हनुमान जी की आराधना से मिलेगी महामारी से मुक्ति

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वर्तमान में कोरोना संक्रमण से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित हो रही है। जिससे शरीर में कमजोरी, आॅक्सीजन की कमी सहित कई अंग प्रभावित हो जाते है। सोचनीय विषय है कि मनुष्य शरीर के किसी रोग के कारण तथा दवाई पर शोध हमेशा जीव-जंतुओं पर किये जाते है। परन्तु यदि यह मनुष्यों को प्रभावित करने वाली यह महामारी वायु अथवा छुआ-छूत के माध्यम से बहुत ही तीव्र गति से समाज में फैल रही है तो फिर उसी समाज में रहने वाले पशु-पक्षी एवं जीव-जंतुओं पर इस संक्रमण की तीव्रता का प्रभाव क्यों नहीं है?

आध्यात्मिक तौर पर विश्लेषणोंपरांत ऐसा प्रतीत हो रहा है कि संक्रमण के प्रभाव की तीव्रता वास्तव में कम है परन्तु संक्रमण के नाम की अत्यधिक चर्चा से तथा सामाजिक बहिस्कार जैसी विधाओं से इसके प्रभाव की तीव्रता अधिक हो रही है। मनुष्य का शरीर स्मृति एवं कल्पना रूपी मन की ऊर्जा से नियंत्रित होता है। चूंकि पशु-पक्षी एवं जीव-जंतुओं के अपेक्षाकृत मनुष्य में सोचने एवं समझने की शक्ति अधिक होती है। इस कारण मन अपनी शारीरिक इन्द्रियों से देखी-सुनी और कही बातों से बहुत शीघ्र ही प्रभावित होकर अपने शरीर की सुरक्षा हेतु भविष्य का परिणाम तय करने में लग जाता है। परन्तु पशु-पक्षी एवं जीव-जंतुओं में भविष्य की चिंता का प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण कम ही देखने को मिलता है।

इसलिए उनमें मानव की अपेक्षा अधिक सुरक्षा एवं निश्चिंतता देखने को मिलती है। विगत एक वर्ष से भी अधिक समय से समाज के हर कोने में, सोशल मीडिया, समाचार पत्रों तथा न्यूज चैनलों पर सुबह से लेकर रात्रि तक कोरोना-कोरोना के कहर को इतना अधिक बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया जा रहा है साथ ही बेरोजगारी, मंहगाई सहित कई सामाजिक समस्यायें भी इस महामारी से प्रभाव से जन्म ले रही है।

इस अपने स्वभाव के अनुरूप तत्काल रूपान्तरित -स्थानान्तरित होने वाली प्राकृतिक ऊर्जा वायुमण्डल में तेजी से रूपान्तरित होकर नकारात्मक एवं प्रदूषित हो रही है। चूंकि मनुष्य शरीर में प्राण वायु ऊर्जा तथा मन की ऊर्जा का प्रवाह हमारे प्राकृतिक वातावरण से उर्जित होता है। इस कारण मनुष्य के मन एवं प्राण ऊर्जा में वर्तमान समय के वातावरण की नकारात्मक एवं भयग्रस्त ऊर्जा का संचार होने से मनुष्य का मन एवं प्राणशक्ति तीव्रता से प्रभावित हो रही है।

यह स्वाभविक है यदि मन दुःखी, कमजोर तथा नकारात्मक प्रवृत्तियों से प्रभावित है तो उसका नकारात्मक असर शरीर संचालन करने वाली उर्जाओं एवं अंगों पर पड़ता है। इन्हीं कारणों से समाज में संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है तथा संक्रमित व्यक्ति केे शरीर मे कमजोरी आना सहित प्राण वायु में बहुत अधिक कमी का प्रभाव प्रत्यक्ष हो रहा है।

पंचतत्वों से निर्मित और संचालित शरीर में इस प्रकार के संक्रमण से सर्वप्रथम जल और पृथ्वी तत्व प्रभावित हो जाता है। जल एवं पृथ्वी तत्व से निर्मित होने वाला कफ तत्व असंतुलित होता है। आयुर्वेदिक पद्वति के अनुसार कफ के असंतुलन से स्वतः ही अन्य दोनों तत्व वात एवं पित्त का भी असंतुलन होना स्वाभाविक है। इन तत्वों के संतुलन के प्राथमिक उपाय गुणवत्तापूर्ण खान-पान एवं अनुशासनात्मक जीवन शैली के साथ ध्यान, योग और प्राणायाम ही है। परन्तु आध्यात्मिक तौर पर मन एवं प्राणवायु की ऊर्जा को सकारात्मक तथा सशक्त बनाने हेतु परम् पूज्य श्री हनुमान जी महाराज का निरंतर स्मरण एवं पाठ करना चाहिए।

श्री हनुमान जी को कलयुग का स्वामी तथा प्रत्यक्ष देवता माना गया है। जो अजर-अमर है, बल-बुद्वि के प्रतीक है। जिनके नाम मात्र का स्मरण कर लेने से मनुष्य बड़ी से बड़ी समस्या से मुक्ति पाता है तथा उसमें भय एवं नकारात्मकता का वास दूर-दूर तक नहीं रहता है। वर्तमान समय में श्री हनुमान जी के जीवन पर उत्कृष्ट प्रबंधन क्षमता के रूप में विश्लेषण तथा आध्यात्मिक शोध हो रहे है।

श्री हनुमान जी महाराज 11 वंे रूद्र के रूप में भगवान महादेव के अवतार, वायु देवता के पुत्र तथा सूर्य देवता के शिष्य सहित संसार में प्राण वायु रूपी ऊर्जा का स्वरूप है। चूंकि प्राण वायु अजर-अमर है। इसीलिए श्री हनुमान जी को अजर-अमर कहा जाता है।

पूर्व के युगों में मनुष्यों के कर्म और जीवन यात्रा में आध्यात्मिकता अधिक थी इस कारण वह ध्यान, योग और प्राणायाम के बल पर प्राण-वायु की सिद्वियां हांसिल कर लेते थे। जिसके कारण उनका जीवन आसक्तिरहित तथा दीर्घायु होता था। लेकिन कलयुग में आसक्तिपूर्ण भौतिकता में अधिकतर मनुष्य अपने जीवन की मूल बातों को गौड़ कर अपने जीवन को भौतिकता की चकाचैध में ढ़केल रहा है। भले ही उसके इस प्रकार की जीवन शैली से समाज का कोई व्यक्ति, जीव अथवा प्रकृति ही क्यों न प्रभावित हो।

शरीर पर पड़ने वाले योग-प्राणायाम और आध्यात्मिक प्रभाव कोे वह स्वीकार ही नहीं करना चाहता इसीलिए कलयुग में मनुष्यों की शारीरिक कार्यक्षमता में कमी तथा शरीर में रोगों का वास होता जा रहा है तथा उसकी आयुक्षमता में कमी का भी प्रभाव प्रत्यक्ष हो रहा है।

इन परिस्थितियों में बल-बुद्वि एवं विद्या से परिपूर्ण देवता श्री हनुमान जी महाराज की महिमा पर यदि ध्यान दें तो पायेगें कि हर माता शक्ति की पीठ पर लगे झण्डे-पताकों में श्री हनुमान जी की प्रतिमा दर्शित होती है। यहां तक कि अर्जुन के रथ में भी लगे झण्डे में श्री हनुमान जी की ही प्रतिमा थी, महाभारत के युद्व में सीमित संख्या, सीमित बल के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण के परामर्श पर अर्जुन के रथ पर श्री हनुमान जी की उपस्थिति मात्र से ही पाण्डवों ने महाभारत युद्व में जीत हांसिल की।

श्री हनुमान जी को माता सीता से अष्ट सिद्वियों एवं नौ निधियों का वरदान प्राप्त है। अष्ट सिद्वियों र्में चार मन की शक्तियां की सिद्वि क्रमशः अणिमा, महिमा, गरिमा और लघिमा सिद्वियों के माध्यम से अपने शरीर को अदृश्य रूप में अणु के समान छोटा बना लेने, किसी सीमा तक बड़ा बनाने, अपने शरीर के भार के असीमित बना लेने तथा अपने भार को अत्यंत हल्का कर वायु के सहारे उड़ने योग्य बना लेने की शक्तियां तथा चार बल की सिद्वियां क्रमशः प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व के माध्यम से अपनी इच्छानुसार अदृश्य होना, बेरोकटोक किसी स्थान पर आवागमन, दूसरे के मन की बात को समझ लेना, ईश्वरत्व जैसा पद प्राप्त कर लेना और किसी दूसरे को वशीभूत कर अपना दास बना लेने की सिद्वियां ये कुल आठ सिद्वियां जो श्री हनुमान जी ने प्राप्त की थी।

इसके अतिरिक्त नौ निधियों में पदम्, महापदम, नील, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, संख और खर्च निधि है अर्थात इन निधियों से सात्विक गुणों और दानक्षमता में वृद्वि, धार्मिक भावनाओं प्रबलता, धनवान होना, रजोगुण एवं तमोंगुण का विकास होना, शस्त्रों का संग्रह होना, संम्पत्ति का सुखपूर्वक भोग करना, अतुलनीय संम्पत्ति का मालिक होना, विरोधियों और शत्रुुओं पर विजय हांसिल करना।

भगवान श्रीराम चन्द्र जी के प्रति अगाध समर्पण, उनकी भक्ति की शक्ति तथा अपनी सिद्वियों के बल पर श्री हनुमान जी ने न केवल अकेले लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और लंका का दहन किया बल्कि उन्होने लक्ष्मण जी के प्राण भी बचाये और अन्ततः भगवान श्री रामचन्द्र जी ने अंहकार के प्रतीक, अपार शक्तिशाली एवं ज्ञानवान रावण का संहार किया।

सभी भिज्ञ है कि हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ करते ही मनुष्य का मन उर्जावान और शक्ति से भरपूर हो जाता है। इसलिए कलयुग में मनुष्य जीवन पर समस्त ग्रहों के प्रड़ने वाले दुष्प्रभावों को अकेले दूर करने में सक्षम, नकारात्मकता एवं भय से मुक्त प्रदान करने वाले भगवान श्री हनुमान जी महाराज को अपना आराध्य मानकर हनुमान चालीसा, बजरंग बाण का पाठ करके उनका दैनिक स्मरण करके वर्तमान की समस्त समस्याओं से मुक्ति पाना संभव है।

श्री हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का पाठ एवं स्मरण करते समय अपने शरीर के सभी अंगो की समस्त ऊर्जा को एकत्र कर अपने प्रफुल्लित एवं एकाग्रचित्त मन में समाहित करते हुए मन में मनुष्य को यह भाव रखना चाहिये कि हे अजर-अमर अंजनीसुत, अत्यंत बलशाली, बुद्वि एवं विद्या के प्रतीक, समस्त कष्टों के हरने वाले प्रभू हनुमान जी हमें आरोग्यता प्रदान करें तथा मुझें इतनी अधिक ऊर्जा शक्ति दो कि हम अपने शरीर सहित समाज की भी नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट करने में सक्षम बनें।

पाठ करने के पश्चात अपनी समस्त समस्याओं को पवनपुत्र श्री हनुमान जी पर छोड़ दें और अपनी दिनचर्या में नकारात्मक भावों के स्थान पर सकारात्मक भावों को समेंटने का प्रयास करें। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन सुबह-शाम 20 से 30 मिनट शांति भाव से ध्यान के साथ ही योग-प्राणायाम के रूप में खासतौर पर अनुलोम विलोम और कपाल भाॅति अवश्य ही करें।

आप पायेगें कि चाहे संक्रमण से बचाव की बात हो या फिर संक्रमण से मुक्ति की बात हो आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कई गुनी इस प्रक्रिया से बढ़ जायेगी और यहीं नहीं जीवन यात्रा में आने वाले तमाम भय-बाधाओं और समस्याओं से भी मुक्ति मिलेगी।

एस.वी.सिंह ‘प्रहरी’