लखनऊ। इसी साल की आने वाली विजयादशमी के दिन अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रहे सामाजिक संगठन और सत्ताधारी पार्टी भाजपा का बैक बोन, थिंक टैंक संघ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने सौ साल के सफर में कई उतार और चढ़ाव देखे हैं। यहां तक कि उस पर आजादी की लड़ाई में सक्रिय भाग न लेने, उसके नेताओं पर अंग्रेजों से मिले होने और धार्मिक उन्माद फैलाने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए गए। उस पर तीन बार प्रतिबंध भी लगा। संघ ने अपनी स्थापना के बाद शुरू के आधे हिस्से यानी लगभग 50 वर्ष संगठन बनाने और बाकी समय संगठन को मजबूत करने में लगाए हैं। संघ भाजपा के लिए हमेशा ही संकट मोचक साबित हुआ है। जब भी लगा भाजपा कमजोर हो रही है तो संघ के स्वयंसेवकों ने पार्टी की नैया पार लगाई है। बीते साल के लोकसभा चुनाव में कुछ मतभेदों के चलते जब संघ ने चुनाव से अपने हाथ खींच लिए तो भाजपा को सिर्फ 240 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा जबकि इसके पहले के दो लोकसभा चुनावों में संघ की ही बदौलत भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बना पाई थी।
इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की सक्रियता ने भाजपा को सत्ता दिलाई। खैर, 17 सदस्यों से शुरू इस संगठन की सदस्य संख्या अब लाखों में हो चुकी है। संघ का उद्देश्य देशभर में चल रही अपनी शाखाओं की संख्या एक लाख के पार करने की है। 2022 में अयोध्या में हुई संघ की बैठक के मुताबिक देश के सीमाई क्षेत्रों में विशेष रूप से विस्तार की योजना है। संघ का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामकरण 17 अप्रैल 1926 को हुआ था। तब डा केशव बलिराम हेडगेवार इसके संस्थापक प्रमुख बनाए गए थे। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद संघ इस समय समान नागरिक संहिता और हिंदुत्व की एकता के लिए माहौल बनाने में लगा हुआ है। यूसीसी की शुरुआत उत्तराखंड से हो भी चुकी है। इस शताब्दी वर्ष में संघ ने मंडल व कस्बा स्तरीय हिंदू सम्मेलन करने का भी निर्णय लिया है। संगठन के एक पदाधिकारी के अनुसार देशभर में ऐसी एक लाख से ऊपर इकाइयां हैं, जहां ये हिन्दू सम्मेलन किए जाएंगे।
संगठन के सूत्रों के अनुसार संघ की शुरुआत के लिए डा. हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ एक गोष्ठी कर संघ के गठन की योजना बनाई थी। बैठक में विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे। संगठन का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी 17 अप्रैल 1926 को हुआ। तब सर्वसम्मति से केशव बलिराम हेडगेवार को इसका प्रमुख चुना गया। डा. हेडगेवार ने संघ की स्थापना के बाद इसकी मजबूती के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। अपनी पहली अर्ध शताब्दी में संघ ने कई संस्थाएं भी बनायीं। इसमें राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनसंघ/भारतीय जनता पार्टी और सरस्वती शिशु मंदिर/विद्या भारती जैसे संगठन शामिल हैं।
महाराष्ट्र के नागपुर के अखाड़ों से बना यह संगठन अब विराट रूप ले चुका है। संघ आज जितना मजबूत नजर आ रहा है, उतना ही इसे उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा है। संघ ने लक्ष्य रखा है कि शताब्दी वर्ष के पूरे होने तक देशभर में अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाकर एक लाख करना है। अपने सौ साल के सफर को पूरा करने पर संघ कई बड़े आयोजन भी करेगा। संघ ने वर्ष 2025 के लिए जो अपना एजेंडा बनाया है, उसमें अपनी शाखाओं को शहर, कस्बों और गांवों तक नहीं बल्कि देश के सीमांत क्षेत्रों तक अपनी पहुंचाने का है। संगठन का सामाजिक समरसता का एजेंडा सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके जरिए विभिन्न जातियों में बिखरे हिंदुओं को एकजुट करने की योजना भी शामिल है। इसके अलावा दलितों और आदिवासी समुदाय के बीच पैठ भी जमाने की योजना है। सियासी रूप से विपक्ष एक तरफ जातिगत जनगणना, संविधान और आरक्षण के मुद्दे को धार देने के साथ डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान को लेकर एजेंडा सेट करने में जुटा हुआ है। कांग्रेस और राहुल गांधी ने जिस तरह संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आक्रामक रुख अपना रखा है, ऐसे में संघ के लिए दलित-आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाना बड़ी चुनौती है। उधर एक सच यह भी है कि पिछले कुछ वर्षों में संगठन की लोकप्रियता और स्वीकार्यता में वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण संगठन द्वारा समाज में आधुनिकता के साथ पारंपरिक मूल्यों को महत्व दिया जाना है। इस कारण युवा पीढ़ी भी आरएसएस की ओर आकर्षित हो रही है। इसके अलावा संघ ने आपदाओं के समय और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इससे भी उसकी छवि बेहतर हुई है। इसके अलावा आरएसएस ने टेक्नोलॉजी का उपयोग कर युवाओं को जोड़ने के लिए ‘ज्वाइन आरएसएस’ जैसे आयोजन शुरू किए। सामाजिक सरोकार और सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश ने आरएसएस का आधार बढ़ाया है। संघ कभी ‘संगठन के लिए संगठन’की बात करता था, पर अब सामाजिक परिवर्तन की बात करता है। इसीलिए 50 साल संगठन को समर्पित करने, और 50 साल विस्तार के बाद संघ अब सामाजिक परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है। जहां पर संघ का संगठन पुराना है, वहां परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग, सामाजिक समरसता, एक मंदिर, एक श्मशान, एक जल स्रोत, नागरिक कानूनों के पालन पर जोर दिया जाता है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने 1940 के शिक्षा वर्ग में कहा था कि संघ का कार्य शाखा तक ही सीमित नहीं रखना है, उसे समाज में जाकर भी काम करना है।
समान नागरिक संहिता पर चल रहा काम : अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है और जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया गया है। तीनों आपराधिक कानूनों को बदलने के साथ एक देश-एक विधान का सपना भी साकार हो चुका है। अब इस समय संघ का कोर एजेंडा यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता का है। जिसे अमली जामा पहनाने का काम भी बीजेपी ने शुरू कर दिया है। उत्तराखंड राज्य के जरिए यूसीसी का सियासी प्रयोग चल रहा है। गोवा में पहले से ही यूसीसी लागू है। मध्यप्रदेश, गुजरात और असम ने इसके लिए कमेटी का गठन कर दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो संसद में साफ शब्दों में कह दिया है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करेंगे। दरअसल संघ ने अनुभव किया है कि हिंदू समाज में गरीबी है। ऐसे में उसकी पहली जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान है। इसके अलावा सामाजिक और जातीय भेदभाव भी धर्मांतरण का एक बड़ा कारण रहा है। जिसके चलते संघ ने सामाजिक समरसता और वनवासी कल्याण कार्यक्रम भी शुरू किए हैं। 1989 में डा. हेडगेवार की जन्मशती पर ‘सेवा निधि’ एकत्र कर ऐसे हजारों पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाये गये हैं, जो निर्धन बस्तियों को ‘सेवा बस्ती’ कहकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हजारों छोटे प्रकल्प चला रहे हैं। अपने हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के लिए ही संघ ने विश्व हिंदू परिषद की गठन किया था। और इसी संगठन ने राम मंदिर और गौ-रक्षा जैसे आंदोलन चलाए। इसके अलावा आरएसएस साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है। इसीलिए संघ ने जनसंघ नाम से राजनीतिक दल बनाया था जो अब भारतीय जनता पार्टी के रूप में काम कर रहा है। भाजपा इस समय विश्व की सर्वाधिक सदस्य संख्या वाली पार्टी है। हालांकि दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में टुकड़े-टुकडे में तीन बार थोड़े-थोडे़ समय के लिए सरकार बनी थी किंतु अब भाजपा देश की सत्ता पर प्रभावी रूप से 2014 से काबिज है। और संघ की परवरिश में निखर कर निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार एक मजबूत सरकार का संचालन कर रहे हैं। इतना ही नहीं, देश के 13 राज्यों में बीजेपी की अपने दम पर सरकार चल रही है, तो वह कई राज्यों में सहयोगियों के साथ सत्ता में है। बीजेपी के सत्ता में होने से संघ अपने कोर एजेंडे को भी अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहा है।
एक श्मशान, एक मंदिर, एक जल स्रोत पर भी जारी है काम : सामाजिक समरसता अभियान के जरिए ही आरएसएस ने कई चुनावों में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का काम जमीनी स्तर पर बखूबी किया है। संघ पिछले कई वर्षों से हर गांव में एक श्मशान, एक मंदिर और एक जल स्रोत के विकास पर काम कर रहा है। आरएसएस इस एजेंडे के जरिए चाहता है कि मंदिर को लेकर कोई भेदभाव ना हो, जल स्रोत पर कोई छुआछूत ना हो और जातियों के अलग श्मशान न हों। साथ ही जातियों के भीतर किसी एक वर्ग की श्रेष्ठता का भाव तीनों ही स्थानों पर कहीं न दिखे। इसे लेकर संघ काफी समय से कार्यक्रम करता रहा है। अब इसका असर दिखाई भी देने लगा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते रहे हैं कि भारत के हर शहर, हर कस्बे और हर गांव में संघ की शाखा होनी चाहिए, क्योंकि पूरे समाज ने उन्हें उनके लिए काम करने का अवसर दिया है।
आरएसएस पर कई बार प्रतिबंध भी लगाया गया : संघ ने अपने सौ साल के लंबे सफर में अगर कई उपलब्धियां अर्जित कीं हैं तो वहीं तीन बार उसपर प्रतिबंध भी लगा। संघ पर 1932 और 1940 में शासन ने आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन वे ज्यादा नहीं चल सके। 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, और संघ के दूसरे सर संघचालक गुरु गोलवलकर को बंदी बनाया गया, लेकिन 18 महीने के बाद ही संघ से प्रतिबंध हटा दिया गया। तब शासन, प्रशासन और जनता संघ के विरोध में थी। आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक संघ पर पाबंदी लगी। इसके बाद छह महीने के लिए 1992 के दिसंबर में लगी, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी, जिसे कुछ दिन बाद ही हटा दिया गया।
दिल्ली की बैठक में तय किया गया आगे का एजेंडा : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 4 से 6 जुलाई 2025 तक दिल्ली के केशव कुंज में हुई तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक में संगठनात्मक संरचना की समीक्षा की गई और आवश्यकतानुसार परिवर्तन और तबादले भी किए गए। इसके अलावा बैठक में शताब्दी वर्ष में होने वाले कार्यक्रमों को भी अंतिम रूप देकर तैयारियां के निर्देश दिए गए। बैठक में सर्वाधिक चर्चा यूसीसी और हिंदुत्व के एजेंडे पर हुई। यह भी निर्देश दिए गए कि संविधान पर बोलते समय सावधानी बरती जाए और कोशिश की जाए की न बोला जाए। स्वयंसेवकों और प्रचारकों को कहा गया कि वे दलितों और आदिवासियों के बीच अपनी पैठ बनाएं और उन्हें समझाएं कि वे हिन्दू हैं, और चंद पैसों के चक्कर में दूसरे धर्मों के बहकावे में मत आएं। कहा गया कि किसी भी तरह हिंदुओं को बंटने नहीं देना है। इसके अलावा समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के लिए पूरे देश में माहौल बनाने के निर्देश दिए गए। ताकि जब सरकार इस पर कदम उठाए तो विरोध का स्वर धीमा रहे। इसके अलावा देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में नयी शाखाएं प्रारंभ करने के भी निर्देश दिए गए। बैठक में सर संघचालक मोहन भागवत, सर सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, और देशभर के प्रांत प्रचारक, सह-प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक, और सह-क्षेत्र प्रचारक सहित लगभग दो सौ से अधिक कार्यकर्ता सम्मिलित हुए।
अभयानंद शुक्ल, राजनीतिक विश्लेषक