कश्मीर संकट व देश के पूर्व सैनिक

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प्रत्येक पूर्व सैनिक का कश्मीर से एक रिश्ता है। अपनी सेवा के दौरान प्रत्येक पूर्वसैनिक कभी न कभी कश्मीर की सीमाओं पर रहा होता है। आज कश्मीर में कश्मीरी पंडितों, गैर कश्मीरियों की हत्यायें हो रही हैं। ऐसे विरोधी वातावरण में घिरे नगरों के मध्य में नयी कालोनियां बनाकर उन्हें बसाना, स्थायी समाधान बन सकेगा, इस पर गहन संदेह है। देश के पूर्व सैनिकों की कश्मीर के समाधान की राह में एक महत्वपूर्ण भूमिका बन सकती है।

पू्र्व सैनिकों को एक योजना के तहत साथ लेकर व्यवस्थित रूप से कश्मीरी पंडितों के साथ साथ बसाने की कार्ययोजना पर कार्य किया जाए तो हम इस संकट के समाधान का मार्ग खोज सकते हैं। इस अभियान के लिए मुख्य नगरों का मोह छोड़कर उनसे अलग क्षेत्रों का रुख करना उचित होगा। उदाहरण के लिए हम जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग एन एच 44 के पूर्व में स्थित अनंतनाग जनपद व उसकी तहसीलों कोकरनाग, पहलगाम, काजीकुंड आदि को लें। यह इलाका सुरक्षित भी है और सड़कों से जुड़ा हुआ भी।

यह क्षेत्र जम्मू राजमार्ग के अतिरिक्त हिमांचल प्रदेश के चंबा मनाली से भी सड़क से जुड़ता है। सड़कें बेहतर हो रही हैं। सैनिकों-पूर्व सैनिकों की सुरक्षा में यह कश्मीर पंडितों के लिए नया आदर्श विकास क्षेत्र हो सकता है। यहां भविष्य की दृष्टि से संभावनापूर्ण पर्यटन क्षेत्र भी है। स्पष्टतः रोजगार का अभाव नहीं होगा। तात्पर्य यह है कि जब तक जनसांख्यिकी नियंत्रण में नहीं आएगी तब तक पुनर्वास के इस लक्ष्य में सफलता हासिल नहीं होगी। अतः कश्मीर घाटी के इस पूर्वी सिरे से पूर्व सैनिकों की बिरादरी साथ लगकर कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

पूर्वसैनिक सबसे सक्षम अनुशासित संगठन से आते हैं। सीमित प्रशिक्षण से ये सिविल साइड के समस्त दायित्वों यथा पुलिस कर्मी, फारेस्ट गार्ड, ड्राइवर, वायरलेस आपरेटर, सुरक्षा कर्मी, होमगार्ड कमांडर, सिविल डिफेंस, एनफोर्समेंट सम्बंधी विभागों के सफल कर्मचारी हो सकते हैं। आपदा प्रबंधन इनसे अच्छा कोई नहीं कर सकता। दरअसल हमारे विभाग उत्कृष्टता की खोज नहीं करते।

सरकारी सहयोग के बगैर भी नयी पीढ़ी की शैक्षणिक आवश्यकताओं की दृष्टि से पूर्व सैनिकगण अपने क्षेत्र में संस्थाएं गठित कर प्राइमरी सेकेंडरी विद्यालयों का संचालन कर रहे हैं। सेना व पुलिस में भरती के लिए मार्गदर्शन दे रहे हैं। सहकारी उद्यमों की स्थापना की दिशा में भी सोच बन रही हैं। समाज की नकारात्मकता के विरुद्ध वे खड़े हैं। कश्मीरी विस्थापितों को नये क्षेत्र में बसाना एक बड़ा दायित्व है। बड़े दायित्वों के लिए उन्हें तैयार करने के लिए आवश्यक है कि पूर्वसैनिकों को उनके राज्यों में एक मंच मिले, ऐसे दायित्व मिलें। बहुत वर्ष पहले मैंने अपने राज्य व केंद्र सरकार के सम्मुख ‘पूर्वसैन्यजन प्रबंधन मंत्रालय’ के गठन हेतु बतौर पूर्वसैनिक एक प्रस्ताव दिया गया था।

प्रस्ताव की प्रसंशा तो हुई, पूर्व सैनिकों के लिए प्रदेश में एक मंत्री जी नियुक्त होने लगे। लेकिन अलग मंत्रालय नहीं बन सका। ‘सैनिक कल्याण’ अभी भी समाज कल्याण विभाग का एक हिस्सा होता है। मंत्रालय हो तो पूर्वसैनिकों की सार्थक भूमिका व योगदान का मार्ग प्रशस्त हो। यह कार्य है तो कई आयामों का, जिसे प्रायः पूर्वसैनिकों के रोजगार स्वरोजगार तक सीमित मान लिया जाता है। पूर्व सैनिक व उनकी समस्याएं उनका सेवायोजन निश्चय ही महत्वपूर्ण है। लेकिन एक कर्मठ व अनुशासित सेवा से आने के बावजूद उन्हें आर्थिक सामाजिक दायित्व देने की दृष्टि से कभी विचार ही नहीं किया गया है।

आज के अराजक माहौल में पूर्वसैनिक कश्मीर समस्या के समाधान का हिस्सा बन सकें, इसके लिए उन पर विश्वास करना, उन्हें सक्षम बनाना आवश्यक है। किसी रिटायर्ड जनरल की अध्यक्षता में ‘कश्मीर पुनर्वास आयोग’ का अस्तित्व में आना, एक महत्वपूर्ण कदम होगा। वे रास्ते बनाए जाएं जिससे पूर्वसैनिकों की समर्थ सक्षम जनशक्ति का सार्थक उपयोग हो सके। एक पूर्व सैनिक मंत्रालय का गठन ऐसा ही एक रास्ता है। फौजियों को ये चुनौतियां स्वीकार हैं, जहां रास्ते नहीं होते वहां भी ये रास्ते बनाने का हुनर जानते हैं। उन्हें बस लक्ष्य दिखाना है और हनुमानजी की तरह उनकी शक्ति का स्मरण दिलाना है।

कैप्टेन आर.विक्रम सिंह
पूर्व सैनिक पूर्व प्रशासक