क्या अब पार्टी में अकेले पडते जा रहे हैं योगी

* लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा योगी सिर फोड़ने की की जा रही है कोशिश * परिस्थितियां ऐसी बन रहीं कि एक बार फिर राम प्रकाश गुप्ता जैसा चेहरा बन सकता है सीएम * अनुप्रिया और केशव मौर्य के बयानों की टाइमिंग भी किसी बड़े के वरदहस्त का संकेत तो नहीं * सहयोगी पार्टियों भी योगी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटीं, संजय निषाद ने भी किया कमेंट

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लखनऊ। योगी आदित्यनाथ की स्थिति भाजपा में उस व्यक्ति जैसी हो गई है, जिसके बारे में अफवाह फैल जाए कि वह गरीब हो गया है, और लोग एक-एक करके साथ छोड़ जाएं। भोजपुरी में कहावत भी है कि-बनले के सार सब केहू, बिगड़ले के बहनोई भी केहू ना। अर्थात आपके सब कुछ है तो सभी अपने हैं और जैसे ही आप कमजोर हुए तो अपने भी साथ छोड़ जाते हैं। अर्थात, भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में कमजोर क्या हो गई, पार्टी के अंदर और बाहर सारे तीर योगी के खिलाफ चलने लगे हैं। उनके सारे विरोधी एक स्वर में बयान देने लगे हैं। वह तो भला हो, सहारनपुर के कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और गाजीपुर के सपा सांसद अफजाल अंसारी का, जिन्होंने योगी के जख्मों पर थोड़ा मरहम लगाया है और कहा है कि भाजपा में योगी के खिलाफ साजिश हो रही है। अन्यथा माहौल तो ऐसा ही बनाया गया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पार्टी में अकेले पड़ गए हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 का परिणाम आने के बाद यूपी में भाजपा का खराब प्रदर्शन देखकर पार्टी में हायतौबा मची हुई है। अब लोग उस व्यक्ति की तलाश में लगे हुए हैं जिसके सिर पर हार का ठीकरा फोड़ा जाए। इसी क्रम में पार्टी में योगी आदित्यनाथ के विरोधी सक्रिय हो गए हैं। उनकी कोशिश है कि इसके लिए योगी को जिम्मेदार ठहराया जाए। दरअसल योगी के कार्यकाल में पार्टी नेताओं और सहयोगी पार्टियों के लोगों को अपने मन माफिक करने का मौका ही नहीं मिला। सबकी दुकानदारी बंद हो गई। इसके चलते इन नेताओं की योगी से नाराजगी चली आ रही है। अब उन्हें मौका मिला है तो जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। खबर यह भी है कि भाजपा में नरेंद्र मोदी के बाद कौन बड़ा नेता है, इसको लेकर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ में ठनी हुई है। देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री होने के नाते जहां योगी आदित्यनाथ की दावेदारी इस पर लगातार बनी हुई है, वहीं मोदी सरकार के तीसरे टर्म में भी लगातार सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में बने रहने वाले अमित शाह की भी स्वाभाविक दावेदारी बताई जा रही है।

योगी आदित्यनाथ को जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन प्राप्त है वहीं अमित शाह को पार्टी के सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी का समर्थन प्राप्त है। वे अभी भी नरेंद्र मोदी के बाद पार्टी और सरकार के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में काम कर रहे हैं। ये अलग बात है कि पार्टी में कई लोगों को यह पसंद नहीं आ रहा है। अगर गौर करें तो 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से गृह मंत्री अमित शाह ने अभी तक संभवतः यूपी का दौरा नहीं किया है। जबकि चुनाव के पूर्व उनकी यूपी में आमद लगातार बनी रही। जानकार इसे भाजपा हाई कमान की दोनों के बीच शीतयुद्ध रोकने की कवायद के रूप में देख रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि यूपी के टिकट वितरण में भी योगी आदित्यनाथ की बहुत नहीं चली। तमाम जगहों पर टिकट में बदलाव की बात कहने के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ की बात नहीं मानी और प्रत्याशियों की सूची दिल्ली से भेज दी गई। अब जब बीजेपी यूपी में आधी हो गई है तो ऐसे में कलह और बढ़ गई है।

कुछ जानकार इसे कल्याण सिंह बनाम अटल बिहारी वाजपेई जैसी पिक्चर के रूप में देख रहे हैं। उस समय केंद्रीय नेतृत्व से मतभेद के बाद कल्याण सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। कल्याण सिंह उसके बाद नाराज होकर अपनी राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाकर मुलायम सिंह यादव के खेमे में चले गए थे। उन्होंने मुलायम सिंह के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। हालांकि कल्याण सिंह का यह निर्णय गलत साबित हुआ और उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई। बाद के दिनों में वे फिर भाजपा में आए और अपनी गलती के लिए प्रायश्चित भी किया था। चर्चा है कि जैसा कल्याण सिंह के साथ हुआ था वैसा ही कुछ योगी आदित्यनाथ के साथ होगा। और कोई भूला-बिसरा चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में लाद दिया जाएगा। इस मामले में यह भी सच है कि राम प्रकाश गुप्ता के बाद पार्टी अगला चुनाव हार गई थी। पर जब बात नेताओं की जिद पर आती है तो ऐसी घटनाएं होती ही हैं।

भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में केशव प्रसाद मौर्य का बयान और चुनाव में हार के बाद अनुप्रिया पटेल के बयान की टाइमिंग भी काबिले गौर है। ये कुछ तो इशारा करता ही है। लगता है कि पिछड़े वर्ग के ये दोनों नेता योगी सरकार के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह मामला योगी को दबाव में लेकर उनसे इस्तीफा दिलवाने की पुरजोर कोशिश का है। केशव प्रसाद मौर्य ने कार्यकारिणी की बैठक में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि जो दर्द आपका है, वही मेरा है। परंतु आप लोगों को एक बात समझनी चाहिए कि संगठन सरकार से बड़ा था, है और रहेगा। केशव प्रसाद मौर्य द्वारा सरकार में इतने दिनों रहने के बाद संगठन की सुपरमेसी की बात करना कुछ इशारा जरूर इशारा करता है। कहीं यह प्रदेश सरकार द्वारा भाजपा संगठन की उपेक्षा पर तंज तो नहीं था। इतने दिनों तक चुप्पी साधे रहने वाले केशव प्रसाद मौर्य में इतनी ऊर्जा कहां से आ गई। कहीं ये केंद्रीय नेतृत्व की शह पर तो नहीं। कहीं यह उनके संगठन में जाने के संकेत तो नहीं। जानकारों का मानना है कि यह भी हो सकता है कि यह यूपी भाजपा की राजनीति में किसी नये चेहरे को चस्पा करने की रणनीति का हिस्सा हो।

भाजपा की सहयोगी पार्टी अपनादल सोनेलाल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने भी कुछ दिन पहले सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग की उपेक्षा को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने बाकायदा प्रदेश सरकार को पत्र भेज कर चिंता जताई थी और कार्रवाई की मांग की थी। उनका आरोप था कि नियुक्तियों में पिछड़े वर्ग का आरक्षण यह कहके मारा जा रहा है कि उचित प्रत्याशी नहीं मिले, इसलिए जनरल केटेगरी से भरा गया। प्रदेश सरकार ने पत्र का जवाब देते हुए उनके आरोपों को खारिज कर दिया था और कहा था कि ऐसा कुछ भी नहीं है। सब नियम के अनुसार किया जा रहा है। इसके बाद उन्होंने प्रदेश में 69000 शिक्षकों की लंबित नियुक्ति का मामला भी उठाया और उसमें शीघ्र कार्रवाई की मांग की। अनुप्रिया पटेल का यह स्टैंड अचंभित कर गया। मोदी सरकार के मंत्री के रूप में वे लगातार एनडीए से जुड़ी हुई हैं। उन्हें इतने दिनों तक इसकी चिंता क्यों नहीं हुई। अचानक इस तरह की बयानबाजी का लोग निहितार्थ तलाशने में लगे हुए हैं। कोई इसे केशव प्रसाद मौर्य की बयानबाजी का पूर्वाभ्यास बता रहा है तो कोई केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रमोशन न मिलने की हताशा बता रहा है। उनका बयान यूं ही नहीं था, वह शायद मौके पर चौका मार रही थीं और पिछड़े वर्ग में विशेषकर कुर्मी बिरादरी में कमजोर हो रही अपनी पैठ को मजबूत करने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन टाइमिंग को लेकर सवाल उठाने वाले इसे योगी आदित्यनाथ के खिलाफ साजिश बताते हैं।

केशव प्रसाद मौर्य के बाद भाजपा नेता और सूबे के राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने भी प्रदेश की सरकारी मशीनरी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनका आरोप है कि ब्यूरोक्रेसी निरंकुश हो गई है, कार्यकर्ताओं की सुनती ही नहीं है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य जी ने जो बात कही है, बिल्कुल सही है। गोरखपुर की राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले बीजेपी एमएलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह ने सरकार के स्टैंड से अलग जाकर प्रदेश में शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी की व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस मामले में ब्यूरोक्रेसी की साज़िश को भी निशाने पर रखा हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में जो सवाल उठाए हैं, बिल्कुल सही हैं।

इसके अलावा प्रदेश सरकार में भागीदार निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने भी कहा है कि जब आप लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाएंगे तो वे आपको वोट कैसे देंगे। उनके हिसाब से हार का एक कारण यह भी है। इसके अलावा पार्टी के विधायक रमेश मिश्र ने भी सरकारी मशीनरी पर आरोप लगाया था। हालांकि बाद में वह अपने बयान से पलट गये और कहा कि मेरे बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया।

इस बाबत वरिष्ठ पत्रकार अभय दूबे का कहना है कि बीजेपी कभी हुआ करती थी कार्यकर्ता आधारित पार्टी पर अब नहीं है। अब उसका कांग्रेसीकरण हो गया है। भाजपा अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पार्टी हो गई है। इसमें अब पहले वाली बात नहीं रही। इस बाबत फैजाबाद से सपा के सांसद अवधेश प्रसाद पासी ने कहा है कि बीजेपी का समय अब खत्म हो चुका है। अब समाजवादी पार्टी का समय आ गया है। उसे यह बात अब समझ लेनी चाहिए।

हालांकि भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में योगी आदित्यनाथ में अपने मंसूबे एकदम साफ कर दिए हैं कि वे किसी भी दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि उछल-कूद करने वालों को कोई मौका नहीं दिया जाएगा। इसलिए सभी लोग जुटकर पार्टी की गई साख को वापस लेने का प्रयास करें। क्योंकि अगर पार्टी ही नहीं रहेगी तो न कोई जिला अध्यक्ष रहेगा, न नगर प्रमुख रहेगा, न जिला पंचायत अध्यक्ष रहेगा, न विधायक रहेगा और न ही सांसद रहेगा। पार्टी है तो सब है, पार्टी नहीं है तो कुछ भी नहीं। और यह बात सबको समझनी होगी। पार्टी विधायक त्रिभुवन राम ने मुख्यमंत्री के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि हम अपने दलित वोट बैंक को सहेज नहीं पाए और अति आत्मविश्वास ने धोखा दे दिया। मुख्यमंत्री ने अपनी पूरी क्षमता से काम किया है। उन्होंने साथ ही कहा कि पार्टी में बदलाव समय की मांग है।

इस बीच योगी आदित्यनाथ की विधायकों से मुलाकात लगाऊजारी है। जानकारों का कहना है कि ये विधायकों को अपने साथ बनाए रखने और हाईकमान पर दबाव की कवायद है। परंतु पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी इसे रूटीन का काम बता कर इस सवाल को टाल देते हैं। कुल मिलाकर पार्टी में हार पर चिंतन की बजाय एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करके माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है। किसी को पार्टी की चिंता नहीं। सबका अपना इगो है, अपना स्वार्थ है। और उसी को देखकर काम हो रहा है। उधर भाजपा को कमजोर पड़ता देख उसकी सहयोगी पार्टियां भी सिर उठाने लगी हैं। अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद का बयान इसी की तरफ इशारा कर रहा है। देखें ये लड़ाई आगे क्या मोड़ लेती है परंतु जो भी होगा विधानसभा उपचुनाव के बाद ही। पार्टी में अंदर खाने चर्चा है कि भाजपा हाईकमान यूपी में योगी आदित्यनाथ को आगामी विधानसभा उपचुनावों के लिए खुली छूट दे देगी। ताकि अगर पार्टी जीत जाती है तो वो कह सकेगा कि हमने योगी को फ्री हैंड देकर पार्टी की परिस्थितियां बेहतर करने का एक मौका दिया और अगर हार गई तो योगी के खिलाफ एक्शन लेने में सुविधा होगी। यानी पार्टी हाईकमान के दोनों हाथों में लड्डू रहेंगे।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक