जाति श्रेष्ठता भाव : राष्ट्र पर कलंक

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धर्म संस्कृति के विकास, संरक्षण, धर्मपरिवर्तन रोकने और धर्म को जीवंत बनाये रखने से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्न बहुत बार उठते हैं। प्रश्न यह है कि जब हम हिंदूओं को धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए ललकारते है तो दरअसल हम सम्बोधित किसे कर रहे होते हैं ? क्योंकि हम लोग तो ब्राह्मण, राजपूत, यादव, कुर्मी, लाला, बनिया,खटिक, चौरसिया, जाट, गूजर, मराठा, बंगाली, पंजाबी, तमिल, अनुसूचित, पिछड़े और भी न जाने क्या क्या हैं।

इस विभाजित समाज में जो हर संभव दिशा से खण्डित हो जाने के बहाने खोज रहा है। इस ललकार पर खड़े हो जाने का उत्साह या मोटिवेशन कितनों में है…? एक मित्र ने एक दिन चिंतित होकर कहा कि बताइये, अनुसूचित जातियों में लोग अब भीम स्तुति या भीम चालीसा पढ़कर विवाह आदि करने लगे हैं। समाज खंडित नहीं होगा तो क्या होगा ? मैंने उनसे पूंछा कि ये बतायें, भीम चालीसा से विवाह कराने की बात तो आज की है। क्या इससे पहले हमारे ब्राह्मण लोग उनकी बस्तियों में जाते थे उनके यहां विवाह आदि कराने ? क्या अनुसूचित समाज के विवाह हमारे मंदिरों में होते थे ? तो भीगी बिल्ली जैसा जवाब आया, ‘नहीं. ऐसा तो नहीं था।

फिर उनके विवाह आदि संस्कार कैसे होते थे ? मैंने पूंछा…. उनके ओझा वगैरह होते थे, इसके लिए। मंदिरों में तो उनके विवाह नहीं होते थे।’ उनका जवाब था.. मैंने फिर पूंछा, ‘कभी कहा किसी ने उन्हें कि अब हमारे शूद्र समाज के विवाह हमारे ब्राह्मण करायेंगे। क्या कहा गया कि मंदिरों के परिसर उनके वैवाहिक आयोजनों के लिए खुले हैं। कोई जवाब नहीं था।

तो यह स्थिति रही है। जब हम आप अपने ही एक वर्ण शूद्र समाज को शताब्दियों से अपनी संस्कृति धर्म परंपरा से अलग किये हुए हैं तो फिर शिकायत कैसी..? आपने उन्हें हिंदू बनने ही कहां दिया ? किसी धर्माधिकारी, धर्मनियंता से कभी सुना गया है कभी कि भाई, ये शूद्र हिंदू समाज से कोई अलग नहीं हैं, हम सब एक हैं। सब साथ बैठें, एक परिवार बनाएं। सब समान हैं। किसी ने कभी कहा है क्या कि मनुस्मृति का वह भाग जो कभी उपयोगी रहा होगा और आज हममें भेद पैदा करता है, हम उससे सहमत नहीं हैं, उसे हम अब नहीं मानते …?

इस लोकतंत्र में यह जातिश्रेष्ठता का भाव कैसे चलेगा ? राजनीति में भी गांधी जी ही एकमात्र राष्ट्रीय नेता थे जिन्होंने इस अलगाव के भावी खतरे को पहचाना और इसे समाप्त करना अपने जीवन का मिशन बनाया। पूना पैक्ट व राजनैतिक आरक्षण के प्रावधान के अलावा दूसरा जो सबसे बड़ा कार्य उन्होंने किया वह था अपने धुर विरोधी बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर को संविधान ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष बनाना लेकिन जातीय श्रेष्ठता के अनुगामियों के सबसे बड़े शत्रु गांधी ही हैं।

…वी. एस. नाइपाल की एक पुस्तक है, ‘ए मिलियन म्यूटिनीज’। जिसमें वे अस्सी के दशक में उत्तर से दक्षिण तक कितने ही अलगाववादी, आतंकी,नक्सली प्रकृति के विद्रोहों का शिकार होते जाति वर्गों में विभाजित हो रहे देश का वृत्तांत लिखते है। यदि जनकल्याणकारी योजनाओं व आरक्षण के माध्यम से इस देश के वंचित समाज को अवसर दिये जाने की सोच न आयी होती तो इसके कितने घातक परिणाम होते, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। यह आश्चर्यजनक है कि जो उच्च वर्ण देश की आबादी का 20-25% ही है उसे आभास नहीं हो रहा है कि वह कटते कगार पर खड़ा है। हां, एक समय था जब वह समग्र देश के लिए चिंतित हुआ करता था। आज तो देश में अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग की तेजी से बढ़ती आबादी ही उसकी आबादी के करीब पहुंची हुई है। संकट सामने है लेकिन जाति अभिमानी मानसिकता कहती है कि जाति को कौन समाप्त कर सकता है! भाई, आप ऋषियों मुनियों की संतान, धर्म संस्कृति के प्रवर्तक हो, आप आपकी जय हो. और आप तो महान् सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, महान् योद्धा, सम्राटों के वंशज, इतिहास आपका है। आपकी भी जय हो। अब बाकी 75-80% जो इस देश में चेहराविहीन बने खेतीबारी करते हल-बैल के पीछे चलते रहे, जो गाय भैंस चराते रहे, जो चाक पर, लोहार या बढ़ई बन कर, कपड़ा बुनकर, दुकानदारी करके, मछली मार कर, मरे जानवरों का चमड़ा उतार कर अपना जीवन चलाते रहे, वे भला किसकी जय करें…? वे कौन सा इतिहास पकड़ लें ? राम आपके, कृष्ण आपके. भगवान शिव उनके पास थे, वे भी ले लिये गये. महाराणा प्रताप, शिवाजी, लक्ष्मी बाई आपकी। आपने इस संविधान से पहले उन्हें मंदिरों के पास फटकने तक नहीं दिया तो वे किस धर्म संस्कृति की, किन नायकों की बातें करें ? वे बरम बाबा, खोझीबीर बाबा, नोनाचमाइन, काली कलकत्ते वाली, तक ही रह गये. गीता, वेद-वेदांत उनके लिए नहीं थे. शूद्र वर्ण को श्रम व वैश्य वर्ण को धन का माध्यम बना लिया गया था। इन शोषितों को कौन सा धर्म दिया गया ? यही न कि वैश्य बनिया राजा को धन देता रहे। दूसरा शूद्र सेवाभाव से श्रम देता रहे। उनका बस इतना सा धर्म था।

अब अगर उच्च वर्ण के अतिरिक्त 20 प्रतिशत मुस्लिम व विधर्मी समाज को छोड़ दें तो शेष 60% भारतीय समाज के नायक कौन हैं ? वह किससे प्रेरणा ग्रहण करे ? आप तो अपने नायक उन्हें उधार देने को भी तैयार नहीं। आज आजाद भारत में जब वह समृद्ध हो रहा है तो अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक अभिव्यक्ति के लिए कहां जाए ? तो वह कभी बुद्ध को पकड़ता है तो कभी बाबा कबीर, बाबा रैदास को, कभी ज्योतिबा फुले को. वह कभी अभंग भक्तों की प्रार्थनाओं को, संत तिरुवल्लुवर के भजनों को याद करेगा. बिजली पासी, झलकारीबाई उनके नायक हैं। वह बाबा साहब को अपना महानतम आइकान, अपना नायक क्यों नहीं मानेगा ? तब तो हमारे पूर्वजों नें उनके लिए मंदिर बंद रखे, तालाब का जल उनके लिए नहीं था, आप साथ भोजन को तैयार नहीं थे, स्पर्श से धर्म भ्रष्ट होता था तो आज भी चला लो अपनी जाति-श्रेष्ठता का धर्म. आज सब चिंतित हो जा रहे हैं कि कहीं ये दलित-पिछड़ी 60% जातियां अल्पसंख्यक वर्ग से चुनावी समझौता न करने लगें। विचार करें कि ऐसा हुआ क्यों ? हम-आप व हमारे धर्माधिकारी क्या तैयार हैं। आज जातीय विभाजन की दीवारें गिराने के लिए ?

आज मोदीजी के राष्ट्रवादी अभियान ने आज एक बड़ी सीमा तक सारे देश के मानस को एक कर दिया है। अन्यथा जिस मार्ग पर देश पहले जा रहा था वह जाति-परिवार की सत्ता का भयावह परिदृष्य उपस्थित कर रहा था। फिलहाल, राष्ट्रवाद के वातावरण ने वह जातीय शक्ति प्रदर्शन स्थगित करा दिया है। जातीय श्रेष्ठता के अभिमानियों को अपने नकली अहंकार त्याग कर इस राष्ट्रवादी काल को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए. यदि जातिवादी सोच के समापन के अभियान का प्रारंभ हो व सामाजिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हो तो यह सबका महान् राष्ट्रीय योगदान होगा

हमारा साझा इतिहास है। साझी संस्कृति व महान् सनातन धर्म है, न कोई जन्म से शूद्र है न कोई जन्म से ब्राहमण। ये कर्मणा दायित्व हैं जो दूषित होकर जन्म आधारित हो गये थे। हम जाति व्यवस्था के आग्रही न बने। जातियों को समय काल के साथ तिरोहित हो जाने दें। आज राष्ट्र-निर्माण राष्ट्र रक्षा में हमारे शूद्र समाज की सबसे बड़ी भूमिका है। महाराजा सुदास,महर्षि वाल्मीकि वेदव्यास के महान् उदाहरण हमारे सामने हैं। हमारी धर्म-संस्कृति, भविष्य के प्रति दृढ़ विश्वास हमारी एकता की मुख्य शक्ति बने, हम सब समवेत, एक स्वर में यही कामना करें। यही हमारे समाज व धर्म के भविष्य का मार्ग है

आर. विक्रम सिंह
पूर्व सैनिक पूर्व प्रशासक