तो आरबीआई ने ऐसे दी सरकार को राहत

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आरबीआई ने 8 वर्षों में 5.44 लाख करोड़ दिए

भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान कमेटी की सिफारिशों पर लागू ‘इकाॅनाॅमिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ मौजूदा आड़े वक्त में सरकार के लिए भरपूर राहत का काम करेगा। आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए बजट में चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए निर्धारित विनिवेश लक्ष्य को हासिल कर पाने की संभावनाएं पूर्व वर्षों की तरह बहुत क्षीण हो गई हैं।

रिज़र्व बैंक ने डाॅलर की ताबड़तोड़ बिकवाली के जरिए की गई कमाई में से सिर्फ 9 महीनों में केंद्र सरकार को करीब एक लाख करोड़ रु का लाभांश देकर पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। उक्त धनराशि के आधार पर गणित के हिसाब से बारह माह के पूर्ण वित्तीय वर्ष में लाभांश की धनराशि 1.32 लाख करोड़ रु बैठेगी।

रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की स्थापना से अब तक सर्वाधिक लाभांश भुगतान का रिकॉर्ड 2018-19 में कायम हुआ था जब सरकार को 1 लाख 23 हजार 414 करोड़ रु की लाभांश राशि प्राप्त हुई थी। यह 2013-14 से 2020-21 तक के आठ वर्षों में बतौर लाभांश कुल 5 लाख 44 हजार 774 करोड़ रु सरकार को भुगतान कर चुकी है।

बीते समय में आरबीआई सरकार के लिए एक दुधारू गाय थी पर अब कामधेनु बनकर सरकार की भरपूर मदद कर रही है। सरकार की तात्कालिक वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए जिस त्वरित कार्रवाई और तत्परता से वित्तीय वर्ष में बदलाव किया वह प्रशंसनीय है। अरसे से आरबीआई का वित्तीय वर्ष जुलाई से जून तक होता था। जिसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2020-21, जून 2021 में समाप्त होना था लेकिन त्वरित बदलाव लागू करने के इरादे से इसकी अवधि 12 माह से घटाकर 9 माह कर वित्तीय वर्ष का समापन मार्च में कर दिया गया।

आरबीआई त्वरित कदम नहीं उठाती तो सरकार को दिक्कत का सामना करना पड़ सकता था।आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर्स ने 2020-21के लिए लाभांश देने का निर्णय शुक्रवार 21 मई को हुई अपनी 589 वीं बैठक में किया। इस तरह आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2013-14 से 2020-21 को मिला कर पिछले आठ सालों में 5 लाख 44 हजार 774 करोड़ रु का लाभांश देकर अद्भुत योगदान दिया।

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के अंतर्गत 1935, 1 अप्रैल को कोलकाता में इसकी स्थापना की गई थी। इसके केंद्रीय कार्यालय को वर्ष 1937 में मुंबई में स्थानांतरित किया गया था। इसकी स्थापना निजी क्षेत्र में की गई थी। भारत सरकार ने 1949 में राष्ट्रीयकरण कर दिया था तब से यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है।

आरबीआई ने अपने पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में ‘इकाॅनामिक कैपिटल फ्रेमवर्क’ पर गठित कमेटी की सिफारिशों के अनुसार विदेशी मुद्रा आय से अर्जित लाभ की गणना संबंधी नीति में बदलाव किए, जिन्हें वित्तीय वर्ष 2018-19 से लागू किया गया। उसी वर्ष इसने 1 लाख 23 हजार 414 करोड़ रु का रिकॉर्ड लाभांश केंद्र सरकार को भुगतान किया था।

रिकॉर्डों को खंगालने पर पता चला कि आरबीआई ने पिछले आठ वित्तीय वर्षों में अपनी कमाई में से कुल मिलाकर 544774 करोड़ रु लाभांश सरकार को भुगतान किया। जिसका वर्षवार ब्यौरा इस प्रकार है, 2013-14 में 52679 करोड़ रु, 2014-15 में 65896 करोड़, 2015-16 में 65876 करोड़, 2016-17 में 30659 करोड़, 2017-18 में 50000 करोड़, 2018-19 में 123414 करोड़, 2019-20 में 57128 करोड़ और 2020-21 99122 करोड़ रु।

बता दें कि 2020 के लिए बैंक आॅफ मैक्सिको, जिसे बैंक्सिको कहा जाता है, सहित कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंकों ने मौजूदा हालातों को संदर्भित करते हुए लाभांश नहीं दिया और आने वाली किसी भी तरह की आकस्मिक जरूरतों के मद्देनजर वित्तीय संसाधनों को सुरक्षित रखने का निर्णय किया है। आरबीआई रणनीति के तहत विदेशी मुद्रा डॉलर और सोना की खरीद-बिक्री करती रहती है।

आरबीआई ने नौ माह के वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत पर – 26 मार्च तक डॉलर की खूब बिक्री की (नीचे मूल्यों पर भरपूर खरीद की बदौलत) करके अच्छा खासा लाभ कमाया। आरबीआई के लेखा-जोखा के अनुसार आखिरी दो महीनों- फरवरी और मार्च में 1.25 लाख करोड़ रु से ज्यादा के डाॅलर बेंचे, 26 फरवरी (2021) को इसके पास 42 लाख 86 हजार 707 करोड़ रु की शुद्ध (नेट) विदेशी मुद्रा ‌परिसंपत्तियां थीं। इसमें 2 लाख 60 हजार 239 करोड़ रु का स्वर्णमूल्य भी शामिल है, जबकि 26 मार्च को परिसंपत्तियां और स्वर्ण क्रमश: 41 लाख 81 हजार 453 करोड़ रु व 2 लाख 53 हजार 128 करोड़ रु रह गया। एक वर्ष पूर्व 2020, 27 मार्च को 2 लाख 31 हजार 83 करोड़ रु के स्वर्णमूल्य सहित 35 लाख 45 हजार 933 करोड़ रु की शुद्ध विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां थीं।

बताते चलें कि आरबीआई कई सालों से लगातार टेक्नाॅलॉजी का अधिक से अधिक समावेश करते हुए कर्मियों और खासकर तीसरे और चतुर्थ वर्ग के अधिकारियों और सहायकों की संख्या कम करती जा रही है। 2014 दिसंबर में कुल 16794 कर्मी थे 2016 में 15461, 2018 में 13784 से 2019, दिसंबर में 13456 रह गए।

इसके बावजूद कर्मियों पर होने वाले खर्च में तो 30 फीसद की जोरदार बढ़ोतरी हुई है, इसके बिलकुल उलट, प्राप्त ब्याज आय में 2496 करोड़ की वृद्धि होते हुए भी कुल आमदनी 22 फीसद घटकर 2019-20 में 149672 करोड़ रु रह गई, जबकि 2028-19 में 193036 करोड़ रु दर्ज हुई थी।

आरबीआई के आवश्यक व्यय में नोट प्रिंटिंग, एजेंसी चार्ज़ेज़ और अपने कर्मियों के वेतन भत्ते प्रमुख हैं। नोट प्रिंटिंग खर्च 2018-19 में 4811 करोड़ की तुलना में 2019-20 में 4378 करोड़ रु, एजेंसी चार्ज़ेज़ 3910 करोड़ रु से घटकर 3876 करोड़ रु और कर्मियों पर खर्च 6851 करोड़ रु से बढ़कर 8928 करोड़ रु पहुंच गया।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी