राहुल गांधी तो रायबरेली ही रहेंगे क्योंकि…

* राहुल वायनाड छोड़ेंगे, रायबरेली छोड़कर यूपी में उप चुनाव का रिस्क नहीं लेना चाहती पार्टी * वैसे भी रायबरेली में ही रहकर परिवार की विरासत संभालने का उन पर दबाव है पार्टी का * पार्टी रायबरेली सीट खाली करके हार से खार खाई भाजपा को भी कोई मौका देना नहीं चाहती

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लखनऊ। 11 जून को रायबरेली और 12 जून को वायनाड के मतदाताओं से मुखातिब होने के बाद कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार ने तय किया है कि राहुल गांधी रायबरेली के ही सांसद बने रहेंगे। वे यहीं पर रहकर परिवार की विरासत संभालेंगे और वायनाड से इस्तीफा देंगे। यह भी तय किया गया है कि वायनाड में परिवार के ही किसी व्यक्ति को उपचुनाव लड़ाया जाएगा। ज्यादा संभावना प्रियंका गांधी या उनके पति रॉबर्ट वाड्रा की है।

कांग्रेस की किचन कैबिनेट में लंबे परामर्श के बाद यह लगभग तय किया गया है।इसके साथ ही यह भी तय हुआ है कि प्रियंका गांधी को इनाम स्वरूप वायनाड से लड़ाया जाएगा। वैसे वायनाड के लिए प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा भी भी नाम चल रहा है। क्योंकि वहां के धार्मिक समीकरण रॉबर्ट वाड्रा के पक्ष में हैं। प्रियंका की भी पहली पसंद अमेठी या रायबरेली ही है। इसके पहले राहुल गांधी ने अपने दोनों जीते हुए लोकसभा क्षेत्रों रायबरेली। व वायनाड की जनता के बीच जाकर धन्यवाद ज्ञापित किया और जनता की राय ली। उम्मीद है कि जल्द ही इस पर अंतिम निर्णय हो जाएगा। वायनाड के उपचुनाव के लिए चाहे प्रत्याशी के रूप में या स्टार प्रचारक के रूप में प्रियंका का जाना लगभग तय है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेठी-रायबरेली की तरह वायनाड में भी प्रियंका गांधी का जादू चल पाएगा या नहीं।

सूत्रों के अनुसार पार्टी का मानना है कि रायबरेली सीट कांग्रेस की विरासत से जुड़ी है। और इसके लगभग सभी बड़े नेता रायबरेली से ही सांसद होते रहे हैं। एक तरह से यह सीट कांग्रेस के सबसे बड़े नेता की है। और अगर राहुल गांधी को पार्टी का सबसे बड़ा सर्वमान्य नेता बनाना है तो रायबरेली सीट से बेहतर और कोई जगह नहीं हो सकती। इससे पार्टी जनों में यह मैसेज जाएगा कि राहुल गांधी ही परिवार और पार्टी की लीगेसी के सक्षम और सर्वमान्य वारिस हैं। पार्टी के रणनीतिकारों का यह भी मानना है कि उपचुनाव में रायबरेली की तुलना में वायनाड में जीतने की संभावना अधिक है। क्योंकि अयोध्या व अमेठी की हार से खार खाई भाजपा रायबरेली में जीत की राह आसान नहीं होने देगी। ऐसे में पार्टी हार जाने का कोई रिस्क उठाने को तैयार नहीं है। क्योंकि यदि गलती से भी उपचुनाव में रायबरेली की सीट कांग्रेस के हाथ से निकल जाती है तो कांग्रेस और विपक्ष पर मानसिक दबाव पड़ेगा। इससे भाजपा का मनोबल बढ़ जाएगा। और ऐसी किसी भी स्थिति के लिए कांग्रेस तैयार नहीं है।

