भुगतान-निपटान उद्योग: एनपीसीआई का वर्चस्व ज्यादा दिन नहीं

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एनपीसीआई को खतरे की घंटी… सालाना लाखों करोड़ रुपये के भारतीय भुगतान और निपटान (पेमेंट ऐंड सेटलमेंट) उद्योग की एकाधिकारी चौखट पर जबरदस्त बदलाव की दस्तक होने लगी है। रुपे और यूपीआई जैसे उन्नत और दमदार एक दर्जन उत्पादों के बल पर घरेलू परिदृश्य में आमूल परिवर्तन करते हुए पिछले ग्यारह वर्षों से इस उद्योग पर एकाधिकार कायम रखने वाले भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (नेशनल पेमेंट कार्पोरेशन आफ इंडिया, एनपीसीआई) को आने वाले दिनों में देशी-विदेशी और ताकतवर प्रतिद्वंद्वियों से ‘डिजिटल जोरआजमाइश’ करनी पड़ेगी।

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक तकनीकी परिदृश्य और स्वदेशी अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ कदमताल करते रहने की भावी आवश्यकता के मद्देनजर देश की भुगतान-निपटान प्रणाली को सुदृढ़, सुरक्षित, लागतक्षम, प्रतिस्पर्धात्मक के साथ-साथ आमजन के लिए सुगम बनाने के लक्ष्य को सामने रखकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और बैंकिंग संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के संयुक्त प्रयास से एक ‘छतरी संस्था’ (अंब्रेला आॅर्गनाइजेशन) बनाने का निर्णय किया गया।

भुगतान एवं निपटान (पेमेंट ऐंड सेटलमेंट) अधिनियम 2007 के तहत भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (नेशनल पेमेंट काॅर्पोरेशन की स्थापना का एक रणनीतिक निर्णय लिया गया। एसबीआई, पीएनबी, बीओबी, केनरा बैंक, यूनियन बैंक आॅफ इंडिया, बैंक आॅफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीजफसी बैंक, एचएसबीसी बैंक और सिटी बैंक सहित कुल दस प्रमुख बैंकों ने मूल प्रवर्तक (कोर प्रमोटर) के तौर पर बराबर-बराबर शेयरपूंजी डालकर वित्तीय राजधानी मुंबई में बतौर गैरसरकारी कंपनी एनपीसीआई की स्थापना 2008 में की गई। शुरू में इसकी चुकता शेयरपूंजी 60 करोड़ रु.थी। 2016 सितंबर में अन्य 46 बैंकों को अपने शेयर एलाॅट कर अपना भागीदार बनाया। फिर 2020 नवंबर में मोबिक्विक, अमेजाॅन पे, फोन पे, पे यू, पाइन लैब्स, हिटाची पेमेंट्स, और इंडिया आइडियाज जैसी भुगतान कंपनियों कुल 2.5 फीसद, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मात्र 0.85 फीसद, 4 लघु वित्त बैंकों को 0.61 फीसद, पेटीएम पेमेंट्स बैंक को 0.44 फीसद और इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक, ई-मेडिटेक ग्लोबल व सोडेक्सो एसवीसी को 0.04-0.04 फीसद का भागीदार बना लिया, नतीजतन वर्तमान में इसके शेयरधारकों की कुल तादाद 67 हो गई है।

अपनी स्थापना के बाद सबसे पहले इसने इंस्टीट्यूट फाॅर डेवलॅपमेंट ऐंड रिसर्च इन बैंकिंग टेकनाॅलाॅजी (आईडीआरबीटी) से नेशनल फाइनेंशियल स्विच (एनएफएस) को हासिल किया। एनएफएस ही से एटीएम संचालित होते हैं। फिर तो एनपीसीआई ने क्रांतिकारी माने गये ‘यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस’ (यूपीआई) और ‘रुपे’ ही नहीं बल्कि आधार कार्ड आधारित भुगतान प्रणाली, नेशनल काॅमन मोबिलिटी कार्ड, इमीडिएट पेमेंट सर्विस और ‘फास्टैग’ नाम से मशहूर सिस्टम नेशनल इलेक्ट्राॅनिक टोल कलेक्शन समेत कोई एक दर्जन नये प्लेटफाॅर्म (उत्पाद) देश को देकर जनजीवन आसान किया‌ और भुगतान-निपटान उद्योग को रफ्तार भी दी। लेकिन मनमाने ढंग से काम करने की शैली से चारों तरफ और खासकर काॅर्पोरेट जगत में इसकी किरकिरी भी खूब होती रही है।

अप्रैल 2016 में शुरू कये गये यूपीआई की बदौलत देश में (210 बैंक इसका उपयोग कर रहे हैं) प्रति माह औसतन 235-238 करोड़ ट्रान्जैक्शन के जरिये 4 लाख 16 हजार 175 करोड़ रुपये से 4 लाख 16 हजार 180 करोड़ रुपये की धनराशि के भुगतान/ निपटान संपन्न होना वाकई बड़ी उपलब्धि है। ‘यूपीआई’ और ‘रुपे’ की कामयाबी का रुतबा इसी से समझा जा सकता है कि कई देशों ने इसे अपनाने में दिलचस्पी ली। जिससे उत्साहित होकर एनपीसीआई के शीर्ष प्रबंधन ने दूसरे देशों में अपने उत्पादों को स्थापित करने के उद्देश्य से बीते साल 2020 अप्रैल में ‘एनपीसीआई इंटरनेशनल पेमेंट्स लि.’ नाम से सब्सिडियरी कंपनी गठित की।

एनपीसीआई ने अपने पूर्ण दूसरे वित्तीय वर्ष में 60 करोड़ रु.की शेयर पूंजी से 76 करोड़ रु.की सकल आय और कुल व्यय 38 करोड़ निकालने के बाद भी खासा बचत की। पिछले साल मार्च में समाप्त वित्तीय वर्ष 2019-20 में 122 करोड़ रु.का ब्याज मिलाकर 1221 करोड़ रु.सकल आय, कर्मचारियों पर 157 करोड़ रु.और मार्केटिंग पर 131 करोड़ रु. खर्च करने के बाद भी मोटी रकम बचाने में सफलता मिली। इतना उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले एनपीसीआई से भी चूकें और गलतियां होती रहीं जिनकी कीमत पूरे संगठन को चुकानी पड़ेगी जब नीति निर्धारक सक्षम प्रतिद्वंद्वी जल्दी ही सामने खड़ा कर देंगे, क्योंकि इसके लिए इसके जन्मदाता और पालपोष कर कद्दावर बनाने वाले इन दिनों तैयारी में जोरदारी से जुटे हुए हैं। एनपीसीआई की बादशाहत की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। उद्योग पर दशक भर के वर्चस्व के भावी बिखराव से खुश देशी-विदेशी कार्पोरेट, अपनी एंट्री के दिन का बेताबी से इंतजार कर रहे हैं।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी