फिलहाल योगी के हौसले बुलंद

बिहार में मिले 90 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के हौसले बुलंद हैं। मनो वैज्ञानिक लड़ाई में योगी फिलहाल अखिलेश यादव पर बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि बिहार का परिणाम यूपी पर कितना असर डालेगा, इसकी परीक्षा अगले साल के पंचायत चुनाव में होनी है। उधर एक सीट जीतकर बसपा भी उत्साहित है, और उसकी ओवैसी के साथ चुनावी गठबंधन की चर्चाओं ने भी सपा की चिंता बढ़ा दी है। सूत्रों के अनुसार एआईएमआईएम यूपी के विधानसभा चुनाव में 200 प्रत्याशी उतारेगी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसकी घोषणा करके सियासी पारा चढ़ा दिया है।

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लखनऊ। बिहार में मिले 90 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के हौसले बुलंद हैं। मनो वैज्ञानिक लड़ाई में योगी फिलहाल अखिलेश यादव पर बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि बिहार का परिणाम यूपी पर कितना असर डालेगा, इसकी परीक्षा अगले साल के पंचायत चुनाव में होनी है। उधर एक सीट जीतकर बसपा भी उत्साहित है, और उसकी ओवैसी के साथ चुनावी गठबंधन की चर्चाओं ने भी सपा की चिंता बढ़ा दी है।

सूत्रों के अनुसार एआईएमआईएम यूपी के विधानसभा चुनाव में 200 प्रत्याशी उतारेगी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसकी घोषणा करके सियासी पारा चढ़ा दिया है। बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान यूपी के सीएम योगी की कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति के साथ बुलडोजर मॉडल की भी चर्चा खूब हुई। और अब तो इस समय बिहार में भी बुलडोजर खूब गरज रहा है। इसके अलावा एनकाउंटर भी होने लगे हैं। और अब तो गृह विभाग भी भाजपा के सम्राट चौधरी को मिल गया है। उन्होंने भी अपराधियों को सुधर जाने की चेतावनी दे दी है। यानी बिहार में योगी माडल हिट होने लगा है। इसके अलावा योगी के राष्ट्रवादी नैरेटिव ने भी एनडीए के समर्थकों में उत्साह भर दिया है।

हालांकि 2024 के आम चुनाव में यूपी बीजेपी को सपा-कांग्रेस गठबंधन से काफी घाव मिले थे, पर उसे बिहार की जीत काफी हद तक भरती दिख रही है। इस चुनाव परिणाम ने ये भी साफ कर दिया है कि बिहार व यूपी की राजनीति एक-दूसरे को लगातार प्रभावित कर रहे हैं। एक जानकारी के अनुसार यूपी के सीमाई क्षेत्रों में बिहार के 34 विधानसभा क्षेत्र हैं। यहां की जातीय संरचना, राजनीतिक मनोविज्ञान और बोली यूपी से काफी मिलती है। ऐसे में बिहार में एनडीए को मिली जीत ने बीजेपी को यूपी के लिए एक बड़ा नैरेटिव बनाने का मौका दिया है। यही बात अखिलेश यादव को नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने को मजबूर कर रही है।

* मनोवैज्ञानिक लड़ाई में अखिलेश यादव पर भारी हैं सीएम योगी
* बिहार में 90 फीसदी स्ट्राइक रेट पाकर योगी के हौसले हैं बुलंद
* बिहार में विफलता बढ़ा दी अखिलेश की चिंता
* ओवैसी के भी यूपी में लड़ने की घोषणा से सपा नेता परेशान
* अब सपा ने बदली अपनी रणनीति, यादव कम और बाकी में दम

बिहार के नतीजों के बाद सपा के सुप्रीमो कहने लगे हैं कि बिहार वाला खेल यूपी, पश्चिम बंगाल में नहीं चल पाएगा। उनका कहना है कि हमारे साथी भी एसआईआर पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। बिहार के परिणाम इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गये हैं, क्योंकि बिहार चुनाव में योगी और अखिलेश की आभासी लड़ाई का रिजल्ट योगी के पक्ष में आया है। अब भाजपाई कहने लगे हैं कि जिस प्रकार बिहार में एमवाई हारा है, वैसे ही यूपी में भी हारेगा। बिहार में प्रचार के दौरान यूपी के दोनों बड़े चेहरे सीएम योगी और सपा प्रमुख अखिलेश पूरी ताकत से मैदान में उतरे। योगी ने कई चुनाव सभाएं और रोड शो किए। जबकि अखिलेश यादव ने कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था, वे वहां इंडी गठबंधन के नाम पर नैरेटिव की लड़ाई लडने गए थे, जिसमें वे पिछड़ गए। अखिलेश ने 28 रैलियां की थीं, पर नतीजों ने उनको झटका दे दिया है, जबकि ये परिणाम योगी के लिए अच्छा संकेत लेकर आए। योगी ने वहां 30 रैलियां कीं और एनडीए के 28 प्रत्याशी जीत गए, स्ट्राइक रेट 90 फीसदी रहा। साथ ही एआईएमआईएम का अच्छा प्रदर्शन, एनडीए को मिली शानदार जीत और महा गठबंधन की करारी हार ने यूपी में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है।

ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने विपक्ष की राजनीति में भूचाल ला दिया है। सपा में अब नेतृत्व से लेकर प्रवक्ता तक राजनीतिक अनुशासन में ढलने के लिए मजबूर हो गए हैं। खबर है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने निर्देश जारी किया है कि कोई भी प्रवक्ता अब बसपा या उसकी प्रमुख मायावती पर टिप्पणी नहीं करेगा। बताया जाता है कि यह फैसला दलित वोट बैंक को नाराज़ होने से बचाने और पीडीए समीकरण मजबूत करने की रणनीति के तहत लिया गया है।
समाजवादी पार्टी पर बिहार चुनाव के नतीजों का बड़ा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ा है। बिहार में इस बार 2020 की तुलना में आधे से कम कुल 28 यादव विधायक ही जीते हैं। उसमें से भी आधे से अधिक यानी 15 एनडीए के और एक बसपा के जीते हैं जबकि 2020 में आंकड़ा इसके उलट था। अधिक नुकसान राजद का हुआ है। और बिहार में राजद और यूपी में सपा वोट आधार लगभग एक ही है।‌ इसके अलावा महिला वोटरों ने भी एनडीए और भाजपा की ताकत बढ़ा दी है। इससे भी सपा अलर्ट मोड में आ गई है। सपा सिर्फ अपनी यादववादी छवि से भी बाहर निकल कर सवर्णों को भी साधने की कोशिश में है। इसके अलावा पार्टी अब परिवारवादी छवि भी त्याग कर समावेशी छवि बनाना चाहती है। पार्टी का ध्यान अब किसी भी जाति के जिताऊ प्रत्याशी की खोज की ओर भी है।

केशव मौर्य ने अखिलेश यादव पर कसा तंज : यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव की कथित चिंता पर कहा है कि सपा मुखिया बिहार का रिजल्ट देख कर घबरा गये हैं। उनको नहीं मालूम कि बिहार के बहाने वोटरों ने बता दिया है कि किसी की तुष्टिकरण की नीति अब चल नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को 2027 नहीं 2047 के चुनावों के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि जनता तो अभी भाजपा के साथ ही रहना चाहती है। केशव मौर्य हाल में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी की ओर से सह प्रभारी और भाजपा का विधानमंडल दल का नेता चुनने के लिए मुख्य केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए थे। ऐसे में पार्टी में उनके बढ़ते महत्व के चलते अखिलेश यादव पर उनका तंज महत्वपूर्ण है।

वरिष्ठ पत्रकार राजशेखर की अखिलेश को सलाह : इस बाबत दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राजशेखर त्रिपाठी का कहना है कि बिहार से सपा के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए बड़ा सबक यही है कि वे अभी से 2027 की तैयारी में जुट जाएं। वे ’24 का रिजल्ट देख कर ’27 में शपथ लेने का सपना अभी बिल्कुल न देखें। श्री त्रिपाठी का मानना है कि वे तो सिर्फ भाजपा का टेक्निकल नुकसान था। और अखिलेश उसे समाजवाद की सीधी जीत मानने की गलती न करें। उनका कहना है कि भाजपा की टेक्निकल हार को उनको गंभीरता से लेना चाहिए। अखिलेश यादव 2024, के रिजल्ट को भाजपा की गलती मानने की भूल बिल्कुल न करें।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषण