बसपा का नया एजेंडा अब परिजन हिताय

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बसपा का नया एजेंडा अब परिजन हिताय………बहुजन नायक कांशीराम जी ने जब देश के 85 फ़ीसदी बहुजन समाज के लोगों को एकजुट करके उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकार दिलाने के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया तो उस समय ये नारा लगता था कि बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा। बसपा के गठन के बाद दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज के लोगों को पूरी उम्मीद थी कि कांशीराम जी शोषित और वंचित समाज के लोगों को उनके मूलभूत अधिकार दिलाएंगे और कांशीराम जी ने कुछ ही समय में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में एक बार सपा के साथ मिलकर गठबंधन की और तीन बार भाजपा के सहयोग से मायावती के नेतृत्व में बसपा की सरकार बनायीं और अपनी सरकार के दौरान भारतीय संविधान में दलितों और पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यकों को जो अधिकार देने की बात कही, उन्होंने इन वर्गों को इनके अधिकार दिलाने शुरू कर दिए।

यही वजह रही कि बहुजन समाज के लोगों में बसपा के प्रति रुझान बढ़ा और वे कांशीराम जी के मिशन से तेजी से जुड़ने लगे। कांशीराम जी ने पार्टी से शोषितों और वंचित समाज को जोड़ने के लिए बहुजन-हिताय, बहुजन-सुखाय का नारा दिया और पार्टी की कमान मायावती को सौंपते समय उन्हें भी इस मिशन को आगे बढाने का जिम्मा सौंपा, लेकिन कांशीराम जी के अस्वस्थ होते ही मायावती जी ने पहले बहुजन नायक के बहुजन-हिताय, बहुजन-सुखाय के नारे को बदलकर सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय किया, लेकिन अब उन्होंने अपने नारे को एक बार फिर परिवर्तित किया है। पार्टी की कमान परिवार में ही रहे, इसके लिए मायावती जी ने अब बसपा का नया नारा परिजन हिताय, परिजन सुखाय कर दिया और इस नारे को फलीभूत करते हुए उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। फिलहाल मौजूदा समय में पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मायवती जी के भाई और हाल ही में उत्तर्धिकारी बनाये गए आकाश आनंद के पिता हैं।

कांशीराम जी ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के सिद्धांतों पर चलते हुए सदियों से गैरबराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था का शिकार रहे दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समाज को एकजुट करने के लिए देशव्यापी अभियान चलाया और इन वर्गों को जोड़ने के लिए पहले डीएस फोर यानि दलित शोषित समाज संघर्ष समिति का गठन किया और इसके बाद इन वर्गों के कर्मचारियों को जोड़ने के लिए बामसेफ का गठन किया। समाज में जागरूकता पैदा होने के बाद सियासी दल बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और इस दौरान उन्होंने 16 प्रतिज्ञाएँ ली, जिसमें शादी विवाह ना करने, परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में ना लाने और अपना उत्तराधिकारी परिवार से ना बनाकर समाज से ही बनाने की शपथ ली और उन्होंने अपनी इस शपथ का पूरी तरह से पालन किया और अपना उत्तराधिकारी मायावती को घोषित किया। कांशीराम जी ने मायावती को भी यह शपथ दिलाई कि वे आजीवन अविवाहित रहकर समाज की सेवा करेंगी और राजनीति में अपने किसी परिवार के सदस्य को नहीं लायेंगी और ना ही अपने परिवार के किसी सदस्य को पार्टी की कमान सौंपेंगी, उत्तराधिकार पाने के लिए मायावती ने उस समय कांशीराम जी की वह सारी बात मान ली जो वह समाज हित में चाहते थे। इतना ही नहीं मायावती जी ने खुद को उत्तराधिकारी घोषित किये जाने के एक साल बाद ही यानि कि वर्ष 2002 में यूपी के लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय में घोषणा की कि पार्टी में उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं होगा, उनका उत्तराधिकारी बहुजन समाज से ही कोई होगा, लेकिन वह अपनी बात पर कायम नहीं रह सकीं और परिवार को पार्टी की कमान सौंपने के लिए पार्टी का नारा ही बदल दिया।

दरअसल वर्ष 2002 के बाद कांशीराम जी के अस्वस्थ होने के कारण मायावती जी ने पार्टी की कमान पूरी तरह से संभाल ली और अपनी मर्जी के मुताबिक कांशीराम जी के करीबी रहे लोग जो उनके साथ कंधे से कन्धा मिलकर बहुजन आन्दोलन को आगे बढाने के अभियान में जुटे थे, ऐसे कद्दावर व समर्पित लोगों को एक-एक करके पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया, लेकिन उस समय भी बहुजन समाज के लोग यह सोचकर मायावती जी के हर फैसले के साथ इसलिए खड़े थे कि उन्हें इस बात की उम्मीद थी कि उनके मसीहा कांशीराम जी ने जिन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया है और पार्टी की कमान जिसके हाथ सौंपी है वह बहुजन समाज के हितों की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देगा, लेकिन वंचित और शोषित समाज के लोगों को इस बात का कतई एहसास नहीं था कि कांशीराम जी के ना रहने के बाद वे पार्टी की मूल विचारधारा को ही बदल देंगी। वर्ष 2007 में यूपी में बसपा की अकेले पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद मायावती को इस बात का भ्रम हो गया कि उनकी सरकार सवर्णों के वोट से ही बनी, जबकि वास्तविकता ठीक इसके उलट है, कांशीराम जी द्वारा चलाये गए आन्दोलन से फैली जागरूकता के कारण दलितों के साथ ही पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों ने बसपा के पक्ष में एकतरफा वोट किया, सवर्णों के वोट देने का कारण यूपी में भाजपा और कांग्रेस का काफी कमजोर स्थिति में होना था और ये वर्ग सपा से बुरी तरह से नाराज था, यही वजह रही कि बहुजन समाज के साथ ही सवर्णों ने भी बसपा को वोट दिया, लेकिन बसपा की सरकार केवल सवर्णों के वोट से ही बनी यह कहना पूरी तरह से गलत है।

वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि जबतक बहुजन नायक कांशीराम जी जीवित थे वह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राजनीति में नहीं लाये और ना ही उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपी बल्कि कांशीराम जी ने बहुजन समाज के लिए मुखर आन्दोलन से जुड़ीं मायावती जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया, लेकिन कांशीराम जी के ठीक उलट मायावती जी ने बहुजन आन्दोलन को निष्प्रभावी कर दिया और कांशीराम जी के मिशन के साथ धोखा किया। मायावती जी के नेतृत्व में बसपा अपने सबसे ख़राब दौर से गुजर रही है यूपी में जहाँ बसपा की अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार रही हो उसी राज्य में बसपा एक सीट में सिमटकर रह गयी है। उनका कहना है कि मायावती जी का यह कृत्य बसपा नीतियों के विरुद्ध है। बहुजन समाज एवं बसपा नेताओं तथा बहुजन आन्दोलन को बचाने के लिए संघर्षरत शुभचिंतकों को मायावती से अपने परिवार से ही उत्तराधिकारी घोषित करने के लिए उनसे जवाब माँगना चाहिए और बहुजन समाज के लोगों यह भी सोचना होगा कि क्या मायावती कांशीराम जी द्वारा स्थापित बसपा के नेतृत्व के लिए वह अब भी सक्षम हैं या नहीं।

कमल जयंत