नोट बंदी, काम बंदी के बाद वोट बंदी का नैरेटिव

नोट बंदी, काम बंदी के बाद वोट बंदी का नैरेटिव नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार को अभी तक घेर रहे विपक्ष को मिला नया नैरेटिव बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण को वोट बंदी की संज्ञा दे रहा समूचा विपक्ष पश्चिमी यूपी में दुकानों पर नेमप्लेट को लेकर भी विपक्ष का काम बंदी का आरोप

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लखनऊ। मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2016 में किए गए नोटबंदी को लेकर विपक्ष अभी भी हमलावर है। इसके बाद विपक्ष ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए चल रहे मतदाता सूची संशोधन कार्यक्रम पर सवाल उठा कर वोट बंदी का नया नैरेटिव गढ़ दिया है। इसके अलावा कांवड़ रूट पर दुकानदारों को पहचान बताने के आदेश को उसने पिछले साल से काम बंदी का नैरेटिव बना रखा है। उसका यह नैरेटिव इस साल भी जोरों पर है। इन तीनों नैरेटिव के बहाने विपक्ष भाजपा और उसकी सरकारों को दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक विरोधी बताने में जुटा हुआ है।

विपक्ष का आरोप है कि बिहार में मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण के बहाने सरकार पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करना चाहतीं है। इसको लेकर बिहार ही नहीं पश्चिम बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट दलों में भी बड़ी बेचैनी है। अभी यह मामला चल ही रहा था कि पिछले साल के ही काम बंदी के नैरेटिव ने जोर पकड़ लिया है। काम बंदी यानी पश्चिमी यूपी में कांवड़ रूट पर खान-पान की दुकानों में नेमप्लेट लगाने का विवाद। रहा सवाल नोटबंदी का तो यह वर्ष 2016 से मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का हथियार बना हुआ है।

इन तीनों मुद्दों पर भाजपा सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है। उधर बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण के बारे में चुनाव आयोग का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 326 में दिए प्रावधानों के तहत ही ये कार्य कराया जा रहा है ताकि मतदाता सूची शुद्ध हो सके और चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष हो सकें। कांवड़ रूट पर खान-पान की दुकानों पर नेमप्लेट की सख्ती के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि कांवड़ियों को शुद्ध और सात्विक भोजन सामग्री देने के लिए ये इंतज़ाम किया गया है। खैर हंगामा जारी है।

देश में इन दिनों सियासी बवाल मचा हुआ है। समूचा विपक्ष भाजपा सरकार के पीछे पड़ा हुआ है। आरोप लगाया जा रहा है कि हार जाने के डर से चुनाव आयोग को दबाव में लेकर मोदी सरकार बिहार में चुनाव के ठीक पहले बिहार में वोटर लिस्ट संशोधन करवा रही है ताकि उसमें से विपक्ष के वोटरों विशेष रूप से मुसलमानों का नाम हटाकर भाजपा के चुनाव जीतने का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो इसे सीधे तौर पर चुनाव चुराने का प्रयास बता रहे हैं। उनका आरोप है कि जिस प्रकार भाजपा ने महाराष्ट्र में वोटर बढ़वा कर वहां का चुनाव चुरा लिया है वैसे ही यहां पर दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों का नाम वोटर लिस्ट में से निकाल कर यहां का चुनाव चुरा लेना चाहती है। हालांकि इसके खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया पर वहां से भी उसे कोई राहत नहीं मिली।

खैर, राहुल गांधी कहते हैं कि हम भाजपा को चुनाव चुराने नहीं देंगे, वैसे भी ये बिहार है और यहां के लोग ऐसा करने नहीं देंगे। दूसरी तरफ राजद नेता तेजस्वी यादव का आरोप है कि भाजपा के इशारे पर चुनाव आयोग दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का वोट काट कर चुनाव तो जीतना ही चाहती है, साथ ही फ्री राशन सहित तमाम सरकारी योजनाओं से वंचित भी करना चाहती है। सभी विपक्षी दल ये सवाल उठा रहे हैं कि बिहार का विधानसभा चुनाव सिर पर है और भाजपा मतदाता सूची में संशोधन करा रही है। इतने कम समय में यह संभव ही नहीं है। विरोध में राजद और कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों ने पटना में प्रदर्शन भी किया। प्रदर्शन में तेजस्वी यादव, राहुल गांधी, पप्पू यादव समेत कई विपक्षी पार्टियों के नेता मौजूद रहे। अपने संबोधन में राहुल गांधी ने चेताया कि उनकी सरकार आने पर सबका हिसाब होगा।

उधर चुनाव आयोग का तर्क है कि इसके पहले भी मतदाता सूची पुनरीक्षण हुआ है, और वह भी सिर्फ एक महीने में। आयोग का कहना है कि वैसे भी अब तकनीक का जमाना है, इसलिए और भी आसानी होगी। सत्ता पक्ष का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 326 में चुनाव आयोग को इसका अधिकार है। इस मुद्दे पर शीर्ष कोर्ट में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई 11 जुलाई को हुई पर विपक्ष को कोई राहत नहीं मिली। फिलहाल वोटर लिस्ट संशोधन का काम जारी है।
अब बात काम बंदी की। सावन माह में भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए लाखों शिवभक्त हरिद्वार से जल लेकर शिवालयों को जाते हैं और शिव का जलाभिषेक करते हैं। लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर लम्बे इस कांवड़ मार्ग पर बने ढाबों और होटलों में खाने की क्वालिटी पर सवाल उठते रहे हैं। आरोप तो यह भी है कि कई मुसलमानों ने हिंदू नाम से होटल और ढाबे खोल रखे है। इसे लेकर हर साल बवाल होता था। पर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। कोर्ट ने अपने आदेश के जरिए दुकानदारों को पहचान बताने के लिए बाध्य करने पर पाबंदी लगा दी थी। अब इस साल भी यह विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस साल अभी सुप्रीम कोर्ट का कोई आदेश नहीं आया है। पर दोनों तरफ से बाद विवाद जारी है। आरोप है कि प्रदेश सरकार की शह पर स्वामी यशवीर नामक एक साधु, जो योग केंद्र चलाते हैं, ने इस रूट के खान-पान के दुकानों पर जाकर पहचान पत्र मांगे और बवाल काटा। आरोप है कि इस चक्कर में कई लोग अपना व्यवसाय बंद कर चुके हैं। और इसीलिए विपक्ष इसको काम बंदी का नैरेटिव बनाने की कोशिश में है। जबकि स्वामी यशवीर समर्थक इसे हिंदू आस्था के खिलाफ धोखाधड़ी के खिलाफ कार्रवाई बता रहे हैं। खैर हर साल की तरह इस बार भी इस रूट पर सुरक्षा के तगड़े इंतजाम हैं। खबर है कि योगी सरकार ने इस रूट पर करीब 70 हजार पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की फौज तैनात कर रखी है। जगह जगह पुलिस पिकेट, सीसीटीवी कैमरे और प्याऊ का इंतजाम किया गया है। यूपी की तर्ज पर उत्तराखंड सरकार ने भी अपने इलाके में इंतजाम कर रखे हैं। उधर विपक्ष इसे लोगों की रोजी से खिलवाड़ बताकर लगातार हमलावर है। उसकी कोशिश है कि इसे किसी भी तरह धार्मिक विवाद का रंग दिया जा सके। इसके लिए विपक्ष के धार्मिक नेताओं की फौज काम पर लग गई है।

इसके पहले 2016 में 8 नवंबर को मोदी सरकार ने नोटबदी कर टेरर फंडिंग और काले धन के पोषक लोगों पर तगड़ा प्रहार किया है। इस दौरान घरेऊ महिलाओं द्वारा छिपा कर रखे गए बचत के धन का भी खुलासा हुआ था। वह चोट इतनी तगड़ी थी कि विपक्ष उसकी मार से आज भी बेदम है।

अभयानंद शुक्ल, राजनीतिक विश्लेषक