प्रकृति में तमोगुण की प्रधानता से विनाशक उर्जाशक्ति कोरोना का उदय

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माता आदिशक्ति रूपी उर्जाशक्ति के स्थानान्तरण और रूपान्तरण रूपी गुणों की प्रक्रिया से ही संसार में तमाम भौतिक सुख-सुविधा वाले संसाधनों सहित देश की रक्षा तथा विकास हेतु आवश्यक विस्फोटक आदि संसाधनों का निर्माण किया गया। प्रकृति के प्रत्येक तत्व में तीन गुणों अर्थात सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का समावेश होता है। इन तीनों गुणों के संतुलन से संसार के समस्त जीवों और प्रकृति का सृजन और संचालन होता है। यहां तक कि सृष्टि के सृजन, संचालक एवं संहारक त्रिदेव, तीनो देवियां और समय में भी अलग-अलग गुणों की प्रधानता विद्यमान है।

प्रत्येक जीव में उक्त तीनों गुणों में से किसी एक गुण की प्रधानता होती है अर्थात सतोगुण प्रधान मनुष्य को संत अथवा देवत्व की श्रेणी में, कर्म प्रधान मनुष्य को रजोगुण की श्रेणी में तथा तमोगुणी प्रधान अर्थात समाज में रहकर घृणित एवं विनाशक कार्यो में लिप्त मनुष्य को राक्षस अथवा दानव की श्रेणी में गिना जाता है।

संसार में तीनों गुणों की आवश्यकता और महत्व भी है। सतोगुण अर्थात करूणा और दया-धर्म से समाज में शांति स्थापित होती है, रजोगुण अर्थात कर्म की प्रधानता से समाज में सृजन और पोषण का कार्य होता है। इसी प्रकार तमोगुण से देश एवं समाज की रक्षा-सुरक्षा एवं विनाश के कार्य होते है।
उर्जा स्वरूप प्रकृति स्वंय कुछ भी नहीं करती है बल्कि इन्हीं मनुष्यों को माध्यम बनाकर सृजन, पोषण और संहारक कार्य करके प्रकृति में संतुलन बनाती रहती है। वहीं मनुष्य जिस गुण की प्रधानता वाले कर्मो को अपनाता है। उससे उसके निकट की प्रकृति का वातावरण भी वैसा ही तैयार होता है अर्थात प्रकृति और जीव एक दूसरे का संतुलन और असंतुलन बनाते है।

भारत प्रारम्भ से ही आस्थावान, अध्यात्मिक और कर्मप्रधान अर्थात रजोगुणी प्रधान देश रहा है। इसी लिए यहां के मनुष्यों की पुरातन संस्कृति की जीवन शैली का अध्ययन करें तो हर नियम-कानून मे अनुशासन और प्रकृति संतुलन का कारण स्पष्ट दर्शित होगा। लेकिन पश्चिमी सभ्यता वाले देशों के लोगों ने जो भी भौतिक संसाधनों-वस्तुओं का सृजन किया। उसके सृजन का श्रेय स्वंय को देने तथा सृजन के पीछे ज्ञानरूपी ईश्वरीय गुण की वास्तविकता को नकार कर उसे स्वनिर्मित विज्ञान समझने के कारण उनमें तमोगुणी अहंकार का जन्म हुआ। जिससे वहां के लोगों में लालसा और आसक्तिपूर्ण जीवनशैली का प्राकट्य हुआ।

जिस क्षेत्र के मनुष्यों में तीनों में से जिस गुण की अत्यधिक प्रधानता होगी उस जगह की प्रकृति का वातावरण भी उसी गुण की प्रधानता में हो जायेगा। यदि किसी क्षेत्र के मनुष्यों द्वारा तमोगुणी प्रधान कर्मो को अपनाया जाता है तो उस क्षेत्र विशेष का वातावरण भी तमोगुणी होना अर्थात भय और विनाशशील होना स्वाभाविक है। यदि हम कोरोना उदय होने वाले देश की ही बात करें तो वहां पर शायद ही कोई ऐसा जीव-जंतु हो जिसका भक्षण वहां के लोग जिंदा अथवा उनको भूनकर अथवा जिंदा काटकर न करते हो, यही नहीं प्रकृति के साथ छेड़छाड़ भी उस क्षेत्र में भरपूर है।

पश्चिमी सभ्यता वाले देशों में नग्नता, व्याभिचार, मांस-मदिरा सेवन, क्लब सभ्यता और जीव हत्या जैसे तमोगुणीरूपी घृणित कार्यो का बोलबाला है। संसार में 84 लाख योनियों में जीवन है और सर्वश्रेष्ठ जीवन मनुष्य का ही है क्योंकि मनुष्य में ही बुद्वि, विवेक और विचार अर्थात सही गलत को सोचने की शक्ति प्रदत्त है। हम सभी यह जानते है कि मनुष्य की तरह ही हर जीव में आत्मा होती है और जब आप अपनी इन्द्रियों की आसक्ति में किसी जीव को भूनकर अथवा जिंदा तड़पाकर मारकर खाते है। अथवा जहां घृणित कार्यो का बोलबाला हो तो स्वंय समझा जा सकता हैै कि वहां का वातावरण किस गुण से परिपूर्ण होगा।

यही कारण है कि ‘कोरोना नामक अदृश्य उर्जा शक्ति’ का उदय भी ऐसे ही एक देश में हुआ। जैसे यदि किसी व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न हो जाये तो वह अच्छे-बुरे तथा अपने-पराये और स्थान की पहचान खो देता है। उसी प्रकार उस देश तथा उस देश से व्यावसायिक और सामरिक सम्बंध रखने वाले समस्त देश के लोग अदृश्य विनासकारी उर्जा शक्ति कोरोना की महामारी के चपेट में आ चुके है।

तीनों गुणों से सतुलित प्राकृतिक वातावरण अर्थात जब पंचतत्व में से पांचो अथवा कोई एक तत्व असंतुलित होकर तमोगुण की प्रधानता से परिपूर्ण होता है तो निश्चित रूप से प्राकृतिक तबाही का जन्म होता है। ब्रंम्हाण्ड हो या मनुष्य शरीर दोनों की स्थिरता एवं आरोग्यता पंचतत्व और तीनों गुणों के संतुलन पर ही आश्रित है। भारत की वर्तमान पीढ़ी भी अपनी मूल संस्कृति को पिछड़ा मानकर आसक्तिपूर्ण पश्चिमी सभ्यता को महत्व देने में तेजी से आगे बढ़ रही है। जिसके कारण वातावरण में कोरोना नामक विनाशक उर्जाशक्ति तमोगुणी प्रधान देश के वातावरण से उदयित होकर भारत देश में भी हम सभी के समक्ष प्रत्यक्ष हो रही है। हम सभी को समझना होगा कि अपने समाज के विनाश हेतु जिम्मेंदार अदृश्य उर्जाशक्ति के उदय का कारक एवं दोषी कौन है।

इस विनाशक तमोगुणी प्रधान प्रकृति को शांत करनेे हेतु मनुष्यों को अपनी आसक्तिपूर्ण इन्द्रियों पर नियत्रंण कर अपने आराध्य अथवा माता आदिशक्ति की उर्जा शक्तियों की आराधना कर उसको शांत करना चाहिए। जिस प्रकार आपरेशन थियेटर में जाकर रोगी अपने सम्पूर्ण मन एवं शरीर को डाॅक्टर के हवाले कर देता है ठीक उसी प्रकार यदि कोरोना या कोई अन्य घातक बीमारी हमसे से किसी को भी हो जाती है तो हम सभी अपने सम्पूर्ण मन एवं शरीर को अपने आराध्य के हवाले कर दें तो हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम स्वतः प्रकृति की उर्जा से संचालित होने लगेगा। जब हम अपनी आसक्ति और अंहकार में स्वयं को अग्रज मानेगें तो मुसीबत एवं भय का वातावरण बनेगा क्योंकि तब आप अपने आराध्य को पीछे करके आप स्वंय उनके आगे चल रहे होते है।

परन्तु जब आप अपने आराध्य को आगे रखकर पूर्ण आस्था के साथ उसके पीछे-पीछे चलकर दिनचर्या पूरी करते है तो फिर आपकी आरोग्यता और सफलता का उत्तरदायित्व आपके आराध्य का हो जाता है। इसलिए हम सभी को अपनी तमोगुणी प्रवृत्तियों से बाहर आकर अर्थात अपने आराध्य के प्रति पूर्ण आस्थावान होकर अपने मन में शांति और दया को स्थापित कर समाज को कोरोना जैसी महामारी से बचाने हेतु नवरात्रि में माता आदिशक्ति की आराधना पूजन, भजन और अधिक से अधिक शांति हवनों का आयोजन कर अशांत तमोगुणी प्रकृति को शांत करने का सफल प्रयास करना चाहिए।

एस.वी.सिंह ‘प्रहरी’