पर्यावरण की विलक्षण कृति : डेढ़ लाख वर्गमीटर में वटवृक्ष

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पर्यावरण विलक्षणता भी कम नहीं। कल्पना भी नही कर सकते कि एक वृक्ष करीब डेढ़ लाख वर्ग मीटर में अपना अस्तित्व बना लेगा। अकल्पनीय… अविश्वसनीय… किन्तु सत्य। जी हां, देश के पश्चिम बंगाल में एक विशाल वृक्ष ने अपना अस्तित्व एक लाख पैंतालिस वर्ग मीटर दायरे में फैला लिया। विशेषज्ञों की मानें तो वट वृक्ष विश्व का सर्वाधिक दायरे अर्थात चौड़ाई वाला पेड़ है। यह वटवृक्ष ढ़ाई सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है।

खास यह है कि इस विशाल वटवृक्ष की जड़, लता एवं तना एक लाख पैंतालिस वर्ग मीटर के दायरे में फैल चुुके हैं। यह विलक्षण वटवृक्ष आचार्य जगदीश चन्द्र बोस बोटैनिकल गार्डेन का हिस्सा है। विशेषज्ञों की मानें तो इस विशाल वटवृक्ष-बरगद की 2800 से 3000 जटाएं जड़ों का रूप धारण कर चुकी हैं। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक इस विशाल वटवृक्ष की मूल जड़े पूर्व में आये तूफानी चक्रवात में उखड़ चुकी हैं। फंगस लगने के कारण वटवृक्ष को बचाने की कोशिशें की गयीं। लिहाजा 1925 में खराब जड़ों को काट कर अलग किया गया था।

कोलकाता में हावड़ा स्थित शिवपुर में यह बोटैनिकल गार्डेन एक दुलर्भ पेड-पौधों का उद्यान है। करीब एक सौ नौ एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस विशाल उद्यान में बारह हजार से अधिक प्रकार के पेड़-पौधों की एक लम्बी श्रंखला है। यह उद्यान शासकीय देखरेख में संचालित है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के बोटैनिकल सर्वे आफ इण्डिया के अधीन उद्यान की सभी व्यवस्थायें हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो ब्रिाटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक सैन्य अफसर कर्नल राबर्ट किड ने वर्ष 1787 में इस उद्यान की स्थापना की थी। इस उद्यान में व्यावसायिक उपयोग वालों का प्रमुखता दी गयी थी। चीन से चाय के पौधे लाकर इस उद्यान में रोपित किये गये थे। इसके बाद हिमालय एवं असम में चाय पौधरोपण तेजी से बढ़ा। इस उद्यान में देश के विभिन्न इलाकों से खास-विशेष पौधे लाकर रोपित किये गये। यह जड़ी बूटियों का भी एक खास उद्यान है।

बोटानिकल गार्डेन की खूबियों का यूरोप के प्रमुख संग्रहालयों में उल्लेख किया गया। करीब पांच दशक पहले 1970 के आसपास एक बार फिर उद्यान को आैषधीय समृद्धता देने की सार्थक कोशिश की गयी। पौधरोपण, पौधों को पर्याप्त भोजन-पानी खाद आदि के इंतजाम किये गये। जगदीश चन्द्र बोस पर्यावरण एवं प्रकृति के खास एवं प्रख्यात वैज्ञानिक थे। बोस के पर्यावरण प्रेम को सम्मान देने के क्रम में इस रॉयल उद्यान का नामकरण आचार्य जगदीश चन्द्र बोस बोटैनिकल गार्डेन के रुप में 25 जनवरी 2009 में किया गया। खास यह है कि इस क्षेत्र में पॉलीथिन पूर्णत: प्रतिबंधित है।