धनखड़ ने इस्तीफा दिया नहीं, मजबूर हो गए

धनखड़ ने इस्तीफा दिया नहीं, मजबूर हो गए विपक्ष को जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की टाइमिंग पर संदेह हरिवंश नारायण सिंह अब होंगे कार्यवाहक सभापति 11 अगस्त 2022 को 14वें उपराष्ट्रपति बने थे जगदीप धनखड़ विपक्ष अब धनखड़ की तारीफ के पुल बांधने में लग गया है

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नयी दिल्ली। पाकशास्त्र का सिद्धांत है कि भोजन अगर धीमी आंच पर बने तो बहुत स्वादिष्ट होता है, परंतु कभी-कभी जल्दी खाने के लिए आंच को तेज भी करना पड़ता है, पर स्वाद में फर्क आ जाता है। ऐसा ही कुछ 14 वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफा के मामले में भी दिखाई दे रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस्तीफा तो पहले से तय था लेकिन परिस्थितियां अचानक पैदा हुईं। पर शायद जल्दी इस्तीफा देने के लिए ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गईं कि उस पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्ष भी इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश में लगा हुआ है। भाजपा सूत्रों का भी कहना है कि उनका इस्तीफा पहले से निर्धारित था, लेकिन टाइमिंग अभी तय नहीं थी। पर दिन भर में परिस्थितियों ऐसी पैदा हुईं कि धनखड़ को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। धनखड़ पद पर रहते हुए इस्तीफा देने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति बन गए हैं। पिछले दो उपराष्ट्रपतियों के लिए इस्तीफा देने के वाजिब कारण थे, लेकिन धनखड़ की स्थिति के पीछे जो कारण बताया जा रहा है, वह बहुत तार्किक नहीं लग रहा है। क्योंकि जो व्यक्ति दिनभर सदन में और कार्यालय में रहकर अपनी दैनिक जिम्मेदारियां निभा रहा हो, वह स्वास्थ्य कारणों से अचानक इस्तीफा दे दे, यह समझ से परे है।

इसके पहले इस्तीफा देने वाले दो उपराष्ट्रपतियों में से पहले बीबी गिरि ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था, जबकि दूसरे उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने राष्ट्रपति पद का चुनाव हारने के बाद इस्तीफा दिया था। ऐसे में जगदीप धनखड़ के पास ऐसा कोई कारण समझ में नहीं आता जिसकी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़े। उनके दिन भर के रूटीन पर ध्यान दें तो उन्होंने सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, अपने कार्यालय में रहे और कई लोगों से रूबरू और फोन पर भी बातचीत की। उनसे रात में साढ़े सात बजे बात करने वाले कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश का कहना है कि उनसे मेरी बात हुई तो यह कतई नहीं लगा कि वे इस्तीफा दे देंगे। अर्थात रात साढ़े सात और साढ़े नौ के बीच ही ऐसे कुछ घटनाक्रम हुए जिनके चलते धनखड़ को इस्तीफा देने का निर्णय लेना पड़ा। और उन्होंने बिना किसी को बताए, बिना किसी को विश्वास में लिए अपना इस्तीफा तैयार किया और उसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेज कर सोशल मीडिया पर भी अपलोड कर दिया। अब इस स्थिति को लेकर विपक्ष परेशान है। वह इसमें काली दाल और दाल में काला का नैरेटिव ढूंढने में लगा हुआ है, ताकि उसे भाजपा को घेरने का मौका मिल जाए। हालांकि विपक्ष ने इसी धनखड़ के खिलाफ दो बार महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया था लेकिन भाजपा ने तकनीकी कारणों से उसे नामंजूर करा दिया था। अब वही विपक्ष धनखड़ की तारीफ कर रहा है, कामकाज की तारीफ कर रहा है और उनके समय से पहले दिए गए इस्तीफे पर सवाल उठा रहा है।

राजनीतिक गलियारों में इस बात की बड़ी चर्चा है कि धनखड़ ने इस्तीफा दिया नहीं, उनके लिए ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गईं कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया पर की गई प्रतिक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया सिर्फ एक औपचारिकता भर थी। उससे कहीं भी नहीं लगा वे इस्तीफे से दुखी हैं। अब सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। विपक्ष इस इस्तीफे को हजम नहीं कर पा रहा है। उधर मंगलवार दोपहर तक सत्ता पक्ष ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की थी। दूसरे दिन जब मंगलवार को राज्यसभा में पीठासीन अधिकारी घनश्याम तिवाड़ी ने गृह मंत्रालय के हवाले से यह सूचना दी कि राष्ट्रपति ने जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर मोहर लगाते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि धनखड़ जी ने अब तक बहुत सारे दायित्व निभाए हैं, मैं उनके बेहतर स्वास्थ्य की शुभकामनाएं देता हूं। इस प्रकार अब भारतीय संसदीय राजनीति में जगदीप धनखड़ का रोल लगभग समाप्त हो गया है। हालांकि कांग्रेस के लोग इस इस्तीफे को जाट समुदाय के अपमान से भी जोड़ने की कोशिश में हैं। कांग्रेस सांसद नीरज डांगी ने इसे जगदीप धनखड़ का अपमान करार दिया है। उनका कहना है कि इसके पीछे की सच्चाई सबके सामने आनी चाहिए।

इस घटनाक्रम से भारतीय राजनीति में हलचल हो गई है, और इसका असर बिहार से लेकर दिल्ली तक होने की उम्मीद है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल समेत अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि अब राज्य से नीतीश कुमार को हटाकर उपराष्ट्रपति बनाया जाएगा और यहां भाजपा का मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। हालांकि जनता दल यूनाइटेड ने इन सारी चर्चाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि नीतीश कुमार कहीं नहीं जाएंगे वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे। अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा और चुनाव के बाद वे ही मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी नेता अपने दावे पर कायम हैं। उपराष्ट्रपति सचिवालय के अनुसार श्री धनखड़ मंगलवार को जयपुर, राजस्थान के एकदिवसीय दौरे पर जाने वाले थे। वहां वे रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के नए चुने गए सदस्यों से मुलाकात करने वाले थे। ऐसे इस बात के साफ संकेत दिखाई दे रहे हैं कि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा अचानक लिया गया निर्णय है।

जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में सेहत का हवाला दिया है। हांलांकि मानसून सत्र के पहले दिन वे काफी एक्टिव दिखे। उन्होंने सदन को अच्छे से चलाया। उनके अचानक इस्तीफे से विपक्षी पार्टियों में अटकलों और आंकलनों का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मुख्य सचेतक जयराम रमेश, जिनके साथ राज्यसभा में उपराष्ट्रपति की कई बार बहस भी हुई, ने बताया कि उन्होंने शाम साढ़े सात बजे धनखड़ से टेलीफोन पर बात की थी। उनका कहना है कि बातचीत में ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि वे ऐसा कुछ सोच भी रहे हैं। वे इस इस्तीफे को सामान्य घटना मानने को तैयार नहीं हैं। अन्य लोगों को भी उनके अचानक इस्तीफे की बात पच नहीं रही। ऐसा शायद ही कभी देखने को मिला हो कि पूरे दिन का सत्र चलाने के बाद किसी उपराष्ट्रपति ने अचानक इस्तीफा दे दिया हो। अपने कार्यकाल के बीच में जनदीप धनखड़ ने इस्तीफा देकर एक राजनीतिक भूचाल ला दिया है। सत्ता पक्ष लेकर विपक्ष तक इस स्थिति के पीछे की कथा तलाश में जुटे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनको 5 साल के लिए उपराष्ट्रपति चुनाव गया था। ऐसे में उनका तीन साल में ही इस्तीफा दे देना कई सवाल खड़े करता है, और विपक्ष को भी यह जानने का हक है कि ऐसा क्यों हुआ, ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्हें बीच में इस्तीफा देना पड़ा। इस पूरे मामले में विपक्ष को भी मसाला मिल गया है। और जो विपक्ष दो बार जगदीप धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए उद्यत था, वही विपक्ष अब उनके इस्तीफे को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उस लगता है कि इसके पीछे कोई और कहानी है जो उसे कोई नई राजनीतिक जमीन दे सकती है। एक कोशिश कांग्रेस की ओर से हुई भी है। पार्टी के जाट सांसद नीरज डांगी ने इस पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि यह जाट समुदाय का अपमान है और इसकी सच्चाई लोगों तक आनी चाहिए।

अब नए राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। बिहार से लेकर दिल्ली तक नाम पर मंथन हो रहा है। इस संदर्भ में जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अलावा उत्तर प्रदेश के एक सर्वाधिक ताकतवर राजनेता का नाम लिया जा रहा है। लोगों ने तो उनका रिप्लेसमेंट भी यूपी से ही तय कर दिया है, परंतु अभी तक भाजपा की ओर से इस बारे में कोई भी संकेत नहीं दिया गया है। हालांकि अभी भाजपा ने अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं तय किया है, इसलिए इस मामले को उससे जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा में अध्यक्ष पद के कई दावेदार हैं, तो हो सकता है कि उनमें से किसी एक दावेदार को भाजपा उपराष्ट्रपति ही बना दें।

सूत्रों का कहना है कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से पहले राजनाथ सिंह के ऑफिस में अलग तरह की हलचल दिखाई दी। सूत्रों का कहना है कि ऊपर से सामान्य दिखने वाली गतिविधियों के ठीक पीछे एक सियासी तूफान आकार ले रहा था। दरअसल सोमवार को राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग वाले प्रस्ताव की विपक्षी सदस्यों की नोटिस को स्वीकार कर लिया। बताते हैं कि नोटिस में सत्ता पक्ष के किसी भी सदस्य के हस्ताक्षर नहीं थे। यह भी खबर मिली है कि उस दौरान न तो नेता सदन जेपी नड्डा मौजूद थे और न ही संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू। सूत्रों का दावा है कि इसी के बाद से इस्तीफे की पटकथा ने अचानक आकार लिया और शाम होते-होते एक ऐतिहासिक घटना हो गई।

यह पूरा घटनाक्रम ठीक उसी समय लगभग दोपहर 2 बजे हुआ, जब खबर आई कि निचले सदन में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के 100 से ज़्यादा सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। सूत्रों का दावा है कि भाजपा हाई कमान ने राज्यसभा के मामले को गंभीरता से लिया। इसको लेकर उपराष्ट्रपति और भाजपा हाई कमान से बातचीत भी हुई थी। लेकिन उपराष्ट्रपति न तो भाजपा हाई कमान को अपने डिसिजन का जस्टिफिकेशन दे पाए और न बीजेपी हाई कमान संतुष्ट हो पाया। इसी पर तल्खी बढ़ी और उपराष्ट्रपति ने अपना इस्तीफा तैयार कर लिया।
उधर खबर है कि विपक्ष की मंशा भांपकर जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को आकार देने की योजना में था, लेकिन यह इस्तीफा ऐसा नहीं था, जैसा पार्टी चाहती थी। खैर , इस घटनाक्रम ने विपक्ष के ऑपरेशन सिंदूर पर होने वाली सियासत को भी काफी हद तक भोथरा कर दिया है। इस समय सभी दलों में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की चर्चा है। अब सभी दल उसके पीछे की कथा खोजने में लगे हैं और उसके आफ्टर इफेक्ट देखने में लगे हैं।

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद विपक्षी नेताओं ने इसकी टाइमिंग, वजहों पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस सांसद नीरज डांगी ने एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए कहा है कि ये खबर बहुत चौंकाने और हैरान करने वाली है। हमें लगता है कि स्वास्थ्य कि इस बात में दम है। पिछले सत्र में भी उनकी तबीयत खराब हुई थी, लेकिन वे तीसरे-चौथे दिन ही काम पर लौट आए थे। उन्होंने दावा किया कि यह फैसला धनखड़ साहब की मर्जी से नहीं, बल्कि सरकार के दबाव में लिया गया है।

वहीं, कांग्रेस सांसद किरण कुमार चमाला ने भी इस इस्तीफे को हैरान करने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि सुबह तक श्री धनखड़ संसद में थे और उन्होंने सभी दलों से एकजुट होकर देश के लिए काम करने की बात कही थी। ये अचानक इस्तीफा समझ में नहीं आ रहा है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी इस इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सवाल किया है कि धनखड़ साहब दिनभर संसद भवन में थे, फिर एक घंटे में ऐसा क्या हो गया कि इस्तीफा देना पड़ा। हम दुआ करते हैं कि अल्लाह उन्हें लंबी और सेहतमंद जिंदगी दे।

विपक्ष के दबाव के चलते धनखड़ को हटना ही था : राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के व्यवहार से विपक्ष संतुष्ट नहीं था। उसका हमेशा यह आरोप रहता था कि वे विपक्ष को बोलने का मौका नहीं देते। इसके चलते उनकी सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सपा की जया बच्चन आदि सांसदों से झड़प भी हुई थी। टीएमसी सांसद ने तो सदन के गेट पर उनकी मिमिक्री भी की थी। इसी के चलते विपक्ष ने दो बार प्रयास किया कि उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए किंतु दोनों ही बार सत्ता पक्ष ने तकनीकी कारणों का हवाला देकर वे प्रस्ताव खारिज करा दिए। ऐसे में इतना तो तय है कि भाजपा भी जगदीप धनखड़ का विकल्प तलाश रही थी, लेकिन विकल्प इस तरह निकलकर आएगा, इसकी उम्मीद नहीं थी। ये विकल्प न तो जगदीप धनखड़ के लिए सही था और न ही बीजेपी की राजनीति के लिए। इसके चलते भाजपा को जाट समुदाय में गलत संदेश जाने का भी खतरा है, जिसकी कोशिश कांग्रेस के सांसद नीरज डांगी ने कर भी दिया है। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन आया। वे 11 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने थे। इस दौरान वे राज्यसभा के पदेन सभापति भी रहे।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक