भारतीय निवेशकों ने अभी तक न तो देखा होगा न सुना होगा और न ही किसी ऐसी कंपनी में निवेश करने का मौका मिला होगा जो अपनी स्थापना से लेकर लगातार दस सालों से 11 हजार करोड़ रु के संचित घाटा (एकुमुलेटेड) उठाते हुए भी आईपीओ के जरिए निवेशकों से 22 हजार करोड़ रु उगाहने की कोशिश में लगी है।
बात की जा रही है नोएडा स्थित पेटीएम (Paytm) की और इसकी प्रमोटर 0ne 97 Communicatios Limited (ओसीएल) की। कहने को भारतीय स्टार्टअप की अगुवाई में यह भारत में ही स्थापित की गई लेकिन इसमें सबसे ज्यादा धन चीन के विश्वविख्यात धनाढ्य जैक मा ग्रुप प्रमोटेड अलीबाबा और इससे जुड़ी अन्य कंपनियों का लगा है।
जानिए पेटीएम, ओसीएल और इसकी और दर्जन भर कंपनियों के बारे में, और समझिए इसके दस सालों के पक्के चिट्ठे को, जानकारी जरूरी इसलिए है कि इसी वित्तीय वर्ष में आईपीओ लाने के लिएकर्ता-धर्ता ताना-बाना बुनने में व्यस्त हो गए हैं। विजय शर्मा और अक्षय खन्ना ने मिलकर बतौर स्टार्टअप वर्ष 2000 में ओसीएल की स्थापना की। बीच में शर्मा-अक्षय टीम ने कई घरेलू उद्योगपतियों के साथ-साथ विदेशी वेंचर कैपिटल फर्मों, प्राइवेट इक्विटी फंडों के संचालकों से अपने नए आइडिया के बारे में बातचीत करके उन्हें पूंजी लगाने को राजी किया।
इस तरह पेटीएम की नींव पड़ी। ओसीएम ने मोबाइल रिचार्ज और डीटीएच रिचार्ज का बिजनेस शुरू करने के उद्देश्य से वर्ष 2010 अगस्त में कंपनी पेटीएम को लांच किया। इसने बाद में बिल पेमेंट का काम भी शुरू कर दिया और धीरे- धीरे कारोबार का विस्तार होता गया। पेटीएम ब्रांड का स्वामित्व ओसीएल के पास रखा गया।
शुरुआती दौर में ओसीएल में अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस लि., सामा कैपिटल, रतन टाटा और एसएपी वेंचर्स ने पूंजी डाली थी। 2016 में रिलायंस कम्युनिकेशंस, सामा और एसएपी ने अच्छे मुनाफे के साथ अपनी पूरी (4.3 फीसद) हिस्सेदारी बेंचकर बाहर निकल गए। 60 करोड़ रु की चुकता पूंजी पर खड़ी ओसीएल में भारतीय स्टार्टअप/प्रमोटर विजय शर्मा की हिस्सेदारी सिर्फ 14.67 फीसदी है। प्रत्यक्ष रूप से 37 फीसद हिस्सेदारी जैक मा प्रमोटेड अलीबाबा ग्रुप, ऐंट और इससे जुड़ी कंपनियों के पास है।
कहा जाता है कि इसके अलावा भी सात फीसद शेयर अप्रत्यक्ष रूप से अलीबाबा ग्रुप कंपनियों के पास हैं, 19.63 फीसद शेयर जापान के साॅफ्ट बैंक के पास, 28.56 फीसद एलिवेशन कैपिटल (पूर्व नाम एसएआईएफ पार्टनर्स) के पास, 2.76 फीसद वारेन बफे की कंपनी बर्क शायर हैथवे के पास, 7.78 फीसद एजीएच के पास और बाकी में अमेरिका की टी रोवे सहित अन्य निवेशक शामिल हैं।
फिनटेक पेटीएम की प्रमोटर ओसीएल के बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर्स ने 20 मई को अपनी बैठक में आईपीओ के जरिए 21700-22000 करोड़ रु जुटाने की हरी झंडी जैसे ही दिखाई इसके तुरंत बाद से कंपनी के सूचीबद्ध नहीं होते हुए भी इसके शेयरों की खरीद-बिक्री धड़ल्ले से शुरू हो गई। ग्रे मार्केट (अनधिकृत) में भाव सप्ताह भीतर बेमिसाल ऊंचाई पर पहुंच गए/ पहुंचा दिए गए।
मित्तल पोर्टफोलियो और धारावत सिक्योरिटीज़ सहित कई ब्रोकरेज फर्में दोनों तरह के सौदे कर रही हैं। कंपनी सूचीबद्ध नहीं है तो ये शेयर कहां से आए और किसके हैं, इस सवाल पर बताया गया कि स्टाॅक आॅप्शन के तहत मिले शेयरों को कंपनी के कर्मचारी ब्रोकरों के जरिए ओपेन मार्केट में बेंच कर नकदीकरण कर रहे हैं।
पता लगा कि कंपनी के कर्मचारियों ने 2019 में 1050 करोड़ रु के शेयर बेंचे थे। इसी मई के अंतिम सप्ताह के शुरू में इस कंपनी के 10 रु अंकित मूल्य का शेयर 11000 रु में बेंचा-खरीदा गया। सप्ताह के अंतिम दिन 21000 रु यानी पांच-छह दिनों के अंदर दस हजार रु का इजाफा तो चौंकाने वाला तो है ही, रेड सिग्नल देता भी लग रहा है।
आश्चर्यजनक है कि प्रमोटरों ने अभी तो आईपीओ प्रस्ताव बाजार नियामक सेबी के पास दाखिल भी नहीं किया है। फिर शेयरों के आकाश छूते मूल्यों के पीछे क्या समीकरण है, कुछ अप्रत्याशित तो अवश्य है जो सामने नहीं आ पा रहा है। कंपनी का मूल्याकंन 2750 करोड़ डॉलर किया गया है। डाॅलर की विनिमय दर 74 रु मान ली जाए तो भारतीय मुद्रा में इसकी हैसियत 2 लाख 3500 करोड़ से ऊपर बैठती है।
यह मूल्यांकन निवेशकों द्वारा लगाई गई कुल पूंजी के आधार पर किया गया है। पहले पेटीएम के फाइनेंशियल्स पर गौर करिए। पेटीएम को प्रथम पूर्ण वित्तीय वर्ष 2011-12 से ही घाटा हो रहा था लेकिन बिलकुल नए बिज़नेस में शुरुआती 3-4 सालों में घाटा होना असामान्य नहीं माना जाता। लेकिन ये साल गुजरने के बाद भी घाटे का सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है। 2015-16 में आमदनी 573 करोड़ रु, खर्च 1763 करोड़ रु और घाटा 1511 करोड़ रु, 2016-17 में आमदनी 813 करोड़, खर्च 2047 करोड़ घाटा 886 करोड़, 2017-18 में आमदनी 3234 करोड़, खर्च 4718 करोड़ और घाटा 1491 करोड़, अगले साल 2018-19 में आमदनी थोड़ी बढ़कर 3391 करोड़ पर आ गई लेकिन खर्च 117 फीसद की अप्रत्याशित वृद्धि के साथ 7254 करोड़ रु रहा।
घाटा सारी हदें पार करता हुआ (172 फीसद बढ़ा) 3959 करोड़ के उच्चतम शिखर पर पहुंच गया। वर्ष 2019-20 में आमदनी बढ़ने के बजाय घटकर 3350 करोड़ पर सिमट गई। खर्चे भी बीते साल के मुकाबले कमती हुए फिर भी आमदनी से 75 फीसद अधिक 5861 करोड़ रु और घाटा 2833 करोड़ रु। 2020-21 के वित्तीय आंकड़ों का खुलासा अभी तक नहीं किया गया है।
संभवतः आने वाले आईपीओ को ध्यान में रखकर विंडो ड्रेसिंग की जा रही होगी। ताकि बाजार नियामक के सामने साफ सुथरी बैलेंस शीट पेश की जा सके और निवेशकों से पूंजी जुटाने में कोई अड़चन न आने पाए। बताते चलें कि 2016 में नोटबंदी ने पेटीएम की लाटरी खोल दी थी, लेकिन ब्रांड बिल्डिंग को जरूरत से ज्यादा तरजीह देने की रणनीति ही घाटे का सबसे बड़ा कारण बनी। शुरू के चार सालों में हुए घाटे को जोड़ देने पर पेटीएम का संचित घाटा 11 हजार करोड़ रु होता है।
एक अंतर्राष्ट्रीय इन्वेस्टमेंट बैंकिंग के एमडी पद को छोड़ कर पेटीएम से जुड़ी सख्शियत इसके आईपीओ का काम काज देख रही है। इसी तरह नेशनल पेमेंट काॅर्पोरेशन आॅफ़ इंडिया के एक सीनियर ऊंचे पैकेज पर पेटीएम को अपनी सेवाएं देने लगे। विदेशी निवेशकों के साथ तय योजना के तहत ओसीएल डिजिटल बैंकिंग से लेकर गेमिंग, ई- काॅमर्स, फाइनेंशियल सर्विस, सामान्य बीमा, जीवन बीमा और इंटरटेनमेंट, थोक व्यापार तक में उतर आई।
इसमें से सिर्फ एक उद्यम पेटीएम पेमेंट्स बैंक लि. सफल रहा है। जिसने 2018-19 में 19 करोड़ रु और 2019-20 में 29.8 करोड़ रु का मुनाफा कमाया। ओसीएल के प्रमोटरों ने दर्जन भर कंपनियां स्थापित कर डालीं। ये हैं- मोबिक्वेस्ट मोबाइल टेक्नाॅलाॅजी, नियरबाइ इंडिया प्रा.लि., पेटीएम मनी लि., पेटीएम ई काॅमर्स प्रा.लि., पेटीएम पेमेंट्स बैंक लि., पेटीएम फर्स्ट गेम्स प्रा. लि., पेटीएम फाइनेंशियल सर्विसेज़, पेटीएम इंटरटेनमेंट लि., पेटीएम होलसेल काॅमर्स प्रा.लि., पेटीएम इंश्योरटेक प्रा.लि., पेटीएम माल और पेटीएम लाइफ इंश्योरेंस।
अब पेटीएम की प्रमोटर ओसीएल का संक्षिप्त ब्यौरा सामने है। ओसीएल ने 2017-18 में 3310 करोड़ की सकल आमदनी, सकल व्यय 4864 करोड़ और 1604 करोड़ का घाटा उठाया, 2018-19 में सकल आमदनी 3580 करोड़, व्यय 7730 करोड़, घाटा 4217 करोड़ की तुलना में 2019-20 के दौरान 8411 करोड़ रु की आमदनी पर घाटा लगा 2833 करोड़ रु। इसे कहते हैं’ आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’।
प्रणतेश नारायण बाजपेयी