स्टील टु जेल नीरज सिंघल 56 हजार करोड़ के बैंक फ्राॅड में गिरफ्तार…… बुरे काम का बुरा नतीजा… । ब्रजभूषण सिंघल ने अपने बेटों नीरज और संजय के साथ 1987 में दिल्ली से सटे साहिबाबाद में एक बीमार छोटी स्टील फैक्ट्री से शुरुआत की। रास्ता खुला, महत्वाकांक्षाओं ने हिलकोरें मारने लगीं, तीनों ने कमाई की तो बैंकों की मदद से 2005 में उड़ीसा में स्टील प्लांट की बुनियाद डाली, 2010 में उत्पादन खुला। साल दो साल गुजरते ही वक्त करवट लेने लगा, कर्ज की बुनियाद पर खड़े तरक्की के नापाक मंसूबे बिखरने लगे, नीयत बद से बदतर हुई तो ‘स्टील टायकून’ कहलाने वाले सिंघल परिवार का डाउन फाल जो शुरू हुआ तो 2016 में 46062 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबी भूषण स्टील जब 2017 में दिवालिया हो गई इसे टाटा स्टील ने 2018, मई में खरीद लिया। 2018 में सीरियस फ्राॅड इन्वेस्टीगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) ने भूषण स्टील के प्रमोटर -एमडी रहे और फ्राॅड का स्वाद चख चुके नीरज सिंघल को गिरफ्तार किया था। पकड़े गए, छूटे भी। और अंततः ईडी ने 56 हजार करोड़ रुपए के बैंक फ्राॅड में बीते दिन छापे की कार्रवाई के साथ ही नीरज सिंघल को गिरफ्तार कर लिया।
सिंघल परिवार का सपना थी भूषण स्टील लिमिटेड। सिंघल परिवार कर्ज राशि की अदायगी करने की सोच से दूर था, इसीलिए कर्ज पर कर्ज लेने का आदी हो गया था। याद है उड़ीसा स्टील प्लांट में उत्पादन शुरू होने पर भूषण स्टील लिमिटेड 11400 करोड़ रुपए की कर्जदार थी। प्रमोटरों ने जेएस डब्ल्यू स्टील और हिंदुस्तान ज़िंक के फर्जी कागजातों (एल सी) को आधार बनाकर बैंकों के शीर्ष अधिकारियों को रिश्वत देकर लोन लिए थे। भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में बैंक कंसोर्टियम प्रमोटरों पर मेहरबान रहता था। सबसे पहले सिंडीकेट बैंक के तत्कालीन चेयरमैन -एमडी सुधीर कुमार जैन नीरज से दस लाख रुपए की रिश्वत लेने में सीबीआई द्वारा पकड़ा गया था, नीरज भी गिरफ्तार किया गया था, यह घटनाक्रम अगस्त 2014 का है उस दरम्यान कंपनी को लिए गए ऋणों पर सालाना (2013-14की वार्षिक लेखा- जोखा रिपोर्ट) करीब 1600करोड़ का ब्याज देना पड़ रहा था। घाटा होने लगा था परिणामस्वरूप कर्जदारी तेजी से बढ़ रही थी कंसोर्टियम के अन्य सदस्य बैंकों (पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, सिंडीकेट बैंक) ने 2017 में बैठकों में एनपीए हो गई भूषण स्टील में फंसे अरबों रुपए की वसूली पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए सख्ती करने की जरूरत व्यक्त की थी।
कंसोर्टियम में पंजाब नेशनल बैंक, सिंडीकेट बैंक के अलावा मुख्य रूप से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) मुख्य भूमिका में था। लेकिन स्टेट बैंक की तत्कालीन चेयरमैन अरुन्धती भट्टाचार्य ने अतिरिक्त मेहरबानी (?) दिखाते हुए कोई ठोस कदम उठाने के बजाय भूषण स्टील को क्लीन चिट दे दी थी। बैठक के बाद एक सदस्य बैंक के शीर्ष अधिकारी ने स्टेट बैंक-चेयरमैन की विशेष कृपा पर सवाल भी उठाया था। बैंकों की हजारों करोड़ रुपए की डूबती रकमों की अनदेखी करने वाली स्टेट बैंक चेयरमैन की भूमिका, सिंडीकेट बैंक के गिरफ्तार सीएमडी के परिप्रेक्ष्य में, संदिग्ध लगती है और उनसे भी ईडी को पूछताछ करनी ही चाहिए, जैसा कि चंदा कोचर मामले में हुआ था। अरुंधती भट्टाचार्य के चेयरमैन-काल में ही कंसोर्टियम ने डेलाॅयट से भूषण स्टील का फोरेंसिक ऑडिट कराया गया था।
सूत्रों का तो कहना है कि स्टेट बैंक चेयरमैन की मंशा पर ऑडिट रिपोर्ट में इधर-उधर किया गया वैसे डेलाॅयट पर पहले भी गहरे दाग लग चुके हैं। यह सब तब हुआ जबकि स्टेट बैंक का 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज भूषण पर था (पाठक अपना विवेक लगाएं)। फिर भी उनकी भूमिका ‘कुछ तो था’ की ओर संकेत करती है। नीरज सिंघल ने 75-80 मुखौटा कंपनियों के जरिए बैंकों से लिए ऋण-रकमों को मुंबई, लंदन सहित अन्य स्थानों में महंगी प्रापर्टियां खरीदीं और अपने परिवारी जनों के लिए परिसंपत्तियों में निवेश किया। इसके अलावा ग्रुप की अन्य कंपनियों के माध्यम से बैंकों की रकमों को इधर-उधर ठिकाने लगा दिया।
प्रणतेश बाजपेयी