लखनऊ। पिछले कई सालों से सियासी सूखा झेल रही बसपा अब फिर से खड़ा होने की तैयारी में है। लगभग 14 सालों बाद किसी बड़ी रैली के जरिए पार्टी अपनी सियासी ताकत का अंदाजा और प्रदर्शन करने जा रही है। सभी नेताओं को जिम्मेदारी बांट दी गई है। पार्टी के थिंक टैंक और प्रमुख ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्रा और मायावती की बैठकें जारी हैं। पार्टी के नेशनल कन्वेनर आकाश आनंद भी लगातार पार्टी नेताओं के सम्पर्क में हैं। ये उनकी धमाकेदार वापसी के बाद पहली परीक्षा है। अनुमान है कि इस रैली में दस से पंद्रह लाख लोग जुटने वाले हैं। और अगर ये रैली सफल हो गयी तो प्रदेश की सियासी फिज़ा का भी रंग बदलना तय है।
बसपा सुप्रीमो मायावती और और उनके विश्वस्त सतीश चंद्र मिश्र ने रैली सफल बनाने के लिए पूरी शक्ति लगा दी है।
लगभग 14 साल बाद बहुजन समाज पार्टी अपनी खोई राजनीतिक ताकत पाने के लिए संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि 9 अक्टूबर को एक बड़ी रैली करने जा रही है। यह आयोजन लखनऊ के रमाबाई मैदान में होने जा रहा है। पार्टी का दावा है कि इस रैली में प्रदेश की सभी 403 विधान सभा क्षेत्रों से लगभग 10-15 लाख से अधिक समर्थकों के जुटेंगे। नेशनल कन्वेनर आकाश आनंद और पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले सतीश मिश्र इस रैली को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। मायावती भी इस रैली को लेकर निगाहें जमाए हुए हैं। इस रैली की तैयारियों में बामसेफ और बीवीएफ को लगाने के साथ ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल, पूर्व सांसद घनश्याम चंद्र खरवार, मुख्य मण्डल प्रभारी, सूरज सिंह जाटव, पूर्व सांसद मुनकाद अली, पूर्व सांसद गिरीश चंद्र जाटव, पूर्व एमएलसी नौशाद अली, मुख्य मण्डल प्रभारी अखिलेश अम्बेडकर, मुख्य मण्डल प्रभारी सुनील कुमार, मुख्य मण्डल प्रभारी राकेश कुमार गौतम और जिलाध्यक्ष शैलेन्द्र कुमार गौतम को भी जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।
* पार्टी संस्थापक दिवंगत कांशीराम की पुण्यतिथि पर 9 अक्टूबर को लखनऊ में होगी एक बड़ी रैली
* सबको जिम्मेदारी सौंपी गई, आकाश आनंद की धमाकेदार वापसी के बाद अब होगी उनकी पहली परीक्षा
* पार्टी के बैकबोन सतीश चंद्र मिश्रा ने भी लगाया जोर, मायावती के साथ बैठकें, दस से पंद्रह लाख की भीड़ जुटाने की
जानकार बताते हैं कि 2012 से लगातार विधान सभा और लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन गिर रहा है। ऐसा लग रहा था कि बसपा ने अपने सियासी हथियार डाल दिए हैं। कुछ लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि पार्टी भाजपा की बी टीम बन गई है। क्योंकि मायावती के बयानों में भाजपा और सरकार के खिलाफ वह तेवर नहीं दिख रहे थे जिसके लिए वे जानी जाती हैं। लेकिन इस रैली की घोषणा ने बसपा समर्थकों में भी नयी आशा का संचार कर दिया है। और इससे वे पार्टियां भी परेशान हैं जो बसपा की कथित कमजोरी में स्पेस तलाशने लगी थीं।
2012 से पहले बसपा हर साल कोई न कोई विशाल रैली करती थी। अब बहुत दिनों बाद पार्टी जमीन पर दिखने की कोशिश में है। और उम्मीद यही है कि बसपा पूर्व की भांति एक बार फिर रमाबाई मैदान को विशाल जनसैलाब से भर देगी। बसपा की इस रैली पर सांसद चंद्रशेखर आजाद के साथ-साथ भाजपा, सपा और कांग्रेस की भी निगाहें लगी हैं। जानकार मानते हैं कि ये रैली ही बसपा की आगे की दिशा और दशा तय करेगी।
2007 में यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद से बसपा तेजी से कमजोर हुई। इस समय यूपी विधान सभा में मात्र एक विधायक उमाशंकर सिंह हैं, जो बलिया जिले से जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। बीते लोकसभा चुनाव में बसपा का एक भी सांसद प्रत्याशी नहीं जीत पाया है। ऐसे में अब नये सिरे से बसपा को खड़ा करना एक बड़ा टास्क है। इस रैली में मायावती क्या स्टैंड लेती हैं और किसको निशाने पर रखती हैं, यह देखना अधिक महत्वपूर्ण होगा। फिलहाल मोदी सरकार और भाजपा से उनके रिश्तों को लेकर चल रही चर्चाओं ने बसपा को बहुत बदनाम और कमजोर किया है।
अभयानंद शुक्ल