हालांकि सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी अभी भी वायनाड को लेकर काफी इमोशनल हैं। उनका मानना है कि वायनाड ने उनको ऐसे समय में समर्थन दिया जब अमेठी की जनता ने उन्हें ठुकरा दिया। इसीलिए उन्होंने वायनाड से पिछली बार जीतने के बाद यहां तक कह दिया कि वायनाड मेरा परिवार है। आखिरी समय तक यूपी से चुनाव लड़ने से से हिचक रहे राहुल गांधी ने गठबंधन के दबाव में रायबरेली सीट से लड़ने का फैसला किया था। जीत के बाद वायनाड में धन्यवाद भाषण में तो राहुल गांधी ने अपनी हिचकिचाहट का परिचय दे ही दिया। उन्होंने कहा कि मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि कौन सी सीट पर रहूं और किसे छोडूं। दोनों ही सीटें मुझे बहुत प्यारी हैं।

राहुल गांधी अमेठी से इसलिए भी नहीं लड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें भय था कि अमेठी में फिर उनके साथ धोखा ना हो जाए। इसीलिए विरोधी दलों के उकसाने के बावजूद उन्होंने अमेठी सीट से पर्चा नहीं भरा। और मां सोनिया द्वारा छोड़ी कांग्रेस की सर्वाधिक सुरक्षित सीट रायबरेली से उम्मीदवार बने। प्रियंका गांधी ने भी राहुल की इस भावना को समझा और स्वयं चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हुए भी अपनी इच्छा दबाई और राहुल गांधी के प्रचार में पूरी तरह जुट गईं। अन्यथा यह लगभग तय था कि अगर राहुल रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे तो प्रियंका गांधी को स्मृति ईरानी के खिलाफ अमेठी से उतारा जाएगा। किंतु परिवार ने तय किया कि अभी राहुल गांधी का जीतना जरूरी है। इसलिए प्रियंका गांधी का सारा ध्यान रायबरेली में होना चाहिए। चूंकि अमेठी सीट भी पिता राजीव गांधी से जुड़ी थी इसलिए उसे भी छोड़ना मुनासिब नहीं समझा गया। इसलिए वहां परिवार के करीबी किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा गया। फिर रायबरेली और अमेठी दोनों ही सीटों पर प्रियंका गांधी ने जीत तोड़ मेहनत की। संयोग से समीकरण भी कुछ ऐसे बैठे कि प्रियंका गांधी की मेहनत रंग लाई और कांग्रेस दोनों सीटों पर जीत गई। हालांकि कि तब अमेठी से जीत के प्रति पार्टी के रणनीतिकार भी आश्वस्त नहीं थे। पार्टी में एक चर्चा यह भी उठी कि अमेठी से किशोरी लाल शर्मा से इस्तीफा दिलवा कर राबर्ट वाड्रा को लड़ाया जाए। किंतु काफी राय मशविरा के बाद यह तय किया गया कि अभी अमेठी सीट से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ना रणनीतिक बुद्धिमानी नहीं होगी। क्योंकि भाजपा उपचुनाव में अमेठी जीतने के लिए कुछ भी कर सकती है। ऐसे में इस विचार को त्याग दिया गया। हालांकि रॉबर्ट वाड्रा कई बार अमेठी से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं।

कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी रायबरेली और अमेठी में राहुल गांधी और किशोरी लाल शर्मा के पर्चा दाखिले के बाद से प्रियंका ने यहां डेरा डाल दिया था। दोनों सीटों पर यह बात आम हो गई थी कि चाहे राहुल गांधी जीतें-हारें या किशोरी लाल शर्मा, जीत और हार का श्रेय सिर्फ और सिर्फ प्रियंका गांधी को जाएगा। दो मई को दोनों सीटों पर नामांकन पत्र दाखिल होने के बाद प्रियंका गांधी ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया था।

प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी तवज्जो इन दोनों सीटों पर रखी क्योंकि वह रायबरेली सीट जीतकर पार्टीजनों को मैसेज देना चाहती थीं कि वह कांग्रेस की परंपरागत सीट और मां की विरासत को बचा कर ले आई हैं। उन्हें इस बात की अच्छी तरह से जानकारी थी कि यदि राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव हार जाते हैं तो यह उनकी रणनीतिक छवि को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा।

