शिक्षक भर्ती मामले में सरकार बैकफुट पर

* 69000 शिक्षकों की भर्ती का मामला यूपी सरकार के गले की फांस बन गया * अखिलेश यादव का दबाव काम आ गया, अब हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती नहीं देगी योगी सरकार * अधिकारियों को हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में नयी मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश हुआ जारी * इस मुद्दे पर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव में जुबानी जंग भी जारी * शुक्रवार के पहले तक बैक फुट पर आ गई सपा को हाईकोर्ट के इस आदेश ने दे दी है संजीवनी

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लखनऊ। 69000 बेसिक शिक्षकों की भर्ती मामले में हाल ही में आया इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश योगी सरकार के गले की फांस बन गया है। सरकार ने मामले की नजाकत को भांपते हुए पिछड़े-दलित वोट बैंक की राजनीति के मद्देनजर फैसला किया है कि वह इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देगी। और हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार नई लिस्ट बनाएगी। हांलांकि यह फैसला लेने में सरकार को पूरे 2 दिन लग गए। इस मामले में योगी सरकार की दिक्कत यह थी कि अगर वह हाईकोर्ट की बात मानती है तो उसे अपने ही फैसले को पलटना पड़ेगा। और अगर नहीं मानती है तो विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा और सरकार को पिछड़ों और दलितों के आरक्षण का विरोधी बनाकर कठघरे खड़ा कर देगा। और लोकसभा चुनाव में विपक्ष के दुष्प्रचार से झटका खा चुकी भाजपा उपचुनाव के मद्देनजर कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं थी। इस मामले में विपक्ष के प्रमुख नेता अखिलेश यादव का दबाव काम कर गया और सरकार को अपनी ही पुरानी मेरिट लिस्ट रद्द कर नई सूची बनाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

इस मामले में बसपा सुप्रीमो मायावती और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के तीर भी सरकार पर लगातार चले। हालांकि इस मुद्दे पर जवाब देने का मोर्चा मुख्यमंत्री योगी के साथ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी संभाल रखा है। केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव में तो वार और पलटवार जारी है। योगी सरकार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए रविवार को ही बेसिक शिक्षा विभाग की एक बड़ी बैठक कर रणनीति तैयार की और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में न जाने का फैसला किया है। साथ ही अधिकारियों को हाईकोर्ट के इस आदेश के आलोक में नयी मेरिट लिस्ट बनाने का निर्देश जारी किया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत शुक्रवार को दिए अपने आदेश में वर्ष 2020 में सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए बनाई गई मेरिट लिस्ट को निरस्त करते हुए 3 महीने के अंदर नई मेरिट लिस्ट बनाने और नियुक्ति देने का आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद पक्ष और विपक्ष में श्रेय लेने की होड़ लग गई है। सपा जहां इसे अपनी लड़ाई का अंजाम बताती है वहीं भारतीय जनता पार्टी किसी भी हालत में उसे श्रेय लेने से रोकने पर आमादा है।

हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने हाईकोर्ट के आदेश की तारीफ करते हुए इसे पिछड़ों की एक बड़ी जीत बताया और कहा कि इससे पिछड़ों को उनका हक मिलेगा। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि दर्द देने वाले दवा देने का दावा न करें। इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर दोनों में वार-पलटवार का दौर शुरू हो गया। यहां तक कि दोनों ओर से व्यक्तिगत आक्षेप भी खूब लगाए गए। जानकारी के अनुसार 69000 बेसिक शिक्षकों की भर्ती के लिए योगी सरकार के कार्यकाल में 2020 में पहली मेरिट सूची जारी हुई थी। और उसी समय से विवाद शुरू हो गया था। कई अभ्यर्थियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था। और तब से यह मामला उतार-चढ़ाव लेते हुए शुक्रवार को अपनी परिणति पर पहुंचा।

वैसे इस मामले में यदि उत्तर प्रदेश सरकार चाहती तो वह मामला लटकाने के लिए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी कर सकती थी किंतु अभी के माहौल के मुताबिक उसे यह निर्णय ठीक नहीं लगा। और पिछडा और दलित वोट बैंक की नाराजगी को टालने के मद्देनजर उसने अपने पैर पीछे खींचते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर अमल करने का फैसला लिया। सूत्रों का कहना है कि इसमें देरी न करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार 18 अगस्त को ही बेसिक शिक्षा विभाग के मंत्री व अफसरों की बैठक बुलाकर सुप्रीम कोर्ट न जाने और हाईकोर्ट के फैसले पर अमल करने का निर्णय लिया। सरकार ने अफसरों को निर्देश दिया है कि हाईकोर्ट की मंशा के अनुसार 3 महीने के अंदर नई मेरिट लिस्ट बनाई जाए। इस बाबत सीएम आवास पर हुई बैठक में बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार संदीप सिंह, महानिदेशक बेसिक शिक्षा कंचन वर्मा के साथ महाधिवक्ता व अपर महाधिवक्ता भी मौजूद रहे। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद काम शुरू भी हो गया है।

दूसरी तरफ इस मामले में श्रेय लेने की होड़ इस कदर है कि केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव वार पलटवार में शब्दों की मर्यादा तक भूल गए हैं। एक-दूसरे पर तरह-तरह के आक्षेप लगाए जा रहे हैं। इस बाबत सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का कहना है कि इस शिक्षक भर्ती मामले में उत्तर प्रदेश के एक ‘कृपा-प्राप्त उप मुख्यमंत्री जी का बयान भी साज़िशाना है। पहले तो आरक्षण की हक़मारी में वे ख़ुद भी सरकार के साथ संलिप्त रहे और जब युवाओं ने उन्हीं के ख़िलाफ़ लड़कर, लंबे संघर्ष के बाद इंसाफ़ पाया, तो अपने को हमदर्द साबित करने के लिए आगे आकर खड़े हो गये। अखिलेश यादव का कहना है कि दरअसल ये ‘कृपा-प्राप्त उप मुख्यमंत्री जी’ शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों के साथ नहीं हैं, वो तो ऐसा करके भाजपा के अंदर अपनी राजनीतिक गोटी खेल रहे हैं। वो इस मामले में अप्रत्यक्ष रूप से जिनके ऊपर उँगली उठा रहे हैं, वो ‘माननीय’ भी अंदरूनी राजनीति के इस खेल को समझ रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि शिक्षा और युवाओं को भाजपा अपनी आपसी लड़ाई और नकारात्मक राजनीति से दूर ही रखे, क्योंकि भाजपा की ऐसी ही सत्तालोलुप सियासत से यूपी कई साल पीछे चला गया है। इसके जवाब में केशव मौर्य ने कहा है कि सपा बहादुर कांग्रेस मोहरा श्री अखिलेश यादव जी का पीडीए बहुत बड़ा धोखा है। झूठ बोलने की ऑटोमैटिक मशीन बनी सपा ने लोकसभा चुनाव में जैसे संविधान ख़त्म हो जाएगा का दुष्प्रचार किया, उसी प्रकार अब पीडीए का झूठ फैला रही है। जनता उनके इस झूठ को खूब समझ रही है।

उधर इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने हाईकोर्ट द्वारा सहायक अध्यापक भर्ती परिणाम रद्द करने के आदेश को स्वागत योग्य कदम बताया है। उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य पर तंज कसते हुए कहा है कि केशव मौर्य के इशारों पर यहां की पुलिस ने शिक्षकों के आंदोलन को कुचलने का काम किया था। और आज ये लोग हाईकोर्ट के फैसले की प्रशंसा कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने तो इस शिक्षक भर्ती को भाजपाई घपले और घोटाले का शिकार तक कह दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी कहा है कि हाईकोर्ट के फैसले से यह साबित हो गया है कि भर्ती में गड़बड़ी हुई है।
हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद अखिलेश यादव ने जहां इसे समाजवादी पार्टी के प्रयासों की जीत बताया है वहीं प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस आदेश को पिछड़ों और दलितों के हित में बताया। इसके बाद से ही अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच एक्स प्लेटफार्म पर वार और पलटवार का दौर शुरू हो गया।

दरअसल हाईकोर्ट का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब भाजपा अयोध्या, कन्नौज और लखनऊ में सपाइयों की गंदी हरकतों को मुद्दा बनाकर और इसे महिलाओं के विरुद्ध अपराध बताकर सपा को लगभग अर्दब में ले चुकी थी। समाजवादी पार्टी इन घटनाओं को लेकर पूरी तरह बैकफुट पर आ रही थी। किंतु हाईकोर्ट के इस आदेश ने अब भाजपा को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर कर दिया है। इस फैसले के बाद अब सपा हमलावर दिख रही है। योगी सरकार को भी पूरे दो दिन लग गए यह तय करने में कि हाईकोर्ट के फैसले के साथ चला जाए या सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाए। वर्तमान राजनीतिक माहौल में सरकार को अपील करना मुफीद नहीं लगा और उसने हाईकोर्ट के फैसले के साथ जाना ही उचित समझा। अभी ताज़ा-ताज़ा लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से मात खा गयी भाजपा दलित और पिछड़े वर्ग के आरक्षण के मामले में कोई नया रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है।

इसके अलावा आसन्न विधानसभा उपचुनाव के मद्देनजर तो मामला और भी संवेदनशील हो गया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद भाजपा को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। आदेश के बाद सपा के साथ अन्य विपक्षी पार्टियां सरकार पर इतनी तेजी से हमलावर हुईं कि भाजपा को बैकफुट पर आना पड़ा। हाई कोर्ट के इस एक आदेश ने प्रदेश का सियासी माहौल बदल कर रख दिया है। शुक्रवार के पहले तक जो समाजवादी पार्टी भाजपायों के हमलों से तिलमिलाई हुई थी, अब उसे एक संजीवनी मिल गई है। वही सपा अब अपने सारे घाव भुलाकर भाजपा पर हमलावर है। सियासी माहौल बिल्कुल बदल गया है।

हालांकि अभी भी सपा समेत पूरा विपक्ष यह नैरेटिव बनाने में लगा हुआ है कि योगी सरकार के चलते ही दलितों और पिछड़ों को इस नियुक्ति में पूरा आरक्षण नहीं मिल पाया था। विपक्ष मामले को भाजपा विरोधी बनाने में जुटा हुआ है। किंतु योगी सरकार ने बिना देरी किए हाई कोर्ट का आदेश मानकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह दलितों और पिछड़ों के आरक्षण के मामले में भाजपा पूरी तरह संवेदनशील है। और उसे भी उनके हितों की चिंता है। इसके बावजूद दोनों ओर से वार और पलटवार जारी है। अब तो अखिलेश यादव में इसमें नया पेंच फंसा दिया है। और वह ये है कि नई मेरिट लिस्ट बनने के बाद जो शिक्षक इसमें से निकलेंगे, उनका क्या होगा, उनका इसमें क्या दोष है। कई साल से काम कर रहे, इन शिक्षकों के बारे में भाजपा क्या करेगी, उसे यह बताना होगा। हालांकि सरकार ने साफ किया है कि नयी मेरिट लिस्ट बनने से प्रभावित होने वाले कार्यरत शिक्षकों के लिए भी अलग से प्रस्ताव बनाया जाएगा। अब देखना यह है कि आने वाले विधानसभा उपचुनाव में जनता का मिजाज क्या कहता है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक