बैंकों का निजीकरण समस्या का हल नहीं, काॅर्पोरेट से की जाए वसूली

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बैंक कर्मियों के राष्ट्रीय संगठन ने दो टूक लहजे में कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजीकरण के रास्ते काॅर्पोरेट्स के हाथों में सौंपना समस्या का हल नहीं है। देश में बैंकिंग कर्मियों के सबसे पुराने और सबसे बड़े पचहत्तर वर्षीय संगठन आॅल इंडिया बैंक एम्प्लाॅइज़ एसोसिएशन (एआईबीईए) की 20 अप्रैल को प्लैटिनम जुबली वर्चुअली मनाई गई।

इस मौके पर इसके जनरल सेक्रेटरी सी एच वेंकटाचलम और प्रेसिडेंट राजेन नागर ने एक संदेश में कहा है कि मूल समस्या यह है कि गलत तौर तरीके अपनाकर बैंकों से बड़ी धनराशि में ऋण हासिल करने वाले जानबूझकर कर्ज की अदायगी नहीं करते हैं, और बकाया रकमों की ऐसे अपराधी बाकीदारों से सख्ती से वसूली करने के बजाय उसे ‘बैड लोन’ और बाद में बट्टेखाते में डाल देने के प्रचलन से ही बैंकों को घाटा होता है।

बैंक सामान्य रूप से परिचालन लाभ (आॅपरेशनल प्राॅफिट) अर्जित करते हैं, गलत नीतियों और गलत निर्णयों के बिना हानि नहीं होती। उनका कहना है कि प्रारंभ में सभी बैंक निजी क्षेत्र में ही उत्पन्न हुए। जब-जब निजी बैंक बीमार हुए अथवा उनके धराशाई होने की नौबत आई सार्वजनिक बैंकों ने उन्हें अपने में विलय करके आम जनता की गाढ़ी कमाई की जमा बचत पूंजी को डूबने से बचाया ही है।

हर कोई इस तथ्य को जानता है कि भारी-भरकम ऋण पहले ‘बैड लोन्स’ और फिर बट्टेखाते में डाली जाने वाली रकमें बैंकों से निकलकर किनके हाथों में समा गईं। वर्ष 2000 से लेकर 2020 तक के दो दशकों में सार्वजनिक बैंकों के 6 लाख 94 हजार करोड़ रुपए से ज़्यादा ऋण बैड लोन होने के बाद बट्टे खाते में डाल दिए, इसके पीछे सिर्फ जानबूझकर कर्ज अदा नहीं करने वाले अर्थात (विलफुल डिफाॅल्टर) अपराधी काॅर्पोरेट्स हैं।

भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में बैंकों का निजीकरण एक नकारात्मक कदम है। सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण किए जाने पर रोज़गार अवसर घटेंगे। निजीकरण से सिर्फ और सिर्फ खोटी नीयत पर टिके काॅर्पोरेट धनाढ्य और अधिक अमीर हो जाएंगे। छोट, मंझोले, बड़े देशी-विदेशी से लेकर भारत रिज़र्व बैंक तक के कुल तकरीबन पांच लाख कर्मियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इस एसोसिएशन ने सार्वजनिक बैंकों की तुलना ब्रह्मांड को नष्ट होने से बचाने के खातिर हलाहल पीने वाले महादेव से करते हुए कहा कि उसी तरह फेल होने वाले तमाम निजी बैंकों के घाटा रूपी ज़हर को सार्वजनिक बैंकों ने स्वयं पीकर लोगों की पूंजी को सुरक्षित रखा।

प्रेसिडेंट कामरेड राजेन नागर ने बताया कि कामरेड प्रभात कार सहित कई अग्रजों के संयुक्त तत्वावधान में कलकत्ता में 1946, 20 अप्रैल को आल इंडिया बैंक एम्प्लाॅइज़ एसोसिएशन की स्थापना की गई थी। बैंक आॅफ इंडिया लिमिटेड के रमेश चक्रवर्ती एसोसिएशन के प्रथम जनरल सेक्रेटरी बनाए गए थे। एसोसिएशन के तत्कालीन जनरल सेक्रेटरी कामरेड प्रभात कार के सघन प्रयासों से तत्कालीन सरकार 1961 में बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट की धारा 45 में संशोधन करने को सहमत हुई थी। इस संशोधन के होने पर ही सरकार रिज़र्व बैंक को जनहित के खातिर निजी बैंकों का विलय सार्वजनिक बैंकों में करने की सलाह देने में सक्षम हुई थी।

देश में वर्ष 1950 में 560 निजी बैंक थे, इनकी संख्या घटकर 1961 में 90 रह गई। एसोसिएशन के अनुसार 1961 में 47, 1962 में 33, 1963 में 20, 1964 में 82, 1965 में 42, 1966 में 17, 1967 में 15 और 1968 में 7 निजी बैंक फेल हुए थे और इन सभी बैंकों को सार्वजनिक बैंकों में विलय कर दिया गया था।

वर्ष 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। उसके बाद भी 1969 से लेकर 1999 तक तीन दशकों में बैंक आॅफ बिहार , नेशनल बैंक ऑफ लाहौर, कृष्णाराव बलदेव बैंक, लक्ष्मी काॅमर्शियल बैंक, मिराज स्टेट बैंक, ट्रेडर्स बैंक, बैंक आॅफ तमिलनाडु, बैंक आॅफ तंजौर, करूर सेंट्रल बैंक, पूर्बांचल बैंक, बैंक ऑफ कराड, काशीनाथ सेठ बैंक, पंजाब कोआपरेटिव बैंक, बड़ी दोआब बैंक, बरेली बैंक, सिक्किम बैंक और 2001 के बाद बनारस स्टेट बैंक, नेडुंगडी बैंक, साउथ गुजरात लोकल बैंक, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक और 2007 में भारत ओवरसीज़ बैंक का विलय किया गया। ताजा मामला 2020 में यस बैंक का है। जिसे भारतीय स्टेट बैंक ने वर्ष 2020 में बचा लिया। यस बैंक के प्रमुख राणा कपूर घोटाले के कर्ता-धर्ता थे जिन्हें बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया। ‌‌

प्रणतेश नारायण बाजपेयी