पुरानों की उपेक्षा और अति आत्मविश्वास ने डुबोया

तीसरे कार्यकाल में ठिठक-ठिठक कर चलने को मजबूर है मोदी सरकार.. बड़ा बहुमत पाने के फेर में अपनों को ही भूल गई थी भाजपा......इस बार तो जीत ही जाएंगे के नैरेटिव ने भी शिथिल कर दिया........कारसेवकों पर गोली चलवाने वाले को पद्मश्री देना भारी पड़ा........मध्यम वर्ग ने भी चुनाव में अपनी नाराजगी दिखा दी.......आयातित नेताओं को तरजीह मिलने से पुराने नाराज रहे

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लखनऊ/नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में इस बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। इसलिए उसे दो बैसाखियों जनता दल यूनाइटेड और तेलुगु देशम के भरोसे सरकार चलाना पड़ रहा है। ये चुनाव परिणाम जितना बीजेपी को झटका देने वाले हैं उतना ही पत्रकारिता और राजनीति से जुड़े लोगों के लिए भी। सबके आंकलन गलत साबित हुए। किसी को भी मोदी सरकार की इस दुर्गति की आशंका नहीं थी। भाजपा की इस दुर्गति के लिए विपक्ष के कुछ फेक नैरेटिव जैसे संविधान को खतरा, आरक्षण का खात्मा और कांग्रेस का महिलाओं को ₹100000 सालाना देने का गारंटी कार्ड जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। इसके अलावा मोदी सरकार का अति आत्मविश्वास भी हार का कारण बना। भाजपा के कुछ निर्णय उसके कोर वोटर और पुराने जमीनी कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आए। इसलिए इस चुनाव में वे पूरे मन से नहीं जुड़े। नतीजे में भाजपा को ये दिन देखना पड़ा। आइए उन कारणों पर चर्चा करते हैं।

सबसे पहले बात भाजपा की नाक का सवाल बने फैजाबाद सीट की। अयोध्या जिले की अयोध्या समेत पांच विधानसभाओं को मिलाकर बने इस लोकसभा क्षेत्र में भाजपा समाजवादी पार्टी के पासी समुदाय के प्रत्याशी अवधेश प्रसाद पासी से हार गई। जबकि भाजपा सरकार ने पिछले 5 सालों में राम मंदिर का निर्माण कराया, मंदिर में प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा कराई, अयोध्या में चहुंओर विकास किया, किंतु कुछ भी काम नहीं आया। बताते हैं कि यहां के भाजपा प्रत्याशी को लेकर लोगों में नाराजगी थी। तमाम शिकायतें होने के बावजूद भाजपा ने फिर उनको प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते भी भाजपा कार्यकर्ता और वोटर नाराज थे। पिछले 5 सालों के उनके रूखे व्यवहार के कारण क्षेत्र के लोग उनसे नाराज रहे। लेकिन यह बात शायद भाजपा हाईकमान के कानों तक नहीं पहुंची। और यदि पहुंची भी तो उस पर ध्यान नहीं दिया गया।

लोगों से बातचीत में जो एक बात और निकल कर आई है वह यह है कि मोदी सरकार ने भलमनसाहत में उस मुलायम सिंह को भी पद्मश्री से नवाजा जिन पर कारसेवकों पर गोली चलवाने का आरोप है। भाजपा इस मामले में अपने
कार्यकर्ताओं और वोटरों के मन की बात समझ नहीं पाई और उससे चूक हो गई। और वोटर ने चुनाव में अपने तरीके से अपने गुस्से का इजहार कर दिया। भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह का ही संविधान बदलने के लिए 400 सीट चाहिए का बयान विपक्ष का हथियार बन गया। और उसने भाजपा को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है। जनता ने भी सोचा होगा कि कारसेवकों पर गोली चलाने वाले को भी जब पद्मश्री दिया जा सकता है तो हम उसकी पार्टी को जिता क्यों नहीं सकते हैं। सरकार द्वारा मुलायम सिंह यादव को पद्मश्री देने से भाजपा का हिंदू वोटर नाराज था और उसने अपने तरीके से अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया।

समाजवादी पार्टी अब फैजाबाद में अपनी जीत को भुनाने ने में लगी हुई है। नई संसद के पहले सत्र के पहले दिन सपा मुखिया अखिलेश यादव फैजाबाद के नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद पासी को अपने बराबर की सीट देकर यह मैसेज देने की कोशिश करते रहे कि भाजपा ने लाख कोशिश की लेकिन वह अयोध्या सीट नहीं जीत पाई। और हमने एक दलित को जिताकर भाजपा के घमंड को चूर-चूर कर दिया। आगे खबर यह भी है कि सपा अवधेश प्रसाद को लोकसभा में बड़ा पद देकर अपने दलित समर्थक होने का प्रदर्शन करना चाहती है। सत्र के पहले दिन 24 जून को फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद पासी को अखिलेश यादव द्वारा दिए गए महत्व से तो यही बात निकलकर सामने आ रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुफ्त राशन, मुफ्त आवास, मुफ्त गैस चूल्हा-सिलिंडर और मुफ्त शौचालय की योजना भी भाजपा के काम नहीं आयी। कोढ में खाज ये हुआ कि चुनाव प्रक्रिया के बीच में ही लखनऊ में हुई पत्रकार वार्ता में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे में पांच किलो की जगह 10 किलो मुफ्त राशन देने का वादा कर दिया। उस पत्रकार वार्ता में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी थे। ऐसे में मुफ्त की आदी हो गई जनता को और ज्यादा मुफ्त का आश्वासन अधिक भा गया और वह पल्टी मारकर इंडी गठबंधन के साथ चली गई। इसके अलावा महिलाओं को प्रतिवर्ष एक लाख देने की कांग्रेस की गारंटी ने भी खेल कर दिया। वैसे अब गारंटी कार्ड भरने वाली तमाम महिलाएं इस समय कांग्रेस दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं और कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है।

मुसलमान कांग्रेस के नहीं हुए तो भाजपा के क्या होंगे।, इस कठोर सच्चाई के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार ने मुसलमानों को आकर्षित करने के सारे उद्यम कर डाले। उनको जितना गैर भाजपाई सरकारों में नहीं मिला होगा उससे अधिक मोदी सरकार ने 10 साल में ही दे दिया। चाहे वह मुफ्त राशन हो या अन्य सुविधाएं, कुछ भी देने में उनका धर्म नहीं देखा गया। किंतु वे भाजपा के खिलाफ बेहतर विकल्प दिखते ही इंडी गठबंधन के साथ चले गए। नतीजा यह हुआ कि उनके एकमुश्त वोट इंडी गठबंधन को मिले। जिसने परिणाम बदल कर रख दिया। इसका व्यापक असर उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और राजस्थान में विशेष तौर पर देखने को मिला। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल ने तो भाजपा को इतना निराश किया कि पार्टी को वैसाखियों का सहारा लेना पड़ रहा है। भाजपा पर तो वैसे ही घोषित तौर पर मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा लगा हुआ है। ऐसे में मुसलमानों पर भरोसा करके भाजपा ने बड़ी गलती की, ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है। इस मामले में नरेंद्र मोदी का एक हाथ में कुरान और एक हाथ में कंप्यूटर का नारा भी नहीं चल पाया।

इस चुनाव में अबकी बार 400 पार का नारा भी कंफ्यूज कर गया। विपक्ष ने इस नारे को लेकर यह नेगेटिव सेट कर दिया कि मोदी सरकार ये चुनाव सरकार बनाने के लिए या बहुमत प्राप्त करने के लिए नहीं 400 पार करने के लिए लड़ रही है। ताकि संविधान को बदलकर आरक्षण खत्म किया जा सके। विपक्ष ने इस नैरेटिव को खूब प्रचारित किया। इससे आरक्षण का लाभ पा रही जातियां आसानी से दिग्भ्रमित हुई। और उन्होंने अपने मतदान की दिशा ही बदल दी। इसका नुकसान सिर्फ विपक्ष से ही नहीं भाजपा को अपनी पार्टी से भी हुआ। अपने बड़े नेताओं का कॉन्फिडेंस देखकर और अपनी उपेक्षा से नाराज होकर कोर कार्यकर्ता भी घर से निकला ही नहीं। नतीजतन लोगों को घर से निकाल कर वोट दिलवाने का जो काम वे इसके पहले करते रहे इस बार उस काम को उसने किया ही नहीं। इस बात को एनडीए के घटक दलों के नेता एकनाथ शिंदे और के सी त्यागी ने कही है। साथ ही अपनी उपेक्षा से नाराज मध्यम वर्ग भी, जिसको 10 साल तक कुछ मिला ही नहीं, वोट देने निकला ही नहीं। इस वर्ग की महिलाएं महंगाई को लेकर नाराज थीं। ऐसे भी मामले देखने को मिले कि उनके घरों के पुरुषों ने तो वोट दिया लेकिन वे खुद वोट देने नहीं गईं। 400 पार के नारे ने तो कार्यकर्ताओं और वोटरों को निश्चिंत कर दिया था कि मोदी की आंधी चल रही है, इस बार सरकार तो बन ही जाएगी।

यहां तक सवाल अमीरों का है, तो उन्हें किसी सरकार से कुछ भी मांगने की जरूरत ही नहीं। और देश के तथाकथित गरीबों को मोदी सरकार ने बिना मांगे ही सब कुछ दे दिया। ऐसे में बचा मध्यम वर्ग, जिसे पिछले 10 सालों में भाजपा सरकार ने एकदम भुला दिया था और कुछ दिया ही नहीं। वह महंगाई की मार झेलते हुए 10 साल तक कुढता रहा। अंततः उसके सब्र का बांध टूट गया और उसने अपने तरीके से अपने गुस्से का इजहार कर दिया। अब भी मोदी सरकार को सावधान हो जाना चाहिए और मध्यम वर्ग को भी ध्यान में रख कर अपनी योजनाएं बनानी चाहिए। इस प्रकार मध्यवर्ग की चुप्पी भी मोदी सरकार पर भारी पड़ गई। वह 10 साल तक कथित गरीबों के लिए चल रही मुफ्त की योजनाओं को देखकर कुढता रहा। क्योंकि तथाकथित गरीबों और मध्यम वर्ग के बीच आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। पर सरकार ने इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। हालांकि मुफ्त का मिलने वाला राशन घूम-फिर कर बाजार में वापस आ जाता था। लाभार्थी उसे औने-पौने शहर की गलियों में, गांव की गलियों में और बाजारों में बेचते रहे। किंतु किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया। खास बात यह रही कि इस मुफ्त के राशन के खरीदार भी मध्यम वर्ग के लोग ही बने जिन्हें ये थोड़ा सस्ते में मिल जाया करता था।

भाजपा ने बाहर से आये लोगों को टिकट देकर भी अपने समर्पित और पुराने कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया। दूसरी पार्टियों से दागी लोगों को लाकर टिकट देना भी भाजपा के लिए भारी पड़ गया। महाराष्ट्र में भाजपा ने कई दागियों को अपने साथ लिया। जिसके चलते पार्टी की साख को बट्टा लगा। इनमें महाराष्ट्र के गठबंधन साथी एनसीपी के अजिक पवार, कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन दोनों के भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा के नेता ही लगातार हमलावर रहते थे। उन्हें अपने साथ बुलाकर भाजपा ने अपनी साख को बहुत चोट पहुंचाई। इन लोगों के साथ आने से यहां पार्टी के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं का हक मारा गया। वही इनकी दागी छवि से पार्टी को चुनाव में नुकसान भी हुआ। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पार्टी के कर्णधार 2024 का चुनाव किसी भी कीमत पर जीतना चाहते थे चाहे उसके लिए कोई भी समझौता करना पड़े।

पिछले दिनों जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें बनीं उसमें मुख्यमंत्री पद के पुराने दावेदारों की अनदेखी कर नए चेहरों को मौका देने से भी भीतरघात को बढ़ावा मिला। इसने भी माहौल खराब किया। इसमें सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान और हरियाणा का है। पार्टी ने हरियाणा चुनाव के ठीक पहले मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया तो यह राजनीति के जानकारों को समझ में नहीं आया। चुनाव के ठीक पहले यह बदलाव पार्टी को भारी पड़ा इससे विपक्ष को भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने में मदद मिली। 2019 के चुनाव में राज्य की 10 की 10 सीट जीतने वाली भाजपा को इस बार आधे पर ही संतोष करना पड़ा। इसी प्रकार राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के तमाम वरिष्ठ दावेदार थे किंतु पार्टी में उनकी दावेदारी को दरकिनार कर एक नए चेहरे भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके चलते पार्टी में अंदरूनी लड़ाई चलती रही जो लोकसभा चुनाव में भीतरघात के रूप में निकल कर सामने आई। खबरों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नाराजगी के चलते सिर्फ अपने बेटे के चुनाव क्षेत्र के प्रचार तक ही सीमित रहीं। खबर यह भी है कि उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव में निष्क्रिय रहने का निर्देश दिया था। इसके चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर हुआ। और 2019 के लोकसभा चुनाव में 26 में से 25 सीट जीतने वाली भाजपा इस बार मात्र 14 सीटों पर ही सिमट गई। हालांकि बदलाव मध्य प्रदेश में भी हुआ लेकिन वहां के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने पहले ही आश्वस्त कर दिया था। वैसे भी शिवराज लो प्रोफाइल के माने जाते हैं। इसलिए वहां पर पार्टी का प्रदर्शन ठीक रहा।

भाजपा की सबसे खराब स्थिति पश्चिम बंगाल में रही। वहां वोटरों और कार्यकर्ताओं की असुरक्षा भावना ने पार्टी को कमजोर किया। बहुमत होने के बावजूद भाजपा ने वहां पर कोई बोल्ड निर्णय नहीं लिया। ऐसे में टीएमसी के गुंडे लगातार हावी रहे। कार्यकर्ताओं और वोटरों में डर का माहौल बना रहा। उनके असुरक्षा बोध ने उन्हें फिर से टीएमसी के गुंडों की सरपरस्ती में पहुंचा दिया जिसके चलते भाजपा वहां पर अपना पुराना रिकॉर्ड भी नही बरकरार रख पाई। यहां कम से कम 30 सीटों का दम भरने वाली भाजपा 18 से भी नीचे पहुंच गई। राज्य में भाजपा के कार्यकर्ता पिटते रहे लेकिन केंद्र सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया। यहां तक कि वहां जांच करने गई केंद्रीय एजेंसियां भी टीएमसी के कार्यकर्ताओं का शिकार होती रहीं और केंद्र सरकार सिवाय देखते रहने के कुछ नहीं कर पायी। जनता का मानना है कि सरकार के पास पूर्ण बहुमत था, उसे टीएमसी की सरकार को बर्खास्त करके राज्यपाल शासन लगाना चाहिए था किंतु वह चुप रही।‌ नतीजा यह हुआ कि पश्चिम बंगाल के कार्यकर्ताओं और वोटरों का विश्वास भाजपा नहीं जीत पाई। वोटरों और कार्यकर्ताओं को लगा कि जब भाजपा की मजबूत सरकार में भी हम पिटते रहेंगे तो इससे अच्छा है टीएमसी के गुंडों की शरण में ही चले जाएं और हुआ भी यही।

उधर पंजाब में अकाली दल का साथ छूटना भी भाजपा के खिलाफ गया। हालांकि पार्टी ने नए राज्यों में अपना प्रदर्शन ठीक किया है। उसे पहली बार केरल में एक सीट मिली और आंध्र प्रदेश में लोकसभा की सीटों के अलावा उसकी गठबंधन की सरकार बनी। आंध्र प्रदेश में पहली बार भाजपा ने अपने तीन सांसद जिताकर संसद पहुंचाया। तमिलनाडु में हालांकि भाजपा को कोई सीट नहीं मिली है किंतु इस बार उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है जो विधानसभा चुनाव में उसके लिए संजीवनी का काम कर सकता है। कर्नाटक में देवेगौड़ा परिवार के बड़े पुत्र और उनके दो बच्चों के सेक्स स्कैंडल ने पार्टी को थोड़ा नुकसान पहुंचाया। हालांकि तेलंगाना में पार्टी ने पिछली बार की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है। कुल मिलाकर दक्षिण के राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन पिछली बार की तुलना में संतोषजनक रहे।

समर्पित कार्यकर्ता की अनदेखी के चलते भी भाजपा की यह दुर्गति हुई। दागी लोगों को उन पर तरजीह दी। टिकट वितरण में पुरानी कार्यकर्ताओं का हक मारा गया जिसके चलते उन्होंने नाराजगी रही। मौके-बेमौके विपक्ष भी उन पर सवाल उठाता रहा। पार्टी में अंदरूनी खाने चर्चा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इस बाबत भाजपा को आगाह भी किया था लेकिन उसकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके चलते चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन गिरा।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक