नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में चिराग तले अंधेरा वाली कहानी खत्म हुई और दिल्ली में लगभग 26-27 वर्षों बाद भाजपा का जीत हो गई। इस बार के विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव का पैटर्न रिपीट हुआ और जनता ने भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा जताते हुए दिल्ली की बागडोर उसे सौंप दी है। यह जीत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उन समर्पित कार्यकर्ताओं की भी है जिन्होंने चुनाव शुरू होने के दो-तीन माह पहले से ही झुग्गी बस्तियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, रात्रि विश्राम किया और सहभोज कर वोटरों को मोटिवेट किया। इस बार महिलाओं और मध्यम वर्ग ने भी खुलकर भाजपा का साथ दिया। जहां तक बात मुसलमान वोटरों की है तो मुसलमान वोटर इस बार आम आदमी पार्टी के साथ एकतरफा नहीं गये, उसमें बटवारा हुआ। इसी का परिणाम हुआ कि भाजपा मुस्लिम बहुल सीटों पर भी जीत गयी। महिला वोटरों ने भी इस बार केजरीवाल पर कम और मोदी की गारंटी पर अधिक भरोसा किया। इन सबसे अलग भाजपा की इस जीत का सबसे बड़ा फैक्टर इस बार का केंद्रीय बजट रहा। और गेम चेंजर साबित हुआ। 12,75000 तक की इनकम को टैक्स फ्री करके वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम वर्ग का दिल जीत लिया। उसने भाजपा की झोली वोटों से भर दी। परिणाम स्वरूप भाजपा ने दिल्ली की 70 में से 48 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत प्राप्त कर लिया। इस प्रकार भाजपा दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गयी।
इस बार दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए 699 प्रत्याशी मैदान में थे। भाजपा ने इसमें से 48 सीटें जीत ली हैं। इस चुनाव को प्रभावित करने वाली सबसे प्रमुख बात यह रही कि मतदान के 4 दिन पहले आए केंद्रीय बजट में देश के आयकर दाताओं को बड़ी राहत देते हुए इस बार ₹1275000 तक की आय को कर मुक्त कर दिया गया। यह मध्यम वर्ग के लिए बहुत बड़ी राहत थी। इसके चलते अंतिम समय में माहौल पलट गया और बीजेपी आगे आ गई। चुनाव के आखिरी वक्त तक भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक का जवाब आप नहीं ढूंढ पाई। नतीजा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल स्वयं और उनकी कैबिनेट के अधिकतर मंत्री भी चुनाव हार गए। यहां तक की उनके घोषित डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी चुनाव हार गए। वैसे उन्होंने इस बार अपनी पटपड़गंज सीट छोड़कर जंगपुरा से चुनाव लड़ा था लेकिन सीट बदलना भी काम नहीं आया। सिर्फ आतिशी और गोपाल राय ही अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। आतिशी को जहां रमेश बिधूड़ी के बड़बोलेपन ने सिंपैथी का लाभ दिया वहीं गोपाल राय को उनके पूर्वांचल के होने का लाभ मिला। चुनाव का ट्रेंड देखें तो पूर्वांचली बहुल सीटों पर अधिकतर पूर्वांचली प्रत्याशी जीते हैं। यह शायद केजरीवाल द्वारा पूर्वांचल के वोटरों को फर्जी कहे जाने से उपजा गुस्सा है। इस चुनाव की खास बात यह भी रही कि भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने वाले आम आदमी पार्टी के सभी नेता चुनाव हार गए हैं। अर्थात जनता ने दागियों को पसंद नहीं किया।
इसके अलावा केजरीवाल द्वारा जनता से किए गए झूठे वादे भी उनकी हार का कारण बने। वे महिलाओं से किए गए वादे के अनुरूप उन्हें एक हजार रुपए तो दे ही नहीं पाए पर चुनाव के पूर्व 2100 रुपए प्रतिमाह देने का नया वादा ज़रूर कर दिए। हालांकि चुनाव के ठीक पहले उन्होंने पुरानी योजना की पहली किस्त जारी कर दी किंतु जनता ने उस पर विश्वास नहीं किया। इस मामले में जनता ने मोदी की गारंटी पर भरोसा किया।
इसके अलावा दिल्ली में यमुना में गंदगी और सड़कों की बदहाली पर अरविंद केजरीवाल का कबूलनामा भी उनकी हार का कारण बना। दिल्ली के लोगों ने मान लिया कि जो व्यक्ति 11 साल में इस काम को नहीं कर पाया तो उस पर अब विश्वास नहीं किया जा सकता है। ऐसे में वोटरों ने आखिरी समय में मूड बदल लिया और भाजपा को जिताया। भाजपा के साथ प्लस पॉइंट यह भी रहा कि उसकी केंद्र में भी सरकार है और राज्य में भी हो जाएगी तो कोई भी योजना अटकने की आशंका नहीं है। अरविंद केजरीवाल पूरे 11 साल यही शिकायत करते रहे कि उपराज्यपाल उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं। ऐसे में वोटरों को लगा कि इस बार ऐसी सरकार बने जिसे उपराज्यपाल और केंद्र सरकार का भी समर्थन मिले। यानी दिल्ली की जनता ने इस बार डबल इंजन की सरकार बनाकर भाजपा के लिए भी चुनौती खड़ी की है कि अब काम करके दिखाओ।
इसके अलावा आरोप है कि केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल सीटों पर इस बार प्रचार नहीं किया। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने ये मान लिया था ये सीटें तो हम भाजपा के खिलाफ जीत ही जाएंगे। उनका मानना था कि भाजपा के खिलाफ मुस्लिम बिरादरी हमें ही जिताएगी। इस बात का भी नुकसान आप को हुआ। मुसलमान इस बात को लेकर नाराज रहे कि अरविंद केजरीवाल उनके इलाके में प्रचार करने नहीं आए । इसका जिक्र आल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने अपने वीडियो में भी किया है। मौलाना उसमें खुद द्वारा भाजपा को वोट देने की कारण बता रहे थे। मौलाना रशीदी का आरोप था कि केजरीवाल ने इमामों को 17 महीने का वेतन नहीं दिया। जब वे मिलने के लिए उनके पास गए तो मिलने का समय भी नहीं दिया। इसीलिए नाराज होकर उन्होंने भाजपा को वोट दिया। भाजपा ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। इसके चलते मुसलमान बिरादरी काफी हद तक भाजपा के समर्थन में आ गई। परिणाम यह रहा कि कई मुस्लिम बहुत सीटों पर भाजपा चुनाव जीत गई। इसके अलावा अरविंद केजरीवाल पर शराब घोटाला, शीश महल घोटाला जैसे आरोप भारी पड़ गए। केजरीवाल अपने ऊपर लगे इन आरोपों का कोई माकूल जवाब नहीं दे पाए। वे सिर्फ अपनी मुफ्त की योजनाओं के खत्म हो जाने के डर से वोटरों को डराते रहे, जो काम नहीं आया।
इसके अलावा पुजारियों और ग्रंथियां को प्रतिमाह 18000 रुपए मानदेय देने का केजरीवाल का दांव भी उल्टा पड़ गया। इस मुद्दे पर भाजपा ने उन्हें चुनावी हिंदू करार दिया। इसके चलते हिंदुओं और सिखों का वोट तो उन्हें मिला नहीं किन्तु इमाम उनसे ज़रूर नाराज हो गए। इस मामले में पुजारी और ग्रंथी भी उन पर विश्वास नहीं कर पाए। मौलाना साजिद रशीदी ने इमामों के बकाया वेतन को लेकर कई बार अरविंद केजरीवाल से मिलने की भी कोशिश की किंतु मुलाकात नहीं हुई। ऐसे में यहां दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम वाली कहावत चरितार्थ हुई। उन पर न इमाम विश्वास कर पाए और न ही पुजारियों और ग्रंथियों का साथ ही मिल पाया।
इसके अलावा दिल्ली की जनता ने पिछले 11 सालों में केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद को देखकर एक बात समझ लिया था कि दिल्ली में उसी पार्टी की सरकार होनी चाहिए जिसकी केंद्र में है। और चूंकि लगता यही है कि अगले 5 साल तक तो भाजपा की ही सरकार केंद्र में रहने वाली है। ऐसे में इसलिए भी दिल्ली की जनता ने इस बार भाजपा को मौका दिया ताकि कोई विवाद न हो और किसी को यह कहने का मौका न मिले कि केंद्र सरकार साथ नहीं दे रहा है या राज्य सरकार साथ नहीं दे रही है। इसके अलावा अरविंद केजरीवाल पर साथियों की नाराजगी भी भारी पड़ गयी। उनकी सरकार के मंत्री रहे कैलाश गहलोत, राजकुमार चौहान तथा राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल समेत कई बड़े नेताओं के अलावा अंतिम समय में पार्टी के आठ विधायकों का पार्टी छोड़ना भारी पड़ गया। करावलनगर से चुने गए कपिल मिश्रा तो पहले से ही अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलकर भाजपा में शामिल हो गए थे।
केजरीवाल के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा यह भी बना कि महिला सम्मान योजना के लिए चुनाव के ठीक पहले भरवाए गए फार्म कुछ दिन बाद ही कबाड़ में फेंके पाए गए थे। भाजपा तथा कांग्रेस ने इस मामले को बहुत जोर-शोर से उठाया था। दोनों पार्टियों ने उस फार्म में भरी गई जानकारी के मिसयूज होने की बात जोरदारी से उठाई थी। जिससे महिलाओं में गलत संदेश चला गया। इस धटना से भी अरविंद केजरीवाल और आप की छवि को बहुत धक्का लगा था। असल में आप ने दिल्ली में महिलाओं के लिए ₹2100 की सम्मान राशि देने की घोषणा की थी। दरअसल यह केजरीवाल द्वारा पूर्व में घोषित 1000 रुपए प्रतिमाह देने की पूर्व की योजना का विस्तार था। और इसका चुनावी लाभ लेने के लिए अभियान चला कर जोर शोर से फार्म भरवाए गए। ये फार्म जब कूड़े में मिले तो इससे निगेटिव नैरेटिव सेट हुआ। इसके अलावा पूर्व में घोषित 1000 रुपए देने की योजना पर भी काम नहीं हुआ। चुनाव की घोषणा के ठीक पहले सिर्फ एक किस्त जारी हो पाई। इसके अलावा भाजपा का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक आयकर में 1275000 तक की आय में छूट देने का रहा। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली की आबादी में 67 फ़ीसदी मिडिल क्लास के लोग हैं। जिन्होंने इस घोषणा के बाद भाजपा का साथ दिया।
मुसलमानों की नाराजगी भारी पड़ी केजरीवाल पर : ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा था कि उन्होंने इस बार भाजपा को वोट दिया है, क्योंकि उनका कांग्रेस और आप के झूठ से विश्वास उठ चुका है। उनका दावा है कि मुस्लिम कौम ने भी इस बार वोटिंग पैटर्न चेंज किया है और बहुतेरे मुसलमानों ने भाजपा की ओर रुख किया है। उनका कहना है कि हमने बाकी सभी लोगों को देख लिया है, अब भाजपा पर भी विश्वास करके देखें। मौलाना साजिद रशीदी केजरीवाल सरकार से इस बात से भी नाराज हैं कि उनके नेतृत्व में इमाम अपने बकाया वेतन के लिए दो-तीन बार केजरीवाल से मिलने गए तो उन्होंने मिलने का समय नहीं दिया। इसके अलावा उनका कहना है कि वैसे भी मुसलमानों पर यह आरोप लगता रहा है कि वे भाजपा को हराने के लिए वोट करते हैं। इसलिए मैंने स्वयं इस मिथक को तोड़ने और भाजपा को जिताने के लिए इस बार भाजपा को वोट दिया। मौलाना का कहना है कि मैने यह मिथक भी तोड़ने की कोशिश की है कि बीजेपी मुसलमान के लिए अछूत है, जबकि ऐसा नहीं है। काफी मुसलमान बीजेपी को सपोर्ट करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं वैसे भी बीजेपी का विरोधी नहीं हूं। मैं उसकी कुछ नीतियों का विरोधी हूं। इस बाबत मौलाना हाफिज गुलाम सरवर का कहना है कि हम तो शुरू से ही इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के आलोचक रहे हैं। कई बार टीवी चैनलों पर जब मौलाना साजिद रशीदी भाजपा की आलोचना करते थे तो हम भाजपा के पक्ष में खड़े होते थे। उन्होंने कहा कि वैसे हमने कभी भाजपा को वोट नहीं दिया। हमने हमेशा अपनी मर्जी से और पसंद के प्रत्याशी को वोट दिया है। उन्होंने कहा कि मौलाना साजिद रशीदी का मन अगर बदल रहा है तो इसका मतलब यही है कि माहौल अब पहले जैसा नहीं रह गया है। मुसलमान अब किसी पार्टी का वोट बैंक होकर नहीं रहना चाहता है। और यह बड़े बदलाव का संकेत है। दोनों मौलानाओं की बात पर भाजपा प्रवक्ता राधिका खेड़ा का कहना है कि मौलाना साजिद रशीदी की बातों से स्पष्ट है कि मुसलमान अब धोखे की राजनीति से ऊब चुके हैं। मुसलमान भी अब मुख्य धारा में शामिल होकर सार्थक राजनीति करना चाहते हैं। इसलिए उनका झुकाव अब धीरे-धीरे भाजपा की तरफ हो रहा है। राधिका खेड़ा का कहना है कि मुसलमान मोदी सरकार की नीतियों से संतुष्ट भी हैं। क्योंकि मोदी सरकार ने सरकारी सुविधाएं देने में किसी धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया है।
परिणामों से कांग्रेस का भी राजनीतिक स्वार्थ हुआ पूरा : इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी को बुरी तरह डैमेज किया है। उसने मुस्लिम मतों में बंटवारा करके भाजपा की राह आसान कर दी। दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनकर आए अरविंद केजरीवाल बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथी के रूप में भी दिखे। उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा। इससे उनकी साख को धक्का लगा पर कांग्रेस अपनी चाल में कामयाब हो गयी।हालांकि इसके बावजूद जनता ने दोनों के गठबंधन को नकार दिया और भाजपा को जिताया। लेकिन जनता को यह बात समझ में आ गई कि अपने स्वार्थ के लिए केजरीवाल किसी से भी समझौता कर सकते हैं। और यह भी उनके लिए भारी पड़ा। उल्लेखनीय है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें कम पड़ने पर केजरीवाल ने सरकार बनाने के लिए उसी कांग्रेस का साथ लिया था जिसके खिलाफ चुनाव लड़कर वे सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचे थे। हालांकि यह मेल बहुत दिनों तक चला नहीं और उन्होंने गठबंधन तोड़ कर इसे अपनी एक राजनीतिक भूल कहा था। और वही केजरीवाल फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। जनता ने इसको बारीकी से नोट किया और विधानसभा चुनाव में सबक सिखाया। उधर कांग्रेस ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को हराकर अपनी राजनीतिक जमीन तलाशी है। अब उसे दिल्ली में राजनीति के लिए जमीन बनाने में आसानी होगी। सूत्रों का कहना है कि उसने अरविंद केजरीवाल को राज्य की सत्ता से उतार अपना फायदा किया है। सूत्रों का कहना है कि पैसे भी कांग्रेस इस बार चुनाव सरकार बनाने के लिए नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल को सरकार से हटाने के लिए लड़ रही थी। राहुल गांधी का यह सपना अब पूरा हो गया। कांग्रेस नेता और पार्टी के कोषाध्यक्ष अजय माकन का कहना है कि हमने 2013 में आम आदमी पार्टी की सरकार को समर्थन देकर जो गलती की उसने हमारा बहुत नुकसान किया। हम राजनीतिक रूप से दिल्ली की अपनी जमीन खोते चले गए। कांग्रेस प्रवक्ता का पवन खेड़ा का कहना है कि आम आदमी पार्टी के पास कोई विचारधारा ही नहीं है तो वह विचारधारा की राजनीति की बात क्या करेगी। उन्होंने कहा कि हालांकि हम भाजपा के खिलाफ हैं लेकिन उसकी एक बात के लिए तारीफ करते हैं कि उसके पास विचारधारा तो है। आप के पास तो विचारधारा ही नहीं है।
आप के प्रत्याशियों को तोड़ने का आरोप भी लगा : मतगणना के पूर्व आप के सांसद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा ने हमारे 7-8 कैंडिडेट को अप्रोच किया है कि चुनाव जीतने के बाद भाजपा को सपोर्ट करें। उनका आरोप था कि हर प्रत्याशी को 15 करोड रुपए देने का ऑफर भी दिया या गया। उन्होंने कहा कि समय आने पर इसका सबूत भी दे दूंगा। यही आरोप लगाते हुए अरविंद केजरीवाल ने भी एक्स पर पोस्ट किया कि भाजपा ने उसके 16 प्रत्याशियों से अप्रोच किया। उन्हें लालच दिया गया कि वे आप छोड़कर भाजपा में आ जाएं, उन्हें मंत्री बनाया जाएगा और 15-15 करोड़ रुपए भी दिए जाएंगे। इस आरोप पर भाजपा नेता रमेश विधूड़ी ने कहा कि संजय सिंह हार की हताशा से परेशान हैं। इसलिए इस तरह की बातें कर रहे हैं। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने इसकी लिखित शिकायत उप राज्यपाल से की तो उपराज्यपाल ने तुरंत इस पर एसीबी को आदेश दिया कि जांच की जाए। एसीपी ने भी तुरंत अरविंद केजरीवाल के घर पहुंच कर उनका बयान लेने की कोशिश की। लेकिन वहां पर तैनात वकीलों की फौज में अरविंद केजरीवाल से मिलने से रोक दिया। बाद में एसीबी ने नोटिस थमा कर पांच सवालों के जवाब मांगे। इसके बाद आप नेता संजय सिंह एसीबी के दफ्तर गए। उन्होंने इसके लिए अपने एक विधायक प्रत्याशी मुकेश अहलावत का नाम का नाम लिया जिसको एप्रोच किया गया था। इसके अलावा उन्होंने कुछ भी नहीं बताया। दिनभर यह मामला काफी गर्म रहा। अब देखना होगा कि इस मामले में क्या कार्रवाई होती है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा का कहना है कि हम इस मामले को ऐसे नहीं छोड़ेंगे। अब यह नहीं चलेगा कि आरोप लगाओ और निकल लो। केजरीवाल और आप के नेताओं को नाम तो बताना ही होगा।
इस बार सही साबित हुए एक्जिट पोल : मतदान के दिन शाम से ही दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आए 14 एग्जिट पोलों में से 11 ने भाजपा की सरकार का अनुमान लगाया था, जबकि दो एग्जिट पोल आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा रहे थे। एक एक्जिट पोल में बराबरी की टक्कर का अनुमान था। इनमें से तीन एक्जिट पोल दूसरे दिन आए। एक्सिस माय इंडिया पोल समेत दो अन्य संस्थाओं ने भी भाजपा की सरकार का अनुमान लगाया था। लेकिन आप के प्रवक्ता अंतिम समय तक हार मानने को तैयार नहीं थे। एक्सेस माय इंडिया ने भाजपा को 48% वोटों के साथ 45 से 55 सीटें मिलने का अनुमान लगाया था। उन्होंने आम आदमी पार्टी के लिए 42% वोट की बात कही थी। टुडेज चाणक्या ने भाजपा को 51-52 सीट मिलने का अनुमान लगाया था। सभी अनुमानों के महापोल में भाजपा को 39 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। किंतु अनुमान से अलग भाजपा ने 48 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत पा लिया।
दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम की प्रमुख बातें :
* निर्मला ताई ने चुनाव जितवा दिया, इनकम टैक्स में बड़ी छूट इस बार काम कर गई।
* पूर्वांचल के वोटरों ने पूर्वांचल के प्रत्याशियों को जिताया। अधिकतर भाजपा के जीते।
* पूर्वांचली पृष्ठभूमि के आप नेता गोपाल राय अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।
* मोदी की गारंटी ने काम किया, केजरीवाल के मुफ्त के वादे लोगों ने नकार दिए।
* मुस्लिम मतों का बंटवारा हुआ। ऐसे में मुस्लिम बहुल सीटों पर भी भाजपा जीती।
* शराब घोटाला, शीश महल, यमुना की गंदगी, सड़कों की दुर्दशा ने भी आप को हराया।
* कांग्रेस वोटकटवा बनी। और वह भी आप की हार का एक प्रमुख कारण बनी।
* केजरीवाल और सिसोदिया की हार में कांग्रेस का बड़ा हाथ है। कांग्रेस के वोट जीत के अंतर से अधिक रहे।
* लगभग नौ सीटें ऐसी रहीं जहां कांग्रेस को मिला वोट भाजपा की जीत की मार्जिन से अधिक रहा।
* मुख्यमंत्री आतिशी ने भाजपा के बड़े नेता रमेश विधूड़ी को हराकर सीट बचा ली है।
* भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके आप के लगभग सभी नेता चुनाव हार गए हैं।
* दिल्ली के दो मंत्रियों आतिशी और गोपाल राय के अलावा पूरी कैबिनेट हार गई।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक