जींस पर सियासत जान पर सांसत

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पता नहीं क्यों इस शब्द जींस में एक ऐसा जादू है कि जब भी इसका नाम किसी ने लेने की कोशिश किया है तो उसे अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। कौन नहीं जानता है कि जींस अनुवांशिकी का एक आधार स्तंभ है। जींस का वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण यह किसी भी व्यक्ति को बतलाता है कि किसी भी मनुष्य में पाए जाने वाले शारीरिक विशेषताओं को इसी माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाया जाता है।

यह जींस मानव शरीर में उपस्थित गुणसूत्र या क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं। भला पहली बार जब इस जींस की व्याख्या जर्मन वैज्ञानिक ग्रेगर जॉन मेंडल ने 1865 में किया था तो उन्हें कहा यह मालूम था कि जींस शब्द को जीवन का आधार बताने वाली बात पर उन्हें अंत में फांसी लगानी पड़ेगी और यही हुआ ग्रेगर जॉन मेंडल द्वारा जींस को ही सब कुछ बताए जाने के कारण चर्च का इतना विरोध हुआ कि अंत में अनुवांशिकी के जन्मदाता ग्रेगर जॉन मेंडल को फांसी लगानी पड़ी।

यही नहीं जींस जींस की बात करके एक व्यक्ति को फांसी लगानी पड़ी थी। उसी जींस के सिद्धांत पर बाद में 1899 के बाद की दुनिया ही घूमने लगी लेकिन भला इटली के टयूरिंग नामक स्थान पर 1600 में किसने सोचा था कि यह जींस शब्द दुनिया में हाहाकार मचा देगा। निश्चित रूप से सबसे पहली बार इटली में इस शब्द का प्रयोग हुआ और वही से यह शब्द जब अट्ठारह सौ सत्तर में strats नामक एक जर्मन व्यक्ति द्वारा प्रचार मैं लाया गया और उसने एक ऐसा कपड़ा बनाया जो किसी भी स्थिति में काम करने के लिए उपयोगी साबित हो।

इसीलिए उसने इस कपड़े को प्रचारित करने के लिए अपना नाम तक बदलकर Levi रख लिया और आज भला कौन नहीं जानता कि जींस का यह ब्रांड कितना बड़ा ब्रांड है। वह बात अलग है कि पहले फटे पुराने कपड़े को देखकर हम लोग किसी व्यक्ति की आर्थिकी का आभास पा जाते थे और उसे गरीब समझ बैठते थे पर अब समय बदल चुका है विमर्श बदल गया है। अब जो जितना ज्यादा फटा कपड़ा पहने वह उतना ज्यादा अमीर है इसलिए फटी जींस समाज में प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई है। वह बात अलग है कि इससे गरीबों को कठिनाई हो रही है क्योंकि वह समझ नहीं पा रहे हैं कि वह समाज के लोगों को किस तरह इस बात का अनुभव कराएं कि वह गरीब है क्योंकि फटे कपड़े पहनने पर लोगों की सोच अमीरी गरीबी के लिए बदल गई है।

यही कारण है कि कुछ लोग तो फटी जींस का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इससे सामाजिक समरसता में कमी आ रही है और कमी आने का कारण भी यही है कि अब कोई भी व्यक्ति नाभिक के अंदर स्थित प्रोटॉन न्यूट्रॉन के सहारे इलेक्ट्रॉन बन कर जीवन में नहीं रहना चाहता। हर इलेक्ट्रान अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहता है। भले ही किसी पदार्थ का अस्तित्व रह जाए और वैज्ञानिक स्तर पर इलेक्ट्रॉनों की इसी विरोध में समाज ही नहीं पूरी पृथ्वी पर अस्तित्व और अस्तित्ववाद का खतरा पैदा कर दिया है। जिसको लेकर बहुत से लोग चिंतित हो रहे जो चाहते हैं कि सभी इलेक्ट्रॉन उसी तरह से किसी नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाए जिस तरह से नाभि के अंदर स्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन चाहते हैं लेकिन इस विज्ञान को ना मानने की लोगों ने जिद ठान लिया है क्योंकि उनका मानना है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तैसी…।

इसलिए उनका या कहना है कि अगर फटी जींस को देखकर किसी में गलत ख्याल आ रहे हैं तो इसका मतलब उसकी मानसिकता गंदी है और यह तो अच्छी बात है कि फटी जींस मानसिकता को जानने का प्रतीक बन रहा है। कम से कम फटी जींस पहनने के बाद यदि सामाजिक अव्यवस्था पैदा होती है लोगों के मन में कुरूपता आती है वासना जन्म लेती है तो बिना प्रयोगशाला में प्रयोग किए या सामाजिक विज्ञान में कोई बहुत बड़ा सूद प्रोजेक्ट किए हुए बड़े आसानी से इस बात को स्थापित किया जा सकता है कि फटी जींस पहनने से लोगों का जीवन और व्यवहार सामान्य नहीं रह जाता है।

वैसे भी बहुत पहले पीआजे ने नैतिकता का सिद्धांत दिया था और उन्होंने कहा था कि बच्चा 5 वर्ष की आयु तक जो कुछ भी देख लेता है सीख लेता है वह अपने पूरे जीवन नहीं भूलता है। अब जब यह बात स्थापित है तो इस बात में कोई संशय रह ही नहीं जाता है कि जब आज का बच्चा पैदा होने के बाद से 5 साल तक सेंसर बोर्ड की धज्जियां उड़ते हुए हर वह दृश्य अपने कमरे पर अपने मोबाइल पर देखता है सुनता है जो कभी गोपनीय विषय हुआ करते थे तो पियाजे के अनुसार तो 5 साल की उम्र में ही बच्चा वह सब सीख लेता है जो पूरे जीवन उसके कार्य में सभाओं में दिखाई देता है।

कहा भी गया है कि चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन अब जब बच्चा आदमी का बाप है आज के दौर में बच्चे के द्वारा फटी जींस देखकर यदि कोई अव्यवस्था पैदा की जा रही है तो उसको क्यों ना सच मान लिया जाए और मानना भी जरूरी है आखिर. मामला फटी जींस का है वैसे भी कहा गया है कि फटे में टांग नहीं अड़ाना चाहिए। अब अगर आप किसी के फटे में टांग अड़ाएंगे तो दुश्मनी होना तो पक्का है और यहां पर आप कांगड़ा रहे हैं लिंग भेद के आधार पर या फटी जींस केवल लड़कियां पहनती हैं लड़के नहीं पहनते हैं।

…और जब देश की सर्वोच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 377 में संशोधन कर दिया है उस को मान्यता प्रदान कर दिया है.. गे संस्कृति को मान्यता मिल चुकी है तो फिर फटी जींस से खतरा सिर्फ महिलाओं को लेकर क्यों यह तो महिलाओं को दबाने जैसी बात है और महिलाओं को लेकर इतनी परेशानी क्यों जबकि उन्हें भगवान ने छठी इंद्री दे रखी है वह किसी के देखने भर से आ समझ लेती हैं कि उसके देखने का दृष्टिकोण क्या है तो वह फटी जींस पहने या जींस के नाम पर कुछ ना पहने उन्हें उस अनुपम वरदान से सब पता चल ही जाएगा।

फिर ऐसे में किसी भी व्यक्ति को इस बात पर हाय तौबा करने से क्या मिल रहा है कि फटी जींस पहनना संस्कृति के विरुद्ध है और संस्कृति कहते किसको हैं क्योंकि भारत जैसे देश में कई ऐसी संस्कृति या है जिसे जनजातीय संस्कृति कहते हैं जहां पर महिलाएं ऊपर कोई कपड़ा पहनती तक नहीं है लेकिन क्या कभी आपने समाचार पत्रों में सुना की महिलाओं का शोषण हो रहा हो वहां पर या महिलाएं परेशान हो।

