साइबर धोखाधड़ी से सुरक्षा देने की बीमा नीति का अभाव

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डिजिटलीकरण की तेज बयार से किसी न किसी रूप में रोजमर्रा के क्रियाकलापों को और खासकर वित्तीय क्षेत्र तो सबसे ज्यादा प्रभावित करता जा रहा है। वित्त और वित्तीय सेवा क्षेत्र के कई नियामकों ने आगे के तकनीकी परिदृश्य और उसमें उत्पन्न होने वाले साइबर जोखिमों से निपटने की समुचित व्यवस्था करने में आगे हैं।

पर बीमा क्षेत्र इस मामले में ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की पुरानी कहावत को चरितार्थ करता है। साइबर विशेषज्ञों के अनुसार देश में साइबर धोखाधड़ी के मामले सालाना 15-20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहे हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि इसके पूर्व वित्तीय वर्ष में साइबर धोखाधड़ी के 50 हजार मामले सामने आए थे।

एक नहीं कई देश अपने नागरिकों को साइबर अपराधियों से सुरक्षित रखने के नये-नये उपाय करते जा रहे हैं। अपने देश का बीमा नियामक अभी तक सालों से बरकरार सालाना अरबों रुपए की धोखाधड़ी से मुक्त नहीं कर सका और अब साइबर हमलों, डाटा ब्रीच की एक ऐसी नई समस्या आन पड़ी है। जिससे आम बीमा ग्राहक की ही तरह नियामक भी बेखबर है।

देश में 2020 में जनवरी से अगस्त तक साइबर ब्रीच के 6.96 लाख मामले हुए जोकि 2019 की समान अवधि में हुए 3.94 लाख की तुलना में 76% अधिक हैं। इतनी तेज रफ़्तार है साइबर अपराधियों की कारगुज़ारियों की। दवाओं के उत्पादन-निर्यात की विख्यात कंपनी डा. रेड्डीज़ लैब और ल्युपिन पर साइबर आक्रमण किए जा चुके हैं।

अंतर्राष्ट्रीय साइबर विशेषज्ञों और फर्मों ने भारत के वित्तीय, निर्यात प्रतिष्ठानों, बीमा, ई- काॅमर्स, रिटेल, शोध-अनुसंधान प्रतिष्ठानों, फार्मा एमएसएमई क्षेत्र और डिजिटल भुगतान उद्योग पर साइबर अपराधियों के आक्रमण बढ़ने के खतरे से सचेत रहने को कहा है।

विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) तो पहले ही विभिन्न निर्यात संवर्धन परिषदों और सीधे निर्यातकों तक से अभेद्य साइबर क़िलाबन्दी करने की एडवाइज़री जारी कर चुका है। भारतीय बीमा बाजार में साइबर अपराध और इससे बचाव के बारे में आम पाॅलिसीधारकों में जागरूकता का स्तर उतना ही है जितना बीमा नियामक में।

देश में आधा दर्जन से भी कम बीमा कंपनियां ऐसी हैं जो अपने ग्राहकों को साइबर खतरों के जोखिम से बचने के लिए अथवा ‌होने वाले नुकसानों के सापेक्ष बीमा कवच उपलब्ध करा रही हैं। एचडीएफसी एर्गो, बजाज एलियांज, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड और एसबीआई लाइफ। इनमें भी एसबीआई लाइफ का सुरक्षा कवच सीमित है।

देश में उद्योग, धनाढ्य और भारी पे पैकेज प्राप्त वेतनभोगी प्रोफेशनल लेने लगे हैं। साइबर बीमा पॉलिसी लेकिन इनकी संख्या और बढ़ते जोखिमों को देखते हुए बहुत कम। निर्यात में सक्रिय उद्योग, बैंक, बौद्धिक संपदा (आईपी) और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियां साइबर अपराध से बचाव के लिए साइबर बीमा पाॅलिसी लेती हैं।

डाटा चोरी और खातों को सुरक्षित रखने के लिए टेक स्टार्टअप कंपनियां 7-8 करोड़ रु से लेकर 15 करोड़ रु तक की, डिजिटल भुगतान में लगी फिनटेक कंपनियां 30-35 करोड़ से लेकर 70-75 करोड़ रु तक और वाणिज्यिक बैंक 80-100 करोड़ से लेकर 150-200 करोड़ रु का साइबर बीमा कवच लेने लगे हैं। 2020, मार्च में समाप्त वित्तीय वर्ष में देश के दो बड़े बैंकों ने 750 करोड़ रु का साइबर बीमा कराया।

बीमा विशेषज्ञों ने बताया कि इधर सहकारी बैंक भी साइबर बीमा सुरक्षा प्राप्त करने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। देश में मौजूदा में उपलब्ध साइबर बीमा पालिसियां पांच प्रकार के जोखिम कवर करती हैं। इनमें व्यक्तिगत स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं, व्यक्तिगत पहचान संबंधी ब्यौरा, पेमेंट कार्ड्स सूचनाएं, डाटा होस्टिंग, आउट सोर्सिंग इलेक्ट्रॉनिक प्रोसेसिंग या डाटा स्टोरेज और थर्ड पार्टी की गोपनीय सूचनाएं हैं।

साइबर खतरों को देखते हुए देश बीमा सुरक्षा के मामले में शैशव अवस्था से आगे विकसित नहीं हो सका है। देश में यूं तो वर्ष 2014 में व्यक्तिगत साइबर बीमा की शुरुआत हो गई थी। फिर भी नियामकीय प्रावधानों के अभाव की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर 2017 तक सिर्फ 250 साइबर पाॅलिसियां और 2018 तक 350 पालिसियां काॅर्पोरेट की बिक पाई थीं।

सामयिक बदलाव और उनके अनुसार नियम कानूनों में संशोधन अथवा जरूरत के आधार पर नये कानून का‌ निर्माण करने में टालमटोल नहीं की जानी चाहिए। भारतीय बीमा उद्योग का नियामकीय तंत्र सिर्फ़ दो दशक पुराना है लेकिन इसकी ओवरहाॅलिंग की सख्त जरूरत है। रिटायरमेंट के बाद किसी शीर्ष पद पर तैनाती देकर राजनीतिक हित भले ही पूरे किए जा सकते हैं लेकिन ऊर्जा से लबालब भरे नेतृत्व से ही कोई संस्था अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में सफल हो सकती है।

बीमा नियामक को ऐसे डैशिंग नेतृत्व की तात्कालिक आवश्यकता है जो बाजार शक्तयों के आगे घुटने टेकने के बजाय इसकी ढीली पड़ी चूलों को कसे भी और समूचे उद्योग, इस पर आश्रित करोड़ों उपभोक्ताओं का हितसाधक बने। यह बताना जरूरी है कि अपने देश के बीमा क्षेत्र को अभी तक नेशनल इंश्योरेंस क्राइम ब्यूरो या नेशनल एसोसिएशन आॅफ इंश्योरेन्स कमिश्नर्स अथवा कोलिशन अगेंस्ट इंश्योरेन्स फ्राॅड जैसी संस्थाएं क्यों नहीं उपलब्ध कराई गईं ?

प्रणतेश नारायण बाजपेयी