प्रियंका का वायनाड जाना तो ठीक पर राहुल के दावे का क्या

* पिछले दिनों राहुल ने कहा था कि प्रियंका तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी हरा देती * पर वे तो अब यूपी ही छोड़ कर वायनाड के लिए गाड़ी पकड़ने वाली हैं। मुकाबला कैसे होगा * वायनाड मे प्रियंका की राह आसान नहीं रहने वाली क्योंकि राहुल की जीत का अंतर 50000 घटा है * लेफ्ट प्रत्याशी खड़ा करेगा, भाजपा भी राह में रोड़े बिछाने में कसर नहीं छोड़ेगी * सही मायने में प्रियंका गांधी के राजनीतिक कौशल की अब होगी परीक्षा

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लखनऊ। आखिरकार गांधी फैमिली ने प्रियंका गांधी को चुनावी अखाड़े में उतार ही दिया। सही मायने में उनके राजनीतिक कौशल की अब परीक्षा होगी। इस निर्णय से गांधी परिवार ने यह भी साबित कर दिया कि परिवार के असली राजनीतिक वारिस राहुल गांधी ही हैं। प्रियंका को उनकी सहायक के रूप में रहना होगा। हालांकि कई बार अमेठी से दावेदारी की जिद पर अड़ी प्रियंका को आखिरकार मन मार कर केरल का रास्ता पकड़ना पड़ा है। भाजपा तो इसे पलायन की संज्ञा दे रही है और यूपी में हार जाने के डर से वायनाड जाने का आरोप रही है। खैर, अब सवाल यह है कि राहुल गांधी के उस दावे का क्या होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि बहन प्रियंका वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने की क्षमता रखती है। राहुल गांधी ने तो अपने दावे को सही साबित करने का सुनहरा अवसर भी गवां दिया। वे रायबरेली ना सही अमेठी से ही जोर आजमाइश करा लेते। वहां प्रधानमंत्री न सही स्मृति ईरानी से ही दो-दो हाथ हो जाता। पर राहुल गांधी तो बड़े कमजोर निकले। चुनौती देकर मैदान ही छोड़ दिया।

खैर, जैसा कि उम्मीद थी कि यदि राहुल रायबरेली और वायनाड से चुनाव जीत जाते हैं तो प्रियंका को पुरस्कार स्वरूप दोनों में से कोई एक सीट दी जाएगी। हालांकि तब रायबरेली सीट ही जीतना मुश्किल लग रहा था। इसीलिए राहुल गांधी ने पहले वायनाड से चुनाव लडा और वहां का मतदान होने तक रायबरेली की दावेदारी छिपा कर रखी गई। पर अब जब कांग्रेस अमेठी, रायबरेली और वायनाड सीट जीत गई है तो फिर चर्चा उठी कि अमेठी से प्रियंका गांधी को लड़ाया जाएगा। राहुल गांधी के दावे के बाद ये तय माना जा रहा था कि राहुल गांधी प्रियंका के लिए या तो रायबरेली सीट खाली करेंगे या फिर अमेठी से किशोरी लाल शर्मा से इस्तीफा दिलवाकर वहां से मैदान में उतारा जाएगा।

अमेठी भी गांधी परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वहां से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सांसद रह चुके हैं। इसलिए वहां से गांधी परिवार का इमोशनल अटैचमेंट है। भाजपा का आरोप है कि उपचुनाव में आशंकित हार के डर से कांग्रेस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। क्योंकि विपक्ष ने आम चुनाव में आरक्षण और संविधान को लेकर जो नैरेटिव सेट किया था वह शायद अब काम न करे। उधर कांग्रेस पार्टी के गारंटी कार्ड ने इतनी छीछालेदर मचा रखी है कि कांग्रेस दफ्तरों पर महिलाओं का जाना लगातार जारी है। वे सभी कांग्रेस के गारंटी कार्ड के अनुसार साढ़े आठ हजार रुपया महीना पाने के लिए चक्कर लगा रही हैं। उनको माकूल जवाब देने वाला कोई नहीं मिल रहा। इनमें भी अधिकतर मुस्लिम महिलाएं हैं। पूरे देश से इस तरह की खबरें टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही हैं। वैसे जनता भी समझ रही है कि केंद्र में इस समय भाजपा की सरकार है। अब जो भी करेगी अगले 5 साल तक भाजपा ही करेगी। वैसे आम चुनाव और उपचुनाव में माहौल बदल जाता है।

राहुल गांधी के रायबरेली सीट न छोड़ने और प्रियंका गांधी के वायनाड जाने का एक दूसरा कारण भी है। उनके पति रॉबर्ट वाड्रा इसाई हैं। इसलिए उन्हें वायनाड के धार्मिक समीकरण सूट करेंगे। वैसे भी वहां भाजपा का कोई बहुत बड़ा जनाधार नहीं है। इसलिए प्रियंका को वहां आसानी हो सकती है। किंतु खबर है कि वामपंथी इस बार भी वहां पर अपना प्रत्याशी खड़ा करेंगे। और भाजपा भी पूरी ताकत लगाएगी प्रियंका के लिए परेशानी पैदा करने में।भाजपा वहां पर जितना मजबूत होगी उतना ही कांग्रेस कमजोर होगी। वहां प्रियंका की हार-जीत इस पर भी निर्भर करेगी कि भाजपा इस चुनाव को कितना सीरियस लेती है। कोई बड़ा प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा तो परिस्थितियों बदल भी सकती हैं। इसी कारण भाजपा ने हाल ही में बनी केंद्र सरकार में वहां के अपने एकमात्र सांसद सुरेश गोपी को शामिल कर लिया है। यह इस बात का संकेत है कि भाजपा केरल को बहुत गंभीरता से ले रही है। सुना है कि वे अपने काम में लग गए हैं। प्रियंका के लिए दूसरी समस्या यह भी होगी कि वायनाड में राहुल की जीत का मार्जिन 2019 के 4 लाख के मुकाबले घटकर इस बार साढ़े तीन लाख ही रह गया है। ऐसे में प्रियंका गांधी की राह बहुत आसान नहीं रहने वाली।

बहरहाल, प्रियंका गांधी वायनाड से चुनाव जीतें या हारें परंतु राजनीतिक हलकों में ये चर्चा चल पड़ी है कि लगे हाथ राहुल गांधी को उपचुनाव में अपने दावे की आजमाइश भी कर लेनी चाहिए। और प्रियंका के ताकत की सही आजमाइश यूपी में ही हो सकती है। भाजपा का कहना है कि अगर राहुल को अपनी राजनीतिक विरासत संभालनी है तो वे रायबरेली में रहें। वे किशोरी लाल शर्मा को अमेठी से इस्तीफा दिलवा कर प्रियंका गांधी को वहां से लड़ा सकते हैं। वैसे भी अमेठी के कांग्रेसियों का दावा है कि अमेठी की जीत भी प्रियंका गांधी की ही जीत है। पर शायद राहुल गांधी ने जीत जाने की जोश में मौके पर चौका मारा था, पब्लिक की तालियां पाने के लिए।

चलो, माना कि इस बार मुकाबला शायद न हो पाए। पर क्या अगली बार मोदी और प्रियंका का मुकाबला हो पाएगा। क्योंकि यदि प्रियंका वायनाड में जीत जाती हैं तो क्या वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए वापस वाराणसी आएंगी। और अगर वे ग़लती से वायनाड का चुनाव हार जाती हैं तो क्या एक पराजित योद्धा काशी के मोदी को चुनौती दे पाएगा।

उधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी जोश में हैं और लगातार ताल ठोक रहे हैं। वे कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री अगर इस्तीफा देकर फिर से वाराणसी से लड़ जाएं तो इस बार हार जाएंगे। और अगर मैं जीत न सका तो राजनीति से संन्यास ले लूंगा। अब उन्हें कौन समझाएं कि जब उनके नेता राहुल गांधी ही रायबरेली से प्रियंका को उपचुनाव लड़ाने का जोखिम नहीं उठा पा रहे हैं तो आप क्या कर पाएंगे। पर कहते हैं ना कि राजनीति में बहुत सी बातें सिर्फ कहने के लिए होती हैं। उन पर अमल करना बहुत आसान नहीं है। राहुल गांधी के लिए यह कह देना बहुत आसान है कि प्रियंका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी में हरा देतीं। परंतु पार्टी उन्हें रायबरेली या अमेठी से लड़ने का जोखिम नहीं लेना चाहती। क्योंकि वह जानती है की काठ की हांडी चूल्हे पर एक ही बार चढ़ती है। गलत बयानी करके, जनता को बरगला कर एक बार तो चुनाव जीता जा सकता है, बार-बार नहीं। दरअसल राहुल गांधी भी जानते हैं चुनाव की शुरुआती परिस्थितियों में तो रायबरेली सीट को ही लेकर कांग्रेस आश्वस्त नहीं थी। अगर ऐसा नहीं था तो राहुल गांधी को वायनाड से लड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यह उनका असुरक्षा बोध ही था जिसने उन्हें वायनाड और रायबरेली दोनों जगह से लड़ने के लिए मजबूर किया।

चुनावी समीकरणों के जानकारों का मानना है कि उन्हें अनर्गल दावे करना छोड़ सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए और विपक्ष की भूमिका के लिए तैयार हो जाना चाहिए। परंतु उनमें तो शायद इतना विश्वास नहीं है कि वह नेता विपक्ष का पद संभाल लें। पार्टी नेताओं ने प्रस्ताव पारित कर उन्हें नेता विपक्ष के लिए नामांकित कर दिया है परंतु उन्होंने अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। कांग्रेस को फैजाबाद के भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह समेत उन भाजपाइयों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने बीच चुनाव में 400 पार वाले दावे पर उन्हें एक हथियार दे दिया। और विपक्ष ने इसे संविधान को खतरे से जोड़ कर एक नैरेटिव सेट कर दिया। फिर विपक्ष इसके जरिए दलित वर्ग को डराने में कामयाब हो गया। देखते हैं कि अब उपचुनाव में ये नेगेटिव कितना काम करता है।

प्रियंका गांधी के वायनाड से प्रत्याशी बनाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का कहना है कि प्रियंका गांधी यूपी से भागकर वायनाड गई हैं। उनमें अगर हिम्मत है तो यूपी में किसी सीट पर लड़कर दिखाएं। असल में गांधी परिवार में उपचुनाव का सामना करने की हिम्मत ही नहीं है। क्योंकि झूठ एक बार चलता है बार-बार नहीं। दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक का कहना है कि अगर प्रियंका गलती से भी वायनाड से जीत जाती हैं तो लोकसभा में भाई-बहन में इस बात की प्रतिस्पर्धा होगी कि कौन ज्यादा नाकारा है।

राहुल जी ने तो यूपी वालों का दिल तोड़ दिया : प्रियंका गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वाराणसी में हरा सकने की क्षमता रखने का दावा करने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यूपी वालों का दिल तोड़ दिया। लगा था कि एक बार फिर यूपी में किसी सीट पर तगड़ी चुनावी लड़ाई देखने को मिलेगी। उम्मीद थी राहुल गांधी अपने दावे को साबित करने के लिए रायबरेली सीट से इस्तीफा देंगे और वहां से प्रियंका को लड़ाया जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। उनका दावा थोथा निकला। अर्थात यह राहुल गांधी का बड़बोलापन था या फिर छोटी जीत मिलने का उन्माद। जो भी हो आपने यूपी वालों का दिल तोड़ दिया राहुल जी। यूपी वाले कब से आस लगाए बैठे थे कि प्रियंका यूपी के किसी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी और पार्टी को मजबूती प्रदान करेंगी। इस तरह से लड़की हूं, लड़ सकती हूं, के उनके नारे की भी सार्थकता सिद्ध हो जाती। पर बहुत दुख हुआ राहुल जी। शायद आपको उपचुनाव में हार जाने का डर था इसलिए रिस्क नहीं लिया। पर नुकसान तो चुनाव लवर लोगों का हुआ। अब इसकी भरपाई उन्हें विधानसभा चुनाव या अगले लोकसभा चुनाव में करनी ही पड़ेगी।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक