बदल रहे हैं महाराष्ट्र के सियासी समीकरण

बदल रहे हैं महाराष्ट्र के सियासी समीकरण फडणवीस के आफर के बाद उद्धव की उनसे से मुलाकात पर चर्चाएं देवेंद्र फडणवीस ने दिया है सत्ता पक्ष की तरफ आने का ऑफर ट्रंप के ताजा बयान पर प्रियंका चतुर्वेदी की भी बोली मुलायम दिखी ऐसे में राज ठाकरे के अकेले पड़ जाने के भी हैं संकेत कांग्रेस पार्टी पहले ही किनारा कर चुकी है विजय रैली से एनसीपी का रुख भी फिलहाल सरकार के खिलाफ नहीं

0
29

नयी दिल्ली। राजनीति संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल कही जाती है। इसमें न तो कोई स्थाई शत्रु होता है, और न स्थाई मित्र। शायद यही कारण है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। हाल के दिनों में शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट की नरमी के चलते भी इन चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है कि उद्धव ठाकरे अब राजनीति में 180 डिग्री का मोड़ लेने वाले हैं। चर्चा है कि उनकी भाजपा से नजदीकियां बढ़ रही हैं। इन चर्चाओं को मजबूती प्रदान कर दी है मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के उद्धव ठाकरे को दिए गए एक ऑफर ने। और इसके ठीक दूसरे दिन ही उद्धव ठाकरे भी बेटे आदित्य ठाकरे के साथ देवेंद्र फडणवीस से मिलने पहुंच गये। इस मुलाकात ने चर्चाओं को थोड़ा और बल प्रदान किया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बयान उद्धव गुट की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी का रहा। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान के बाद कि भारत-पाक की लड़ाई में पांच जेट मार गिराए गए थे, कहा कि हम तो अपने डीजीएमओ की बात पर ही भरोसा करेंगे। और ट्रंप क्या कहते हैं, हम उस पर ऐतबार नहीं कर सकते। इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रियंका चतुर्वेदी के बयान पर न तो उद्धव ठाकरे और न ही संजय राउत ने ही कोई नकारात्मक टिप्पणी की है।

खबर ये भी है कि भाजपा से उद्धव ठाकरे की बढ़ती नजदीकियों के चलते पार्टी प्रवक्ता संजय राउत नाराज हैं, और वे अब नए ठिकाने की तलाश में हैं। खैर, अगर उद्धव ठाकरे की भाजपा से नजदीकियां बढ़ती हैं तो ये राज ठाकरे के लिए चिंता का विषय होगी। क्योंकि भाजपा उद्धव ठाकरे को तो साथ ले लेगी लेकिन राज ठाकरे को नहीं, क्योंकि उत्तर भारतीयों के खिलाफ उनका निगेटिव अप्रोच भाजपा को हमेशा असहज करता रहा है। और राज ठाकरे के लिए कांग्रेस के रास्ते भी लगभग बंद ही मिलेंगे, क्योंकि उनको साथ लेने से उसे भी अपने उत्तर भारतीय वोटरों के नाराज होने का खतरा है। शायद इसी कारण मराठी भाषा के मुद्दे पर आयोजित विजय रैली में भी कांग्रेस पार्टी का कोई नुमाइंदा शरीफ नहीं हुआ था। तभी से ये माना जा रहा है कि राज ठाकरे के चलते कांग्रेस भी उद्धव ठाकरे से किनारा कर सकती है। हां, सुप्रिया सुले जरूर उस कार्यक्रम में मौजूद रहीं लेकिन उनकी पार्टी का मराठा प्रेम बहुत पहले से चला रहा है। इसलिए उनके आने पर कोई आश्चर्य नहीं है। वैसे भी शरद पवार राजनीति में बड़े मौसम विज्ञानी माने जाते हैं। कहा भी जाता है कि शरद पवार एक ऐसे राजनेता हैं जिनकी हर पार्टी में अच्छी पैठ है। खैर, महाराष्ट्र की राजनीति परिवर्तित होने की ओर है, और इसके संकेत मिलने लगे हैं। और ये आने वाला समय ही बताएगा कि कौन किस करवट बैठता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दावे पर शिवसेना उद्धव गुट की प्रवक्ता और सांसद प्रियंका चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया इस बार इंडी गठबंधन से अलग दिखाई दी है। उनका कहना है कि ट्रंप जो भी कहें, पर हम तो हम अपने डीजीएमओ की बात पर भरोसा करेंगे। प्रियंका चतुर्वेदी का यह बयान भी शिवसेना के बदलते रुख का संकेत है। उधर उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने विधान भवन में सीएम देवेंद्र फडणवीस से लगभग 20 मिनट तक मुलाकात की है। इसे लेकर सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। ठीक इसके बाद उद्धव ठाकरे का यह बयान भी आया है कि हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी हमारा स्वाभिमान है। उनका यह बयान इसके पहले के बयानों की तुलना में साफ्ट है। असल में विधानसभा में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह बयान देकर सबको चौंका दिया दिया था कि अगर उद्धव पक्ष बदलना चाहें तो उस पर अलग तरीके से विचार कर सकते हैं। और दूसरे दिन उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस से विधान भवन में मुलाकात की। और लगभग इसी समय प्रियंका चतुर्वेदी का बयान आया है। तभी से सियासी चर्चाओं का दौर जारी है।
इसके अलावा सोशल मीडिया पर ये खबर भी बहुत तेजी से वायरल हो रही है कि उद्धव ठाकरे के इस रुख से पार्टी प्रवक्ता संजय राउत नाराज हैं। ख़बरें तो यहां तक हैं कि वे अब पार्टी से दूरी बना रहे हैं। दरअसल पूरा मामला ट्रंप के उक्त ताजा बयान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर घेरने की कोशिश से बढ़ा है। राहुल ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि अब तो बताइए की पांच जहाजों का सच क्या है। कांग्रेस इस मुद्दे पर नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और नेता की सफाई सुनने को तैयार नहीं है। ट्रंप के इस बयान को लेकर इंडी गठबंधन की पार्टियां भी राहुल गांधी के सुर में सुर मिला रही हैं, पर प्रियंका चतुर्वेदी के साफ्ट कार्नर ने एक नई राजनीतिक चर्चा की जमीन तैयार कर दी है। दरअसल प्रियंका चतुर्वेदी का यह बयान इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि वे उद्धव के पास इसलिए आईं थीं, क्योंकि वे कांग्रेस पार्टी से नाराज थीं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में मथुरा से लडना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस ने मना कर दिया था। इसी के बाद वे पार्टी छोड़कर शिवसेना में आ गईं। अब चर्चा यह है कि भाजपा इस बार हेमा मालिनी को विश्राम देकर प्रियंका चतुर्वेदी को मौका देने जा रही है। सूत्र बताते हैं कि इसी डीलिंग और उद्धव ठाकरे के नये रुख के चलते प्रियंका चतुर्वेदी का बयान थोड़ा साफ्ट हुआ है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, हमें डीजीएमओ पर भरोसा : शिवसेना यूबीटी की सांसद और प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बार-बार के उन दावों पर कटाक्ष किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत-पाक की लड़ाई उन्होंने ट्रेड की धमकी देकर रुकवाई। और इस बार तो उन्होंने यह भी जोड़ दिया कि लड़ाई में पांच जेट मार गिराए गए थे। इस पर प्रियंका चतुर्वेदी ने पूछा है कि अगर ऐसा है तो समझौता कहां है। एक्स पर एक पोस्ट में प्रियंका चतुर्वेदी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उनके इस बयान में यह भी नहीं बताया गया है कि किस देश को नुकसान हुआ। प्रियंका चतुर्वेदी ने लिखा है कि अगर ट्रंप बार-बार यह दोहराते हैं कि व्यापार समझौते के तहत भारत-पाक युद्धविराम पर सहमत हुए हैं, तो ऐसा क्यों है कि भारत-अमेरिका में अभी तक कोई व्यापार समझौता नहीं हुआ। क्या इसीलिए ट्रंप भारत पर दबाव बनाने के लिए अपने इस बयान को बार-बार दोहराते रहते हैं। इसके अलावा ट्रंप का यह बयान कि भारत और पाकिस्तान सैन्य संघर्ष के दौरान पांच जेट मार गिराए गए थे, अधूरा है। उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि किस पक्ष को नुकसान हुआ। उधर भारत भी सैन्य टकराव समाप्त कराने के ट्रंप के दावे को खारिज करते हुए ये कहता रहा है कि अमेरिका की मध्यस्थता के बिना ही दोनों पक्षों ने अपनी सेनाओं के बीच सीधी बातचीत के बाद सैन्य कार्रवाइयां रोकीं। ट्रंप ने ये नया दावा व्हाइट हाउस’ में रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों के रात्रिभोज के दौरान किया था।

उद्धव-फडणवीस के बीच 20 मिनट तक हुई चर्चा : देवेंद्र फडणवीस के उद्धव ठाकरे को सत्ता पक्ष में आने के न्योते के दूसरे दिन दोनों नेताओं की मुलाकात भी विधान परिषद अध्यक्ष राम शिंदे के कार्यालय में हुई। मुलाकात लगभग 20 मिनट चली। इससे पहले फडणवीस ने विधानसभा में कहा था कि उद्धव ठाकरे चाहें तो अलग तरीके से सत्ता पक्ष में आ सकते हैं। देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि कम से कम 2029 तक हमारे लिए विपक्ष में आने की कोई गुंजाइश नहीं है। हां, उद्धव जी इस तरफ (सत्ता पक्ष) आने की गुंजाइश के बारे में सोच सकते हैं, और उस पर अलग तरह से विचार किया जा सकता है।

2019 में टूटी थी उद्धव ठाकरे और भाजपा की साझेदारी : शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन 2014 तक ठीक तरीके से चला। पर 25 साल की साझेदारी में 2014 के विधानसभा चुनावों के दौरान सीटों के बंटवारे के विवाद के कारण दरार आ गई। आखिरकार 2019 में चुनाव जीतने के बाद उद्धव ठाकरे ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। इसके बाद से ही महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ आ गया। बाद में एकनाथ शिंदे ने बगावत कर शिवसेना में बंटवारा किया और भाजपा के सहयोग से सरकार बना ली थी। फिर 2024 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा और शिंदे का गठबंधन मजबूत होकर फिर सत्ता में आ गया। इस बार तो इसमें अजित पवार की एनसीपी भी शामिल है। गठबंधन का विधानसभा की दो तिहाई से अधिक सीटों पर कब्जा है।

बदल सकते हैं महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरण : यदि उद्धव ठाकरे और भाजपा गठबंधन में नजदीकियां बढ़ती हैं तो राज्य की राजनीति में फिर एक बार भाजपा शिवसेना गठबंधन मजबूत होकर उभर सकता है। हालांकि इसमें एक पेंच एकनाथ शिंदे का भी है, क्योंकि उन्होंने भाजपा का मजबूती से साथ दिया है। ऐसे में भाजपा उन्हें छोड़ना नहीं चाहेगी। ऐसे में भाजपा उन्हें कैसे संतुष्ट करेगी, यह एक बड़ा सवाल होगा। पर भाजपा यह भी जानती है कि उद्धव ठाकरे का नाम बालासाहेब ठाकरे की विरासत से जुड़ा हुआ है, और भाजपा उसे टैग को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयासरत रही है। क्योंकि महाराष्ट्र मे भाजपा और बालासाहेब ठाकरे का गठजोड़ परफेक्ट हिंदुत्व की विचारधारा वाला था, और उसने हमेशा विनिंग समीकरण तैयार किया। लेकिन उद्धव ठाकरे की अति महत्वाकांक्षा और पार्टी प्रवक्ता संजय राउत के गलत सुझावों के चलते उद्धव ठाकरे ने 2019 में भाजपा का साथ छोड़ दिया था। दरअसल उस समय उद्धव मुख्यमंत्री का पद चाहते थे लेकिन भाजपा अपनी अधिक सीटों के कारण इस पर सहमत नहीं थी। इसी को लेकर भाजपा और उद्धव ठाकरे में मतभेद हुए। फिर इसके बाद संजय राउत के प्रयासों से कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मिलकर उद्धव की सरकार बनवा दी। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि सरकार को बनाने में शरद पवार और संजय राउत की बहुत बड़ी भूमिका थीं। ऐसे में चर्चाएं इस बात की हैं कि संजय राउत नहीं चाहते कि उद्धव ठाकरे भाजपा के नजदीक जाएं। शायद इसीलिए ये खबरें फैली हैं कि संजय राउत इसके पक्ष में नहीं है और अपनी नाराजगी के चलते उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ने का विचार कर रहे हैं। इसके अलावा अगर भाजपा और उद्धव ठाकरे साथ आते हैं तो कांग्रेस को भी नये साथी की तलाश होगी, क्योंकि शरद पवार का कोई भरोसा नहीं। वे पहले से ही भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर अपनाए हुए हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही शरद पवार ने जितने बयान दिए, वे सब सरकार को सपोर्ट करने वाले ही थे। इसको लेकर कांग्रेस में नाराजगी भी थी लेकिन पवार ने अपना स्टैंड नहीं छोड़ा है। इसके चलते संभावनाएं इसी बात की है कि कांग्रेस अपने रास्ते अलग कर सकती है। इन सब में ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे का होगा, क्योंकि अगर उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ जाते हैं तो फिर राज ठाकरे को साथ लेने वाला कोई नहीं होगा। न तो भाजपा उन्हें अपने खेमे में लेना चाहेगी और न कांग्रेस। ऐसे में राज ठाकरे को दिक्कत हो सकती है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक