चैत्र और मदार के फूल…

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# शिवचरण चौहान

चैत्र आ गया है। लू चलने लगी है। वातावरण शुष्क हो गया है। मदार के फूल खिलने लगे हैं। मदार के फूलों पर भंवरे गुंजार करने लगे हैं। मदार के हरे हरे पत्ते, श्वेत बैंगनी रंग की कलियां मदार के शीर्ष पर अठखेलियां कर रही हैं। मंदराचल पर्वत पर मदार के पुष्पों की शोभा देखते ही बनती है। भगवान शिव प्रसन्न है.. उनका प्रिय पुष्प मंदार अब खिल गया है। मंदार की माला भगवान शिव को बहुत प्रिय है। इसी मंदराचल पर्वत पर भगवान परशुराम शिव की तपस्या करते थे। पुराणों में इसी मंदराचल की बहुत महिमा बताई गई है।

वैसे तो फागुन ने चैत्र से पांच दिन मांगे थे। चैत्र पंचमी तक रंग खेलने के लिए अभी श्री कृष्ण को राधा से रंग खेलना बाकी है। रंग पंचमी तक फागुन रहेगा पर चैत्र माना ही नहीं। अपनी लू लेकर पछुआ हवा के थपेड़े लेकर धूल उड़ाता हुआ आ गया। चैत्र तो आधे फागुन से ही आ गया था अपनी तपन लेकर। फागुन की फगुनिया परेशान थी। फगुनिया ने सब से विनती की कि उसके घर में चैत्र घुस आया है पर किसी ने उसकी सुनी ही नहीं। सब पांच दिन मांगे तो वह भी नहीं दे रहा।

मंदार को आगे कर वह अपनी तपन से दुनिया को व्याकुल कर रहा है। मंदार भगवान शिव का पौधा है। उसे कौन रोक लेगा। मंदार को तो सिर्फ बरसात ही निस्तेज करती है। इंद्र जब बादलों के रथ पर सवार होकर झमाझम पानी बरसाते आते हैं तो मदार के पत्ते पीले पढ़कर झड़ जाते हैं। मदार निस्तेज हो जाता है। सारे पेड़ पौधे वर्षा की फुहारें पा कर खुशी से थिरक उठते हैं किंतु मदार वर्षा की फुहारों में जल कर समाप्त हो जाता है। वर्षा की फुहारे पड़ने से मदार के पेड़ में आग लग जाती है। कैसा विचित्र प्रकृति का निर्णय है। बरसात में मदार को सूख जाना पड़ता है।

मदार को हिंदी में अकौड़ा, अकौआ, मदार कहते हैं। मदार को संस्कृत भाषा में मंदार, क्षीरपर्ण, तूल फल, शुक फल कहते हैं। मदार का पौधा चैत्र की गर्मी पाते ही हरा भरा हो जाता है। भगवान शिव के स्वागत के लिए। मदार बिना बोए कहीं भी अपने आप अपनी मर्जी से उग आता है। टीले पर रेत में, मरुस्थल में, तेज लू और धूप यह ऐसे बर्दाश्त कर लेता है जैसे अंगारों के बीच खड़ा होकर कोई मुनि तपस्या कर रहा हो। मदार का पौधा 4-5 फीट से 15 फीट अथवा चार मीटर तक ऊंचा हो सकता है। पहाड़ों पर यह और भी विकसित पुष्पित और पल्लवित होता है।

मदार के फूल तीन तरह के पाए जाते हैं। रक्त तार्क यानी सफेद फूलों मैं लाल आभा लिए हुए। श्वेतार्क यानी एकदम दूधिया फूलों पर हल्की सी बैंगनी आभा लिए हुए और राजार्क यानी चांदी जैसे श्वेत फूल वाला। मदार के फूल भगवान शिव को बहुत प्रिय हैं किंतु राजार्क मदार के फूल विशेष रूप से प्रिय हैं।
मदार का पौधा भारत, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका आदि में पाया जाता है। मदार एक भारतीय पौधा है, जो अपने आप कहीं भी उग सकता है। मदार के पौधे की जड़ें जमीन के बहुत अंदर तक जाकर अपने लिए पानी और खुराक प्राप्त कर लेती हैं। इसीलिए इसे ग्रीष्म का पौधा कहा गया है। जब तेज लू चलती है तो मदार के पौधे के फूलों की सुगंध फैलने लगती है। मधुमक्खियां, भंवरे, तोते और तमाम कीट इस पर मडराने लगते हैं। मदार के पत्ते बरगद के पत्ते की तरह होते हैं। बरगद के पत्ते क़ड़े होते हैं किंतु मदार के पत्ते बहुत कोमल होते हैं और तोड़ने पर टूट जाते हैं इनसे दूध टपकता है जो आंखों के लिए बहुत खतरनाक होता है।

कहते हैं आचार्य धौम्य के शिष्य उपमन्यु ने भूख लगने पर धोखे से मदार के पत्ते खा लिए थे तो उपमन्यु की आंखों की रोशनी चली गई थी। बाद में आचार्य च्यवन के उपचार से उपमन्यु की आंखों की रोशनी वापस आई थी। भूल से भी मदार के पत्तों अथवा शाखाओं का दूध आंखों में नहीं लगाना चाहिए। बिच्छू, ततैया जैसा कोई जहरीला कीड़ा काट ले तो मदार का दूध उस स्थान पर लगाने पर दर्द समाप्त हो जाता है।

आयुर्वेद में और ज्योतिष में मदार के पेड़ पत्ते फूल और जड़ के अनेक गुण बताए गए हैं। हाथी पाव, सूजन दर्द और कैंसर जैसे रोग में मदार से बनी दवाएं बहुत उपयोगी पाई गई हैं। किंतु बिना वैद्य की सलाह के मदार से बनी दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

मदार में मई-जून में फल आते हैं। फल आम की तरह हरे रंग के होते हैं। मदार के फल की चोंच तोते की चोच की तरह होती है। पकने पर मदार के फल से मुलायम श्वेत रुई निकलती है। यह रूई बहुत गर्म होती है और गद्दे व तकियों में भरी जाती है। मदार के फल से निकलने वाली रुई में मदार के छोटे-छोटे बीज चिपके रहते हैं जो आंधी के साथ उड़ कर दूर दूर चले जाते हैं और मदार का पौधा कहीं भी उग आता है। पके हुए मदार के फल पर तोते चोंच मारते हैं किंतु उन्हें उसमें रुई मिलती है जो खाई नहीं जाती।

वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए तुलसीदास ने लिखा है
अर्क, जवास पात बिन भयऊ
वर्षा ऋतु की बूंदे पड़ते ही मदार के पत्ते पीले होकर झड़ जाते हैं और मदार का पौधा ठूंठ बन जाता है। संस्कृत साहित्य में मदार के पौधे और मदार के फूलों के गुण गाए गए हैं।
मंदार हाराय नमः शिवाय
मदार के फूलों की माला भगवान शिव को बहुत प्रिय है।