धागे से पत्तियों को सिल देती है दर्जिन चिड़िया

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# नन्ही सी फुदकी चिड़िया की दुनिया भर में 120 जातियां प्रजातियां

# भारतीय उपमहाद्वीप में फुदकी पंछी की करीब बारह (१२) प्रजातियां

# हरे रंग की फुदकी को दर्जिन चिड़िया भी कहा जाता है

# यह पेड़ पौधों और लताओं की पत्तियां आपस में सिल कर अपना घोंसला बनाती है

फुदकी या दर्जिन चिड़िया भारत की सुपरचित चिड़िया है। हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के मैदानों तक यह छोटी सी चिड़िया अपनी दुम ऊपर नीचे हिलाते मिल जाएगी। यह डाली पर हरदम फुदकती ही रहती है शायद इसीलिए इसका नाम फुदकी पड़ा है।

दर्जिन फुदकी करीब 4 या 5 इंच लंबी चिड़िया है। इस चिड़िया के पीठ चमकीली हरी, पेट सफेद और माथा भूरा होता है। नर और मादा पंछी एक समान दिखाई देते हैं। रेगिस्तानी इलाकों को छोड़कर यह चिड़िया सारे भारत भर में पाई जाती है। घने जंगल इसको पसंद नहीं है। यह गांव के शहरों के कस्बों के आसपास के पेड़ों पौधों और झाड़ियों में रहती है। थोड़ी थोड़ी देर में पिट-पिट की आवाज करती रहती है और दुम ऊपर नीचे करके फुदकती रहती है।

आम के पत्ते, नीम, बरगद, पीपल आदि के पत्ते या किसी लता या झाड़ी के पत्ते आपस में सिल कर अपना घोंसला बनाती है। नीम की तीन या चार पत्तियां आपस में जोड़कर रेशम से धागा निकालकर या मकड़ी के जाले से धागा निकाल कर अपनी चोंच से पत्तियों में छेद कर धागे से घोंसला बुनती है। इसका घोसला कुल्हड़ की तरह या सीधे कप की तरह होता है। जून से लेकर अगस्त तक या चिड़िया अपना प्रजनन करती है और घोसले में अंडे रखती है।

मादा घोंसले के आसपास चिट चिट करती फुदकती रहती है। बया पक्षी के बाद दर्जिन चिड़िया का ही घोषणा सुंदर होता है। कौवा अक्सर फुदकी के अंडे खा जाता है। करीब 15 दिन बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं और अपनी मां के साथ उड़ने लगते हैं। इसका अंडा चितकबरा या नीले रंग का होता है। इसका सबसे बड़ा दुश्मन कौवा और सांप है। दर्जिन चिड़िया बहुत पतले रेशम के धागों मकड़ी के जाले के धागों से कैसे अपना घोंसला बना लेते हैं आश्चर्य की बात है।

दर्जिन फुदकी के अलावा भारत में अन्य कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें प्रमुख हैं पिटपिटी फुदकी, चिकुर या पितपिटिया, टुनटुनी फुदकी, टिकटिकी फुदूकी श्वेत कंठी, टिकरा चिचिटिया फुदकी, हरी फूदकी, धानी फुद्की अब लखी फुदकी, तरूकुजनी फुदकी, मछं मारनी फुदकी,पहाड़ी फुदकी, डोरिया फुदकी, जंगली फुदकी, सिलेटी फुदकी, धुरिया फुदकी आदि।

दर्जिन फुदकी को छोड़कर बाकी फुदकी चिड़िया नर और मादा एक समान दिखाई देती है। कुछ चिड़िया पत्तियां सिल कर तो कुछ किसी डाल पर झाड़ी पर लता पर खंडहर में अपना छोटा सा प्याले नुमा घोंसला बनाती हैं। घोसले में गाय भैंस या अन्य किसी जानवर के बाल उखाड़ कर घोसले को मुलायम बनाती हैं। किस्म किस्म की खुद की चिड़िया जम्मू कश्मीर से लेकर असम तक और मैसूर तक पाई जाती हैं। चिट चिट करना और फुदकना दुम ऊपर नीचे हिलाना इनको अच्छा लगता है। हवा में उड़ते छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े इनका मुख्य आहार है। पत्तियों फूलों मैं लगे लारवा भी ये बड़े चाव से खाती हैं। फुदकी को भारत का हमिंग वर्ड भी कह सकते हैं।

# शिवचरण चौहान