सावधान ! कबूतर से बचें, फैला रहे बीमारी

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अचानक सासू माँ को साँस लेने में तकलीफ़ हुई। हम अस्पताल गए वहाँ सारे परीक्षण कराने पर पता चला क़ि उन्हें फेफड़े क़ी बीमारी है, जो कबूतर के बीट ओर पंख के कारण हुई। कबूतर को 1600 के दशक में अमेरिका में खाने के लिए इस्तेमाल में लाया गया था। इसके बाद कबूतरों की आबादी पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ने लगी। भारत में तो यह एक बड़ी परेशानी है, क्योंकि यहां लोग कबूतरों को दाना डालते हैं। इससे कबूतरों में इंसान का डर ही खत्म है। अनाज, बीज और ब्रेडक्रंब पर जिंदा रहने वाले कबूतर हमारे देश में पालतू भी बनाएं जाते हैं।

पक्षियों में कबूतर को शांति का प्रतीक माना जाता है। शहर के किसी न किसी कोने में कबूतरों को दाना डालते हुए लोग देखे जा सकते हैं, लेकिन इन्हीं कबूतरों के करीब रहने पर आपको कई जानलेवा बीमारियां (Diseases Caused by Pigeon) हो सकती हैं। दिल्ली एनसीआर (Delhi-NCR) में अनगिनत परिवार हैं, जो कबूतरों से पैदा होने वाली खतरनाक बीमारियों से बेपरवाह हैं। कबूतरों (Pigeon) की आवाजाही से लोग परेशान हैं, लेकिन ये नहीं जानते कि ये सिर्फ तंग करने वाला पंछी नहीं बल्कि ऐसा पंछी है। जिसकी बीट और पंख आपको बीमार, बहुत बीमार बना सकते हैं।

कबूतरों पर हुए शोध में बड़े खतरे सामने आए हैं। डॉक्टरों का भी कहना है कि कबूतर की बीट में ऐसे इंफेक्शन होते हैं जो आपके फेफड़ों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं और आपको जल्दी इनका पता भी नहीं चलता है। आपके घर में लगे एसी के आसपास कबूतरों ने घोंसला बनाया है तो ये खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

दरअसल जहां पर भी ज़्यादा कबूतर होते हैं, वहां पर एक अजीब सी दुर्गन्ध होती है। ये कबूतर उन्हीं जगहों पर बैठना पसंद करते हैं, जहां पर इन्होंने बीट की हो। जब ये बीट सूख जाती है तो पाउडर का रूप ले लेती है और जब ये पंख फड़फड़ाते हैं तो बीट का पाउडर सांसों के ज़रिए हमारे भीतर पहुंच जाता है। इसी से फेफड़े की भयंकर बीमारी होती है। कबूतरों पर शोध में खुलासा हुआ है कि इनकी बीट की वजह से कई बीमारियां पैदा हो सकती हैं।

प्रोफेसर वी वासुदेव राव की रिसर्च के मुताबिक, एक कबूतर एक साल में 11.5 किलो बीट करता है। बीट सूखने के बाद उसमें परजीवी पनपने लगते हैं। बीट में पैदा होने वाले परजीवी हवा में घुलकर संक्रमण फैलाते हैं। इस संक्रमण की वजह से कई तरह की बीमारियां होती हैं। कबूतर और उनकी बीट के आसपास रहने पर इंसानों में सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में इन्फ़ेक्शन, शरीर में एलर्जी हो सकती है।

दिल्ली में रहने वाले पीड़ित सुंदर स्वरूप सिंघल ने बताया कि कबूतरों ने उनकी पत्नी की जान ले ली। उनकी पत्नी की बीमारी की शुरुआत सिर्फ पेट दर्द से हुई। फिर उनकी पत्नी ऐसी बीमारी की गिरफ्त में आ गई, जो कबूतरों की वजह से होती है। जिसका कोई इलाज नहीं है।

सर गंगाराम हॉस्पिटल की डॉक्टर रश्मि सामा ने बताया कि कबूतर से होने वाली काफी सारी बीमारी फेफड़ों से जुड़ी हो सकती हैं। जिसको हम हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस कहते हैं। जिसमें लंग्स का एलर्जिक रिएक्शन होता है। कबूतर की ड्रॉपिंग से फंगल डिज़ीज़ भी हो सकती हैं। जिसको दवाइयों के ज़रिए ट्रीट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर वक्त रहते बीमारियां पकड़ में न आएं तो किसी मरीज़ के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं।

बेहद ख़तरनाक है हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस : डॉक्टर रश्मि ने बताया कि हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस बेहद ख़तरनाक होती है। यह वेरियस स्टेजेस में आता है। अगर एक्यूट हो तो सांस लेने में बहुत परेशानी हो सकती है। खांसी हो सकती है, ऑक्सीजन ड्रॉप हो सकती है, जोड़ों में दर्द हो सकता है।

कबूतरों से होने वाली ये बीमारियां कबूतरों की संख्या के साथ हर साल बढ़ती जा रही हैं। शायद इसीलिए कबूतरों से होने वाली हाइपर सेंसिटिविटी के मरीज़ों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। डॉक्टर दीपक तलवार कहते हैं, “ऑन द रिकॉर्ड अभी हमारे पास हाइपर सेंस्टिविटी के दो सौ मरीज़ हैं। ये 200 लोग, कबूतरों की बीट और उनके पंखों की वजह से बीमार हुए हैं। “शुरुआत में बीमारी के लक्षण हल्के होते हैं।  तकनीकी तौर पर इन बीमारियों को हिस्टोप्लाज़मिस, क्रिप्टोकोकोसिस, सिटाकोसिस, साल्मोनेला और लिस्टिरिया के नाम से जाना जाता है।

डॉक्टर दीपक तलवार के मुताबिक, इस बीमारी के लक्षण शुरुआत में बड़े हल्के होते हैं। खांसी का आना, सूखी खांसी का आना, और थोड़ा सांस का फूलना, धीरे धीरे बॉडी में वेट लूज़ होना, हल्का हल्का बुखार सा लगना, बॉडी में पेन, इस तरह के सिमटम होते हैं, कभी रहते हैं कभी नहीं रहते हैं, ज्यादातर खांसी और सांस का फूलना होता है। इसको चेक करने के लिए हम लोग ब्लड टेस्ट भी करते हैं। जिससे पता लगता है कि आपको कबूतर से होने वाली कोई बीमारी हुई है या नहीं।

2001 में ट्राफलगर स्क्वायर में कबूतरों को दाना डालने पर बैन लगा था : बता दें, 2001 में तो विश्व के कई देशों ने कबूतरों की गंदगी के खिलाफ जंग ही छेड़ दी थी। 2001 में लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर में कबूतरों को दाना डालने पर बैन लगा दिया गया था। इतना ही नहीं वेनिस ने 2008 में सेंट मार्क स्क्वायर पर पक्षियों के लिए खाना बेचने वालों पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया था। जबकि कुछ साल पहले कैटेलोनिया में कबूतरों को ओविस्टॉप नामक गर्भनिरोधक दवा खिलानी शुरू कर दी गई थी।

पुरानी दिल्ली में सबसे ज्यादा कबूतर : दिल्ली में अक्सर कबूतर गलियों और चौराहों पर दिखाई देते हैं। पुरानी दिल्ली में कबूतरों को पालने का शौक भी लोग रखते हैं। लेकिन कबूतर की बीट से फैलने वाला बैक्टीरिया इंसान की जान भी ले सकता है। पूर्वी दिल्ली और दरियागंज के अलावा कई इलाकों में कबूतरों की बीट गलियों में दिखाई देती है। पक्षियों के पंख से निकलने वाले छोटे अंश फेफड़ों को धीरे-धीरे जाम करते हैं। जिससे सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। जो लोग इनके नजदीक रहते हैं, उन्हें मास्क लगाकर रहना चाहिए। घर के आस-पास कबूतरों को दाना डालने से बचें।

सीमा मोहन