इससे साफ जाहिर है कि सिर्फ जोड़-तोड़ की राजनीति के लिए फटी जींस को और फाड़ने की कोशिश की जा रही है जो नहीं होना चाहिए। आखिर भगवान ने सब को जीने का अवसर दिया है जो जैसे चाहे वह जिए न जाने क्यों हम सभी लोग महिलाओं के पीछे पड़े रहते हैं। पृथ्वी पर जितने भी जीव जंतु पाए जाते हैं उनमें सभी में सबसे ज्यादा स्वतंत्र रूप से विचरण करना और संबंधों को निर्धारित करना मादा पर निर्भर करता है वह बात अलग है कि एक बार संबंध बना लेने के बाद माझा को उस जानवर या जंतु विशेष का ही अधिकार स्वीकार करना पड़ता है लेकिन आप तो मानो हैं आप जानवर के संस्कृति को कैसे स्वीकार कर सकते हैं जबकि वहां पर बिना किसी स्वयंबर और शादी के बाद आया निर्धारित करती है कि वह किस नर के साथ रहना पसंद करेगी लेकिन यदि मानव में जानवर की संस्कृति को मान लिया गया तो जानवर और मनुष्य में फर्क ही क्या रह जाएगा।

इसलिए सबसे जरूरी है कि बार-बार मानव खासतौर से पुरुष महिलाओं के खाना-पीना कपड़ा पहनना पर उंगली उठा कर इस बात को स्थापित करता रहे कि पुरुष से श्रेष्ठ नारी नहीं है वैसे तो नारी को देवी कहा गया है और चाहे बुद्धि और धन हो शक्ति और सभी के प्रतीक की देवियां ही हमारे जीवन को संचालित कर रही हैं। हम सृजन के अंगों को प्रतीक के रूप में पूजते भी हैं लेकिन यह सब बातें दर्शन की है। वास्तविकता तो यह है कि हम महिला को सिर्फ एक हाड मास का ऐसा पुतला समझते हैं। जिसकी जान पुरुषों के मुट्ठी में होनी चाहिए वह बात अलग है कि यदि फटी जींस को पहनने से संस्कृति का विनाश होता है तो देश में विश्व में ना जाने कितनी महिलाओं के पास पहनने को कपड़ा नहीं है।

ऐसी स्थिति में संस्कृति का विनाश वहां क्यों नहीं होता है यह सोचने का विषय है यह बात अलग है कि कभी फटे हुए कपड़े के लिए सुई धागे की प्रासंगिकता होती थी। सिलाई की मशीन की सार्थकता होती थी और गरीब को बिना कुछ कहे यह बताने की जरूरत नहीं पड़ती थी कि वह गरीब है अब इन सब बातों का कोई महत्व नहीं रह गया क्योंकि युग वैज्ञानिक हो गया है समानता का युग चल रहा है और समानता की स्थापना इससे ज्यादा बेहतर तरीके से नहीं हो सकती है कि हम फटे कपड़े पहनकर घूमे वह बात अलग है कि जींस के फटे होने के पीछे या दर्शन छिपा था कि यहां फैक्ट्रियों में काम करने वालों का कपड़ा हुआ करता था जो कठोर काम करते थे और उनके कपड़े काम करते-करते फटते रहते थे लेकिन दूसरे जोड़ी जींस को एक निर्धारित समय के बाद ही मिलना सुनिश्चित होता था।

इसलिए वह फटी जींस पहन कर काम करते थे। धीरे-धीरे यह व्यवस्था ही फैशन बन गई लेकिन फैशन पर हाय तौबा करने का कोई मतलब नहीं है जबकि हम विश्व सुंदरी मिस इंडिया कंटेस्ट कराने लगे हैं। यही नहीं पूरे विश्व में महिलाएं कपड़ों को लेकर आंदोलन कर रही हैं। वर्तमान में अधोवस्त्र ना पहनने के लिए आंदोलन चल रहा है। यही नहीं अपने को पुरुषों के बराबर मनवाने के लिए 1929 में महिलाओं ने बिना वस्त्र पहने अमेरिका की सड़कों पर परेड की थी। यह सब बातें इस बात को स्थापित करने के लिए काफी है कि महिलाओं ने बार-बार इस बात को स्थापित किया है कि पुरुष उनको अपने से कम ना समझे और जिस तरह से वह खुद जीता है उसी तरह से महिला को जीने का अवसर प्रदान करें।

कुल मिलाकर इसीलिए फटी जींस पहनने पर पुरुषों के इतना हाय तोबा नहीं है जितना महिलाओं की है जिस दिन से यह बात उसी की फटी जींस पहनने से संस्कृति को नुकसान हो रहा है उस दिन से सोशल मीडिया पर ना जाने कितनी अभिनेत्रियों सेलिब्रिटी मंत्री संत्री की बेटियों बहुओं की फोटो में लग गई जो फटी जींस पहनी थी और यह सारे लोग वही थे जो यह स्थापित करने में लगे थे की फटी जींस पहनने वाली बात होती है। अब यदि या बात होती है और इस बात पर बात करना फर्जी है तो फिर जिसने भी इस वक्तव्य को दिया था उसको इतना महत्व क्यों दिया गया क्या यह माना जा रहा है कि इस देश को राजनीति ही कर रही है या राजनेता ही यह निर्धारित करते हैं कि व्यक्ति को क्या पहनना चाहिए क्या नहीं।

यदि ऐसा है तो क्या फिल्मों में आया हुआ नंगापन सरकारों के दिशा निर्देश पर शुरू हुआ क्या सेंसर बोर्ड द्वारा इस तरह के दृश्यों को अनुमति सरकार के द्वारा दी जाने लगी जबकि यह बात सत्य जान नहीं पड़ती है क्योंकि फिल्म निर्माता बार बार छींक छींक कर कहते हैं कि जनता और कहानी की मांग पर इस तरह के दृश्य रखे जाते हैं। ऐसी स्थिति में या बार फिर साफ हो जाती है कि किसी भी राजनेता अभिनेता द्वारा कही गई बात का कोई मतलब ही नहीं है। सब कुछ जनता है जनता जनार्दन है यदि जनता चाहेगी तो कोई बात इस दुनिया में पल्लवित हो पाएगी कि नहीं चाहेगी तो वह बात पल्लवित नहीं हो सकती है।

तो सोचना यह जनता को पड़ेगा की फटी जींस पहनने से क्या कोई नुकसान है या नहीं है बल्कि कम कपड़े पहनने से या फटा कपड़ा पहनने से दो बातों का फायदा है एक तो कम कपड़ा पहनने से ज्यादा कपड़ों का निर्माण नहीं करना पड़ेगा। वह पैसा दूसरे का मुंह में लग सकता है। दूसरा फटी हुई जींस पहनने से बार-बार दर्जी के पास नहीं दौड़ना पड़ेगा। वह बात अलग है कि हम आत्मनिर्भर भारत बनाना चाहते हैं और ऐसी स्थिति में दर्जी के व्यवसाय को खत्म कर देना ठीक नहीं है क्योंकि यदि कामगारों का काम ही हम लोगों ने छीन लिया तो फिर देश का हर व्यक्ति भूखा हो जाएगा गरीब और गरीब हो जाएगा।

इसलिए जरूरी भी है कि फटी जींस को सिलने वाले दर्जी होने चाहिए लेकिन हद तो इस बात की हो गई है कि दरजी खुद ही अब कपड़ा सिलने में इस बात का ध्यान रखते हैं कि कपड़े में कहां-कहां पर कटिंग करके उसे फटा हुआ दिखाया जा सकता है क्योंकि वह मानते हैं कि उनके दुकान पर लोग कपड़ा सिलवाने तभी आएंगे जब वह आधुनिकता वाले कपड़े से लेंगे और आधुनिकता के कपड़े सिलने के लिए उन्हें वर्तमान के फैशन को जानना होगा वर्तमान के फैशन का कथन है कि कपड़ा का आभास होना चाहिए।

वास्तव में कपड़ा व्यक्ति पहने हैं या नहीं पहने हैं इस बात को इतनी मान्यता या तूल नहीं दिया जाना चाहिए जितना व्यक्ति को सिर्फ आभास होना चाहिए कि उसने कपड़ा पहन रखा है। अब उसमें यदि कपड़ा कुछ ज्यादा फटा हुआ दिखाई दे रहा है तो यह आपकी आंख का दोष है कि आप व्यक्ति से ज्यादा कपड़े को देख रहे हैं। आपको अर्जुन की तरह इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि आप क्या देखना चाहते हैं। अगर आपको फटी जींस ज्यादा दिखाई दे रही है तो यह दुख का विषय है कि आपको आदमी नहीं दिखाई दे रहा है। आपको सबसे पहले आदमी दिखाई देना चाहिए। फटी जींस से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपको दिखाई क्या दे रहा है क्योंकि आपको अर्जुन बनना है आप को सर्वश्रेष्ठ बनना है और धनुर्धर सर्वश्रेष्ट बनने की सबसे बड़ी पहचान है कि आप में एकाग्रता होनी चाहिए और उस एकाग्रता के लिए आवश्यक है कि आपकी आंखें तीव्र होनी चाहिए अफवाह विषय है।

लगता है कि यौन उत्पीड़न के कानून बन गए हैं और किसी व्यक्ति को घूरना और कुछ निश्चित समय तक देखना भी अपराध है तो बात साफ हो गई कि एकाग्रता को समय के साथ जोड़कर आपको अपना जीवन चलाना है। आपको यह मालूम होना चाहिए कि आपको किसी को कितनी देर देखना है और यदि आपको इस बात का ज्ञान नहीं है तो यह आपकी कमी है क्योंकि विद्या और ज्ञान से क्या नहीं प्राप्त किया जा सकता है। अंधे होते हुए भी पृथ्वीराज चौहान को सब कुछ दिखाई दे रहा था और उन्होंने मोहम्मद गौरी को मार भी दिया था। आप चाहे तो बिना आंख के भी सब कुछ देख सकते हैं। फटी जींस तो बहुत छोटी सी बात है और इसीलिए फटी जींस पर राजनीति का कोई मतलब नहीं है।

खासतौर से तब जब जींस के कारण ग्रेगर जॉन मेंडल को फांसी लगा लेनी पड़ी थी और जींस के कारण ही भारत जैसे देश में एक आंदोलन खड़ा हो गया है। महिला आंवला नहीं है महिला सबला है और वह जब चाहे लेगी तो इस बात को बताने में कभी भी पीछे नहीं हटेगी कि उसके गर्भ में ही एक पुरुष मांस के लोथोड़े से जीता जागता बच्चा बनता है। इसीलिए कोई भी बच्चा पृथ्वी पर किसी महिला की हैसियत से ऊपर नहीं है। जब आप इस दर्शन को लेकर इस दुनिया में आते हैं कि आपको मां के गर्भ से इस दुनिया में आना है तो यदि आपको फटी जींस ज्यादा दिखाई दे रही है तो यह गर्भ की संस्कृति में एक खतरे का संकेत है।

वैसे तो एक समय बाद माँ भी अपने बच्चे को दूध पिलाना छोड़ देती है। आंचल को अपने बच्चे के सामने ही ढक कर रखती है। ऐसे में यह साफ है की दुनिया में दृष्टिकोण और दृष्टि के बारे में सब कुछ सब कुछ पता है। फिर भी कांटो के बीच रहकर ही गुलाब बनने की कला एक महिला जानती है और इन कांटों को स्वीकार करके यदि वह समाज में निकल रही है तो हमें भी गुलाब की संस्कृति को अपनाना होगा। फटी जींस में मां है.. बहन है.. इस बात को अपनाना होगा और आप अपनाएंगे भी क्यों नहीं। आखिर आप चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं कि आदेश भाई बहनों का है.. मां बेटियों का है.. अब सोचना आपको है क्योंकि मां बेटी आप मानते हैं या नहीं..। यह बात आपको अपने घर से सोचना शुरू करना पड़ेगा। तभी फटी जींस को एक नया आयाम मिलेगा और फटे में टांग अड़ाने से दुनिया को निजात मिलेगी। वैसे मैंने भी एक फटी जींस खरीद लिया है।

डॉ आलोक चांटिया