नयी दिल्ली। पहले राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से किनारा, उसके बाद 144 साल बाद लगे विशेष संयोग वाले प्रयागराज महाकुंभ से किनारा और अब हिमाचल प्रदेश में मंदिरों से वसूली आदि ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें देखकर लगता है कि कांग्रेस पार्टी अब सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर आमादा हो गई है। शायद अब उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसका हिंदू जनमानस पर क्या प्रभाव पड़ेगा। उसने शायद मान लिया है कि उसे हिंदुओं का वोट नहीं मिलना है। इसलिए जितना हो सके सनातन और सनातनियों की उपेक्षा करो और सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करो। दरअसल उस पर ऐसा आरोप इसलिए लग रहा है क्योंकि हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य की 35 मंदिरों के अधिग्रहण के बाद उन पर 10 फीसदी टैक्स लगाने की कोशिश की। सरकार ने इसके लिए विधानसभा से कानून के पास कराया किंतु राज्यपाल ने मामला लटका दिया। इसके बाद अब सरकार ने हिमाचल के मंदिरों को निर्देश देकर उनसे सहायता के नाम पर धन की मांग की है। तर्क यह दिया जा रहा है कि राज्य के मंदिर सक्षम हैं, इसलिए उनसे सहायता की अपेक्षा की जा रही है। इसे लेकर भाजपा हमलावर है। उसका सवाल है कि सहायता ही लेना है तो वकफ बोर्ड से क्यों नहीं लिया जा रहा है।
दरअसल हिमाचल प्रदेश इस समय भयंकर कर्ज में है। एक अनुमान के अनुसार हिमाचल प्रदेश पर 95000 करोड़ का कर्ज है। उसके पास कर्मचारियों को देने के लिए पैसा नहीं है, पेंशन बांटने के लिए पैसा नहीं है। और अब तो चुनाव में अनाप-शनाप की गई घोषणाओं को पूरा करने के लिए भी धन की दिक्कत आ गई है। इसलिए हिमाचल सरकार ने अपने राज्य के मंदिरों से वसूली के अंदाज में पैसा मांगा है। हालांकि ऐसा पहले भी हुआ है कि मंदिरों ने संकट काल में कि कई बार सरकारों की मदद की है किंतु बिना किसी दबाव के। जिस मंदिर को जितना बन पड़ा, उसने उतना दिया, लेकिन अपनी स्वेच्छा से। परंतु इस बार कहानी उलट है। सरकार बाकायदा दबाव डालकर वसूली के अंदाज में पैसा मांग रही है। और इसी बात का विरोध हो रहा है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस की नजर मंदिरों के धन पर है, चढ़ावे पर है। वह खिसियाहट में मंदिरों का धन लेना चाहती है, क्योंकि हिंदू समाज ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इग्नोर किया है। उनका का कहना है कि कांग्रेस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह वक्फ बोर्ड से भी इस तरह की कथित मदद की अपेक्षा कर सके।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के 35 मंदिरों का अधिग्रहण किया है। उनका प्रबंधन संबंधित जिलों के उपायुक्तों की मार्फत होता है। आरोप है कि कांग्रेस की नजर उन मंदिरों के चढ़ावे और उनमें रखे गए धन पर है। और चूंकि हिमाचल प्रदेश सरकार आर्थिक रूप से पूरी तरह कमजोर हो चुकी है इसलिए अब अपने अनाप-शनाप चुनावी वादों को पूरा करने के लिए इन मंदिरों से पैसे की चाहत रखती है। खबर है कि इसीलिए मंदिरों को इस तरह का निर्देश दिया गया है। इस बारे में भाजपा का आरोप है कि दरअसल कांग्रेस इस रास्ते अपनी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति को आगे बढ़ाना चाहती है। चूंकि उसकी हिम्मत वक्फ बोर्ड से पैसा मांगने की नहीं है। इसलिए वह सिर्फ हिंदुओं को परेशान करने के लिए सनातनी मंदिरों से पैसे की मांग कर रही है। जानकारी के अनुसार हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने पिछले दिनों विधानसभा से एक कानून पास कर मंदिरों के चढ़ावे पर 10% टैक्स लगाने की कोशिश की थी। उस विधेयक को विधानसभा से पास भी करा लिया था, लेकिन राज्यपाल ने इस बिल को मंजूरी नहीं दी, इसलिए मामला लटक गया। अब चूंकि यह मामला लटक गया है इसलिए सीधे-सीधे 10% टैक्स न मांग कर सहयोग के नाम पर सरकारी निर्देश जारी किया गया है, ताकि कांग्रेस सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा कर सके। परंतु उसके इस आदेश की जमकर खिलाफत हो रही है। भाजपा ने इसको मुद्दा बना लिया है, जिसे लेकर सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार परेशान है।
एक अपुष्ट आंकड़े के अनुसार हिमाचल सरकार पर 95000 करोड़ का कर्ज है। उसके पास कर्मचारियों को देने के लिए वेतन नहीं है, पेंशन बांटने के लिए पैसा नहीं है। बताते हैं कि यह सब मुफ्त की योजनाओं के चुनावी वादों के चलते हुआ है। सरकार का खजाना खाली हो गया है। अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि मेंटेनेंस का खर्च न दे पाने के कारण ही हिमाचल भवन भी जप्त कर लिया गया है। ऐसे में अब सरकार की अपेक्षा है कि मंदिरों के ट्रस्ट उनकी मदद करें, ताकि सरकारी योजनाएं और फ्री बीज की योजनाएं चल सकें।
जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मंदिरों ने सामाजिक कार्य के लिए कभी पैसा नहीं दिया है, दिया है। कोरोना काल में भी देश के मंदिरों ने सहयोग के लिए पैसा दिया। लेकिन अपनी मर्जी से, अपने हिसाब से। उन पर कभी कोई दबाव नहीं डाला गया। परंतु आरोप है कि हिमाचल प्रदेश सरकार का यह कार्य मंदिरों से दादागिरी जैसा है। शायद इन्हीं सब दिक्कतों को समझते हुए और उनके अंदेशे को देखते हुए वर्ष 1959 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मंदिरों से सरकार का नियंत्रण हटाने की मांग की थी। और अब वही मांग इस समय सनातन से जुड़े धार्मिक संगठन, संत समाज और धर्माचार्य कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश के डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने तो बाकायदा सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की भी मांग कर दी है। हिंदू पक्ष का आरोप है कि कांग्रेस ने मंदिरों को एटीएम बना रखा है। इसी कारण प्रयागराज महाकुंभ में भी सनातन धर्मियों ने एक बृहद सनातन बोर्ड की मांग की है। इसमें मंदिरों का प्रबंधन और संचालन करने का इंतजाम होगा। इसके जरिए देश के सारे मंदिरों का प्रबंधन वैसे ही किये जाने की अपेक्षा की गई है जैसा कि वक्फ बोर्ड को अधिकार मिले हैं। सनातनियों की अपेक्षा है कि यदि सनातन धर्म बोर्ड नहीं बन पा रहा है तो भारत से वक्फ बोर्ड को भी समाप्त हो जाना चाहिए। वैसे इसको लेकर संसद ने जेपीसी का गठन कर दिया था, उसकी रिपोर्ट भी आ गई है, और केंद्रीय कैबिनेट ने उसकी रिपोर्ट को मंजूर भी कर लिया है। उम्मीद यही है कि फिर शुरू होने वाले संसद सत्र में यह बिल चर्चा के लिए संसद में लाया जाएगा।
इसको लेकर हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता जयराम ठाकुर ने सुक्खू सरकार पर सवाल उठाए हैं। उनका का आरोप है कि कांग्रेस की नजर मंदिरों के खजाने पर है। वे अपनी अनाप-शनाप योजनाओं के लिए मंदिरों से पैसा मांग रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल ने भी इस मामले पर कहा है कि मुख्यमंत्री ने एक पत्र जारी कर मंदिरों के चढ़ावे को सरकारी कोष के माध्यम से प्रदेश के विकास कार्यों में खर्च करने की बात कही है। यह गलत है। उनका कहना है कि भारतीय संस्कृति व सनातन संस्कृति का ये बड़े मंदिर आधार रहे हैं। यहां पर जो धर्मादा समाज देकर जाता है उससे धार्मिक कार्यों का विस्तार होता रहा है। अन्य कार्य के लिए इन मंदिरों के धन का उपयोग करना हिंदू समाज और संस्कृति के हित में नहीं है। भाजपाइयों ने पूछा है कि क्या वक्फ बोर्ड से भी पैसा माना गया है, अगर नहीं तो क्यों नहीं। पूछा गया है कि क्या मुफ्त की योजनाओं का लाभ मुसलमान नहीं लेते हैं। क्या इस कथित संकट काल में उनका कोई फर्ज नहीं है कि वे राज्य सरकार की मदद करें। आरोप है कि ये सीधे-सीधे सुक्खू सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का नतीजा है। आरोप यह भी है कि कांग्रेस ने कानून बना कर वक्फ बोर्ड को इतना मजबूत कर दिया है कि अब उसकी हिम्मत ही नहीं है कि वह उससे पैसा मांग सके। और चूंकि सुक्खू सरकार राज्य के मंदिरों पर टैक्स लगा पाने में असफल हो गई है, इसलिए वह धमकी देकर मंदिरों से पैसा मांग रही है। यह गलत है, भाजपा ऐसा नहीं होने देगी।
इस बारे में भाजपा नेता और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि कांग्रेस वाले अपनी योजनाओं को चलाने के लिए मंदिरों से पैसा मांग रहे हैं, अपना एजेंडा चलाने के लिए पैसा मांग रहे हैं, यह गलत है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिमा सिंह कहती हैं कि यह आरोप गलत है। चूंकि हमारे राज्य के मंदिर सक्षम हैं, इसलिए हम उनसे सहयोग की अपेक्षा कर रहे हैं। परंतु वक्फ बोर्ड से सहायता क्यों नहीं ली जा रही है, इस सवाल के जवाब पर वे कुछ नहीं बोल पाईं।
सूत्रों का कहना है कि हालांकि सुखविंदर सिंह सुक्खू ने प्रयागराज महाकुंभ में जाकर आस्था की डुबकी लगाई थी किंतु आखिरकार वे अपनी पार्टी लाइन को क्रास नहीं कर पाए और यह राजनीतिक गलती कर दी है। शायद इस मामले में उन पर कांग्रेस में बैठे एंटी सनातनी तत्वों का दबाव अधिक पड़ गया। वैसे भी कांग्रेस इस समय जिस तरह की राजनीति कर रही है उससे सनातन का भला होने की बात सोचना ही बेमानी है। औरंगजेब को महिमान्वित करने वाले सपा नेता अबु आजमी का समर्थन जिस तरह कांग्रेस नेता उदित राज ने किया है, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस ने अपना पक्ष चुन लिया है। वैसे इस विवाद का कारण रहे अबु आजमी ने अपने बयान को वापस ले लिया है किंतु कांग्रेस ने अभी तक उदित राज के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। यानी इस मुद्दे पर कांग्रेस घालमेल की नीति पर चल रही है। और इन्हीं सब बातों के चलते उस पर एंटी सनातनी होने का आरोप चस्पा होता जा रहा है।और यह पार्टी की राजनीतिक सेहत के लिए ठीक नहीं है। पर आलाकमान के सलाहकार इस बात को समझें तब ना।
क्या है मंदिरों से पैसे मांगने का मामला : खबर है कि हिमाचल में आर्थिक संकट के बीच सुक्खू सरकार के पास अपनी योजनाओं को चलाने के लिए पैसा नहीं है। इसी कारण सरकार ने प्रदेश के बड़े मंदिरों से पैसा मांगा है। सरकार की तरफ से इस संबंध में हिमाचल सरकार के अंडर में आने वाले मंदिरों को पत्र लिखा गया है और दो योजनाओं के लिए पैसे देने का आग्रह किया है। बीते 29 जनवरी को हिमाचल प्रदेश सरकार के भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर ट्रस्ट को एक पत्र लिखकर मंदिर कमेटियों से मदद का आग्रह किया है। इसके बाद सरकार की अपील पर जिला उपायुक्त ने मंदिर न्यास को आर्थिक मदद करने के लिए पत्र जारी किए हैं। पत्र में लिखा गया है कि मुख्यमंत्री सुखाश्रय और सुख शिक्षा योजना की मदद सरकार के अधीन आने वाले मंदिरों के ट्रस्ट भी करेंगे। भाषा एवं संस्कृति विभाग ने मंदिर कमेटियों से जरूरतमंद बच्चों की मदद का भी आग्रह किया है। हालांकि मदद करने के लिए सरकार ने आखिरी फैसला मंदिर ट्रस्ट पर छोड़ा है। गौरतलब है कि करोड़ों रुपये की आय वाले प्रदेश के 35 बड़े मंदिरों की देखरेख जिला प्रशासन करता है।
सरकारी नियंत्रण में हिमाचल प्रदेश के 35 मंदिर : हिमाचल में सरकारी अधिग्रहण के तहत 35 मंदिर आते है। प्रदेश का सबसे अमीर मंदिर जिला ऊना में मां चिंतपूर्णी देवी का है। यहां मंदिर के खजाने के तहत एक अरब रुपए की बैंक एफडी और एक क्विंटल से अधिक सोना है। यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इसके अलावा प्रदेश में और भी कई बड़े शक्तिपीठ हैं, जिनका संचालन प्रदेश सरकार करती है। इसके अलावा जटोली शिव मंदिर, सोलन ज़िले में है। इसकी स्थापना स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने की थी। इसके अलावा राज्य में नयना देवी और ज्वाला देवी के दो और शक्तिपीठ हैं। यहां का चामुंडा देवी मंदिर, कांगड़ा ज़िले में है। यह पालमपुर से लगभग 10 किलोमीटर पश्चिम में बनेर नदी पर है।
वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकार, सुक्खू लाचार : वक्फ बोर्ड कानून 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार में बनाया गया था। बाद में 1993 में इस बोर्ड को असीमित अधिकार दे दिए गए। उसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार में 1995 में उसे और अधिकार दिए गए। उसे यह भी अधिकार दे दिया गया कि वक्फ बोर्ड जिस संपत्ति पर हाथ रख देगा, वह उसकी हो जाएगी। और उसके खिलाफ कोई सुनवाई नहीं होगी। वह प्रॉपर्टी तुरंत वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित करने का व्यवस्था है। और जब तक हाई कोर्ट इसमें कोई और आदेश न करे, तब तक वह संपत्ति बोर्ड के कब्जे में ही रहेगी। इन परिस्थितियों में वक्फ बोर्ड के मामले में सरकार के हाथ बांधे हुए हैं। वह अगर चाहे तब भी वक्फ बोर्ड पर दबाव नहीं डाल सकती। कानून ने वक्फ बोर्ड को बिल्कुल नियंत्रण मुक्त कर रखा है। जबकि मंदिरों पर अभी भी सरकारी नियंत्रण है। और यहीं पर सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति साफ झलकती है। वैसे भी वक्फ कानून के मुताबिक बोर्ड का पैसा सिर्फ इस्लाम की मजबूती और मुस्लिमों के विकास पर ही खर्च किया जा सकता है। जबकि मंदिरों का पैसा सरकार किसी भी काम में उपयोग कर लेती है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक