नहीं भुला पाएंगे दूरसंचार व रेलवे ….

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रामविलास पासवान की मृत्यु पर संस्मरण

अब न धरती गूंजेगी, न आसमान, पासवान-पासवान

कुलियों और दूरसंचार के चपरासियों की बीवियां नहीं भुला पाएंगी पासवान को

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव, चंद्रशेखर व अटल बिहारी बाजपेयी सहित न जाने कितने राष्ट्रीय नेताओं को मैं उनके उपचार का हाल पूछने अस्पतालों में इसलिये जाया करता था क्योंकि मैं दैनिक जागरण,अमर उजाला या राष्ट्रीय सहारा में चीफ रिपोर्टर था। मगर मेरे जीवन में रामविलास पासवान एकमात्र ऐसे नेता थे जिनको मैं 6 अक्टूबर को फोर्टिस अस्पताल में व्यक्तिगत रिश्तों की वजह से देखने गया था,क्योंकि मेरे कहने से उन्होंने दो ऐसे काम किये थे जिससे इस देश की लाखों गरीब परिवार की पत्नियां ना केवल खुश हो गयी थी बल्कि उन्हें दुआएं देती नहीं थकती थी।

पहला- जब वे रेल मंत्री थे तो मैं दैनिक जागरण में रेलवे कवर करता था और उनके 12 जनपथ स्थित आवास पर मिलने गया तो भोजन के दौरान उनसे कई मामलों पर विस्तार से चर्चा हुई थी। मैंने उनसे कहा यदि आप रेलवे कुली को रेल पास दे दें तो बहुत बड़ा उपकार होगा। क्योंकि देश भर में रेलवे का कुली वैसे भी बिना टिकट यात्रा करता है। उसका इतना परिचय ही काफी होता है कि मैं कुली हूं। यदि आप उसे रेलवे पास दे देंगे तो वह अपने परिवार के साथ ससम्मान यात्रा का हकदार हो जायेगा, तीन दिन बाद ही मुझे पता चला कि भारतीय रेल, अब कुलियों को भी रेल पास जारी करेगी।

दूसरा- जब वे संचार मंत्री बने तो फिर मैं उनके उसी बंगले पर मिलने गया। यह भी एक संयोग था कि मैं उस समय टेलीफोन की रिपोर्टिंग किया करता था,इस बार पासवान जी ने हमसे पूछा कि बताओ संचार मंत्रालय में नया क्या करना है। मैंने उनसे कहा कि दूरसंचार में कर्मचारियों के घरों में टेलीफोन की व्यवस्था नहीं है। बावजूद इसके वो लोग टेलीफोन एक्सचेंज में आकर देश-विदेश में फ्री कालें करते है यदि आप इन कर्मचारियों के घरों में टेलीफोन की व्यवस्था करा देंगे तो मंत्रालय पर अतिरिक्त बोझ भी नहीं आयेगा और एक्सचेंज के अंदर से फर्जी कालें होना बंद हो जाएं
उन्होंने मेरी बात मानी और चतुर्थ श्रेणी के भी कर्मचारियों के घरों में भी फ़ोन उपलब्ध करा दिये।

उक्त दोनों मामले ऐसे है जिनसे किसी राजनैतिक दल का वोट बैंक बढ़ा या घटा मुझे नहीं मालूम लेकिन रेलवे के कुलियों और दूरसंचार के चपरासियों की पत्नियों ने जरूर खुशियां मनाई थी और पासवान जी को दिल से दुआएं दी थी।
इन्हीं दुआओं का नतीजा है कि पासवान जी अपने जीवन में एक बार लोकसभा का चुनाव हारे मगर उनकी सभी दलों में उनकी लोकप्रियता को देखते हुये राज्यसभा से संसद में बुला लिया गया,उन्होंने 1969 में बिहार के एक विधायक के रूप में राजनीति शुरू की और फ़िर पीछे मुड़कर नहीं देखा, पत्रकारों से उनके बड़े अच्छे संबंध रहते थे।

सर्वाधिक सत्ता सुख भोगने वाले श्री पासवान की एक विशेषता यह भी थी कि हर मंत्रालय में उन्होंने गरीब तबके के लिये कुछ न कुछ किया। इसीलिए उन्हें दलित नेता के बजाय एक लोकप्रिय नेता साबित हुए। मुझे एक नारा भी याद आ रहा है “धरती गूँजे आसमान, पासवान-पासवान।” 5 जुलाई 1946 को जन्में पासवान 8 अक्टूबर 2020 को उसी आसमान पर चले गये जो कभी उनकी रैलियों में उक्त नारों के लिए गूँजा करता था। इन्हीं शब्दों के साथ मेरी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

ज्ञानेंद्र सिंह वरिष्ठ पत्रकार