अब रायबरेली-अमेठी से जीतने के बाद प्रियंका गांधी के चुनावी कौशल पर भी मोहर लग गई है कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी रायबरेली में जितवा दिया। रायबरेली कांग्रेस और राहुल गांधी के राजनीतिक अस्तित्व से जुड़ी हुई है। प्रदेश की यही एकमात्र सीट है जहां से कांग्रेस को उम्मीद थी। इसीलिए तो सोनिया गांधी को चुनाव सभा के दौरान भावुक अपील भी करनी पड़ी कि राजीव गांधी के बाद आप लोगों ने मुझे संभाला। और अब मैं आपको अपना बेटा सौंप रही हूं, इसका ख्याल रखना आपका काम है। इसे जिताइए, यह आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा।

सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के कारण बहुत सक्रिय नहीं रहीं इसलिए मोर्चा प्रियंका गांधी ने संभाल लिया था। यहां से जुड़े कांग्रेसियों का कहना है कि प्रियंका दीदी ने राहुल भैया के लिए बहुत मेहनत की है। सही मायने में यह जीत प्रियंका गांधी की कही जाएगी। शुरुआत में दिनेश प्रताप सिंह का ग्राफ रायबरेली में लगातार बढ़ रहा था। यदि कांग्रेस और सपा का गठबंधन न होता तो रायबरेली की सीट कांग्रेस के लिए जीतनी भी मुश्किल हो जाती। ऐसे में परिवार ने रायबरेली सीट पर फोकस किया और अमेठी में परिवार के किसी आदमी को मैदान में नहीं उतारा गया। ताकि सारी तवज्जो रायबरेली में रहे।
प्रियंका गांधी अमेठी में अपने दिए गए भाषणों में लोगों से यही कहती रहीं कि आप किशोरी लाल शर्मा को जिताएं जो हमारे परिवार के बहुत खास हैं। उनके जीतने का मतलब प्रियंका गांधी का जीतना है। प्रियंका का यह बयान लोगों में जगह भी बना रहा था। कांग्रेसियों ने भी प्रचार करना शुरू कर दिया था कि किशोरी लाल शर्मा का तो सिर्फ नाम है, असली लड़ाई प्रियंका गांधी बनाम स्मृति ईरानी है। प्रियंका ने भी अपने भाषणों में हर जगह यही कहा कि आप यह मानकर चलिए कि किशोरी लाल शर्मा को नहीं आप मुझको जिताएंगे।

वैसे भाजपा को अकेले बहुमत न मिलने पर कांग्रेस भले ही उत्साहित हो पर शुरुआती माहौल देखकर राहुल गांधी स्वयं अमेठी से लड़ने से डर रहे थे। ऐसे में वे प्रियंका को बनारस से लड़ाने की सोच भी कैसे सकते थे। अब जबकि पार्टी की संख्या 99 तक पहुंच गई है तो राहुल समेत सभी कांग्रेसियों की जुबान खुलने लगी है। वैसे भी प्रियंका को वाराणसी से लड़ाने की चर्चाएं 2014 और 2019 में भी उठीं लेकिन पार्टी प्रियंका के हार जाने का रिस्क नहीं ले पाई। थोड़ा सुकून भरा परिणाम आने के बाद राहुल गांधी का यह बयान कि हमसे गलती हो गई, हमें बहन को वाराणसी से लड़ा देना चाहिए था। वह प्रधानमंत्री को कम से कम तीन लाख वोटों से हरा देती, सिर्फ मौके पर चौका मारने जैसा है। क्योंकि सभी जानते थे कि तत्कालीन परिस्थितियों में रायबरेली छोड़कर अमेठी या वाराणसी से लड़ना गांधी परिवार के लिए खतरे से खाली नहीं था। वो तो चुनाव के बीच में कुछ भाजपा नेताओं के बेवकूफी भरे बयानों ने पार्टी को संविधान के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा कर दिया वरना परिस्थितियों कुछ और ही होतीं। वैसे कांग्रेस के लिए अभी भी मौका है, अपने दावे को सही साबित करने का। वह रायबरेली या अमेठी सीट पर इस्तीफा दिलवाकर भाजपा से फिर दो-दो हाथ कर सकती है। और अगर जीत जाती है, तब उसकी बात में सच्चाई मानी जा सकती है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक