डूबेगी भारत की एक और बड़ी कम्पनी, कुप्रबंधन से ग्रस्त कृभको

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कुप्रबंधन से ग्रस्त कृभको, बेकाबू खर्चे भारी पड़े…….. जैसा कि भारतीय सहकारिता क्षेत्र में होता आया है कि अधिकतर उपक्रम अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं, इनके शीर्ष प्रबंधन की नीतियों में बदलते दौर की टेक्नोलॉजी का अभाव रहता है। चुभता सच सुनिए _शुद्धरूप से यह कुप्रबंधन की ही एक विधा है जो सिर्फ सहकारी उपक्रमों में बहुतायत में उपलब्ध रहती है। सहकारिता का विस्तृत आधार होते हुए भी टाॅफ मैनेजमेंट लाभप्रदता में सुधार करने की जहमत नहीं उठाना चाहता। ताजा उदाहरण यूरिया-अमोनिया बनाने वाली कृषक भारती कोआपरेटिव लिमिटेड (कृभको) का लेते हैं जो कारोबार में जबर्दस्त बेहतरी के बावजूद त्रुटि पूर्ण नीतियों की वजह से बेकाबू खर्चों के चलते लाभ के मोर्चे पर बहुत ही निराश करती है।

जब भी लाभ अर्जन की बात उठती है तो शीर्ष प्रबंधन हमेशा ही सहकारिता की दुहाई देना शुरू कर देता है। चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर से लेकर जनरल मैनेजर तक उत्पादन और टर्नओवर के आंकड़ों को ही डिस्कशन का केंद्र बनाते हैं। टाप मैनेजमेंट अपने खर्चों में कटौती के मुद्दे पर सहकारिता के सिद्धांत को भुला देते हैं। यही कारण है कि ज्यादातर सहकारी उपक्रम, समितियां घाटा उठाते -उठाते बीमार हो गए या उनमें ताले पड़ गए।

कृभको सहकारी क्षेत्र का तैंतालीस वर्ष पुराना उपक्रम है। मीडिया से मुखातिब होने पर इसके संचालक सिर्फ उत्पादन और कारोबार के आंकड़ों को उछालने में दिलचस्पी लेते हैं, लाभ पर सवालों को खुबसूरती से टाल जाते हैं। यूरिया और अमोनिया का उत्पादन-बिक्री करने वाली कृभको के संचालक 22-23 में इसके खर्चों में बेतहाशा बढ़ोतरी को कंट्रोल करने में नाकाम साबित हुए। इसकी आमदनी 21-22 में 13,194 करोड़ रुपए की तुलना में 95 प्रतिशत की बंपर बढ़ोतरी के साथ २२-२३ में 25,715 करोड़ रुपए हुई। आगे की सारी कहानी समग्र खर्चों पर आकर समाप्त हो जाती है।

कृभको के समग्र ख़र्च कुप्रबंधन के चलते सिर्फ एक वर्ष के अंतराल में 105 प्रतिशत की उछाल मार कर 22-23 में 24,952 करोड़ रुपए के स्तर पर जा पहुंचे। हालांकि संयंत्रों की स्थापित क्षमता का 101 प्रतिशत से अधिक इस्तेमाल किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि उत्पादन और बिक्री के स्तर पर संचालन संतोषजनक होता है। सारा गड़बड़झाला फाइनेंस पर होता है।

कृभको का का शुद्ध लाभ बढ़ने के बजाय 52 प्रतिशत की डुबकी लगाकर 22-23 में 569 करोड़ रुपए की तलहटी में आ टिका। कृभको की लाभप्रदता का समाधान बहस से निकाल पाना संभव नहीं है। एक ही विकल्प है कृभको का फोरेंसिक आडिट कराया जाय, असलियत सामने आ जाएगी। कृभको मक्का और चावल पर आधारित तीन एथनाल संयंत्र लगाने की कोशिश में है। गुजरात के हज़ीरा, आंध्र के नेल्लौर और तेलंगाना के जगतियाल में ये संयंत्र कृभको ग्रीन एनर्जी प्रा. लि. के बैनर तले लगाने के लिए कुल तकरीबन 1100 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।

प्रणतेश बाजपेयी