भगवान शिव ने अपने हाथों में त्रिशूल क्यों धारण किया। भगवान भोलेनाथ का ध्यान करते ही जटाधारी सर्प और डमरू धरण करने वाले और त्रिशूलधारी शिव की छवि नजर आती है। भगवान भोलेनाथ का प्रमुख अस्त्र त्रिशूल है। हालांकि वो संहारक हैं और उन्हें किसी भी अस्त्र की आवश्यक नहीं है परंतु नीलकंठ महादेव के सभी वस्तुएं किसी न किसी का प्रतीकात्मक स्वरूप मानी जाती है। भगवान शिव के पास त्रिशूल कैसे आया, त्रिशूल किसका प्रतीक है और क्या है इसका महत्व….
भगवान शिव का त्रिशूल पवित्रता एवं शुभकर्म का प्रतीक है। प्रायः समस्त शिवालयों में त्रिशूल स्थापित किया जाता है। कई शिवालयों में सोने चांदी और लोहे की धातु से बने त्रिशूल दिखाई देते हैं। भगवान शिव का त्रिशूल में जीवन के कई रहस्य है। हिंदू मान्यता के अनुसार कई देवी-देवता त्रिशूल धारण करते हैं मान्यता है कि जब भगवान भोलेनाथ ब्रह्मनाद से प्रकट हुए तभी सृष्टि में तीन गुण उत्पन्न हुए और शिव जी शूल बनें और इससे ही त्रिशूल का निर्माण हुआ।
विष्णु पुराण में उल्लिखित है कि विश्वमकर्मा ने सूर्य के अंश से त्रिशूल का निर्माण किया था, जिसको उन्होंने भगवान शिव को अर्पित किया था।भगवान शिव का त्रिशूल तीनो कालो को दर्शाता है। यह भूत, वर्तमान और भविष्य का सांकेतिक भाव है। शिव जी के हाथ में त्रिशूल यह सन्देश देता है कि भगवान शिव के अधीन ही तीनो समय के काल है।
इस सृष्टि में तीन गुण ही प्रधान हैं| सत्व, रज और तम| भला क्यों? क्या सिर्फ एक ही गुण से सृष्टि का सृजन, सञ्चालन या निराकरण नहीं हो सकता था? क्या सिर्फ एक ही गुण पर सृष्टि टिकी रह पायेगी ?त्रिशूल की एक खासियत है, वो यह कि देखने में तो यह एक सिरे पर तीनों शूलों को अलग अलग प्रकट करता हुआ प्रतीत होता है, पर मूल में तीनो एक में ही स्थित हैं, एक में ही समाहित हो जाते हैं। वहाँ तीन का अस्तित्व नहीं रहता, या फिर यूँ कहें कि तीनों का पृथक पृथक अस्तित्व समाप्त हो हो जाता है और सिर्फ एकोSहम द्वितीयो नास्ति का स्पष्ट उद्घोष होता है।
शूल भले ही तीन हों, पर आपस में सामंजस्य तो देखिये – कहीं कोई टकराव नहीं, कोई विरोधाभास नहीं| सब एक दुसरे के परस्पर सहयोगी, पूरक हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि एक शूल उत्तर जाय और दूसरा दक्षिण। सावन में अगर कोई विधि-विधान से त्रिशूल की पूजा करता है, उसके जीवन में कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं रहती, इस तरह की मान्यताएं हैं। बहुत से लोग अपने घरों की छत पर भी त्रिशूल लगाते हैं। ऐसा करने से घर-परिवार में न केवल सुख-शांति बनी रहती हैं बल्कि नकारात्मक शक्तियां भी प्रवेश नहीं करतीं।