महाकुंभ की कथा में आम आदमी की व्यथा

महाकुंभ की कथा में आम आदमी की व्यथा महाकुंभ में सुविधा है पर उपयोग सिर्फ वीआईपी कर पा रहे नहाने का पानी साफ है पर संगम नोज पर, जहां सब नहीं जा सकते यहां नो व्हीकल जोन है पर अशक्त के ऊ आवागमन सुविधा नहीं रिक्शा ठेला है, बाइक हैं पर किराया बेतहाशा और औकात से बाहर

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लखनऊ। प्रयागराज महाकुंभ में 40वें दिन तक लगभग 56 करोड़ लोगों ने आस्था की डुबकी लगा ली थी। इसका मतलब ये महाकुंभ अपने अनुमान से अधिक सफल होता दिखाई दे रहा है। इसके लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार, उनका सरकारी अमला और उनका प्रचार तंत्र बधाई का पात्र है। निश्चित रूप से संख्या के लिहाज से उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के 2013 वाले महाकुंभ को बहुत पीछे छोड़ दिया है। यह एक उपलब्धि है, इसमें कोई दो राय नहीं। इस महाकुंभ के जरिए सनातनी आस्था भी खूब जागृत हुई है, इससे भी एतराज नहीं। और शायद इसीलिए विपक्ष भी इस आयोजन के बारे में अनाप-शनाप बातें कह कर इसे असफल साबित करने की कोशिश में लगा हुआ है। ऐसे में अगर विपक्ष को इसमें कुछ दिक्कतें दिख रही हैं यह उसका अपना सर दर्द है। योगी आदित्यनाथ की सरकार को व्यवस्थाएं करनी थीं, कर दिया। अब उसे मेंटेन करना आम जनता का भी कर्तव्य है, सरकार कहां तक सब देखेगी। सरकार कहां तक व्यवस्थाएं मेंटेन करती फिरेगी, अरे कुछ जनता भी करेगी या नहीं। किंतु यह जरूर है कि कुछ चीजें सरकार को भी जाननी चाहिए ताकि अगली बार जब महाकुंभ लगे तो व्यवस्थाएं थोड़ी और अच्छी हो जाएं।

प्रयागराज महाकुंभ में व्यवस्थाएं अच्छी की गई हैं, इसमें कोई दो राय नहीं।‌ किंतु व्यवस्थाएं करने के बाद उन्हें मेंटेन करने पर शायद बहुत ध्यान नहीं दिया गया। बात शुरू करते हैं संगम के पानी की शुद्धता से। संगम का पानी शुद्ध है, पर सिर्फ संगम नोज पर जहां वीआईपी स्नान होता है। संगम के बाकी घाटों पर स्थिति दयनीय है। पानी में सफाई नहीं दिखी। लोग गंदे पानी में स्नान करने को मजबूर दिखे। लेकिन 144 साल के विशेष संयोग वाले नैरेटिव ने उस गंदगी में भी उन्हें पवित्रता का एहसास कराया। लोग वहां भी स्नान करके धन्य-धन्य हो गए।

जहां तक बात सफाई कर्मियों की है तो वे सफाई भी कर रहे हैं। किंतु सफाई करते-करते कब आपके ऊपर कूड़ा डाल दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। वहां आप खड़े होकर कुछ सोच रहे हैं तब तक आपके ऊपर झाड़ू चल जाएगी। इसके अलावा कपड़े बदलने के लिए जो कैबिनेट बनाए गए हैं, वे मल-मूत्र विसर्जन का केंद्र बन गए हैं। उनमें सफाई का अभाव दिखा। बदबू के मारे बुरा हाल, सांस लेना दूभर। वैसे इसके लिए श्रद्धालु भी जिम्मेदार हैं। उन्हें उस जगह मल-मूत्र विसर्जन नहीं करना चाहिए था। परंतु सवाल यह है कि वे इसके लिए जाएं कहां, इसकी कोई मुकम्मल व्यवस्था महाकुंभ क्षेत्र में घाट के आसपास दिखाई नहीं दी। पर योगी सरकार का काम था व्यवस्थाएं कर देना। अब आप उसे गंदा करके इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं तो यह आपकी सोच और आपकी जिम्मेदारी है। इसमें योगी सरकार क्या कर सकती है।
यहां पुलिस की भी व्यवस्था है, किंतु सिर्फ अधिकारियों के लिए। यहां बड़े अधिकारी, नेताओं और अन्य वीआईपी के लिए कोई दिक्कत नहीं है। क्योंकि उनके लिए गाड़ियों की व्यवस्था है, रास्ता साफ करने की व्यवस्था है, अलग से स्नान घाट की व्यवस्था है। अगर उनकी नजर से देखें तो महाकुंभ में बहुत अच्छी व्यवस्था है। किंतु आम आदमी के बारे में सोचें तो सड़क पर चलते-चलते वे कब धकिया कर किनारे कर दिये जाएंगे, उन्हें भी पता नहीं। क्योंकि अचानक ही किसी वीआईपी की गाड़ी आती है तो रास्ता साफ कराया जाता है। और रास्ता साफ कराने के चक्कर में कौन आदमी कहां धकिया दिया जाएगा, इसका कुछ पता नहीं है। इस चक्कर में अचानक लगता है कि भीड़ बढ़ गई है। और जब भीड़ बढ़ती है तो लगता है कि भगदड़ होने वाली है। ऐसे में कमजोर दिल वाले लोग तो इसे देखकर ही हदस जाते हैं। इसलिए वहां पर आम आदमी की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह जरा सावधानी से चले। क्योंकि वीआईपी तो वीआईपी है, वह पैदा ही हुआ है सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए। आप आम आदमी हैं तो आपको संभाल कर चलना ही चाहिए, यह आपकी ड्यूटी है।

इसके अलावा महाकुंभ में व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर अचानक उसे नो व्हीकल जोन घोषित कर दिया जाता है। ठीक है, यह व्यवस्था होनी चाहिए, यह जरूरी भी है। किंतु अगर आप नो व्हीकल जोन घोषित करते हैं तो वैकल्पिक साधन भी होना चाहिए। क्योंकि महाकुंभ में ऐसे लोग भी आते हैं जो चलने-फिरने में लाचार होते हैं या बहुत ज्यादा नहीं चल पाते हैं। उनके लिए किसी व्यवस्था का अभाव देखा गया। यातायात के साधन के नाम पर कुछ रिक्शा ठेला गाड़ियां थीं जो लोगों को लादकर इधर-उधर कर रही थीं। अब वे कितनी सुविधाजनक होंगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। खैर, उनका किराया भी इतना अधिक है कि सामान्य आदमी तो उस पर जाने की सोच नहीं सकता। लगभग किलोमीटर की यात्रा का एक व्यक्ति का किराया ₹100। और अगर आप अपनी गाड़ी से हैं तो आपका वाहन मेला क्षेत्र से कम से कम 10 किलोमीटर दूर पर खड़ा कर दिया जाएगा। उसके बाद मेला क्षेत्र में आने के लिए आपको प्रति व्यक्ति अनुमानित एक हजार रुपया देना ही पड़ेगा। या फिर पैदल चलिए। तब जाकर आप मेला क्षेत्र में प्रवेश कर पाएंगे। उसके बाद यदि आप सक्षम हैं तो तब भी पैदल चलें, यहां आपकी सुधि लेने वाला कोई नहीं मिलेगा। वापसी में भी आपको वही रिक्शा ठेला मिलेगा, जो आपको लगभग उतने ही किराए में बाहर तक छोड़ देगा। यहां पर दोपहिया वाहन वालों की खूब चांदी है, वे अंधाधुंध पैसा कमा रहे हैं।‌ उनका किराया तो ई रिक्शा और ठेले से भी अधिक है। शायद इसलिए कि वे जाम के बीच में से भी आपको समय से पहले आपके गंतव्य पर पहुंचा देते हैं। वैसे इतनी परेशानियों के बाद भी आपको इतना पैसा खर्च करना खलेगा नहीं क्योंकि आपको तो 144 साल बाद लगे विशेष संयोग वाले महाकुंभ का पुण्य लाभ मिलना है। और अगर पुण्य लूटना है तो कुछ खर्च तो करना ही पड़ेगा। बाकी महाकुंभ की व्यवस्था ठीक-ठाक है। सारे वीआईपी प्रसन्न हैं। वे यहां आकर सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा गए हैं। अब अगर आम आदमी उनका लाभ नहीं उठा पाया कि उसकी अपनी किस्मत है, आम आदमी होने का कुछ तो दंड भुगतना ही पड़ेगा।

यहां पर महाकुंभ की मित्र पुलिस भी है जो पूछने पर भी आपको सही जानकारी नहीं दे पाती है। इनमें से कुछ की दिक्कत यह है कि वे एक-दो दिन पहले ही महकुंभ की ड्यूटी में आए हैं, उन्हें नहीं मालूम कि कहां क्या है। जो पहले से हैं वे इतने बिजी हैं कि आपको बताने के लिए उनके पास समय नहीं है। कुछ ऐसे भी हैं जो बेचारे वीआइपी ड्यूटी में व्यस्त हैं। उनके पास आपकी बात सुनने के लिए टाइम नहीं है। ऐसे में आपको भी उनकी मजबूरी समझना चाहिए। वे क्या-क्या करें, वीआईपी ड्यूटी करें कि आपकी समस्या का समाधान। अरे कुछ आप भी अपने बारे में सोचेंगे। आप भी अपने बारे में सोचिए और अपनी समस्या का खुद समाधान कीजिए। सब कुछ सरकार थोड़े ही करेगी। मुफ्त में थोड़े ही आपको 144 साल बाद के विशेष संयोग वाले महाकुंभ का पुण्य मिल जाएगा।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक