आइए शरद ऋतु का स्वागत करें, कुमुदिनी सा महका करें

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# शिवचरण चौहान

आसमान से चंद्रमा, चांदनी बिखेर रहा है। धरती पर फूल खिल गए हैं खुशबू बिखरने लगी है। सुंदरता के प्रेमी जीव फूलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। शरद ऋतु में यह सुषमा और बढ़ जाती है। दिन में कमल दल और रात में कुमुद के दल खिलखिलाने लगते हैं। जलाशय सरोवर या झील पोखर के जल बरसात के बाद स्थिर और निर्मल हो जाते हैं। तालाब के तल के कीचड़ से कमल कुल के दो पौधे पानी के नीचे से तैरते हुए ऊपर पानी की सतह में आकर तैरने लगते हैं। कमल लाल वर्ण का भारतीय फूल है और इसे भारत में राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा प्राप्त है।

कुमुद यानी कुमुदिनी या अवधी भाषा का बघौला को फूलों की रानी का दर्जा तो नहीं प्राप्त है किंतु सुंदरता में इसका जवाब नहीं है। जलाशय में पानी की सतह पर चांदनी रात में पीले रंग की पुंगकेशर के साथ जब कुमुदनी फूल खिलता है तो भीनी भीनी सुगंध आसपास फैलने लगती है। रात में विचरण करने वाले कीट इसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। लगता है चांद के लिए यह फूल खिलता है। कमल कुल के फूल भारतीय महाद्वीप में समशीतोष्ण जलवायु में पाए जाते हैं। शीत ऋतु में या सर्दी के अधिक मौसम में यह मुरझा जाते हैं। अंग्रेजी में कुमुदिनी को वाटर लिली कहते हैं। पर वाटर लिली नहीं है।

इसका वानस्पतिक नाम निमफिया है। अंग्रेज इसे इंडियन वाटर लिली कहकर पुकारते थे। भारत में कुमुद या कुमुदिनी की 6 प्रजातियां पाई जाती हैं। ऊंचे पर्वतों को छोड़कर यह भारत भर में, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा चीन के कुछ हिस्सों में खिलता है। कुमुदिनी की जड़ तालाब में कीचड़ में होती है वहीं से इसके नाल निकलकर पानी की सतह पर आ जाती है और फिर थाल के आकार के चौड़े चौड़े पत्ते अंडाकार पानी की सतह पर तैरने लगते हैं। इन्हीं पत्तों के बीच से कुमुदिनी खिलती है। वैसे तो स्वच्छ और स्थिर पानी में इसके फूल खिलते हैं। पर अगस्त से दिसंबर तक यह अपने पूरी मस्ती में होता है और रात में चांद निकलने पर यह चांद का स्वागत करने के लिए खिल जाता है अपनी बाहें फैला देता है। इसे कुछ लोग कनवल भी कहते हैं।

पानी में खिलने वाला इस फूल की पत्तियां बड़े थाल के आकार की ऊपर से चिकनी और नीचे से खुरदरी गहरे हरे रंग की होती हैं। फूल 30 से 35 सेंटीमीटर का होता है अधिकांश कुमुद के फूल श्वेत रंग के होते हैं जिनमें मध्य में पीले रंग की चमकीली पुंकेसर होती है। जो फूल को विशेष सुंदरता प्रदान कर ती है। कुछ कुमुदिनी लाल रंग की भी होती हैं। कुमुदिनी के फल हरे रंग के अंडाकार गोल होते हैं। फल के अंदर पाया जाने वाला बीज, सरसों के आकार का किंतु लाल और सफेद रंग का होता है। पकने पर गुझैनी का रंग काला हो जाता है। बीजों को सुखाकर भूनने पर खील प्राप्त होती है।

भारतीय वैद्य चरक और सुश्रुत ने कुमुदिनी के फल फूल पत्तों और डंठल के तमाम औषधीय गुण बताए हैं। आयुर्वेद में कुमुदिनी के फल फूलों और डंठल से अनेक दवाएं बनाए जाने का उल्लेख मिलता है। कुमुद या कुमुदनी के भारतीय भाषाओं में अनेक नाम मिलते हैं। सुंदरियों का यह फूल प्यारा फूल है। संस्कृत में कुमुद या निलोत्पल कहते हैं कुछ लोग इसे नीलोफर भी कहते हैं। कुमुद का फल सब्जी बनाकर भी खाया जाता है। शरद ऋतु में इसके फूलों की महिमा सुंदरता देखते ही बनती है। आदिवासी स्त्रियां इसकी नाल या डंठल समेत फूल को तोड़ कर कुमुद के फूल की माला गले में पहनती हैं।

तरु शिखा पर थी राजती कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा।

पानी के अतिरिक्त भूमि पर भी कुमुदिनी का फूल खिलता है। सफेद रंग का या फूल शरद ऋतु में चांद निकलने पर खिल जाता है और भोर  होते ही जैसे ही सूरज की किरणें धरा पर आती हैं या सिकुड़ कर झुक जाता है। श्वेत चांदी सा। पीला पुंकेसर लिए यह फूल अपनी सुंदरता के कारण कवियों, लेखकों और शायरों को बहुत लुभाता रहा है। पुरानी फिल्मों में कुमुद और कुमुदिनी को लेकर कई गीत है। कुमुदिनी का फूल मनुष्य के लिए शरद ऋतु का वरदान है। आइए शरद चांदनी में इसका स्वागत, अभिनंदन-वंदन करें।