सपा को संजीवनी दे सकता है ब्राह्मण कार्ड

* पर ज्यादा बोझ के चक्कर में कहीं टें न बोल दे ए ******* * पहले अल्पसंख्यक फिर आधी आबादी और अब अगड़ा का बोझ ढो रहा पीडीए का ए * ए का बढ़ता दायरा कहीं अल्पसंख्यक को नाराज न कर दे, अंदर खाने सुगबुगाहट भी शुरू * समाजवादी पार्टी के विरोधी ए के विस्तार को लेकर अखिलेश यादव को घेरने में जुटे * गच्चा पालिटिक्स पर भी दोनों ही पक्षों में वार-पलटवार का दौर है जारी

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लखनऊ/नयी दिल्ली। समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित होकर अब अपने चेहरे को बदलने की कोशिश में है। अपनी छवि में सुधार करने के लिए वह अपने पीडीए के ए का विस्तार कर रही है। अब पीडीए में अल्पसंख्यक, आधी आबादी के बाद अगड़ा वर्ग की भी एंट्री हो गई है। लेकिन अब इसी को लेकर उस पर पिछड़ा और दलित विरोधी होने का नैरेटिव सेट करने की कोशिशें जारी हैं। इसके अलावा इससे जुड़ी गच्चा पालिटिक्स को भी हवा देने की कोशिशें भाजपा द्वारा जारी हैं। इन दोनों नैरेटिव का किसे लाभ होगा या किसे नुकसान होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन दोनों ओर से वाक युद्ध जारी है। इसमें एक खतरा यह भी है कि ए पर ज्यादा बोझ यानी कंफ्यूजन होने से कहीं वह टें न बोल जाए। इसकी सावधानी अपेक्षित है।

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की लगभग आधी सीटें जीतने के बाद समाजवादी पार्टी बहुत उत्साहित है। वह अब अपने पीडीए समर्थक छवि से आगे बढ़कर अगड़ों को भी साधने की कोशिश में है, ताकि 2027 के विधानसभा चुनाव में और वोट बटोर कर सरकार बनाई जा सके। इसलिए उसने अपने पीडीए वाले ए का विस्तार कर दिया है। अब उसमें अल्पसंख्यक और आधी आबादी के अलावा अगड़ा भी शामिल हो गया है। अखिलेश ने अपने इसी प्रयोग के तहत उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर पार्टी के वयोवृद्ध ब्राह्मण नेता माता प्रसाद पांडे को नियुक्त किया है। बताते हैं कि इस पद के लिए चाचा शिवपाल यादव, दलित नेता इंद्रजीत सरोज के अलावा और कई लोग दावेदार थे किंतु लंबी चर्चा के बाद पार्टी विधान मंडल दल ने अखिलेश यादव को नियुक्ति करने के लिए अधिकृत कर दिया। फिर उन्होंने माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाने की घोषणा कर दी। इस नियुक्ति से अखिलेश यादव ने अगड़ों विशेषकर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की है। ताकि आने वाले 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के अलावा 2027 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मजबूती दिलाकर सरकार बनाई जा सके।

हालांकि इस नियुक्ति के बाद विपक्ष और सत्ता पक्ष में वार पलटवार जारी है। समाजवाद पार्टी जहां इसे अपने पीडीए के विस्तार से जोड़ रही है वहीं भाजपा इसे पिछड़े और दलितों के साथ धोखे के रूप में देख रही है। अखिलेश यादव के इस नए प्रयोग में लोहिया के उस बयान को भी देखना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत की कल्पना राम, कृष्ण और शिव के बिना हो ही नहीं सकती। शायद अखिलेश यादव को अब अपने सच्चे समाजवादी होने का भान हो गया है। इसीलिए तो वे सिर्फ मंडल की राजनीति से ऊपर उठकर, मंडल और कमंडल को जोड़कर एक नये वोट बैंक समीकरण को जन्म देना चाहते हैं। वैसे पीडीए के ए पर बढ़ते बोझ से एक खतरा भी है कि कहीं ज्यादा भीड़ होने से हितों का टकराव न हो जाए और ए अंततः टें न बोल जाए। सूत्रों का कहना है कि अंदर खाने यह चर्चा चल पड़ी है कि पंडितों यानी पी के सपा के साथ आ जाने से अल्पसंख्यकों यानी ए का पार्टी में महत्व घट जाएगा। पार्टी के कुछ लोगों का मानना है कि पंडित विरादरी जहां भी रहती डामिनेंसी के साथ रहती है। और अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो अपना रास्ता बदल लेती है। अखिलेश यादव को इसी पी और ए के वर्चस्व की लड़ाई से पार्टी को बचाए रखना होगा।

खैर, माता प्रसाद पांडेय की नियुक्ति की घोषणा के बाद प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि अखिलेश यादव ने पिछड़े और दलितों को धोखा दिया है। उन्होंने कहा कि सपा के पीडीए का मतलब ही धोखा है। चाचा शिवपाल यादव भी नेता प्रतिपक्ष बनने की होड़ में थे। अखिलेश यादव ने पीडीए को तो धोखा दिया ही है, चाचा शिवपाल यादव को भी गच्चा दे दिया है। इसके बाद जवाब देते हुए शिवपाल यादव ने कहा कि केशव मौर्य तो सिर्फ दिल्ली लखनऊ के बीच शंटिंग करते रह गये और पार्टी ने उन्हें झुनझुना थमा दिया। केशव प्रसाद मौर्य के एक्स पर किए गए पोस्ट के बाद नवनियुक्त नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने भी पलटवार किया और कहा कि आप घबराइए नहीं, हम पीडीए की लड़ाई लड़ते रहेंगे। उन्होंने कहा कि केशव प्रसाद मौर्य ने पिछड़ों के लिए कुछ नहीं किया है। सिर्फ पिछड़ी जाति में पैदा होने भर से वे पिछड़ों के नेता बने बैठे हैं।

इस नियुक्ति के बाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद का कहना है कि अखिलेश यादव ने पीडीए को धोखा दिया है। उन्होंने कई दलित और पिछड़े नेताओं की दावेदारी को दरकिनार किया है। इसलिए पीडीए हमारे साथ आ गया है। इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि समाजवादी पार्टी ने पीडीए को गुमराह करके लोकसभा चुनाव में उसका वोट तो लिया लेकिन नेता प्रतिपक्ष बनाने में उसकी उपेक्षा की, यह पीडीए के साथ धोखा है। जहां तक ब्राह्मणों का सवाल है तो उनका हित सिर्फ बसपा ही कर सकती है।

अब इससे जुड़ी गच्चा पॉलिटिक्स की शुरुआत मंगलवार को यूपी विधानसभा में हुई। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय के एक सवाल के जवाब की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने मौज लेते हुए कहा कि माननीय नेता प्रतिपक्ष आप तो चचा शिवपाल यादव को गच्चा देकर नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए। इस पर नेता प्रतिपक्ष ने तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन थोड़ी देर बाद शिवपाल यादव उठे और कहा कि योगी जी आप चिंता मत कीजिए 2027 तक आपके दोनों डिप्टी सीएम आपको गच्चा दे देंगे। फिर शाम होते-होते यह विषय टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा। केशव मौर्य के इस बयान को कोट करते हुए पत्रकारों ने जब अखिलेश यादव से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि चाचा को किसी ने गच्चा नहीं दिया। हां, योगी जी ने दिल्ली वालों को गच्चा जरूर दे दिया है।

दरअसल सपा अब अपना चेहरा बदलने की प्रक्रिया में है। उस पर सिर्फ दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी होने का ठप्पा न लगे इसीलिए वयोवृद्ध ब्राह्मण नेता माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। पार्टी के लोगों में कोई गलत संदेश न जाए इसलिए दो मुसलमान और एक पिछड़े वर्ग नेता को भी विधान मंडल दल के पदों पर समायोजित किया गया है। पर सर्वाधिक चर्चित माता प्रसाद पांडेय की नियुक्ति रही। शायद यह अखिलेश यादव की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें उन्होंने कहा था कि अभी तो हमने लोकसभा चुनाव में भाजपा को हाफ किया है, आगे चलकर साफ भी कर देंगे।

शायद उनका यह सोचना है कि पिछड़ा, दलित और अगड़ा हमारे साथ आ जाएगा तो मुसलमान वैसे ही हमारी बढ़ती ताकत देख खुद हमसे जुड़ जाएगा। क्योंकि मुसलमान को तो भाजपा के खिलाफ एक बेहतर विकल्प चाहिए। और अगड़ों के पार्टी के साथ आ जाने के बाद वह बेहतर विकल्प समाजवादी पार्टी ही बनेगी।
इधर बृहस्पतिवार को गोरखपुर जिले की चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र स्थित पूर्वांचल के बाहुबली नेता रहे हरिशंकर तिवारी के गांव टांड़ा में उनकी प्रतिमा की स्थापना के लिए बनाए गए चबूतरे को प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया है। इसके बाद पूर्वांचल की ब्राह्मण राजनीति में उबाल आ गया है। सभी दलों के ब्राह्मणों में उनके ढेरों समर्थक हैं। ऐसे में यह मुद्दा भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। पूर्वांचल में पहले ही योगी की कथित ठाकुरवादी छवि के चलते ब्राह्मण नाराज हैं। इसमें ये नया मामला हरिशंकर तिवारी का जुड़ जाने से और भी खराब स्थिति हो सकती है।

