भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ यूनिट ब्लड की आवश्यकता

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विश्व रक्तदान दिवस :एक अवलोकन

14 जून 1868 को ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में लैंड स्टिनर का जन्म हुआ था। जिन्होंने वर्ष उन्नीस सौ में पहली बार मानव के रक्त का वर्गीकरण करके उसे ए, बी और ओ वर्ग में विभाजित किया था। और उन्हीं के जन्मदिन के दिन विश्व रक्तदान दिवस मनाया जाता है।

वैसे तो आज तक लोग देहदान करने में भी हिचकते हैं। जबकि सभी जानते हैं कि देह दान कर देने से चिकित्सा विज्ञान को लाभ ही होगा। पर वह ना जाने क्यों मृत्यु के बाद के दुनिया पर इतना विश्वास करते हैं कि उन्हें अपने मृत शरीर को इस तरह देना स्वीकार नहीं होता है। ऐसे ही दुनिया में यह जानने के बाद भी कि रक्त शरीर के अंदर बनता है। और उसका बाहर से निर्माण नहीं होता है।

आवश्यकता पड़ने पर किसी जरूरतमन्द को किसी व्यक्ति से लेकर ही दिया जा सकता है। 1900 से पहले किसी को रक्त देकर उसकी जान बचाना सिर्फ ईश्वर था क्योकि लैंडस्टीनर से पहले रक्त का कोई वर्गीकरण था ही नहीं। इसलिए दूसरों की जान बचाने के लिए लैंडस्टीनर द्वारा किए गए वर्गीकरण के आधार पर मानव द्वारा रक्त दान करके ही एक दूसरे के जीवन को बचाया जा सकता है।

भारत जैसे देश में प्रतिवर्ष एक करोड़ यूनिट ब्लड की आवश्यकता पड़ती है। जिसमें मात्र 55 लाख यूनिट ब्लड को रखने के लिए भारत में ब्लड बैंक है। एक यूनिट रक्त के दान में कोई भी व्यक्ति 350 मिलीमीटर रक्त देता है। यह भी जानना आवश्यक है कि एक मनुष्य के शरीर में उसके शरीर के भार का करीब 7 से 8% रक्त होता है। जैसे व्यक्ति की मृत्यु होती है, वैसे रही रक्त में पाई जाने वाली कोशिकाओं की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो जाती है।

मुख्य रूप से मानव के रक्त में लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स पाई जाती हैं। इसमें लाल रक्त कणिका की आयु महत्तम 120 दिन होती है। यदि कोई व्यक्ति 120 दिन से पूर्व अपने रक्त कणिकाओं को दान कर दे तो यह सबसे बड़ा दान है। वैसे श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर में 4 से 5 दिन जीवित रहती हैं और प्लेटलेट्स 8 से 9 दिन जीवित रहती हैं।

यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति को शरीर के अंदर पाई जाने वाली रक्त कणिकाओं को मृत होने से पहले दान कर देना चाहिए अर्थात आम के आम गुठलियों के दाम, आपके शरीर का भी काम चल गया और दूसरे व्यक्ति को भी जीवन मिल जाता है। इसीलिए रक्तदान करना एक आवश्यक कार्य है|
वैसे तो अब कृत्रिम तरीके से भी रक्त कणिकाएं बनाई जाने का काम वैज्ञानिक दुनिया में होना आरंभ हो चुका है।

…लेकिन उसमें अभी एक यूनिट ब्लड की कीमत करीब पांच लाख रुपये से ज्यादा है। जिसके कारण वह किसी व्यक्ति की लिए अभी प्राप्त करना इतना आसान नहीं है। जबकि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में लोगों के पास अपने जीवन को चलाने की भी समुचित साधन नहीं है। यहां इस बात को भी जानना आवश्यक है कि रक्त के वर्गीकरण में ए रक्त वाला व्यक्ति अपना खून ए रक्त वाले को भी दे सकता है और एबी रक्त वाले समूह को भी दे सकता है।

इसी तरह बी रक्त समूह का व्यक्ति बी रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्त दे सकता है और एबी रक्त वाले को भी रक्त दे सकता है। जिससे यह स्पष्ट है कि एबी रक्त समूह सर्वग्राही होता है लेकिन यदि ए रक्त समूह वाले व्यक्ति के पास रक्त को पाने के लिए ए रक्त समूह वाला व्यक्ति नहीं है तो वह ओ रक्त समूह वाले व्यक्ति का भी खून ले सकता है। यही स्थिति बी रक्त समूह के लिए भी है। यही कारण है कि ओ रक्त वर्ग को सार्वदाता रक्त वर्ग कहते हैं।

चोट लगने, गर्भधारण करने के दौरान, किसी गंभीर रोग के हो जाने, रक्त अल्पता की समस्या हो जाने, कैंसर हो जाने, पीलिया रोग आदि हो जाने की स्थिति में शरीर में रक्त की आवश्यकता पड़ती है। और रक्त को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छा साधन यही है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता के लिए अपने शरीर रक्त में से सिर्फ एक यूनिट रक्तदान कर दे।

इस रक्तदान के तुरंत बाद ही शरीर में बाई तरफ उपस्थित प्लीहा जिसे रक्त बैंक भी कहते हैं। तुरंत उस रक्त की कमी को पूर्ण भी कर देता है लेकिन रक्त की सांद्रता को पुनः पूर्व की तरह बनने में कुछ समय लगता है। इसीलिए एक बार में किसी भी व्यक्ति को एक यूनिट रक्त देने की ही सलाह दी जाती है।

इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1997 से पूर्ण रुप से स्वैच्छिक रक्तदान कार्यक्रम को चलाया गया। इसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी अस्पताल के हिमैटोलॉजी डिपार्टमेंट में जाकर रक्तदान कर सकता है या कोई स्वैच्छिक संस्था रक्तदान कार्यक्रम का आयोजन सरकारी अस्पतालों के ही हिमैटोलॉजी डिपार्टमेंट के माध्यम से कर सकती है। यह एक तरीके का श्रंखलाबद्ध कार्य है। जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को जीवित रखने का प्रयास अपने स्वैच्छिक रक्तदान के द्वारा करता है।

रक्तदान करने के लिए 18 से 55 साल का कोई भी स्वस्थ व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। यदि व्यक्ति को कोई रोग है, पीलिया है, हेपेटाइटिस है या कोई गंभीर रोग है तो उसे रक्तदान नहीं करना चाहिए। यदि व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 से कम है तो भी रक्तदान नहीं करना चाहिए। ज्यादातर महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी होती है। इसलिए वह रक्तदान करने के पहले अपने रक्त में हीमोग्लोबिन की जांच अवश्य कराएं।

भारत जैसे देश में राष्ट्रीय सेवा योजना, नेशनल कैडेट कोर और हजारों शैक्षिक संस्थाएं समय-समय पर रक्तदान कार्यक्रम का आयोजन करके भारत जैसे देश में रक्तदान की कार्यक्रम को करते हुए रक्त की कमी के कारण लोगों के जीवन को खतरे में जाने से बचाने का कार्य करते हैं। यही कारण है कि पूरे विश्व में 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मना कर लोगों में यह जागृति पैदा की जाती है।

वह देश के लिए सबसे बड़ा देश प्रेम यही प्रदर्शित कर सकते हैं कि वह अपने देशवासियों को रक्त की कमी के कारण मौत की तरफ न जाने दें और ज्यादा से ज्यादा रक्तदान करें। पिछले दस वर्षों से अखिल भारतीय अधिकार संगठन द्वारा करीब 70 रक्तदान कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है। और संस्था सदैव ही इस बात के लिए प्रयासरत रहती है कि कैसे लोगों को यह समझाया जा सके कि रक्तदान करना स्वयं के रक्त को शोधित करना है क्योंकि अपने शरीर के अंदर रक्त को लगातार गतिशील बनाए रखने के लिए कुछ रक्त को दान कर देने से व्यक्ति में चुस्ती, फुर्ती और एक नई ऊर्जा का संचार बना रहता है।

इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को परोपकार के इस कार्य को करते हुए और यह मानते हुए कि कण कण में भगवान हैं, रक्तदान के कार्यक्रम को करके किसी मानव शरीर को बचाने के प्रयास में अपने भगवान की पूजा के प्रयास के रूप में ज्यादा देखा जाना चाहिए और इसी को आज विश्व रक्तदान दिवस के दिन समझने की आवश्यकता है।

एक व्यक्ति जो रक्तदान करता है उसके रक्त से 4 व्यक्तियों के जान को बचाया जा सकता है क्योंकि यह रक्त में उपस्थित प्लाज्मा को अलग कर लिया जाता है, जो प्लाज्मा की कमी वाले व्यक्तियों को देकर उनकी जान बचाने के काम आता है (प्लाज्मा एक ऐसा पदार्थ है जो रक्त को कुछ देर स्थिर रखने पर एक पीले द्रव के रूप में दिखाई देने लगता है यह संपूर्ण रक्त का 55% होता है) इसके अतिरिक्त लाल रक्त कणिकाएं को अलग करके उन व्यक्तियों को दिया जाता है। जिन्हें सिर्फ लाल रक्त कणिकाओं की आवश्यकता होती है।

इसी तरह से ऐसे लोग भी होते हैं। जिन्हें प्लेटलेट्स की केवल जरूरत होती है, उन्हें एक ही व्यक्ति द्वारा दिए गए रक्त के अंदर से निकाले गए प्लेटलेट को दे दिया जाता है। यदि किसी को श्वेत रक्त कणिका की आवश्यकता होती है तो उन्हें वह चढ़ाया जाता है। इस तरह एक व्यक्ति द्वारा दिए गए एक यूनिट रक्त से 4 व्यक्तियों की जान बचाई जा सकती है। जिसमें व्यक्ति को सिर्फ अपने शरीर के अंदर के उस रक्त को दान करना होता है। जिसकी मृत्यु स्वयं 120 दिन बाद हो जाएगी ऐसे में अपने शरीर के रक्त को देकर हम मानवता के दिशा में एक अद्भुत कार्य कर सकते हैं। पुरुष साल में चार बार और महिला ३ बार रक्त दान कर सकते हैं।

डॉ आलोक चांटिया