कश्मीर में 35 हजार साल पहले पड़े मानव के कदम

कश्मीरी पंडित भी सरयूपारिण ब्राह्मण जम्मू कश्मीर केवल भौगोलिक रूप से भारत का हिस्सा नहीं, बल्कि वहां के पंडितों का पूर्वांचल के ब्राह्मणों से है आनुवंशिक नाता बीएचयू में हुए एक सेमिनार में ये तथ्य उभर कर आया है कि करीब 8000 वर्ष पहले इनका पूर्वांचल, कश्मीर में हुआ था माइग्रेशन 8000 साल पहले लगभग सारे आश्रम और गुरुकुल पौराणिक सरस्वती नदी के किनारे ही थे, विलुप्त होने के बाद हुआ पलायन

0
42

लखनऊ। कश्मीरी पंडितों और पूर्वांचल के ब्राह्मणों के पूर्वज एक ही हैं। यह तथ्य बीएचयू में कुछ दिनों पूर्व हुए एक सेमिनार में पेश एक रिसर्च पेपर से निकल कर आया है। रिसर्च पेपर के अनुसार कश्मीर के पंडितों का यूरेशिया, लद्दाख से कोई आनुवंशिक सम्बन्ध नहीं है। ऐसे में इस रिसर्च पर विश्वास करें तो यह एक बड़ी खबर है। यह शोध पूरे भारत के ब्राह्मणों को एक करके जोड़ता है। यह शोध पत्र बीएचयू के जीन प्रोफेसर डॉ ज्ञानेश्वर चौबे ने उक्त सेमिनार में प्रस्तुत किया है। ऐसे में यह शोध पूरे भारत को एक करके देखने का साधन भी हो सकता है। शोध पत्र के मुताबिक कश्मीर में मानव सभ्यता का पदार्पण भी करीब 35000 साल पहले हुआ था।

पिछले दिनों काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुए दो दिवसीय ‘कश्मीर : अतीत, वर्तमान और भविष्य’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। इसमें जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने भी अपना एक शोध पत्र पेश किया था। उन्होंने बताया कि अभी आगे भी हमारा शोध जारी है। लेकिन प्राथमिक तौर पर जो बातें निकलकर आई हैं, उनके अनुसार कश्मीर और पूर्वांचल के ब्राह्मणों की आनुवंशिकी एक जैसी ही है। प्रोफेसर चौबे की रिपोर्ट में कहा गया है कि माईटो कोंड्रिया डीएनए के आधार पर हुए एक अध्ययन के आधार पर यह तथ्य उभर कर आया है कि कश्मीर में प्रथम मानव भी लगभग 35 हज़ार वर्ष पूर्व उत्तर भारत से पहुंचा। इस प्रकार रिसर्च पेपर के मुताबिक कश्मीरी पंडितों का आनुवांशिक संबंध सरयूपारिण ब्राह्मणों से स्थापित होता है। रिसर्च पेपर के अनुसार कश्मीरी पंडितों के डीएनए का मूल यूपी और बिहार में है। प्रोफेसर चौबे के अनुसार अभी तक कश्मीरी पंडितों को ईस्ट यूरेशिया में तिब्बत और लद्दाखी आबादी के साथ जोड़कर देखा जाता था, जबकि ऐसा नहीं लगता। प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र के जीन वैज्ञानिक हैं। उन्होंने बताया कि इस बारे में एक रिसर्च पेपर स्प्रिंजर नेचर में भी प्रकाशित हो चुका है। इसके अलावा दूसरा रिसर्च भी अंडर प्रॉसेस है। उन्होंने बताया कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमने 85 कश्मीरी पंडितों के 6 लाख 50 हजार मार्कर्स के डेटा पर अध्ययन किया। इस डेटा का ईस्ट यूरेशिया और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों के 1800 अन्य लोगों के साथ तुलना कर यह निष्कर्ष निकाला गया है। इसमें पता चला है कि इनके डीएनए का एक बड़ा घटक सिंधु घाटी सभ्यता का है जो कि आठ हजार साल पहले का है। इसमें पाया गया है कि कश्मीरी पंडितों का उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के साथ बहुत नजदीकी आनुवांशिक संबंध है।

प्रोफेसर चौबे के अनुसार पौराणिक सरस्वती नदी के विलुप्त होने तक ब्राह्मण सरस्वती नदी के किनारे ही रहते थे।‌ सरस्वती नदी के किनारे ही अधिकतर आश्रम बने हुए थे जहां पर शिक्षण और शोध का कार्य होता था। शोध पत्र के अनुसार सरस्वती नदी के विलुप्त होने के बाद ब्राह्मणों की कुछ शाखा उत्तर भारत की तरफ चली गई और कुछ कश्मीर घाटी की तरफ चले गए। इसका समय काल लगभग 8000 वर्ष पहले बताया जाता है। उस समय तक सभी कान्यकुब्ज ब्राह्मण कहे जाते थे। बाद में रामायण काल में इनमें एक विभाजन हुआ। जन चर्चा के अनुसार श्रीलंका में महापंडित रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित करने के लिए प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में एक भोज का आयोजन किया था। कहा जाता है कि जिन्होंने प्रभु श्रीराम के इस भोज का बहिष्कार किया था वे सरयू नदी पार करके पूरब की तरफ चले गए। उन्हें ही सरयूपारिण ब्राह्मण कहा गया।

प्रोफेसर चौबे के शोध पत्र के अनुसार कश्मीरी पंडितों के डीएनए का सबसे बड़ा घटक सिंधु घाटी सभ्यता का है। उनका उत्तर भारतीय ब्राह्मणों से बहुत नज़दीकी अनुवांशिक संबंध निकलता है। उनके अनुसार बायेसियन स्काईलाइन और मॉलीक्यूलर क्लॉक विश्लेषणों से कश्मीर में मानव प्रवासन के 3 प्रमुख समय दिखे हैं। जिसमे मानव का प्रथम आगमन 35 हज़ार वर्ष पूर्व हुआ। उसके बाद 25 हज़ार वर्ष पूर्व दूसरा एक्सपेंशन हुआ। जबकि तीसरा एक्सपेन्शन आठ हज़ार वर्ष पूर्व हुआ। इसमें ईस्ट और वेस्ट यूरेशिया से भी लोग आए और वहां रहने वाले लोगों से घुल मिल गए। इस तरह भारत के अन्य हिस्सों की तरह जम्मू-कश्मीर के लोगों का डीएनए भाषा के आधार पर नहीं बल्कि भौगोलिक आधार पर मिलता है। शोध पत्र के मुताबिक इससे इतर कश्मीरी पंडित लोगों के पास ईस्ट यूरेशिया (तिब्बत और लद्दाख) का कोई डीएनए नहीं मिला।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक