भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका सहित कई देश कोयला का उपयोग बंद करेंगे। जी हाँ, भारत भी बना क्लाइमेट फंड की अरबों डॉलर की योजना का हिस्सेदार … इंडोनेशिया और फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत भी क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट फंड्स (सीआईएफ) की अरबों डॉलर की उस योजना का हिस्सा होगा, जिसके तहत कोयले को छोड़कर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की ओर जाने को गति देने का प्रस्ताव है।
भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका कोयले से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 15 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं। इस योजना का मकसद उत्सर्जन में कटौती की गति तेज करना है ताकि 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने के लक्ष्य के और करीब पहुंचा जा सके।
इंडोनेशिया के ऊर्जा मंत्री अरिफिन तसरीफ ने कहा है कि उनका देश कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को बंद कर उनकी जगह नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों पर निर्भरता बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है। एक बयान जारी कर उन्होंने कहा, “जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है जिससे निपटने के लिए सभी पक्षों उदाहरण पेश करने होंगे।”
सीआईएफ ने कहा कि एक्सलरेटिंग कोल ट्रांजीशन (एसीटी) योजना के तहत सबसे पहले ऐसे विकासशील देशों को लक्ष्य किया जा रहा है। जिनके पास कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए समुचित साधन नहीं हैं। दक्षिण अफ्रीका ने कहा था कि वह एसीटी से लाभान्वित पहला देश होगा।
देंगे सात देश मदद : सीआईएफ के मुताबिक इस नई योजना को सात सबसे विकसित समर्थन दे रहे हैं और अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और डेनमार्क ने इसके लिए वित्तीय समर्थन दिया है। डेनमार्क ने कहा है कि वह इस योजना के लिए 1.55 करोड़ डॉलर यानी लगभग एक अरब 15 करोड़ रुपये का अनुदान देगा ताकि “कोयला बिजली संयंत्रों को खरीदकर बंद किया जा सके और नए ऊर्जा स्रोतों में निवेश किया जा सके।”
डेनमार्क के विदेश मंत्री येप्पे कोफोड ने कहा है कि, “कोल ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने के लिए हमें एक स्थायी और स्थिर योजना की जरूरत होगी। मिसाल के तौर पर हमें यह सुनिश्चित करना होगा स्थानीय आबादी के लिए वैकल्पिक रोजगार और उन्हें दोबारा ट्रेनिंग उपबल्ध हो।”
ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए कोयला सबसे अधिक जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन है। सीआईएफ के प्रमुख मफाल्दा डुआर्टे कहते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल भविष्य की राह में कोयला एक बड़ा रोड़ा है। डुआर्टे कहते हैं, “बाजार अब सही दिशा में बढ़ना शुरू कर रहे हैं लेकिन यह स्थानांतरण उस गति से नहीं हो रहा है। जितना जलवायु संकट की आपातकालीन स्थित से निपटने के लिए जरूरी है।”
सीआईएफ को 2008 में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने गरीब देशों की कोयले और अन्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने के लिए बनाया गया था। यह ऐसी परियोजनाओं में निवेश करेगा जिनके जरिए विकासशील देशों की ऊर्जा हस्तांतरण की क्षमताओं को बढ़ाया जा सके। इसके लिए कोयला संयंत्रों को बंद करने और कोयले पर निर्भर समुदायों को विकल्प उपलब्ध कराने जैसी गतिविधियों में निवेश किया जाएगा। योजना के लिए छह विकास बैंकों के साथ मिलकर काम किया जाएगा। ये बैंक एक विस्तृत वित्तीय योजना के तहत तकनीकी मदद और सस्ते कर्ज उपलब्ध करवाएंगे।
भारत को चाहिए बड़ी मदद : फरवरी में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत का कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 2040 तक 50 प्रतिशत बढ़ने वाला है और यह इसी अवधि में यूरोप में उत्सर्जन में संभावित रूप से होने वाली कमी को पूरी तरह से बेकार कर देगा।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता है और उसकी अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर इस ऊर्जा स्रोत पर निर्भर है। इसीलिए अपने कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को लेकर वह उलझन में रहा है। ग्लासगो में भारत ने ऐलान किया है कि 2070 तक वह नेट जीरा का लक्ष्य हासिल करेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि तब तक बहुत देर हो जाएगी क्योंकि 2050 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल ना हुआ तो पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ने से रोकना मुमकिन नहीं होगा।
भारत और अन्य विकासशील देश कहते हैं कि कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए उन्हें वित्तीय मदद की जरूरत होगी। आईईए के मुताबिक अगले 20 सालों में भारत को लंबे समय तक चल सकने वाले एक रास्ते पर लाने के लिए अतिरिक्त 1400 अरब डॉलर के जरूरत है, लेकिन इस समय भारत की नीतियां जो इजाजत देती हैं वो इससे 70 प्रतिशत कम है। भारत और दूसरे विकासशील देश चाहते हैं कि अमीर देश उत्सर्जन कम करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएं क्योंकि ऐतिहासिक रूप से ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए वो ज्यादा जिम्मेदार हैं और उनके प्रति व्यक्ति कार्बन पदचिन्ह भी कहीं ज्यादा बड़े हैं।