मौसम कोई भी हो… खासतौर से सर्दी या बरसात आती तब बाज़ारों की रोनक लाल रंग के पत्ते की साग-सब्ज़ी बन जाती। इस सब्ज़ी के पत्ते पालक के समान होते परंतु स्वाद अलग है। इसे हम चौलाई या लाल साग कहते है। वैज्ञानिक इसे एमरेंथ ड़बियस नाम से पुकारते है। इसका पौधा 30-60 से मी ऊँचा होता है और तना गहरा धारी दार ओर घनी शाखाएं वाला होता है। इसके पत्ती लंबी और चौड़ी होती है। फूल छोटे और श्यामल रंग के होते हैं। इसके फूल गुच्छे में लगते है। इसके बीज चमकीले छोटे और गोल होते हैं।
चौलाई पौधों में फूल और फल वर्षा ऋतु में आता है। भारत में चौलाई की खेती सभी जगह क़ी जाती है। इसका प्रयोग सब्ज़ी में और चिकित्सा में किया जाता है। चौलाई बहुत फ़ायदेमंद है, ये सेहत के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसमें फ़ाइबर की मात्रा अधिक होती है। जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है। आयुर्वेद में चौलाई का प्रयोग पीलिया, मुँह में छाले, साँस के रोग में, पेशाब में जलन में की समस्या के लिए उपयोग किया जाता है।
लाल साग में आयरन की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है। जिससे अनीमिया से परेशान व्यक्ति को इसको खाने से फ़ायदा होता है। आँखों की रोशनी, पेचिश में या साँप के काटने में इसक़े पेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एक प्रोटीन होता है, जो इंसुलिन लेवल को कम करने में सहायता करता है। लाल साग में आयरन, मैगनीशियम, फास्फोरस पाए जाते हैं, जो कैंसर की सेल से लड़ने में मदद करते हैं।
चौलाई को विटामिन की खान कहा जाता है। इसमें विटामिन `सी´, विटामिन`बी´ व विटामिन`ए´ की अधिकता होती है। विटामिनों की कमी से होने वाले सारे रोगों में चौलाई का रस फायेदेमंद है। चौलाई का रस शरीर को स्वस्थ करता है। चौलाई की तासीर गर्म होती है। इसलिए व्रत में, बदलते मौसम में होने वाली बीमारी से बचने के लिये दूध के साथ लिया जाता है। दूध शरीर में शीतलता लाता है। जीवन में यदि स्वस्थ रहना है तो दिन में एक बार चौलाई यानी लाल साग का सेवन करे।
सीमा मोहन