लखनऊ/नयी दिल्ली। एनडीए की तीसरी सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अपना कामकाज शुरू कर दिया और पहला ही आदेश किसानों के लिए किया। उन्होंने किसान कल्याण निधि की अगली किस्त के रूप में लगभग 20000 करोड़ रुपए जारी किए जिससे करीब 9.5 करोड़ किसानों को फायदा होगा। इसके साथ ही सरकार ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि वह न तो अपना कोई प्रोजेक्ट रोकेगी और न किसी दबाव में काम करेगी। चर्चाएं यह भी हैं कि इस योजना की राशि में बढ़ोतरी की जा सकती है। साथ ही मुफ्त राशन योजना में भी राशन बढ़ाया जा सकता है।
चुनाव परिणामों ने एक बात साफ कर दी है कि किसान, गरीब, आरक्षण, संविधान और बेरोजगारी को प्राथमिकता पर रखकर ही सरकार चल पाएगी। इसके अलावा बाकी मुद्दे जैसे पीओके की वापसी, यूसीसी, मुस्लिम तुष्टिकरण, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दे दूसरी सूची में रखने होंगे। क्योंकि लगता नहीं कि बीजेपी के अलावा गठबंधन के अन्य सभी साथी इस पर एकमत हों। हां, इन पर अचानक ही कोई बड़ा फैसला हो सकता है। जिसमें गठबंधन साथियों की मजबूरी होगी कि वे भी समर्थन करें।
18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में किसान बहुल क्षेत्रों हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को अपेक्षा के अनुसार सीटें नहीं मिली हैं। इसके चलते लोकसभा में उसकी सदस्य संख्या बहुत कम हो गई है। इस परिणाम को देखते हुए भाजपा के रणनीतिकार काफी चिंतित हैं। इसीलिए मोदी ने तीसरी सरकार के अपने पहले आदेश में है किसानों के लिए किसान कल्याण निधि के रूप में अगली किस्त जारी कर दी । इससे सरकार यह संदेश देना चाहती है वह किसान कल्याण के लिए बहुत गंभीर है और आगे भी किसान कल्याण के कार्य करती रहेगी। केंद्र सरकार के सूत्रों ने बताया यह भी हो सकता है कि किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए किसान कल्याण निधि की राशि भी बढा दी जाए। परंतु यह कब होगा यह नहीं बताया। पर उनका इतना विश्वास है कि यह होगा जरूर। इसी प्रकार ओबीसी के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश में मात खाई भाजपा ने इसको भी बहुत गंभीरता से लिया है। इसीलिए केंद्रीय मंत्री परिषद के गठन में उसने ओबीसी का बहुत ख्याल रखा है और सर्वाधिक मंत्री इसी वर्ग से ही बनाए गए हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा को यूपी के फैजाबाद और पूर्वांचल में अपनी हार से बड़ा सबक मिला है। उनका मानना है कि यहां उसकी हार ओबीसी वोटों के छिटकने से हुई है। इसलिए उनको अपने पाले में फिर लाने के लिए केंद्रीय मंत्रि परिषद के गठन में ज्यादा से ज्यादा ओबीसी मंत्री बनाकर जनता में यह मैसेज दिया गया कि हमें वोट मिले चाहे न मिले हम ओबीसी के हित में काम करते रहेंगे।
इसके अलावा दलित वर्ग के वोटर जो मायावती के साथ हर हाल में रहते थे वे भी इस बार उनसे छिटके और भाजपा की गणित गड़बड़ा गयी। उन्हें विकल्प के रूप में सपा और कांग्रेस का गठबंधन मिला और वे वहां चले गए। इसके अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा मुफ्त राशन योजना में 5 किलो की बजाए 10 किलो राशन देने का आश्वासन भी काम कर गया। जनता ने इसी विकल्प को चुना। बीजेपी की हार में यह कारण भी बहुत मजबूती से सामने आया। क्योंकि जनता तो मुफ्त का खाने की आदी हो गई है। वो चाहे बीजेपी दे या कांग्रेस, जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता। कम से कम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वोटिंग ट्रेंड तो यही दर्शाते हैं। जहां मुफ्त के चक्कर में राज्य सरकार के लिए जनता आम आदमी पार्टी को वोट देती है और केंद्र में भाजपा को। क्योंकि जनता को पता है की मुफ्त राशन योजना में तो केंद्र सरकार काम कर ही रही है। इसीलिए फ्री पानी और बिजली के लिए जनता वहां आम आदमी पार्टी ही वोट देती है। इसीलिए दोनों चुनाव में दिल्ली की जनता अलग-अलग मतदान करती है। चर्चा है कि मोदी सरकार अपनी इस योजना की भी समीक्षा करके राशन बढ़ा सकती है।
18वीं लोकसभा के लिए चुनाव संपन्न होने के बाद बने नये सियासी समीकरण में भाजपा 240 सीटें पाकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। उसके दोनों सबसे मजबूत गठबंधन साथी तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड के साथ अभी पूरा गठबंधन एकजुट है। भाजपा और गठबंधन के साथियों को मिलाकर लोकसभा में 293 सीटें मिली हैं जो सरकार चलाने के लिए पर्याप्त है। हालांकि कम सीटें आने के बावजूद भाजपा ने अपने गठबंधन के साथियों को बता दिया है कि वह न तो अपने एजेंडे से हटने वाली है और न ही किसी दबाव में काम करने वाली है। इसकी झलक सरकार बनाने में दे दी गई है। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में 4 जून के बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि अब भाजपा को दबाव में काम करना होगा, किंतु सरकार गठन में यह बिल्कुल नहीं दिखा। मोदी ने गठबंधन के साथियों के लिए सीटों के हिसाब से ही मंत्री बनाए। हां, इस बात का जरूर ख्याल रखा कि गठबंधन का कोई साथी अगर एक ही सीट लेकर आया है तो उसका भी सम्मान किया और उसे मंत्री पद दिया है।
यह भी सच है कि भाजपा ऊपर से चाहे जो भी कहे किंतु अंदर से उसकी चिंता बनी हुई है। नरेंद्र मोदी को गठबंधन की सरकार चलाने का अभी तक कोई अनुभव नहीं रहा है। चाहे वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हों या भारत सरकार के प्रधानमंत्री। किंतु इस बार परिस्थितियों भिन्न हैं। इसलिए यह सरकार सफल होगी या नहीं आने वाला वक्त ही बताएगा परंतु फिलहाल तो सब कुछ ठीक दिख रहा है। वैसे भी गठबंधन के दोनों बड़े साथियों तेलुगु देशम और जनता दल यूनाइटेड को कोई मजबूत विकल्प दिख भी नहीं रहा है। उन्हें साफ-साफ पता है कि दूसरे गठबंधन में ये लोग जाकर मिल भी जाते हैं तब भी वहां सरकार बनती नहीं दिख रही है। इसलिए भी उन्होंने दूसरे गठबंधन के लोगों के तमाम प्रलोभन को अनदेखा कर दिया। परंतु राजनीति संभावनाओं का खेल है और आवश्यकताओं का मेल है। कल क्या होगा, यह कोई नहीं जानता। किंतु आज की तारीख में एनडीए एक है और अपने रास्ते पर चल निकला है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक