एक स्वतंत्र निर्णय ने रखी इस्तीफे की बुनियाद

एक स्वतंत्र निर्णय ने रखी इस्तीफे की बुनियाद जगदीप धनखड़ ने दो घंटे में ही ले लिया अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला उपराष्ट्रपति ने सिर्फ विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर को लेकर शुरू हुआ मामला सूत्रों का कहना है कि इसी के बाद से धनखड़ के इस्तीफे की पटकथा तैयार होने लगी विपक्ष का इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल, इसे नया रंग देने की भी है पूरी कोशिश

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लखनऊ। भारतीय राजनीति में किसी पदस्थ उपराष्ट्रपति के इस्तीफा देने की तीसरी घटना में जगदीप धनखड़ ने सोमवार को पद से इस्तीफा दे दिया है, और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उसे स्वीकार भी कर लिया है। गृह मंत्रालय के हवाले से इसकी औपचारिक घोषणा भी राज्यसभा में पीठासीन अधिकारी घनश्याम तिवाड़ी ने कर दिया है। ऐसी पहली घटना में उपराष्ट्रपति बीवी गिरि ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दिया था। इसके अलावा पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने राष्ट्रपति पद का चुनाव हारने के बाद इस्तीफा दिया था। इसलिए उन इस्तीफे पर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन कार्यकाल के बीच में ही जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने भारत में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। विपक्ष इसके पीछे की कथा तलाशने में जुटा है। वैसे जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने इसको सामान्य घटना के रूप में लेते हुए रिएक्शन दिया है, उसे देखकर यही लगता है कि यह सब कुछ अचानक हुआ घटनाक्रम है।

इस मामले में अब विपक्ष को मसाला मिल गया है। ऐसे में जो विपक्ष धनखड़ के खिलाफ दो बार महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए उद्यत था, वही विपक्ष अब उनके इस्तीफे को सामान्य घटना स्वीकार करने को तैयार नहीं है। उसे लगता है कि इसके पीछे कोई और कहानी है जो उसे नई राजनीतिक जमीन दे सकती है। एक कोशिश कांग्रेस की ओर से हुई भी है। पार्टी के जाट सांसद नीरज डांगी ने इस इस्तीफे पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा है कि यह जाट समुदाय का अपमान है, सच्चाई लोगों तक आनी चाहिए। इस्तीफे की टाइमिंग पर गौर करें तो कांग्रेस नेता जयराम रमेश की जगदीप धनखड़ से शाम साढ़े सात बजे बात हुई थी, और इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया पर साढ़े नौ बजे के बाद आ गई थी। ऐसे में लगता है कि इसका निर्णय इन्हीं दो घंटों में लिया गया है। खैर, नई में उपराष्ट्रपति पद का चुनाव होने तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ही अब सभापति का भी कार्यभार देखेंगे।

सत्ता पक्ष के लोग जहां इसे उपराष्ट्रपति के स्वास्थ्य के कारण दिया गया इस्तीफा साबित करने में जुटे हुए हैं, वहीं विपक्ष इसमें काली दाल का और दाल में काला का नैरेटिव तलाश करने में जुटा हुआ है। विपक्ष का कहना है कि उपराष्ट्रपति ने यदि स्वास्थ्य के कारणों से इस्तीफा दिया है तो ईश्वर उन्हें बहुत जल्दी स्वस्थ करें, लेकिन अगर इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है तो यह गंभीर बात है। विपक्ष का कहना है कि उनका चुनाव पांच साल के लिए किया गया था, ऐसे में सिर्फ तीन साल में ही इस्तीफा दे देना सवाल पैदा करता है। इस बाबत राज्यसभा में कांग्रेस के उप नेता प्रमोद तिवारी ने कहा है कि मेरी तो शाम को उनसे मुलाकात भी हुई थी और तब तक उनका ऐसा कोई इरादा उनकी बाडी लैंग्वेज में नहीं दिखा।कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश, जिनकी कई मुद्दों पर उपराष्ट्रपति से सदन में नोक झोंक भी हुई, भी इसे सामान्य इस्तीफा मानने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि मैंने शाम को साढ़े सात बजे उपराष्ट्रपति से फोन पर बात की थी।, और उस समय तक ऐसी कोई बात नहीं थी। ऐसे में यह अचानक इस्तीफा कई सवाल पैदा करता है। वैसे इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष और सदन में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि ये भाजपा का अपना मामला है।

उधर राज्यसभा में गृह मंत्रालय के हवाले से पीठासीन अधिकारी घनश्याम तिवारी ने जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार किए जाने की औपचारिक सूचना सदन को दे दी है। इस प्रकार जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्यकाल अब समाप्त हो गया है। अब नए उपराष्ट्रपति को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। बिहार से लेकर दिल्ली तक नाम पर मंथन हो रहा है। सूत्रों की खबर है कि उत्तर प्रदेश का कोई बड़ा और उम्रदराज राजनेता भाजपा की ओर से इस पद पर लाया जाएगा। और उस राजनेता का पद उत्तर प्रदेश के ही एक उससे कम उम्र के प्रभावी राजनेता द्वारा भरा जाएगा। इसको लेकर यूपी में गहमागहमी बढ़ गई है। कुछ लोग इसे भाजपा के दबंग नेता और पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह के सीएम योगी से हुई मुलाकात से भी जोड़कर देख रहे हैं।

उधर सूत्रों का दावा है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से पहले राजनाथ सिंह के ऑफिस में अलग तरह की हलचल दिखाई दी। ऊपर से सामान्य दिखने वाली गतिविधियों के ठीक पीछे एक सियासी तूफान आकार ले रहा था। खबर है कि सोमवार को राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जस्टिस अवधेश वर्मा के खिलाफ महाभियोग वाले प्रस्ताव की विपक्षी सदस्यों के हस्ताक्षर वाली नोटिस को स्वीकार कर लिया था। यह भी खबर मिली है कि उस दौरान न तो वहां नेता सदन जेपी नड्डा मौजूद थे और न ही संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू। वे उस समय लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पर सदस्यों का हस्ताक्षर जुटाने में लगे हुए थे। और वे जब तक उपराष्ट्रपति के पास आते कब तक उपराष्ट्रपति विपक्ष के सदस्यों की नोटिस को कार्रवाई के लिए भेज दिया था। यानी यहां उपराष्ट्रपति की जल्दबाजी भी शायद इस इस्तीफे की बुनियाद बनी। सूत्रों का भी दावा है कि इसी के बाद से इस्तीफे की पटकथा ने आकार लिया और रात होते-होते यह ऐतिहासिक घटना हो गई।

यह पूरा उपराष्ट्रपति के कार्यालय में यह घटनाक्रम ठीक उसी समय लगभग दोपहर 2 बजे हुआ, जब खबर आई कि निचले सदन में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के 100 से ज़्यादा सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। और इधर धनखड़ ने महाभियोग प्रस्ताव के लिए राज्यसभा के सिर्फ विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव ही स्वीकार कर सदन में पेश करने का निर्देश जारी कर दिया था। सूत्रों का दावा है कि भाजपा हाई कमान ने इस मामले को गंभीरता से लिया। इस पर उपराष्ट्रपति और भाजपा हाई कमान से बातचीत भी हुई थी, लेकिन उपराष्ट्रपति न तो भाजपा हाई कमान को अपने निर्णय का जस्टिफिकेशन दे पाए और न बीजेपी हाई कमान संतुष्ट हो पाया। इसके बाद तल्खी बढी। खबर यह भी है कि राज्यसभा में पहले दिन विपक्ष के हंगामे के बीच भाजपा अध्यक्ष और नेता सदन जेपी नड्डा ने बिना उपराष्ट्रपति को विश्वास में लिए विपक्ष को आश्वासन दे दिया कि उनकी तमाम बातें रिकॉर्ड में नहीं जाएंगी और विपक्ष जितना चाहेगा उतना चर्चा के लिए समय दिया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि जगदीप धनखड़ इस बात को भी लेकर नाराज थे। अर्थात जेपी नड्डा एक बार फिर भाजपा के लिए समस्या के रूप में उभरे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ बयान देकर पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी, और इस बार भी शायद उन्होंने ऐसा ही कर दिया।

खबर यह है कि इस्तीफे के लिए उपराष्ट्रपति ने किसी से चर्चा भी नहीं की, सीधे इस्तीफा लिखा और राष्ट्रपति के पास भेज कर सोशल मीडिया पर भी पोस्ट कर दिया। खबर ये भी है कि भाजपा की ओर से पहल कर उनको मनाने की कोशिश की गई लेकिन वे अपने निर्णय अटल रहे। शायद यही कारण है कि सत्ता पक्ष ने भी इस पर प्रतिक्रिया देने में जल्दबाजी नहीं की। इस्तीफे की खबर आने के बाद से और गृह मंत्रालय द्वारा औपचारिक सूचना देने तक भाजपा के किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की थी। अब जब पीएम नरेंद्र मोदी ने औपचारिक रूप से इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करके इस्तीफे पर मोहर लगा दी है, तब सत्ता पक्ष के लोग प्रतिक्रिया देने के लिए सक्रिय हुए हैं। इस बाबत प्रतिक्रिया देते हुए गोरखपुर से भाजपा सांसद रविकिशन ने कहा कि लोग बेवजह बेचैन हैं। अगर किसी का स्वास्थ्य खराब है तो वह क्या करेगा। बिना वजह कुछ और ढूंढने की विपक्ष की बड़ी खराब आदत है।

दूसरी तरफ सत्ता पक्ष के कुछ सूत्रों का कहना है कि उपराष्ट्रपति का इस्तीफा पहले से निर्धारित था। उनका तर्क है कि पार्टी ऐसे ही चौंकाने वाले फैसले लेती रहती है, विपक्ष तो बेवजह परेशान है। सूत्रों का तर्क है कि उपराष्ट्रपति के खिलाफ पिछले दिनों विपक्ष काफी मुखर था, और दो बार उनके खिलाफ महाभियोग की नोटिस भी दी थी। वह तो सत्ता पक्ष ने तकनीकी कारणों का हवाला देकर महाभियोग की नोटिस को खत्म करा दिया गया था। ऐसे में विपक्ष की मंशा भांपकर ही इस इस्तीफे को आकार दिया गया। सूत्रों का कहना है कि ऐसा करके भाजपा ने विपक्ष की ऑपरेशन सिंदूर पर होने वाली सियासत को भी काफी हद तक भोथरा कर दिया है, क्योंकि अब सभी दलों में इस बात की चर्चा होने लगी है कि इस इस्तीफे के पीछे का सच क्या है। सभी राजनीतिक दल इसके पीछे की कथा और आफ्टर इफेक्ट देखने में लगे हैं।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक