सामाजिक न्याय के लिए संविधान समर्थकों को मिलकर लड़नी होगी लड़ाई

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सामाजिक न्याय के लिए संविधान समर्थकों को मिलकर लड़नी होगी लड़ाई……राजनीति में बहुजन समाज को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रहे दलित और पिछड़ा वर्ग के नेताओं की भी जिम्मेदारी बनती है कि भारतीय संविधान को बचाने के लिए अपने आपसी राग द्वेष भूलकर दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज की लड़ाई लड़ रहे दलों के साथ मिलकर संघर्ष करें, तभी इन वर्गों के हित सुरक्षित रह पाएंगे।

देश में इन वर्गों के जो मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक हालात तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी बदतर ही हैं, ऐसी स्थिति में एक ही विचारधारा के लोगों के अलग-अलग या आपस में ही एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने का नुकसान केवल और केवल बहुजनों को ही होगा। देश में लोकसभा के चुनाव करीब हैं, ऐसे में पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक यानि पीडीए को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ रहे समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के प्रयासों को थोडा झटका जरूर लगा है, क्योंकि सपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे स्वामी प्रसाद मौर्या और अपना दल कमेरावादी की नेता और सपा के चुनाव निशान पर एमएलए का इलेक्शन जीतीं पल्लवी पटेल ने समाजवादी पार्टी पर पीडीए की उपेक्षा का आरोप लगाना शुरू कर दिया है।

देश में संविधान बचाने की लड़ाई खुलकर मैदान में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ही लड़ रही है, लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में जिस तरह से समाजवादी पार्टी के अन्दर से ही सपा नेतृत्व पर पीडीए की उपेक्षा किये जाने की आवाज उठने लगी है उससे इस मूवमेंट को ही नुक्सान होगा क्योंकि इस लड़ाई को संयुक्त रूप से मिलकर लड़ने की जरूरत है तभी बहुजनों को उनके संविधान प्रदत्त अधिकार दिलाये जा सकेंगे। यूपी में राज्यसभा की तीन सीटों में से दो पर सवर्णों को सपा द्वारा प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद पार्टी के अन्दर ही विरोध के स्वर उठने लगे, लेकिन राज्यसभा में प्रत्याशियों के चयन से ज्यादा जरूरी है देश में अगले दो-तीन महीनों में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में बहुजन हितों की रक्षा का संकल्प लेने वाले नेताओं को एकजुट होकर संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे दल के साथ खड़े रहना चाहिए क्योंकि जब संविधान रहेगा तभी इन नेताओं का भी वजूद रहेगा, अगर संविधान ही नहीं बचा तो राजनीति में दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों का वजूद ही ख़त्म हो जायेगा, इसलिए इन नेताओं को पहले आपस में मिलकर संविधान विरोधी ताकतों को सत्ता से बाहर करने की जरूरत है बाद में अपने अधिकारों के लिए पार्टी और सरकार में रहकर भी लड़ा जा सकता है।

बहुजन नायक कांशीराम जी ने सदियों से गैर बराबरी के आधार पर दबाये और सताए गए दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों जिनकी आबादी 85 फ़ीसदी है, उन्हें एकजुट करके संघर्ष किया और उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकार दिलाये, लेकिन मौजूदा परिवेश में संविधान ही खतरे में है और अगर देश का संविधान ही नहीं बचा तो देश के दबे-कुचले और वंचित समाज का वजूद भी नहीं बचेगा क्योंकि इन वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा भारतीय संविधान में ही निहित है। कांशीराम जी के जीवित रहने तक बहुजन समाज पार्टी ने बहुजनों के हितों की लड़ाई खुलकर लड़ी, लेकिन कांशीराम जी के निर्वाण प्राप्त करने के बाद बसपा अपने मिशन से ही भटक गयी, जिसकी वजह से बहुजन समाज के लोगों में काफी निराशा भी है, मौजूदा हालात में यूपी में संविधान बचाने की लड़ाई समाजवादी पार्टी ने शुरू की और बहुजन मूवमेंट को मजबूत करने के लिए ही पीडीए का नारा दिया, सपा के इस नारे से बहुजन समाज के लोग अपने को इस पार्टी से जोड़ पा रहे हैं, यदि ऐसे में बहुजन आन्दोलन से जुड़े लोग जिन्होंने खुद भी बहुजन समाज को उनके अधिकार दिलाने के लिए लम्बा संघर्ष किया अगर ये लोग ही लोकसभा चुनाव से पहले अपने विरोध के स्वर बुलंद करेंगे तो इससे बहुजन आन्दोलन ही कमजोर होगा।

सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर की चिंता है कि वंचित समाज की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी समाप्त हो रही है, लेकिन ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस वर्ग के नेता केवल इनका वोट पाने की खातिर तो सामाजिक न्याय की बात करते हैं जब संविधान विरोधियों को हराने की बात आती है तो ये सामाजिक हित छोड़कर अपने व्यक्तिगत हित के लिए समाज विरोधी ताकतों के साथ हाथ मिला लेते हैं। लोकसभा चुनाव सन्निकट हैं ऐसे में बहुजन समाज के ही कुछ नेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए दीर्घकालीन सामाजिक हितों के विरुद्ध काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि व्यक्तिगत स्तर पर किसी के साथ मतभेद या मनभेद हो सकता है, किन्तु जब समाज का मान-सम्मान और अस्तित्व खतरे में हो तो सबको एकजुट होकर समाज हित में खड़ा होना चाहिए।

कमल जयंत