उल्लेखनीय है कि हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल में ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति में ब्राह्मणों का एक मजबूत चेहरा हुआ करते थे। वे कई बार विधायक और मंत्री रहे। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर और गोरखपुर के डीएम रहे सुरति नारायण मणि त्रिपाठी के बीच लड़ाई जग जाहिर थी। सुरति नारायण मणि त्रिपाठी जहां ब्राह्मणों के सरपरस्त के रूप में थे वहीं हरिशंकर तिवारी उनके हथियार के रूप में काम करते थे। उधर गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजय नाथ ने भी अपनी सरपरस्ती में दूसरे बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही को उभार दिया। एक दौर था जब दिनदहाड़े दोनों ग्रुपों में गोलियां तड़तड़ाती थीं। गोरखपुर शहर का गोलघर इन दोनों का बॉर्डर माना जाता था। हरिशंकर तिवारी आगे चलकर गोरखपुर ही नहीं पूरे पूरे प्रदेश और देश में एक बाहुबली और माफिया के रूप में फेमस हो गये थे। ब्राह्मण उन्हें अपना नेता मानते थे। ऐसे में जब उनकी मूर्ति स्थापना के लिए बनाए गए चबूतरे को प्रशासन तोड़ देता है तो ब्राह्मण विरादरी में भाजपा विरोधी नैरेटिव सेट हो ही जाता है।

हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे भीष्मशंकर तिवारी उर्फ कुशल और विनय शंकर तिवारी इस समय सपा में हैं। ऐसे में अखिलेश यादव ने भी इस मामले को लपकने में जरा भी देरी नहीं की और योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने इसे ब्राह्मण स्वाभिमान से जोड़ दिया है। इस प्रकार अखिलेश यादव को बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया है, अपने वोट बैंक के विस्तार के लिए। देखते हैं कि इस मुद्दे के सहारे वे कितने ब्राह्मण वोटों को सहेज पाते हैं।

पार्टी में फैजाबाद के नये सांसद अवधेश प्रसाद पासी के बाद अब माता प्रसाद पांडेय की बुजुर्गीयत को भी सम्मान मिल गया है। ऐसा करके अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के समय के पुराने नेताओं के अनुभव का लाभ लेने की भी कोशिश की है। इसके अलावा पार्टी पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों को भी खारिज करने का प्रयास किया गया है। हालांकि माता प्रसाद पाण्डेय की नियुक्ति में अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव की दावेदारी को इग्नोर किया है किन्तु उनके करीबी माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बना कर बैलेंस करने की भी कोशिश की है।

माता प्रसाद पांडेय पार्टी में बहुत वरिष्ठ नेता हैं और बस्ती मंडल से आते हैं। वे सिद्धार्थनगर जिले की इटवा विधानसभा सीट से चुने गए हैं। बस्ती, गोरखपुर और आजमगढ़ मंडल योगी की हिंदू युवा वाहिनी के कार्यक्षेत्र वाले इलाके हैं। ऐसे में पार्टी को योगी के प्रभाव को कम करने में भी मदद मिलेगी। साथ ही योगी से नाराज ब्राह्मणों को सहेजने में आसानी रहेगी। पूर्वांचल के इस इलाके में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई का लम्बा इतिहास है। इस लिहाज से यह एक उपयुक्त कदम माना जा सकता है। इसमें सोने में सुहागा हरिशंकर तिवारी की मूर्ति स्थापना में बाधा डालने का नैरेटिव। दोनों मिलकर समाजवादी पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं। बशर्ते पी और ए विवाद न उठे। जानकार बताते हैं कि इसमें दिक्कत ये है कि सपा पर मुस्लिम समर्थक होने का ठप्पा लगा हुआ है। ऐसे में सनातन धर्म के विरोधी मुसलमानों के समर्थक अखिलेश यादव के साथ कितने ब्राह्मण जाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। हो सकता है कि कुछ इलाकों में थोड़े-बहुत ब्राह्मणों का समर्थन मिल भी जाए किंतु उन्हें तब अल्पसंख्यकों की नाराजगी भी उठानी पड़ सकती है। क्योंकि अभी तक अखिलेश यादव के पीडीए के ए के रूप में सिर्फ मुसलमान ही गिने जाते रहे हैं।

सपा की राजनीति में दखल रखने वाले जानकार बताते हैं कि मुलायम-जनेश्वर की जोड़ी की तर्ज पर अखिलेश-माता प्रसाद की जोड़ी के रूप में यह एक कारगर प्रयोग सिद्ध हो सकता है। पर इसमें एक रिस्क भी हो सकता है। माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश यादव नमक में दाल खाने की कोशिश कर रहे हैं। यानी पार्टी में बहुतायत में उनका मूल पीडीए है और थोड़ी मात्रा में ब्राह्मण। ऐसे में पार्टी के स्वास्थ्य के लिहाज से यह समीकरण कितना ठीक रहेगा, कह पाना मुश्किल है। क्योंकि पार्टी में अभी तक तो यही नैरेटिव बना हुआ है कि वोट तो ब्राह्मणों और सनातन को गाली देने से ही मिलता है। ऐसे में नमक रूपी पीडीए में डाली गई ब्राह्मण रूपी दाल पार्टी की सेहत बिगाड़ भी सकती है। कुछ लोग इस जुगलबंदी को मंडल प्लस कमंडल की गणित का नाम दे रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी के पास पहले से ही मंडल समीकरण वाला वोट बैंक है। अब इसमें आठ फीसदी ब्राह्मण यानी कमंडल भी जुड़ जाएगा तो पार्टी और मजबूत हो जाएगी। परंतु इतिहास गवाह है कि ये दोनों समीकरण एक साथ बहुत अधिक समय तक साथ नहीं रह सकते।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी को मनोज पांडेय द्वारा पार्टी का साथ छोड़ देने के बाद एक मजबूत ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी, वह पूरी हो गई है। फिलहाल इस निर्णय से शिवपाल यादव को भी साधने में आसानी हो गई। परंतु शिवपाल यादव कब तक सिर्फ विधायक बने रहकर अखिलेश यादव के पीछे-पीछे घूमते रहेंगे और उनका धैर्य कब तक पार्टी का साथ देगा, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है। क्योंकि कुछ जानकार इसे शिवपाल यादव के लिए मीठी गोली बता रहे हैं। ऐसे में जब तक मीठी गोली का स्वाद मुंह में रहेगा तब तक तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। पर एक न एक दिन गोली का रस खत्म होगा ही।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों ने आजादी के बाद से ही कांग्रेस के वोट बैंक के रूप में अपनी भूमिका निभाई। बाद में कांग्रेस से मोह भंग होने के बाद कुछ दिन तक उन्होंने मुलायम सिंह का साथ दिया। किंतु अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलने की घटना के बाद ब्राह्मणों का उनसे भी मोह भंग हुआ और वे भाजपा के खेमे में चले। बीच में कुछ समय तक बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के चक्कर में वे मायावती के साथ भी रहे किंतु उनसे भी बहुत जल्दी ही मोह टूट गया। फिर तब से लेकर अब तक ब्राह्मण भाजपा का मजबूत वोट बैंक बना हुआ है।

सपा की कोशिश है कि मुलायम सिंह के उसी वोट बैंक को फिर से पार्टी में जोड़ा जाए। और इसके लिए मुलायम सिंह के साथ रहे माता प्रसाद पांडे से बेहतर और कोई विकल्प नहीं था। गोरखपुर, बस्ती और आजमगढ़ मंडल में योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मणों की नाराजगी को कैश करने में भी माता प्रसाद पांडेय बेहतर विकल्प हो सकते हैं। अब इसमें ताजा मामला हरिशंकर तिवारी की मूर्ति स्थापना के लिए बनाए गए चबूतरे को तोड़ने का भी जुड़ गया है। यह ब्राह्मण वोट बैंक पर असर तो डालेगा ही। अभी तक ब्राह्मण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर बिना जाति धर्म देखे भाजपा के किसी भी प्रत्याशी का समर्थन करता चला रहा है। किंतु अब शायद उसे भी विकल्प की जरूरत लग रही है। ऐसे में अगर अखिलेश यादव और उनकी पार्टी अपनी छवि सुधार कर ब्राह्मणों को कोई अच्छा आश्वासन दें तो आगे चलकर उनके लिए अच्छा परिणाम भी आ सकता है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि जिस भी पार्टी ने अपने वोट बैंक में ब्राह्मण वर्ग को जोड़ लिया तो उसकी सरकार बन गई। क्योंकि ब्राह्मण जिसके साथ रहता है तो रहता है, पूरी ईमानदारी से। और माहौल बनाने तथा नैरेटिव गढ़ने में तो उसका कोई जवाब ही नहीं। बशर्ते उसके सम्मान को कोई चोट न पहुंचे।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक