लखनऊ। एनडीए को तीसरे कार्यकाल की अनुमति मिल गई पर चेतावनी के साथ। इसलिए नई सरकार को ठिठक ठिठक कर चलना पड़ेगा। साथ ही विपक्ष को भी जनता ने राज चलाने लायक नहीं समझा है इसलिए उसे बहुमत से काफी दूर रखा है। कुल मिलाकर राष्ट्रीय राजनीति में फिर से गठबंधन युग का श्रीगणेश हो गया। हालांकि गठबंधन 2019 में भी था किंतु तब भाजपा अपने खुद के बहुमत के जोर पर गठबंधन के सहयोगियों को इग्नोर भी कर देती थी। किंतु अब भाजपा सरकार चलाएगी तो लेकिन ठसक के साथ नहीं। अब उसे निर्णयों के लिए सहयोगियों का मुंह देखना पड़ेगा। ऐसे में भाजपा के संकल्प पत्र के वे मुद्दे जो मतगणना के पूर्व तक प्रमुख थे, अब शायद ठंडे बस्ते में डाल दिए जाएं।
एनडीए सरकार के तीसरे टर्म के लिए कमजोर जनादेश मिलने के बाद अब बारी वादों को पूरा करने की है। नई सरकार को वे वादे तो पूरे करने ही हैं जिनका उल्लेख वर्ष 2024 के संकल्प पत्र ने किया गया है। पर उन वादों पर भी निगाह रखनी पड़ेगी जो वर्ष 2014 और 2019 में किए गए थे लेकिन किन्हीं कारणों से पूरे नहीं हो पाए हैं। केंद्र सरकार ने मतगणना परिणाम घोषित होने के पहले ही एक मीटिंग कर ली है। कुछ एजेंडा सेट भी कर लिया गया। पर अब शायद प्राथमिकताएं बदलें और उन पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत पड़े। इसलिए आगे लगातार मीटिंगों का दौर चलेगा जो मंत्रिपरिषद गठन के बाद और तेजी पकड़ेगा। किंतु यह तो तय ही है कि इस कार्यकाल में मुद्दे वही उठाए जाएंगे जो गठबंधन के सभी साथियों को स्वीकार हों और सभी उस पर एकमत हों। जनता ने भाजपा को कमजोर जनादेश देकर बता दिया है कि उसे सीमित दायरे में सबको साथ लेकर सरकार चलाना है।
अब आइए बात करते हैं उन वादों की जिन्हें पूरा करना एनडीए सरकार की प्राथमिकता होगी। इसमें सबसे प्रमुख काम किसानों की समस्याओं को सुलझाना होगा। क्योंकि किसान आंदोलन के दोषी के पिता और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को हराकर जनता ने यह संदेश दे दिया है कि उसे किसानों की नाराजगी पसंद नहीं है। एनडीए में शामिल घटक और विपक्ष के भी कई दल इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई के पक्षधर हैं। इसके अलावा जनता की सर्वाधिक जरूरत की चीज पेट्रोलियम के दामों में नियंत्रण का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है। परिणाम ने जता दिया है कि अब जनता इस मुद्दे को इग्नोर करने के मूड में नहीं है। यह मुद्दा जितना आम पब्लिक से जुड़ा है उतना किसानों से भी जुड़ा है। पेट्रोलियम पदार्थों में कमी की मांग काफी दिनों से हो रही है। किसानों की अन्य समस्याओं का भी सार्थक समाधान ढूंढना होना। विशेषकर एमएसपी के मामले पर। वादे के अनुसार सरकार को किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में भी गंभीर चिंतन करना होगा। किसान अभी नाराज है और भी कभी भी दिल्ली को घेरने के लिए आ सकता हैं। हवा के के इस बदले रुख में तो इसकी आशंका और बढ़ गई है। किसान संगठनों के नेताओं का कहना है कि हमने अपना आंदोलन स्थगित किया है, समाप्त नहीं। ऐसे में एनडीए के तीसरे कार्यकाल का ये प्रमुख एजेंडा होगा।
इसी प्रकार महिला कल्याण और महिला आरक्षण का मुद्दा भी सरकार के प्रमुख मुद्दों में शामिल होगा। मोदी सरकार ने पहले ही महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने के लिए कानून पास कर दिया है। और अब बारी है उसके क्रियान्वयन की। उम्मीद की जाती है कि अगला लोकसभा चुनाव आने तक इस बारे में शासनादेश जारी कर दिया जाएगा। भाजपा ने जब अपना संकल्प पत्र जारी किया था तो उसमें किसान, युवा, महिला और गरीब को प्राथमिकता पर रखने का संकल्प दिखाया था। वैसे भी ये मुद्दे ऐसे हैं जिन पर सारे दल एकमत होंगे।
एनडीए सरकार का यह तीसरा कार्यकाल इस बात को भी ध्यान में रखेगा कि नौजवानों को संतुष्ट करने के लिए सरकारी नौकरियां में तुरंत भर्ती कितनी जल्दी शुरू की जाए। इस मुद्दे ने भाजपा को चुनाव में बहुत चोट पहुंचाई है। नौजवानों ने इस मुद्दे पर अपनी नकारात्मक वोटिंग दिखा कर अपनी नाराज़गी का इजहार कर दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग का ट्रेंड साफ साफ इशारा कर रहा है। ऐसे में बेरोजगारी दूर करना और सरकारी नौकरियों में तुरंत भर्ती शुरू करना इस सरकार के एजेंडे में शामिल रहेगा।
हालांकि जम्मू कश्मीर की जनता ने उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को चुनाव हराकर इस बात का संकेत दे दिया है कि वह मोदी 2.0 के कार्यकाल में अनुच्छेद 370 हटाए जाने की समर्थक है। इसीलिए वहां पर रिकॉर्ड वोटिंग भी हुई। अब इसके बाद पीओके की वापसी का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया जाना था। किंतु शायद गठबंधन के साथी इस मुद्दे से थोड़ा परहेज करें। साथ ही यह भी कि इस पर निर्णयात्मक कार्रवाई करने के लिए सदन में पर्याप्त समर्थन की कमी होगी।
पीओके की वापसी और पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने के लिए चुनाव के दौरान अपने भाषणों में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के अन्य नेताओं ने इस मुद्दे पर जनता से पूछा भी था कि आपको पीओके आपस लेना है कि नहीं, और अगर लेना है तो हमें प्रचंड बहुमत की सरकार दीजिए। अब चूंकि जनता ने मजबूत जनादेश नहीं दिया है ऐसे में हो सकता है कि यह मुद्दा ठंडे बस्ते में रहे। इसके अलावा काशी, मथुरा के धार्मिक मुद्दे, सीएए, एनआरसी, यूसीसी जैसे मुद्दे भी फिलहाल ठंडे बस्ते में ही रहेंगे।
प्रधानमंत्री ने अनिश्चित वैश्विक दौर में एक स्थिर बहुमत वाली सरकार की आवश्यकता बल दिया था। पर देश की जनता ने इसे पूरा नहीं किया है। भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में एक राष्ट्र-एक चुनाव लागू करने की दिशा में काम करने का वचन दिया था। साथ ही इस बात पर भी बल दिया कि समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय हित में पूरे देश में लागू किया जाएगा। अभी समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड देश के दो राज्यों गोवा और उत्तराखंड में ही लागू है। मोदी सरकार का यह नैतिक दायित्व होगा कि इसे पूरे देश में लागू करने की दिशा में सार्थक कदम उठाए।
भाजपा के संकल्प पत्र में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ व्यवस्था को लागू करने और चुनावों के लिए एक मतदाता सूची तैयार करने का भी वचन दिया था यह भी कहा गया था कि इसे वर्ष 2029 के आम चुनाव से लागू कर दिया जाएगा। अब देखना होगा कि भाजपा इस दिशा में कितनी ईमानदारी से काम करती है। इसके अलावा रेल यात्रा के लिए प्रतीक्षा सूची समाप्त करने, 5जी नेटवर्क का विस्तार करने और दुनिया भर में रामायण महोत्सव आयोजित करने का वादा किया था। भाजपा को अपने इस वादे पर भी गंभीरता से कार्य करना होगा। इसके अलावा संकल्प पत्र के अनुसार तमिलनाडु की जनता से एक वादा यह भी किया गया था कि दुनिया भर में तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र बनाने की दिशा में काम किया जाएगा। कहा गया था “हम दुनिया भर में तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र बनाएंगे। दुनिया की सबसे पुरानी भाषा तमिल हमारा गौरव है। भाजपा इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। तिरुवल्लुवर एक प्रसिद्ध तमिल कवि और दार्शनिक थे। भाजपा ने देश के नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना कर तमिलनाडु के लोगों का दिल जीतने की कवायद तो पहले ही शुरू कर दी थी। अब तिरुवेल्लूर संस्कृतिक केंद्र की स्थापना का यह प्रयास कब तक सार्थक होगा यह देखने वाली बात होगी।
विदेश नीति के मोर्चे पर संकल्प पत्र के वादों से इतर चीन पर भी दबाव बनाए रखना होगा। ताकि वह हमारे पड़ोसियों के जरिए हमें परेशान करने की कोशिश न करे। अब उससे आंख में आंख मिला कर बात करनी होगी। अपने चुनावी भाषणों में मोदी से लेकर भाजपा के सभी बड़े नेताओं ने भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का वादा किया था। सरकार को इस दिशा में भी गंभीरता से प्रयास करना होगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार और विपक्ष की मांग पूरी करने के लिए जम्मू कश्मीर में स्थितियों में और सुधार लाकर विधानसभा चुनाव कराना भी सरकार का प्रमुख दायित्व होगा।
मोदी सरकार को एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू करने के साथ ही चुनाव कराने का समय भी बदलकर आम जनता और मतदान कार्मिकों को राहत देनी होगी। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कई जगह की जनता गर्मी बहुत होने के कारण मतदान करने नहीं गई। साथ ही कई मतदान कार्मिक गर्मी की भेट भी चढ़ गये। हालांकि चुनाव आयोग ने अपनी 3 जून 2024 की पत्रकार वार्ता में इस पर चिंता व्यक्त की थी और इसे दूर करने का आश्वासन भी दिया।
भाजपा का ट्रम्प कार्ड और नारी शक्ति बंदन कार्यक्रम भी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। हालांकि भाजपा ने अपने दूसरे कार्यकाल में ही महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने का कानून पास कर दिया है किंतु अभी उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि इस मुद्दे पर भी तेजी से काम होगा। और महिलाओं को उनका हक अगले चुनाव में जरूर मिल जाएगा।
भाजपा और सरकार का सबसे अहम मुद्दा अपने उत्तराधिकारी का चुनाव भी करना है। जैसा कि भाजपा में स्थापित परंपरा है कि 75 साल की आयु पूर्ण करने के बाद नेताओं को रिटायरमेंट दिया जाता है। इसमें डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी का नाम प्रमुख है। और अब नई पीढ़ी को मौका दिया जाता है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अगले एक-दो सालों में 75 वर्ष की आयु पूरी करने वाले हैं, के उत्तराधिकारी के बारे में भी चर्चा शुरू हो गई है। इसे तो विपक्ष में भी मुद्दा बनाया था। चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो जनता से यहां तक कह दिया था कि मोदी यह चुनाव अपने लिए नहीं, अमित शाह के लिए लड़ रहे हैं। इसलिए सोच समझकर वोट देना। उन्होंने बार-बार भाजपा की परंपरा का हवाला दिया।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक