आये दिन समाचार सुनने को मिलता है कि भारत देश ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए विख्यात टेक्नोक्रेट, राजनीतिज्ञ एवं समाजसेवी पूज्य हनुमान जी की कृपा प्राप्ति की अभिलाषा से हमेशा अपने पास हनुमान चालीसा रखते है, ऐसा करने से सम्भवतः उनके आत्मबल में वृद्धि होती है। निश्चित रूप से कलयुग में पूज्य हनुमान जी महाराज समाज की बहुत बड़ी आस एवं बल हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ के वासियों पर पूज्य हनुमान जी की विशेष कृपादृष्टि रहती है, आप सभी ने इस बात को ध्यान दिया होगा कि लखनऊ शहर हमेशा भूकम्प, अकाल, बाढ़ एवं महामारी इत्यादि दैवीय आपदाओं से बचा रहता है, इसीलिये सम्पूर्ण लखनऊवासी पूज्य हनुमान जी को अपना ईष्ट मानते हैं, लखनऊ शहर के हर गली-मोहल्ले में पूज्य हनुमान जी के छोटे/बड़े मन्दिर आपको देखने को मिलते हैं, प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को ‘‘बड़ा मंगल’’ के रूप में मनाया जाता है, उल्लेखनीय बात यह है कि यह त्यौहार केवल और केवल लखनऊ शहर में ही मनाया जाता है जिसे समस्त लखनऊवासी बहुत ही प्रेम व श्रद्धापूर्वक मनाते हैं। इस दौरान जगह-जगह प्याऊ तथा भोजन-प्रसाद भण्डारों का आयोजन होता है, ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल में लोग सुबह से ही मंदिरों में लाइन में लगकर पूज्य हनुमान जी के दर्शन करते है एवं तत्पश्चात् दैनिक आहार में भण्डारे का प्रसाद ग्रहण करते है।
यद्यपि इनकी महिमा की व्याख्या व विश्लेषण कर पाना किसी मनुष्य के वश की बात नहीं है, परन्तु अपने आराध्य पूज्य हनुमान जी की कृपा से उनके विषय में जो भी अनुभव हुआ उसका आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक विश्लेषण के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि ‘‘हर समस्या की संजीवनी – श्री हनुमान जी महाराज।’’
संसार का सृजन एवं संचालन पुरूष तत्व यानी भगवान शिव तथा प्रकृति यानी माता आदिशक्ति की ऊर्जाओं से होता है, आत्मा तत्व ‘पुरूष’ तथा शरीर तत्व ‘प्रकृति’ है, माया स्वरूप प्रकृति आत्मा की इच्छा से शरीर रूपी प्रकृति का सृजन, संरक्षण, संचालन एवं विनाशक कार्य करती है, चूंकि प्रकृति पंचतत्वों का स्वरूप है इन पंचतत्वों में प्रमुख स्थान वायु का है जो कि गति, ज्ञान एवं गुणों को देने का कारक है, पूज्य हनुमान जी रूद्रावतार और वायुदेव के पुत्र प्राणवायु के रूप में संसार में प्रत्यक्ष है इसलिए संसार को सजीव एवं गतिमान बनाने का दायित्व पूज्य हनुमान जी महाराज के हाथ में है।
प्राणवायु ही पूज्य हनुमान जी की दिव्य ऊर्जा शक्ति है, संसार भले ही नष्ट हो जाता है परन्तु प्राणवायु के अजर एवं अमर होने के नाते ब्रह्माण्ड में अवशेष रह जाती है, इसीलिए पूज्य हनुमान जी को भी अजर-अमर कहा गया है। पुराणों में कहा गया है कि ‘यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे’ अर्थात् जैसी ब्रह्माण्ड की रचना है उसी की प्रतिकृति मनुष्य का पिण्ड (शरीर) है, इस शरीर के हृदय में संसार के संचालक भगवान विष्णु अर्थात् भगवान श्रीराम का अंश होता है, प्राणवायु के रूप में पूज्य हनुमान जी महाराज भगवान श्रीराम के सेवक बनकर बिना विश्राम किये अनवरत हृदय में स्पंदन करके भगवान श्रीराम के सांसारिक संचालन अर्थात् शरीर के संचालन के दायित्वों की पूर्ति में बिना किसी स्वार्थ के समर्पित रहते है।
शरीर में वायु के प्रवेश होते ही यह पंचप्राण तथा पंच उप-प्राण का स्वरूप उत्पन्न करते है। पंच प्राण में प्रथम प्राण वायु जो पंचप्राणों का राजा है और नासिका से हृदय तक रहकर नेत्र, मुख और हृदय की क्रिया को सजीव बनाती है यही प्राणवायु अन्य प्राणवायु को कार्य आंवटन भी करती है, जिसमें अपान वायु नाभि से पैर तक रहकर मल, मूत्र, वीर्य एवं गर्भ के संतुलन स्थापित कर उसको बाहर करने का कार्य करती है, समान वायु हृदय से नाभि तक वास करके खाये हुये अन्न को पचाने तथा पचे हुये अन्न से रस, रक्त एवं धातुओें के निर्माण का कार्य करती है, उदान वायु कण्ठ से मस्तिष्क के मध्य वास करके शब्दों के उच्चारण, उल्टी को निकालने के साथ ही यही वायु मृत्यु के पश्चात् उसके कर्मो का लेखा- जोखा रखकर सम्बन्धित लोक में ले जाने तथा उसके कर्मो के आधार पर उसको उचित योनि (मनुष्य, पशु, पक्षी अथवा अन्य योनि) में जन्म लेने हेतु उसके गर्भ में प्रवेश कराने का कार्य करती है, पचंम व्यान वायु ही सम्पूर्ण शरीर में स्थापित रहकर हृदय से निकलने वाली 101 नाडियों तथा प्रत्येक नाड़ी से निकली लगभग 100-100 शाखाओं तथा प्रत्येक शाखा की 72000 उप शाखाओं अर्थात् लगभग 72721020 नाड़ी की शाखाओं एवं उप-शाखाओं में रहकर रक्त एवं प्राणों का संचार कर सदैव सजीव बनाये रखने का कार्य करती है।
इसी प्रकार पांच उप-प्राण वायु में नाग जो कण्ठ से मुख तक रहकर डकार, हिचकी आदि का कार्य करता है, कूर्म जो नेत्र के गोलकों में निवास कर आंख को दांये बाये घुमाने, ऊपर-नीचे घुमाने सहित पलकों को खोलने एवं बंद करने का कार्य करती है तथा आंसू भी इसी के सहयोग से निकलते है। कूकल नामक उप प्राणवायु मुख से हृदय के मध्य रहकर जम्हाई, भूख, प्यास आदि उत्पन्न करने का कार्य करती है, देवदत्त नामक उप-प्राण वायु नासिका से कण्ठ तक रहकर छींक, आलस्य, तंद्रा, निद्रा आदि लाने का कार्य करती है तथा धनन्जय नामक उप-प्राण वायु सम्पूर्ण शरीर में रहकर शरीर के अवयवों को खीचें रखना, मांसपेशियों को सुंदर बनाना, इसी के कारण विश्राम के समय ज्ञानेन्द्रियां एवं कर्मेन्द्रियां स्थिर रहती है मन शान्त हो जाता है, इसीलिए जब शरीर से प्राण निकल जाते है तो शरीर का खिचाव समाप्त हो जाता है और शरीर फूल कर सड़ने लगता है।
यह कार्य है प्रभु श्रीराम जी के सेवक श्री हनुमान जी का। बल-बुद्धि एवं विद्या से परिपूर्ण श्री हनुमान जी महाराज की महिमा पर यदि ध्यान दें तो पायेगें कि हर माता शक्ति की पीठ पर लगे झण्डे-पताकों में श्री हनुमान जी की प्रतिमा दर्शित होती है यहाँ तक कि अर्जुन के रथ में भी लगे झण्डे में श्री हनुमान जी की ही प्रतिमा थी, महाभारत के युद्व में सीमित संख्या, सीमित बल के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण के परामर्श पर अर्जुन के रथ पर श्री हनुमान जी की उपस्थिति मात्र से ही पाण्डवों ने महाभारत युद्व में जीत हासिल की।
श्री हनुमान जी को माता सीता से अष्ट सिद्धियों एवं नौ निधियों के दाता का वरदान है यह प्राण वायु के संतुलित स्वरूप है अष्ट सिद्वियों र्में चार मन की शक्तियां की सिद्धि क्रमशः अणिमा, महिमा, गरिमा और लघिमा सिद्वियों के माध्यम से अपने शरीर को अदृश्य रूप में अणु के समान छोटा बना लेने, किसी सीमा तक बड़ा बनाने, अपने शरीर के भार के असीमित बना लेने तथा अपने भार को अत्यंत हल्का कर वायु के सहारे उड़ने योग्य बना लेने की शक्तियां तथा चार बल की सिद्धियाँ क्रमशः प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व के माध्यम से अपनी इच्छानुसार अदृश्य होना, बेरोकटोक किसी स्थान पर आवागमन, दूसरे के मन की बात को समझ लेना, ईश्वरत्व जैसा पद प्राप्त कर लेना और किसी दूसरे को वशीभूत कर अपना दास बना लेने की सिद्धियाँ ये कुल आठ सिद्धियाँ जो श्री हनुमान जी के पास है तथा नौ निधियों में पदम्, महापदम, नील, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, संख और खर्च निधि है अर्थात् इन निधियों से सात्विक गुणों और दानक्षमता में वृद्वि, धार्मिक भावनाओं प्रबलता, धनवान होना, रजोगुण एवं तमोंगुण का विकास होना, शस्त्रों का संग्रह होना, सम्पत्ति का सुखपूर्वक भोग करना, अतुलनीय सम्पत्ति का मालिक होना, विरोधियों और शत्रुओं पर विजय हासिल करना।
भगवान श्रीरामचन्द्र जी के प्रति अगाध समर्पण, उनकी भक्ति की शक्ति तथा अपनी सिद्वियों के बल पर श्री हनुमान जी ने न केवल अकेले लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और लंका का दहन किया अपितु लक्ष्मण जी के प्राण भी बचाये जिसके परिणामस्वरूप भगवान श्री रामचन्द्र जी ने अंहकार के प्रतीक, अपार शक्तिशाली एवं ज्ञानवान रावण का संहार किया।
पवनपुत्र हनुमान जी महाराज वास्तव में प्राण वायु के रूप में आपके शरीर एवं जीवन यात्रा के संचालक, बल, बुद्धि और गति सहित अष्ट सिद्धियों एवं नौ निधियों को देने वाले है। पूज्य हनुमान जी की कृपा पाने का अत्यंत ही सरल एवं सहज मार्ग है अपने अंदर विद्यमान प्राणवायु की सिद्वियाँ प्राप्त करना जिसे योग, ध्यान एवं प्राणायाम की क्रियाओं के माध्यम से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। प्राणवायु की सिद्वियाँ प्राप्त कर शरीर को अत्यंत छोटा, अत्यंत बड़ा, अत्यंत बुद्धिमान, अत्यंत गुणवान, अत्यंत बलशाली, अदृश्य हो जाना, आयु सीमा से परे हो जाना, बिना बेरोक-टोक सूक्ष्म शरीर के रूप में कहीं भी आवागमन कर पाना अत्यंत सरल हो जाता है। इन्हीं समस्त बिन्दुओं को हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण में चौपाइयों के रूप में उल्लिखित कर उसे हमारे ऋषियों-मुनियो ने समस्याओं के समाधान का साधन बना दिया।
ज्येष्ठ माह में वातावरण बहुत ही शुष्क एवं गर्म होता है इस दौरान भूगर्भ में जल का स्तर गिर जाने से जल की आवश्यकता बढ़ जाती है जिसके दृष्टिगत हमारे पुरूखों द्वारा ज्येष्ठ के हर मंगलवार को बड़ा मंगल का नाम देते हुए इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि समाज के सक्षम लोग पूज्य हनुमान जी के सेवक बनकर समाज में भूख-प्यास को मिटाने में महती भूमिका का निर्वहन करें। जो व्यक्ति पूज्य हनुमान जी की सिद्धि प्राप्त कर लेता है उसे किसी भी समस्या के समाधान हेतु कहीं दूसरी जगह जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
एस.वी.सिंह ‘प्रहरी’