राहुल-राम से परहेज, शिव को रहे सहेज

* राहुल की राम मंदिर से दूरी पर अयोध्या की जीत भुनाने का प्रयास, राम को नकारने की भी कोशिश * फैजाबाद से सांसदी जीत कर अब सपा के पोस्टर ब्वाय बन गए हैं अवधेश प्रसाद पासी * भाजपा का आरोप अगर कांग्रेस की सरकार बन गई होती तो राम का नाम लेना भी अपराध हो गया होता * कांवड़ियों के जरिए खुद को राहुल गांधी से बड़ा शिवभक्त दिखाने की सीएम योगी की कोशिश

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लखनऊ/नयी दिल्ली। अयोध्या-फैजाबाद सीट पर भाजपा को हरा कर राहुल गांधी, अखिलेश यादव समेत पूरे इंडी गठबंधन के हौसले बुलंद हैं। अब ये नैरेटिव गढ़ने की कोशिश है कि राम ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है, इसलिए भाजपा समाप्त प्राय हो गई है। राहुल गांधी तो सीधे तौर पर कहते हैं कि हमने अयोध्या की सीट जीत कर राम मंदिर आंदोलन की हवा निकाल दी है। खबर है कि कांग्रेस अब दक्षिण की अयोध्या से भी राम का मिटाने की कोशिश में है। रामनगर जिले का नाम बदलने के कांग्रेस के प्रयासों से नाराज भाजपा उस पर हमलावर है।

सनातन संस्कृति के अनुसार देखें तो राम और शिव में इस बात की होड़ रहती है कि दोनों में कौन किसका सबसे बड़ा भक्त हैं। पर हमारे देश के राजनीतिज्ञ इसका कुछ लिहाज नहीं करते। वह तो सिर्फ अपनी सुविधा देखते हैं। उन्हें राम और शिव के नाम का लाभ उठाना है, बस। राम से परहेज़ रखने वाले राहुल गांधी ने अपनी न्याय यात्रा और चुनाव प्रचार के दौरान काफी शिवालयों के दर्शन किए किंतु अयोध्या के राम मंदिर का रुख नहीं किया। शायद यह कांग्रेस की किसी नयी रणनीति का हिस्सा है।

भाजपा पर हमलावर होते हुए कांग्रेस नेता हरीश रावत का कहना है कि न्याय के प्रतीक राजा रामचंद्र ने भाजपा को पहले अयोध्या की लोकसभा सीट हराकर सबक सिखाया था, फिर विष्णु के स्वरूप बद्रीनाथ की विधानसभा सीट के उपचुनाव में शिकस्त देकर सुधरने का संकेत दिया है। अब केदार नाथ सीट की बारी है। वैसे भी हमारे नेता राहुल गांधी जी तो शिवभक्त हैं ही, फिर उनका आशीर्वाद तो हमें इस सीट पर मिल ही जाएगा। यानी कांग्रेस पार्टी हिंदूओं को राम और शिव के खेमों में बांटना चाहती है। और शायद राहुल गांधी की अयोध्या से दूरी कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। इसीलिए राहुल गांधी अयोध्या में राम लला का दर्शन करने नहीं गए। और अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का निमंत्रण ठुकरा दिया। साथ ही अन्य कांग्रेसियों को भी अयोध्या से दूरी बनाए रखने के अंदरूनी निर्देश दिए गए।

उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट का उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के हौसले और बुलंद हो गए हैं। वह अब भाजपा को घेरने के लिए दिल्ली में निर्माणाधीन केदारनाथ मंदिर विरोधी लड़ाई को भी धार देने की कोशिश में है। दरअसल दिल्ली में एक ट्रस्ट केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर उसकी प्रतिकृति के रूप में केदारनाथ मंदिर बना रहा है। इसके लिए भूमि पूजन हो गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसका शिलान्यास किया है। अब कांग्रेस इसी आधार पर भाजपा को घेरने की कोशिश में है। ताकि फिर होने वाले उत्तराखंड की केदारनाथ सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत कर उसका राजनीतिक लाभ लिया जा सके। केदारनाथ धाम की लड़ाई को दिल्ली में बन रहे केदारनाथ मंदिर से जोड़ा जा रहा है। इस मंदिर का विरोध शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद भी कर रहे हैं। हालांकि इस लड़ाई का कोई आधार नहीं दिखता, क्योंकि देश के तमाम मंदिरों की प्रतिकृति उसके मूल स्थान से हटकर बनी है। जैसे वैष्णो देवी, कामाख्या देवी, सोमनाथ और अक्षरधाम आदि। तब कोई विरोध नहीं हुआ। ऐसे में लगता है यह विरोध सिर्फ राजनीतिक है ताकि भाजपा को दबाव में रखा जा सके।

गत लोकसभा चुनाव में फैजाबाद में इंडी गठबंधन का नारा था-अब न मथुरा न कासी, अयोध्या में अवधेश पासी। यहां पर सनातन धर्म के प्रतीकों राम, कृष्ण और शिव के अस्तित्व को नकारते हुए सिर्फ दलित कार्ड पर चुनाव लड़ा गया। संयोग से यह प्रयोग सफल भी हो गया और अवधेश प्रसाद पासी चुनाव जीत भी गए। उनका राजनीतिक महत्व इतना बढ़ गया है कि वे अब लोकसभा सदन में अखिलेश प्रसाद के बगल में बैठने लगे हैं। यहां तक कि अखिलेश यादव अब उन्हें हर महत्वपूर्ण स्थान पर अपने साथ लेकर जाते हैं।राहुल गांधी का भी अटेंशन अब सीधे उनके प्रति हो रहा है। हालांकि इस लोस क्षेत्र की पांच सीटों में से अकेली अयोध्या विधानसभा सीट ही ऐसी थी जहां से भाजपा को बढ़त मिली थी। बाकी चार सीटों पर अवधेश प्रसाद पासी आगे थे। और उसी बढत के आधार पर वे चुनाव जीत गए। यानी अयोध्या विधानसभा क्षेत्र ने अवधेश प्रसाद पासी को नकार दिया था। फिर भी इंडी गठबंधन को लगता है कि राम ने भाजपा को नकार दिया है। अखिलेश यादव ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए अवशेष प्रसाद पासी को अयोध्या का राजा तक कह दिया।

हालांकि उसको लेकर वाद-विवाद हुआ। परंतु राजनीतिक रूप से भाजपा इस मुद्दे का लाभ नहीं हो उठा पाई। यहां खास बात यह है कि इसी चुनाव में लोगों को भी पता चला कि फैजाबाद के नए सांसद अवधेश प्रसाद पासी विरादरी से आते हैं। वे दलित बिरादरी से आते हैं यह जानकारी तो सबको थी, किंतु उनके नाम के साथ साथ पासी भी जुड़ा है, यह इस चुनाव में सार्वजनिक हुआ था। खैर अवधेश पासी इस समय समाजवादी पार्टी के पोस्टर ब्वाय बने हुए हैं। अभी हाल ही में वे मुंबई में उद्धव ठाकरे से भी मिलने गए थे। उद्धव ठाकरे भी हिंदुत्व का बड़ा चेहरा रहे बाल ठाकरे के पुत्र हैं। अवधेश प्रसाद पासी की उनसे मुलाकात भाजपा के राम समर्थक छवि को भोथरा करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि उद्धव इस समय भाजपा विरोधी खेमे में हैं।

इधर भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित कर आरोप लगाया है कि यदि राहुल गांधी सत्ता में आ जाते तो राम शब्द बोलने पर भी पाबंदी लग जाती। इसके जवाब में समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद पासी का कहना है कि भाजपा की विभाजन की नीति अब नहीं चलेगी। अब भाजपा अपने अवसान की तरफ है, उसको यह बात समझ लेना चाहिए।
कर्नाटक के रामनगर जिले को दक्षिण की अयोध्या कहा जाता है। और इसे इसी रूप में विकसित करने की योजना थी। राज्य की तत्कालीन एस आर बोम्मई सरकार ने इसके विकास के लिए 150-180 करोड़ के बजट का अनुमान भी लगाया था। अब खबर है कि चूंकि ये कांग्रेस के एजेंडे को यह सूट नहीं करता इसलिए अब उस जिले का नाम ही बदलकर बेंगलुरु दक्षिण किया जा रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि नाम बदलकर बेंगलुरु दक्षिण कर देने से जमीनों के दाम बढ़ जाएंगे और विकास तेज होगा। स्थानीय भाजपाई इसके खिलाफ झंडा उठाए हुए हैं।

भाजपा के कर्नाटक अध्यक्ष सी ए विजेंद्र और जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी कुमार स्वामी ने भी विरोध किया है। कुमारस्वामी का कहना है कि यदि ऐसा हुआ तो जब भी हमारी सरकार आएगी हम इस जिले का नाम रामनगर फिर बहाल करेंगे। जानकारों का कहना है कि असल में जिले की चेन्नापटना विधानसभा सीट पर आने वाले समय में उपचुनाव होने हैं और कांग्रेस की नजर उसी पर है। बताया जाता है कि कांग्रेस की ये कवायद इस सीट को जीतने के लिए है।
हालांकि भाजपा का राजनीतिक विरोध करते हुए और अयोध्या में अपनी जीत का जश्न मनाते हुए समाजवादी पार्टी एहतियात बरत रही है। परंतु कांग्रेस तो लगता है कि जैसे राम के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हो। वह तो भाजपा के राम के मुकाबले शिव को स्थापित करने में लगी हुई है। लोकसभा में कार्यवाही के दौरान भी राहुल गांधी ने हिन्दू धर्म एवं उसके अनुयायियों को हिंसक तक कह दिया। उनके इस बयान के बाद भाजपा उन पर हमलावर हो गई। उन्हें हिंदू विरोधी करार दिया। भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर राहुल गांधी को हिंदू विरोधी करार दिया है। राहुल गांधी के बयान पर शिवसेना अवध प्रांत के प्रचारक उमेश मिश्रा का कहना है कि मैं राहुल गांधी को खुली चुनौती देता हूँ कि यदि राहल गाँधी के अन्दर पुरुषत्व है तो हिंसा करने वाले धर्म के खिलाफ कुछ भी बोलकर दिखाएं।

दरअसल कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता राहुल गांधी लगातार राम और राम मंदिर से दूरी बनाए हुए हैं। वे अभी तक राम मंदिर का दर्शन करने अयोध्या तक नहीं गये। जब राहुल गांधी की रायबरेली से चुनाव लड़ने की घोषणा की गई थी तब भी चर्चा उठी थी कि अपने पर्चा दाखिला के पूर्व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी राम लला के दर्शन करेंगे। अयोध्या के लोगों को भी सचेत कर दिया गया था। किंतु सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी के कहने पर ही अंतिम समय में वह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी राम और शिव की तुलना कर शिव को बड़ा बताने की कोशिश की थी। उनका कहना था कि हमारे प्रत्याशी के नाम में शिव है और वह राम की समर्थक भाजपा के प्रत्याशी पर भारी पड़ेंगे।

समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया का मानना था कि राम, शिव और कृष्ण के बिना भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती। क्योंकि ये तीनों भारत की आत्मा में समाए हुए हैं और देश को इनसे अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। चूंकि लोहिया समाजवादी विचारधारा के सबसे बड़े पुरोधा हैं, शायद इसीलिए अखिलेश यादव और अन्य सपाई इस मामले में उतने मुखर होकर नहीं बोल रहे जितने राहुल गांधी हैं। सपा अयोध्या की जीत का जश्न तो मना रही है पर राम के खिलाफ बयानबाजी से बच रही है।

इधर राहुल गांधी अपने को शिव भक्त बताने में कोई परहेज नहीं करते। उन्होंने लोकसभा में भी भगवान शिव की तस्वीर दिखाकर भाषण की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा था कि मैं शिव भक्त हूं, क्योंकि शिव कहते हैं कि न डरो और न डराओ। शिव का हाथ हमेशा अभय दान की मुद्रा में रहता है। ये अलग बात है कि भाषण के जोश में शिव जी को भगवान की जगह महापुरुष बोल गए। भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने तो बाकायदा इस पर कमेंट भी किया जा। लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का भी आरोप है कि पार्टी में राम मंदिर पर बोलने की मनाही थी। हमें साफ निर्देश थे कि राम के बारे में कुछ नहीं बोलना है। कांग्रेस की पूर्व प्रवक्ता प्रियंका खेड़ा का तो कहना है मुझे तो श्री राम का नाम लेने की सजा दी गई। और इच्छा होने के बावजूद मुझे प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में अयोध्या जाने नहीं दिया गया। कांग्रेस के ही पूर्व नेता गौरव वल्लभ ने आरोप लगाया है कि वे राम मंदिर पर पार्टी के स्टैंड से काफी क्षुब्ध थे। और पार्टी फोरम पर आपत्ति दर्ज कराई थी। सुनवाई नहीं होने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी।

इधर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद को राहुल गांधी से बड़ा शिवभक्त साबित करने में लगे हैं। वैसे भी वे शिवावतार बाबा गोरखनाथ की गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं। उन्होंने कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों, ठेले-रेहडी वालों,ढाबा, और होटलों को निर्देशित किया गया है कि वे अपने विक्रय स्थल पर अपने नाम की पट्टी लगाएं ताकि कांवड़ियों को दुकान का चयन करने में आसानी रहे और उनकी पवित्रता बनी रहे। इसको लेकर राजनीति छिड़ गई है। हालांकि अपने निर्णय पर अडिग योगी ने इस आदेश को अब पूरे प्रदेश में लागू कर दिया है। इसका बाकायदा अनुपालन भी सुनिश्चित कराया जा रहा है। योगी की देखा-देखी अन्य प्रदेशों जैसे हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश ने भी इस आदेश को लागू कर दिया है। परंतु कुछ सहयोगी पार्टियों जदयू, लोजपा, रालोद को इस पर आपत्ति है। इसके अलावा इस आदेश को एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है। जिसकी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने फिलहाल इस आदेश पर अंतरिम रोक लगा कर अगली सुनवाई 26 जुलाई नियत की है।

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल गांधी की शिवभक्ति के नैरेटिव को योगी आदित्यनाथ तोड पाते हैं या नहीं। इधर सख्ती का असर ये है कि कावड़ यात्रा के रास्ते में पढ़ने वाले कई दुकानों का नाम बदल गया है। सूत्रों का कहना है योगी कांवड़ यात्रा पर अपने इस नए आदेश के जरिए खुद को राहुल से बड़े शिवभक्त के रूप में पेश कर रहे हैं। इस मामले में खास बात यह है कि अभी तक योगी के विरोधी के रूप में दिख रहे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी इस मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ के साथ खड़े हैं। वे इसका विरोध करने वालों को आड़े हाथ से लेते हुए कहते हैं इसमें गलत क्या है, नाम छुपाने की जरूरत ही क्या है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी कहते हैं कि इस मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अगर मुसलमानों को हिंदू नाम इतने पसंद हैं तो वे हिंदू धर्म में क्यों नहीं शामिल हो जाते।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक