ की प्रॉपर्टी बता कर नोटिस जारी कर दिया गया है। जबकि इस्लाम धर्म का जन्म ही 1400 साल का बताया जाता है।

वक्फ बोर्ड का उद्देश्य : भारत में विशाल वक्फ बोर्ड का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की सेवा करना है। पर भले ही वक्फ बोर्ड देश में जमीन के तीसरे सबसे बड़े मालिक के रूप में उभरा हो, लेकिन भारतीय मुसलमान अब भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर तो वे दलितों से भी बदतर स्थिति में हैं। वक्फ के जिम्मेदार आज भारत के सबसे बड़े शहरी जमींदार हैं। वक्फ इस्लामिक कानून में एक प्रकार का धर्मार्थ बंदोबस्त है। इसमें किसी संपत्ति का स्वामित्व अल्लाह को हस्तांतरित किया जाता है। और संपत्ति को स्थायी रूप से धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित किया जाता है। वक्फ (वकीफ के रूप में जाना जाता है) बनाने वाला व्यक्ति उन उद्देश्यों का निर्देश दे सकता है जिनके लिए संपत्ति से उत्पन्न आय का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें गरीबों और ज़रूरतमंदों को सपोर्ट करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थानों को बनाए रखना, शिक्षा की व्यवस्था करना, या अन्य धार्मिक कार्यों के लिए पैसा उपलब्ध करवाना शामिल है। इस तरह, वक्फ को धार्मिक दान का एक रूप माना जाता है, जो मुस्लिम समुदाय को समाज कल्याण में योगदान देने और आध्यात्मिक पुण्य अर्जित करने की अनुमति देता है। इन वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होता है कि संपत्ति से होने वाली आय का उपयोग वक्फ और इस्लामी सिद्धांतों की इच्छा के अनुसार किया जा रहा है। पर पिछले दिनों कुछ शिकायतें आई थीं कि वक्फ की प्रॉपर्टी से होने वाली आय का दुरुपयोग हो रहा है। और गरीब मुस्लिमों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। इसके अलावा वक्फ बोर्ड द्वारा लोगों की सम्पत्ति हथियाने वाले जमींदार के रूप में भी देखा गया है। आरोप तो यह भी है कि वक्फ के जिम्मेदार उसकी सम्पत्तियों पर अवैध कब्जा कर अपना निजी हित साध रहे हैं। इसीलिए वे वर्तमान व्यवस्था में बदलाव का विरोध कर रहे हैं। इन्हीं सब दिक्कतों के चलते केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन बिल लाने का फैसला किया है। उधर एक जानकारी के अनुसार इस्लाम में 73 फिरके हैं। जैसे शिया, सुन्नी, मुहम्मदी, मजारी, बरेलवी, आला हजरती, अहले हदीस, अहमदिया आदि। इनमें से एक फिरका जन्नती भी होता है। जानकारों का मानना है कि इन सभी फिरकों के वक्फ के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। बताया जाता है कि कुछ फिरकों को भी वक्फ बोर्ड की व्यवस्थाओं से परेशानी है।

अभय परमहंस
राजनीतिक विश्लेषक