गेल का खेल बिगड़ा, जितना फाॅरेक्स कमाया, दोगुना गंवाया….. एक और ‘महारत्न’ उपक्रम के लिए बीता साल कड़ुवाहट भरा रहा, जिसकी भरपाई भू-राजनीतिक स्थितियों के चलते चालू वित्तीय वर्ष में भी मुश्किल दिखाई पड़ रही है। बात कर रहे हैं गैसों के आयात, वितरण और गैस पाइपलाइनों के बृहत नेटवर्क का संचालन करने वाली गैस अथाॅरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) की। समस्याओं से चौतरफा घिरी गेल का शीर्ष प्रबंधन इन दिनों दबाव में है।
गेल अपना ‘महारत्न’ स्टेटस मेंटेन नहीं कर पा रही है। कहने को गैस कारोबार में इजाफा हुआ है। लेकिन इजाफे में गैस की मात्रात्मक वृद्धि तो कम ही रही मूल्यों के बढ़ने से कारोबारी आंकड़े बेहतरी की तस्वीर पेश करते हैं। गैस की लागत में हुई बेकाबू बढ़ोतरी ने लाभ_मार्जिन को संकुचित कर दिया है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए अल्प अवधि में स्थिति में सुधार के आसार नहीं लग रहे हैं। आय से कहीं अधिक रफ्तार से बढ़ते खर्च को घटा पाना शीर्ष प्रबंधन के लिए फिलहाल असाध्य है। वर्ष 2022_23 के आंकड़ों के आधार पर गेल ने अपनी सकल आय में तो 57 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की है परंतु सकल व्यय इससे कहीं ज्यादा 75 प्रतिशत बढ़ गया। देश में गैस का पर्याय बनी इस कंपनी ने 2021_22 में 93 हजार 692 करोड़ रुपए के सापेक्ष 2022_23 में 1लाख 46 हजार 986 करोड़ रुपए की आय अर्जित की, जबकि सकल व्यय 80 हजार 102 करोड़ से 60 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा बढ़कर 1 लाख 40 हजार 402 करोड़ रुपए के स्तर पर जा पहुंचा। लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) और कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) सेगमेंट तो ठीक ठाक रहा लेकिन पेट्रोकेमिकल के बिजनेस में तगड़ा झटका लगा है। साल 2022_23 में पेट्रोकेमिकल सेगमेंट में कंपनी को 1060 करोड़ रुपए का नुक़सान उठाना पड़ा, जबकि 2022_22 में 1245 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था।
एक छोर से दूसरे छोर तक पंद्रह हजार किलोमीटर से भी ज्यादा गैस पाइपलाइन का विशालतम नेटवर्क का संचालन करने वाली गेल सर्वाधिक गैस का आयात करती है और अपनी पाइपलाइनों के जरिए फर्टिलाइजर और केमिकल सहित विभिन्न उपभोक्ता उद्योगों को इसकी सप्लाई करती है। गैस आयात पर सालाना चालीस-पैंतालीस हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च करती है। गेल की आधा दर्जन सब्सिडियरी (सहायक) कंपनियां हैं जिनमें से अमेरिका और सिंगापुर में एक-एक हैं। इनके अलावा संयुक्त क्षेत्र में नौ कंपनियां और सात संबद्ध कंपनियों के जरिए कारोबार करती है।
गेल ने गैसों के आयात पर वर्ष 2021_22 में 46 हजार 848 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च की, इसकी तुलना में 20 हजार 326 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा अर्जित की ,यानी कमाई के मुकाबले खर्च 130 प्रतिशत अधिक। विपरीत स्थितियों से जूझ रही महारत्न गेल का लाभ के मोर्चे पर प्रदर्शन निवेशकों के हित में नहीं रहा। 6 हजार 575 करोड़ रुपए की चुकता शेयर पूंजी (पेड अप कैपिटल) वाली इस कंपनी का शुद्ध लाभ 2022_23 में आधा रह गया। जहां 2021_22 में 10 हजार 363 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था 2022_23 में 5 हजार 301करोड़ पर सिमट गया।
कंपनी सेंट्रल एक्साइज और कस्टम ड्यूटी के दो मामलों में घिर गई। सेंट्रल एक्साइज के मामले में कंपनी के प्रबंधन ने हाल ही में सीईएसटीएटी के आदेश के विरद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 20 करोड़ रुपए जमा कराए हैं और साथ ही 132 करोड़ रुपए की सिक्योरिटी भी ली है। कस्टम्स एक्साइज़ ऐंड सर्विस टैक्स एपिलेट ट्रेब्युनल (सीईएसटीएटी) ने नवंबर 2018 में कंपनी को 2889करोड़ रुपए का ड्यूटी भुगतान करने का आदेश दिया था, ब्याज सहित कुल देनदारी बढ़ कर 2023, 31 मार्च को 3391 करोड़ रुपए हो गई थी। दूसरा ताजा मामला कस्टम ड्यूटी का है जिसमें कस्टम विभाग ने 2023, 23 मार्च को कंपनी को 934 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था। दोनों ही मामलों में प्रबंधन को कुल मिलाकर 4300 करोड़ रुपए की धनराशि कभी भी भरनी पड़ सकती है।
प्रणतेश बाजपेयी